ताक़तवर साम्राज्यों की कब्रगाह : अफगानिस्तान

Afghanistan History in Hindi – अफ़ग़ानिस्तान एक ऐसा देश है जिसे आज तक कोई भी पूरी तरह नहीं जीत पाया |  जिसने भी अफगानिस्तान को जीतने की कोशिश की वो पूरी तरह से बर्बाद होने की कगार पर पहुँच गया | 

दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियों ब्रिटेन, सोवियत यूनियन और अमेरिका की भी हालत अफ़ग़ानिस्तान में जाकर खराब हो गई | 

आखिरकार अफ़ग़ानिस्तान में ऐसा क्या है कि इसे आजतक कोई भी जीत नहीं पाया |  इसके लिए हमें अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास के बारे में जानना होगा,

अगर प्राचीन इतिहास की बात करें तो अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास भारत की प्राचीन कथा महाभारत से जुड़ता है | अफ़ग़ानिस्तान के कंधार को महाभारत काल का गंधार माना जाता है जिसकी रानी गांधारी से धृतराष्ट्र का विवाह हुआ था | 

महाभारत काल के बाद यहां पर मौर्य साम्राज्य ने भी राज किया था | 

1996 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता अपने हाथों में ले ली तो उसने इस्लामिक राज से पहले के हर निशान को मिटाने की कोशिश की |   

इसी कड़ी में उन्होने 2001 में दुनिया के सबसे लंबी महात्मा बुद्ध की मूर्तियों को भी तुड़वा दिया | 

माना जाता है की बामियान की इन मूर्तियों को 1500 साल पहले बनाया गया था | 

9वीं शताब्दी तक ये क्षेत्र बुद्धिस्ट था |  इसके बाद धीरे धीरे इस पूरे क्षेत्र पर मुस्लिमों का राज हो गया क्यूंकी आस पास के मुस्लिम बहुल इलाक़ों से बिज़नेस  करना आसान था | 

जब चंगेज खान ने 1221 में बमियान वैली पर कब्जा किया तो उसने इन मूर्तियों को नुकसान नहीं पहुँचाया |  जबकि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने इन्हें नष्ट करने की कोशिश ज़रूर की थी | 

माना जाता है की 10 वीं सदी तक अफ़ग़ानिस्तान पर हिंदू शाही राजाओं का अधिकार था | लेकिन 1019 में जब महमूद ग़ज़नी ने त्रिलोचंपाल को हराया तो वहाँ हिंदू राजाओं का शासन समाप्त हो गया | 

इसके बाद 1504 में बाबर ने इस पर कब्जा कर लिया |  उस समय तक अफ़ग़ानिस्तान का अस्तित्व सामने नहीं आया था | 1739 में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने ईरान के नादिर शाह को एक संधि के तहत अफ़ग़ानिस्तान सौंप दिया था |   

1870 तक बहुत से अरब आक्रमणकारियों के आक्रमणों के बाद अफ़ग़ानिस्तान पूरी तरह से एक इस्लामिक देश बन गया | 

एंग्लो अफगान वॉर Anglo Afghan Wars

जब भारत अंग्रेजों के कब्ज़े में था उस समय ब्रिटिशर्स ने रूस से अपनी भारतीय साम्राज्य की रक्षा के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े की बहुत सी कोशिशें की जिसके बाद ब्रिटिश – अफगान वॉर की शुरूवात हुई | 

अफ़ग़ान के साधारण से लड़ाकों ने बिना बड़े हथियारों और सेना के दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क ब्रिटेन को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया | 

अमेरिका के अफगानिस्तान से निकालने के बाद वहाँ जितनी तेज़ी से तालिबान का कब्जा हुआ है उसकी कल्पना खुद तालिबान ने भी नहीं की थी | 

लेकिन इससे अफगान में किस तरह तेजी से परिस्थिति बदल सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | 

20 साल तक अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना के रहने के बाद जिस तरह से अमेरिकियों ने अफगानिस्तान को छोड़ा उसके बाद हर तरह अमेरिका की आलोचना हुई |   

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सेना को वापिस बुलाने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि अमेरिकियों को

"एक ऐसे युद्ध में नहीं मरना चाहिए जिसे खुद अफगानी लोग न लड़ना चाह रहे हों"

अफ़ग़ानिस्तान एक बहुत ही जटिल देश है, जिससे जीतने की कोशिश में बड़ी बड़ी शक्तियों को ऐसा नुकसान सहना पड़ा जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है | 

