अल्लाउद्दीन खिलजी का इतिहास | Alauddin Khilji History in Hindi

Alauddin Khilji History in Hindi – अल्लाउद्दीन खिलजी, खिलजी साम्राज्य का सुल्तान था और उसे खिलजी साम्राज्य का सबसे ज्यादा शक्तिशाली शासक माना जाता है | Alauddin Khilji के शासनकाल में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण उसका नाम हमेशा लोगों के बीच में चर्चा का विषय बना रहता है |

पदमावत फिल्म के आने के बाद अलाउद्दीन खिलजी को हर कोई जानने लगा | फिल्म में रणवीर सिंह ने जबरदस्त एक्टिंग की और जिस तरह से खिलजी के किरदार को निभाया उसने हमें खिलजी से नफरत करने को मजबूर कर दिया |

फिल्म की कहानी रानी पद्मावती के इर्द गिर्द ही घूमती है लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि खिलजी की जिंदगी में इसके अलावा भी बहुत कुछ था |

इस बात को जानकर आपको थोड़ी हैरानी भी हो सकती है लेकिन क्विंट के मुताबिक खिलजी ने चित्तोड़ को अपने क्षेत्र के विस्तार के लिए घेरा था ना कि पद्मावती के लिए |

Source: Quint

खिलजी के बारे में कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि भारत Alauddin Khilji का कर्जदार है क्यूंकि उसके शासनकाल में मंगोलों ने भारत पर बार बार आक्रमण किये | मंगोल किस तरह से लोगों को क्रूरता से खत्म करते हुए आगे बढ़ते थे इसे ब्यान करना भी मुश्किल है |

ऐसे में खिलजी ने एक दो बार नहीं बल्कि 5 बार मंगोलों को धूल चटाई थी | साथ ही खिलजी ने बहुत से सुधार भी किये थे और वो उस वक़्त का एक बड़ा कामयाब लीडर था |

आइये आपको बताते हैं अलाउद्दीन खिलजी हिस्ट्री इन हिंदी जिससे आप खिलजी के बारे में थोड़ा और जान सके | ये जानने कि भी कोशिश करेंगे कि अलाउद्दीन खिलजी की कहानी में कितनी सच्चाई है | कहीं इस कहानी को भी किसी के लिए सिर्फ नफरत फैलने के लिए इस्तेमाल तो नहीं किया जाता | 

alauddin khilji history in hindi

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास Alauddin Khilji History in Hindi

बचपन से अल्लाउद्दीन ने एक सपना देखा था | उसे दुनिया का दूसरा एलेक्जेंडर बनना था और पूरी दुनिया पर राज करना था |

हालांकि अल्लाउद्दीन दुनिया के लिए एलेक्जेंडर तो नहीं बन पाया लेकिन वो खुद को सिकंदर – ए – सानी कहलवाता था, यानी कि अभी के समय का सिकंदर |

इससे अल्लाउद्दीन को संतुष्टि तो मिल ही जाया करती थी | हालांकि उसने दुनिया को जीतने के अपने सपने को आखिरी साँस तक नहीं छोड़ा था लेकिन उसके लिए यह सफर काफी मुश्किल था |

अल्लाउद्दीन खिलजी का जन्म Alauddin Khilji Birthplace and Birth Date

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म अफगानिस्तान के जबूल (Zabul) प्रान्त के क़ालत (Qalat) में हुआ था | अलाउद्दीन को Alaud-Dīn Khaljī, Alauddin Khilji या  Alauddin Ghilji नाम से भी जाना जाता है और बचपन में Ali Gurshasp के नाम से पुकारा जाता था |

अल्लाउदीन खिलजी वंश के संस्थापक सुल्तान जलालुद्दीन के बड़े भाई शिहाबुद्दीन मसूद का सबसे बड़ा बेटा था | वो सुल्तान जलालुद्दीन का दामाद भी था क्यूंकि उसने सुल्तान की बेटी मेहरुनिसा (मल्लिका-ए-जहां) से शादी की थी |

