
1962 में भारत को चीन के हाथों बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा था | इस हार ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया था कि क्या हम चीन जैसे देश की ताक़त का मुकाबला कर सकते हैं या नहीं |
अभी भारत इस हार के सदमे से पूरी तरह उभरा ही नहीं था कि पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला कर दिया | 1962 की लड़ाई में हार और प्रधानमंत्री पंडित ज्वाहरलाल नेहरू की मई 1964 में मृत्यु के बाद पाकिस्तान को लगा की ये समय उसके लिए सबसे सही है |
1965 की इस लड़ाई में पाकिस्तान का मकसद जम्मू कश्मीर में विद्रोह पैदा करना था | पाकिस्तान की मंशा थी कि जम्मू कश्मीर की मिलिटरी सप्लाई लाइन को पूरी तरह से काट दिया जाए और आज़ादी की लड़ाई का नाम लेकर जम्मू कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाए |
65 की उस जंग में “असल उत्तर” में एक निर्णायक लड़ाई लड़ी गई थी | इस लड़ाई में अब्दुल हमीद ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तान के पेटन टेंकों को नष्ट कर दिया था |
अब्दुल हमीद ने एक दो नहीं बल्कि 7 अमेरिकन पेटन टैंकों को ध्वस्त कर पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया था | भारत के इस बहादुर वीर का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले में एक छोटे से गाँव धामूपुर में हुआ था |
अब्दुल हमीद का बचपन
उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था जो कि एक टेलर थे | हामिद अपने पिता के काम में उनका हाथ बँटाया करते थे लेकिन उनका मन टेलर के काम में बिल्कुल नहीं लगता था |
उनका मन तो पहलवानी करने, लाठी चलाने और गुलेल से निशाने लगाने में ज़्यादा लगता था | उनका निशाना बहुत ज़्यादा सटीक होता था | खुद कुश्ती की प्रैक्टिस करने के साथ साथ वो बच्चों को भी कुश्ती सिखाया करते थे |
6 फुट 3 इंच की लंबी कद काठी के अब्दुल हामिद जब 20 वर्ष के हुए तो वाराणसी में चल रही सेना की भर्ती में शामिल हुए जहाँ उनका आर्मी में सेलेक्शन हो गया |
ग्रेनडियर्स रेजिमेंटल सेंटर नासीराबाद में ट्रैनिंग पूरी करने के बाद उनकी पोस्टिंग 4 ग्रेनडियर्स में हो गई | 65 की लड़ाई में साहस दिखाने से पहले अब्दुल हमीद 1962 की लड़ाई में भी लड़ चुके थे |
सबके रोकने के बाद भी तुरंत पहुँचे युद्ध के मैदान में
65 की जिस लड़ाई में वो लड़ रहे थे उसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी टैंकों की लड़ाई कहा जाता है |
जब 65 की लड़ाई शुरू होने के आसार थे तो अब्दुल हमीद अपने घर आए हुए थे | वहाँ उन्हें ड्यूटी पर वापिस पहुँचे का संदेश मिला | उनकी पत्नी रसूलन बीवी चाहती थी की वो कुछ दिन और रुक जाएँ लेकिन अब्दुल हामिद का फ़र्ज़ उन्हें बुला रहा था |
समान बाँधते हुए अचानक रस्सी टूट जाने से उनका सारा सामान ज़मीन पर बिखर गया | उनकी बीवी ने कहा की ये अपशगुन है, और वो कम से कम उस दिन यात्रा ना करें |
लेकिन हामिद ने उनकी ये बात भी अनसुनी कर दी और कहा की उनका देश उन्हें बुला रहा है | जब वो साइकल से स्टेशन की ओर जा रहे थे उनकी साइकिल की चैन टूट गई, जिसके बाद उनके दोस्तों ने भी उन्हें नहीं जाने की सलाह दी पर उन्होने रुकने से मना कर दिया |