हालांकि अफ़ग़ानिस्तान बहुत ज्यादा शक्तिशाली नहीं है लेकिन विदेशी ताकतों की दखल ने वहाँ के लोगों को लड़ने की वजह हमेशा दी है | 

ऐसा भी नहीं है की किसी ने अफगानिस्तान को जीता नहीं है मोंगोलों में चंगेज ख़ान, ईरानियों में महमूद गजनी और सिकंदर ने भी अफ़ग़ानिस्तान पर फ़तेह की है | 

लेकिन पिछली कुछ सदियों की बात करें तो दुनिया की सबसे बड़ी ताक़तों के लिए अफ़ग़ानिस्तान एक क़ब्रगाह जैसा साबित हुआ है | 

जिस वक़्त अँग्रेज़ों की ताकत चरम पर थी उस वक़्त उसने अफ़ग़ानिस्तान को अपने नियंत्रण में रखकर मध्य एशिया में अपनी पकड़ मजबूत बनाना की कोशिश की थी | 

इसके लिए उसने 1839 से लेकर 1919 तक तीन बार अफ़ग़ानिस्तान के साथ युद्ध लड़े जिन्हें आंग्ल अफ़ग़ान वॉर कहते हैं | 

इसमें एक बार ही वो कुछ दशकों तक अफ़ग़ान पर राज कर पाया था | 1839 में प्रथम आंग्ल – अफ़ग़ान वॉर में अंग्रेज काबुल पर कब्जा करने में कामयाब रहे | 

पर काबुल जीतने के बाद भी इस लड़ाई में अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और 3 साल के भीतर ही अँग्रेज़ों को अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागना पड़ा | 

अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर निकले 16000 ब्रिटिश सैनिकों में से सिर्फ़ एक ही सैनिक जिंदा बच पाया था | 

इस लड़ाई के बाद लंबे समय तक अँग्रेज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने की कोशिश नहीं की | 

साल 1878-80 के बीच दूसरा आंग्ल अफ़ग़ान युद्ध शुरू हो गया |  इसमें अंग्रेजों को जीत मिली | 

इस लड़ाई के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर ब्रिटिशर्स का राज हो गया | 

लेकिन इस बार अंग्रेजों ने अपने किसी अफसर को काबुल की कमान देने की बजाए एक अफ़ग़ान अमीर को काबुल की बागडोर दे दी और अपनी सेनाओं को वापिस बुला लिया | 

इसके बाद अगले कुछ दशकों तक अफ़ग़ानिस्तान ब्रिटिश कंट्रोल में रहा |

1919 में अफ़ग़ान के उस अमीर ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसके बाद तीसरा आंग्ल – अफ़ग़ान युद्ध शुरू हो गया | 

लेकिन इस समय प्रथम विश्व युद्ध के कारण ब्रिटेन की ताकत बहुत कम हो चुकी थी | वहीं दूसरी और रूस में क्रांति हो गयी थी | 

रूसी खतरा कम होने और पहले विश्व युद्ध में बहुत अधिक खर्च होने की वजह से अँग्रेज़ों ने 4 महीने की लड़ाई के बाद ही अफ़ग़ानिस्तान को स्वतंत्र घोषित कर दिया | 

सोवियत संघ का अफगानिस्तान पर हमला Soviet Union Attack on Afghanistan

अफ़ग़ानिस्तान आज़ाद हो चुका था लेकिन वहाँ के लोगों में कट्टरवादी सोच कायम थी | अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों को कुचले जाने की चर्चा आज सबसे ज़्यादा है | 

उस वक़्त भी अमानुल्लाह ख़ान ने महिलाओं को कुछ अधिकार देने की कोशिश की थी और महिलाओं के बुर्का पहनने की प्रथा को खत्म कर दिया था | 

ये सुधार अफ़ग़ानिस्तान के धार्मिक और कट्टरवादी सोच रखने वाले नेताओं को रास नहीं आए और अफगानिस्तान में ग्रह युद्ध जैसी स्थिति बन गई 

अगले कई वर्षों तक वहाँ स्थिति ऐसी ही रही जिसका फायदा सोवियत संघ ने उठाया और अफगानिस्तान पर हमला कर दिया | 

1979 में सोवियत के अफ़ग़ानिस्तान में दखल का वहाँ के मुजाहाड़िन संगठनो ने विरोध किया | इन लड़ाकों ने सोवियत के खिलाफ जंग छेड़ दी जिसके बाद तालिबान और अलकायदा का उदय हुआ | 

सोवियत के खिलाफ जंग में अफगान लड़ाकों को अमेरिका से पूरी मदद मिली | साथ ही पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों ने भी इन लड़ाकों की हर संभव मदद की | 