अलाउद्दीन ने मेहरुनिसा के बाद महरू से भी निकाह किया था जो कि मलिक संजार (अलप खान) की बहन थी | अलप खान अलाउद्दीन का जनरल और brother-in-law भी था | मेहरुनिसा के साथ अल्लाउद्दीन के वैवाहिक सम्बन्ध ज्यादा अच्छे नहीं थे जिसकी वजह उसकी दूसरी पत्नी महरू बताई जाती है |

ये भी कहा जाता है कि मेहरुनिसा बड़ी घमण्डी थी और वो अल्लाउद्दीन को नीचा दिखाना चाहती थी | जब अल्लाउद्दीन के पिता की मृत्यु हुई तो चाचा जलालुद्दीन ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था | इसलिए अल्लाउद्दीन भी अपने चचा का वफादार था |

लेकिन कहीं ना कहीं उसके दिल में भी सुल्तान बनने की चाहत जन्म ले चुकी थी जिसने उसे खिलजी साम्राज्य का बादशाह बना दिया | आइये देखते हैं कैसा रहा अल्लाउद्दीन का राजनीतिक सफर |

अल्लाउद्दीन खिलजी का राजनीतिक सफर How did Alauddin Khilji Came to Power

अल्लाउद्दीन के सफर की शुरुआत होती है, उसके आमिर-ए- तुजुक बनने से | अलाउद्दीन ने अपने चाचा जलालुद्दीन को मामलुक वंश को समाप्त कर खिलजी वंश स्थापित करने और उसे दिल्ली का तख़्त दिलवाने में मदद की थी | इसलिए जलालुद्दीन ने उसे आमिर-ए- तुजुक के ख़िताब से नवाजा था |

मामलुक वंश (slave dynasty) की स्थापना कुतुबदीन ऐबक ने की थी जो कि मोहम्मद गोरी का सबसे भरोसेमंद था | मामलूक वंश ने 1206 से 1290 तक राज किया था |

1291 में कारा के गवर्नर मलिक छज्जू ने सुल्तान के खिलाफ विद्रोह कर दिया | जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन को इस विद्रोह को दबाने के लिया कहा और अलाउद्दीन ने बड़ी कुशलता से विद्रोह को दबा दिया |

जलालुद्दीन इससे बहुत खुश हुआ और उसने अलाउद्दीन को कारा का गवर्नर बना दिया | कारा के बारे में आपको शायद पता ना हो क्योंकि यह अपने वास्तविक आस्तित्व में मौजूद नहीं है | लेकिन यह गंगा किनारे बसा एक शहर था जो कि जौनपुर के पास पड़ता था |

एक समय कारा का राजा जयचंद हुआ करता था | वही जयचंद जिसकी दगाबाजी के किस्से बहुत प्रसिद्ध है | हालांकि यह अल्लाउद्दीन के कारा जीतने के काफी पहले की बात है |

कारा की जीत के बाद ही जलालुद्दीन ने अपनी बेटी मल्लिका-ए-जहां की शादी अल्लाउद्दीन के साथ करवाई थी |

जलालुद्दीन को रास्ते से हटा सुल्तान बनने का षडयंत्र Alauddin Khilji Sultan of Delhi History in Hindi

अलाउद्दीन समझ गया था कि अब वो ताक़तवर हो चुका है और अपने चाचा को गद्दी से हटाकर वो सुल्तान बन सकता है | लेकिन इस काम को अंजाम देने के लिए उसे धन, सेना और सुल्तान का विश्वास जीतने की जरूरत थी |

धन इकठ्ठा करने के लिए अलाउद्दीन ने 1293 में मालवा के परमार राजवंश के भीलसा पर आक्रमण करके उसे जीत लिया और अवध का गवर्नर बन गया | इस जीत के बाद अलाउद्दीन ने जीतना भी लूटा हुआ धन था पूरा जलालुद्दीन के क़दमों में रख दिया ताकि उसका विश्वास जीता जा सके |