यही नहीं साइकल की चैन टूट जाने के कारण वो लेट हो गये और उनकी ट्रेन भी छूट गई | इसके बाद भी देश के प्रति समर्पण और प्यार ने उन्हें रुकने नहीं दिया |
उन्होने अपने दोस्तों को वापिस भेज दिया और रात की ट्रेन के इंतज़ार में स्टेशन पर बैठ गये और दूसरी ट्रेन पकड़कर पंजाब आ गये |
हामिद पंजाब के तरण तारण जिले के खेमकरण सेक्टर पहुँचें | जहाँ उनकी ड्यूटी असल उत्तर और चीमा गाँव के बीच बाहरी इलाक़े में लगाई गई, जहाँ कपास और गन्ने के खेत थे |
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पेटन टैंकों के साथ पाकिस्तान ने किया हमला
8 सितम्बर को पाकिस्तान ने अमेरिकन पेटन टेंकों के एक बड़े जखीरे के साथ हमला किया | पाकिस्तान को इन अमेरिकन पेटन टेंकों पर बहुत नाज़ था और असल में ये बहुत ताक़तवर भी थे |
लेकिन भारतीय फौज भी किसी से कम नहीं थी | इस जगह भारतीय फौज के पास टैंक्स कम थे लेकिन उनके हौंसले और समझदारी के सामने पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली टैंक्स भी नकारा साबित होने वाले थे |
भारतीय फौज गन्ने के खेतों में यू फॉर्मेशन में छिपकर बैठी थी और पाकिस्तानी टेंकों को आगे तक आने दे रही थी | आगे आने पर भारतीय फौज के लड़ाके सामने और दाएँ बायें से पाकिस्तानी टेंकों पर टूट पड़ते थे |
उधर कंपनी क्वॉर्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हामिद रेकोइलेस गन लगी जीप से दुश्मन से भिड़ने निकल पड़े थे | जीप पर लगी 106 MM RCL की रेंज 500 से 600 गज तक होती है |
इसे टेंकों के खिलाफ बहुत कारगर हथियार माना जाता है लेकिन सिर्फ़ तब तक जब तक ये टेंकों से छिपा रहे | एक बार फायर करने के बाद इसे छिपाना बहुत मुश्किल होता है क्यूंकी फायर करने के बाद इसके पीछे से शोला निकलता है और कुछ दूरी तक जाकर गिरता है |
अब्दुल हमीद ने रिकॉयलेस गन लगी जीप से तबाह किये टैंक
अब्दुल हमिद ने रिकॉयलेस गन लगी जीप को गन्ने के खेतों में छिपा रखा था और जैसे ही पाकिस्तान का टेंक उनकी गन की रेंज में आया उन्होने फिर फायर कर दिया |
जिससे वो टेंक तबाह हो गया और इसके बाद हमिद ने इसी तरह से एक ओर टेंक को भी नष्ट कर दिया | हमिद एक टेंक को नष्ट करने के बाद जीप को जल्दी से दूसरी जगह ले जाते थे ताकि जीप को छुपाया जा सके |
जिन टैंकों को हमिद ने डेस्ट्राय किया था उनके पीछे भी दो टैंक आ रहे थे लेकिन जब उन्होने देखा की उनका एक टैंक ख़तम कर दिया गया है तो पाकिस्तानी फ़ौजी उन दोनो टैंकों को छोड़कर भाग गये |
अगले दिन 9 सितम्बर को पाकिस्तान ने और ज़्यादा जोरदार हमला किया | पाकिस्तानी आर्मी का साथ उनकी एयर फोर्स के सेब्र जेट्स भी दे रहे थे | उस दिन भी हमिद ने अपनी उसी रेकोइलेस गन की मदद से दो और टैंक्स को तबाह कर दिया |
लड़ाई से पहले उस जगह पर इंडियन आर्मी के इंजिनीयर्स ने एंटी टैंक माइन्स भी लगा दी थी | कुछ टैंक्स उन एंटी टैंक माइन्स की चपेट में आने से भी नष्ट हो गये थे |
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7 टैंक किये थे नष्ट
इसके बाद 10 सितम्बर को पाकिस्तान की तरफ से और भी ज़्यादा ताक़त के साथ हमला किया गया | पाकिस्तानियों ने एक घंटा के भीतर ही भारत की फॉर्वर्ड पोज़िशन्स को पेनिट्रेट कर लिया |