सोवियत संघ ने सोचा था की वो आसानी से अफ़ग़ानिस्तान को कब्जे में ले लेंगे लेकिन मुजाहिद्दीनो ने उसे कड़ी टक्कर दी | 

अफ़ग़ानिस्तान को कब्जाने के मिशन में सोवियत ने बहुत बड़े स्तर पर खून खराबा किया जिसमें 15 लाख के करीब लोग मारे गये और लाखों की संख्या में लोगों को दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी | 

सोवियत यूनियन ने वहाँ कब्जा तो कर लिया लेकिन वो विरोधी अफगानी लड़ाकों को खत्म करने में नाकामयाब रहा | 

अफगानिस्तान के लड़ाकों ने गुरिल्ला आक्रमणों से सोवियत संघ को बहुत नुकसान पहुंचाया | 

सोवियत संघ के लिए ये स्थिति वैसी ही थी जैसे अमेरिका के लिए वियतनाम में उत्पन्न हो गयी थी | 

वियतनाम वॉर में अमेरिका को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था | 

इस तरह की स्थिति को पैदा करने में अमेरिका का बड़ा हाथ था वो पाकिस्तान के ज़रिए मुजाहिदीनों को मदद पहुंचा रहा था और चाहता था की वियतनाम युद्ध जैसा नुकसान सोवियत संघ को सहना पड़े | 

अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेन्सी ने इसे नाम दिया था ‘ऑपरेशन साइक्लोन

बहुत ज्यादा पैसा खर्च करने और लाखों लोगों को मरने के बाद भी सोवियत गुरिल्ला लड़ाकों से हार रहा था | 

ऐसे में सोवियत ने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए 1988 में अफ़ग़ानिस्तान से अपने लड़ाकों को वापिस बुला लिया | 

इसके बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया | 

सोवियत यूनियन के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के कुछ समय बाद 1996 में तालिबान ने सत्ता अपने हाथों में ले ली | 

तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में बहुत से दूसरे गुट भी स्क्रिए हो गये | अमेरिका पर अलकायदा ने 9/11 का हमला करके उसे बड़ी चोट पहुँचाई | 

अफगानिस्तान पर अमेरिका का हमला

इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अलकायदा के खात्मे का अभियान चलाया | अमेरिका का मकसद अपना बदला लेना था लेकिन अमेरिका ने इसे अफगानिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना से भी जोड़ दिया | 

अमेरिका ने अपने सैनिक अफ़ग़ानिस्तान भेजे और तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया | 

जल्दी ही अमेरिका तालिबान को सत्ता से बाहर करने में सफल रहा | इसके बाद अफगानिस्तान में एक सरकार का गठन हुआ जिसकी बागडोर करज़ई ने संभाली | 

इस तरह अमेरिकी दखल के बाद अफ़ग़ानिस्तान में एक सरकार चल रही थी | अफ़ग़ानिस्तान में सरकार चल रही थी और अमेरिकी सेना शुरू में लेड कर रही थी | 

लेकिन अलकायदा के लीडर ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद अमेरिका ने वहाँ की ज़िम्मेदारी अफ़ग़ान सेना के हाथों में दे दी | 

2014 में तालिबान और अफगान सेना के बीच संघर्ष बहुत बढ़ गया | 

इसके बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना को वापिस बुलाने का फ़ैसला लिया | 

अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के पीछे एक और बड़ा कारण वहाँ युद्ध में होने वाला खर्च था | अमेरिका दावा करता है की उसने 2010 से 2012 के बीच प्रति वर्ष युद्ध पर 100 अरब अमरीकी डॉलर खर्च किए | 

वैसे इस पर संदेह है की इतना पैसा अमेरिका ने कैसे खर्च किया क्यूंकी अफगानिस्तान की जीडीपी भी इतनी नहीं है | 

इतना पैसा अगर अमेरिका ने वहाँ विकास पर खर्च किया होता तो अमेरिका के अफ़ग़ान छोड़ने के बाद इतनी जल्दी वहां तालिबान का कब्जा नहीं होता | 

क्यूंकी जिस अफ़गानी फौज पर तालिबान से लड़ने की जिम्मेदारी थी उसे कई महीनों से वेतन तक नहीं मिल रहा था | 

अफगानी राष्ट्रपति गनी भी अपना पैसा लेकर वहां से भाग गए थे | इसलिए वहाँ सेना ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया | अमेरिका के लिए अफ़ग़ानिस्तान फिर से वियतनाम बन गया था | 

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

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