जलालुद्दीन भी अलाउद्दीन की इस बहादुरी से बहुत खुश था और उसे अरीज़ ए मामलिक (मिनिस्टर ऑफ़ वॉर ) की उपाधि दे दी | हालांकि जलालुद्दीन को ये  डर भी था कि अलाउद्दीन की ये बहादुरी एक दिन दो धारी तलवार बनकर उसका गला भी काट सकती है |

जलालुद्दीन की बेगम को तो जैसे यकीन ही था कि उसके शोहर का क़तल अल्लाउद्दीन के हाथों ही होगा | फिर भी जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन को आर्मी को और ज्यादा ताक़तवर बनाने के लिए धन इक्कठा करने के अभियान पर लगा दिया |

अलाउद्दीन भी आगे बढ़ता जा रहा था और 1296 में उसने दक्कन में देवगिरी पर आक्रमण कर दिया | वहाँ से लूट का माल लेकर वो दिल्ली जाने की बजाए कारा चला गया |

दक्कन में अकेले अपने दम पर लगातार जीत के कारण उसके होंसले बुलंद हो चुके थे और अब वो जलालुद्दीन को गद्दी से उतारने का पूरा षडयंत्र बना चूका था |

कारा पहुँचकर उसने जलालुद्दीन को एक पत्र लिखकर इस बात के लिए माफ़ी मांगी कि वो लूट का माल लेकर दिल्ली नहीं आया | इस पर जलालुद्दीन ने खुद कारा पहुँच कर उससे मुलाकात की, जहाँ अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन की पीठ में छुरा घोंपकर उसकी हत्या कर दी |

इसके बाद उसने अपनी सेना को इक्कठा किया और मुलतान पर हमला कर जलालुद्दीन के बेटों की हत्या कर दी | अब वो दिल्ली का सुलतान बन चूका था |

दिल्ली का सुल्तान Delhi Sultan Alauddin Khilji History in Hindi

दिल्ली का नया सुल्तान बनने के बाद अल्लाउद्दीन को आंतरिक खतरों के साथ साथ एक और खतरे से लड़ना था जो कि था मंगोलों का आक्रमण. मंगोलों ने कई बार दिल्ली पर हमला किया | जरन मंजूर में साल 1297 में, सिविस्तान में 1298 में, किलि में 1299 में, दिल्ली में 1303 में और अमरोहा में साल 1305 और 1306 में अल्लाउद्दीन और मंगोलों का आमना सामना हुआ | इस दौरान अल्लाउद्दीन का पलड़ा ही भारी रहा और उन्हें लौटकर जाना पड़ा |

जिस दौरान मंगोल अलाउद्दीन पर आक्रमण कर रहे थे उसी समय अल्लाउद्दीन उनसे तो लड़ ही रहा था और बाकी राज्यों को भी जीत रहा था | इसमे 1299 में जीता गया गुजरात, 1301 में रणथम्भौर, 1303 में चित्तौड़ और 1305 में मालवा था |

चित्तौड़ में तो उसे जीतने में 8 महीने से भी ज्यादा का समय लग गया था | हालांकि इन सब राज्यों को जीतने, मंगोल से लड़ने और इनकी सत्ता को बनाए रखने के लिए उसके बहुत सारे सैनिक खत्म हो रहे थे. पर खिलजी ने इन सब की परवाह किए बिना युद्ध जारी रखे |

उसने 1308 में देवगिरी पर कब्जा कर लिया, 1310 में वारंगल में और 1311 द्वारसमुद्र पर कब्जा कर लिया | ये कब्जे इतने ज्यादा भयानक थे कि इसके दौरान वहाँ की आधी से भी ज्यादा जनसँख्या को मौत के घाट उतार दिया जाता था |

इस बुरी हालत को देखते हुए यादव साम्राज्य के राजा रामचन्द्र को, Hoysala साम्राज्य के राजा बल्लाला तृतीय को और Kakatiya राजा प्रताप रुद्र को अल्लाउद्दीन का दरबारी बनना पड़ा |

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पंड्या साम्राज्य पर कब्ज़ा

खिलजी के मुख्य सेनापति मलिक काफूर ने पंड्या साम्राज्य पर भी हमला किया था और वहाँ से भारी संसाधन लूट लिए थे. 