अब्दुल हमिद ने देखा की 6 टैंक्स उनकी टुकड़ी की ओर बढ़ रहे हैं | अब्दुल हामिद ने एक पल की भी देरी नहीं की और अपनी जीप को लेकर उन टैंक्स पर टूट पड़े |
उस दिन भी हमिद ने 3 और टैंक्स को अपनी रेकोइलेस गन से नष्ट कर दिया लेकिन अब वो दुश्मन के निशाने पर आ गये थे | हमिद ने उस टैंक को निशाना बनाया और साथ ही उस टैंक ने भी हमिद की जीप पर गोला फैंक दिया |
इस हमले में अब्दुल हमिद शहीद हो गये | हमिद की जीप के ड्राइवर मोहम्मद नसीम बताते हैं कि गोला सीधा हमिद के शरीर पर लगा था जिससे उनके शरीर का उपरी हिस्सा कटकर दूर जा गिरा |
नसीम ने उनके शरीर के टुकड़ों को इकट्ठा कर वहीं दफ़ना दिया | शहीद होने से पहले भारत माँ के इस वीर सपूत ने पाकिस्तान के 7 टैंक्स को तबाह कर दिया था |
अब्दुल हमिद की मज़ार असल उत्तर में है, उनकी रेजिमेंट की तरफ से हर साल उनके शहादत दिवस पर एक समारोह का आयोजन किया जाता है |
अमेरिका को जिन पेटन टैंक्स पर इतना घमंड था उन टैंक्स को एक अकेले भारतीय फ़ौजी के जिस तरह से नेस्तोनाबूत कर दिया था उसके बाद अमेरिका की साख को भी झटका लगा था |
ये वो वक़्त था जब चीन नहीं बल्कि अमेरिका पाकिस्तान के करीब था और उसे हर तरह से मदद करता था | अब्दुल हमिद ने कितने टैंकों को नष्ट किया था इसे लेकर अलग अलग संख्या सामने आती रहती है |
नष्ट टैंकों की संख्या को रहा विवाद
असल में उनके परमवीर चक्र के साइटेशन में 4 पाकिस्तानी टैंको को नष्ट करने की बात कही गई है | हरबख़्श सिंह की किताब ‘वॉर डिस्पेचेज़’ में भी 4 टैंको को निशाना बनाने की बात कही गई है |
पर मेजर जनरल इयान कारडोज़ो ने अपनी किताब में बताया था कि जैसे ही उन्होने 4 टैंक नष्ट किए उनका नाम परमवीर चक्र के लिए भेज दिया गया |
इसी कारण उनके परमवीर चक्र के साइटेशन में 4 पाकिस्तानी टैंको का ही जीकर है जबकि अगले दिन उन्होने 3 और टैंको को मिट्टी में मिला दिया था |
इतने टैंक्स तो उन्होने नष्ट कर दिए थे पर इन टैंको के साथ साथ बहुत सारे टैंक पाकिस्तानी फ़ौजी छोड़कर भाग गये थे | आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि क्या भारत के पास टैंको की कमी थी क्यूंकी तीन दिन बाद भी इस लड़ाई में भारत के टैंको की बात नहीं हुई |
तो आपको बता दें की इस लड़ाई में पाकिस्तान के 300 के करीब पेटन और चैफिज टैंक्स ने भाग लिया था जबकि भारत के सिर्फ़ 140 सेंचूरियन और शर्मन टैंको ने हिस्सा लिया था |
पाकिस्तानी टैंको को रोकने के लिए भारतीय फौज ने मधुपुर नहर को तोड़ दिया था जिससे उस पूरे इलाक़े में पानी भर गया और पाकिस्तान के टैंक पानी में फँस गये |
अब पाकिस्तान के पास खेमकरण में युद्ध रोकने के अलावा कोई चारा नहीं था और 11 सितम्बर को पाकिस्तान ने खेमकरण सेक्टर में हमला रोक दिया और 65 की जंग में पाकिस्तान का पूरा प्लान फैल हो गया |
1965 की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान के कुल 94 टैंक्स को तबाह किया था और पेटन टेंकों की ऐसी दुर्गति इससे पहले और बाद में कभी नहीं हुई |
अकेले अब्दुल हामिद ने पाकिस्तान के 7 टैंक तबाह करके जो बहादुरी दिखाई थी उसके लिए देश उस वीर को हमेशा याद रखेगा |
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