हालांकि उस समय पंड्या साम्राज्य ने उनका डटकर सामना किया और उन्हें कब्जा नहीं करने दिया लेकिन राजा रामचन्द्र, राजा प्रताप रुद्र और राजा बल्लाला तृतीय के अल्लाउद्दीन के साथ मिल जाने के कारण पंड्या साम्राज्य के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं थीं |

इसका एक कारण यह भी था कि पंडया साम्राज्य में आंतरिक कलह भी चल रही थी | पंड्या साम्राज्य और अल्लाउद्दीन के बीच घमासान युद्ध हुआ | अल्लाउद्दीन की तरफ से राजा रामचन्द्र, राजा प्रताप रुद्र और राजा बल्लाला तृतीय मौजूद थे और पंड्या साम्राज्य की तरफ से मंगोल उनका साथ देने के लिए मौजूद थे |

हालाँकि पंड्या साम्राज्य की हार हुई. वहाँ के दोनों राजा वीर और सुंदर भाग गए | Historians द्वारा यह बताया जाता है कि जब अल्लाउद्दीन को पता चला कि मंगोलों ने पंड्या साम्राज्य का साथ दिया है तो उसने कत्लेआम मचा दिया और 20 से 30 हजार मंगोलों को मौत के घाट उतार दिया | उनके कई सेनापति भी दिल्ली के चौराहों पर मारे गए |

इस सब के दौरान मल्लिक काफूर का कद सल्तनत में बढ़ता ही जा रहा था | साल 1313 में उसे देवगिरी का गवर्नर बनाया गया | यह वही समय था जब अल्लाउद्दीन को एक बीमारी लग गई थी | वह बहुत चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो गया था. उसे केवल एक ही इंसान पर भरोसा था, वह था मलिक काफूर |

मलिक काफूर ने उठाया फायदा

मलिक काफूर यह भली भांति जानता और इसका फायदा उठाते हुए उसने अल्लाउद्दीन के हर करीबी को सत्ता से हटवा दिया |

सबसे पहले उसने उन अधिकारियों को निकलवाया जो कि अल्लाउद्दीन के शासन काल में Economic reforms लेकर आए थे | जैसा कि आप जानते ही होंगे, अलाउद्दीन के समय की अर्थव्यवस्था को काफी बेहतर माना जाता था |

ऐसा इसलिए था क्योंकि यह अर्थव्यवस्था देश के हर हिस्से में बराबर थी और सब हिस्से बराबर होने के कारण यह तय करना मुश्किल हो जाता था कि कहां पहले हमला किए जाए. 

अल्लाउद्दीन के दरबार से पहले तो अधिकारी निकाले गए | फिर नंबर आया आसपास के करीबियों का मलिक काफूर ने हर इंसान को, जो भी उसका Rival बन सकता था | उसे अल्लाउद्दीन पर जान का खतरा बताकर मरवा दिया | इसमे उसका साला अल्प खान मौजूद था |

अल्प खान अलाउद्दीन का वफादार था, लेकिन उसे भी जान से हाथ धोना पड़ा | आगे सारे वजीर भी हटा दिए गए और मलिक काफूर वायसराय बन गया | उसके बाद 4 जनवरी, 1316 की रात काफूर अल्लाउद्दीन के महल से उसकी लाश लेकर निकला | अल्लाउद्दीन को अपनी मौत का बहुत डर था. उसने मौत के डर से सबको खुद से अलग करवा दिया था. वो डरता था कि जो उसने Jalaluddin के साथ किया, वही उसके साथ ना हो जाए |  

अल्लाउद्दीन की मौत के बाद, काफूर ने उसके बेटों को अंधा करके उसके बेटे शहाबुद्दीन को गद्दी पर, पुतला बनाकर बैठा दिया. हालांकि अल्लाउद्दीन के सबसे बड़े बेटे ने काफूर को मारकर गद्दी छीन ली | यह था सुल्तान मुबारक खान. 

तो दोस्तों यह थी Alauddin Khilji History in Hindi अल्लाउद्दीन खिलजी की कहानी |

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

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