एक महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री : आर्यभट्ट

Aryabhatta Biography in Hindi – भारत देश में ऐसे बहुत सरे महान विद्वान हुए हैं जिन्होंने ऐसी ऐसी रचनाएँ की हैं जो आज  भी हमारी रोज़ाना की ज़िंदगी में उतनी ही जरूरी हैं जितनी  बाकी चीजें। हम रोज़ाना हमारे जीवन में ऐसी चीजें देखते हैं ऐसे काम देखते हैं जिनके बारे में हम सबको पता है पर हम यह नहीं जानते के उसकी शुरुआत कैसे हुई या उसे पहली बार किसने अम्ल में लाया।

उदाहरण के तौर पर गणित हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग है। हम गणित की कड़ी से कड़ी समीकरणों को जानते पहचानते हैं और हमें पता है के रोजाना के जीवन में गणित हमारे कितने काम आता है। 

घर के राशन का हिसाब करना , बच्चों की फीस का लेखा जोखा या पूरे महीने का लेखा जोखा हो, गणित हमारे हर रोज़ काम आता है पर हम कभी ये नहीं सोचते के गणित की शुरुआत किसने की ? इसमें इस्तेमाल होने वाले अंकों की शुरुआत किसने की या अंकों का विभाजन किसने किया। 

 इस तरह के हिसाब के लिए इस तरह की समीकरण ही क्यों लगती है ? हमने यह सवाल कभी नहीं किये और न ही हमारे दिमाग में ऐसे सवाल आते हैं।  भारत देश में ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ जिन्होंने हमारे इन सब सवालों के जवाब दिए हैं। 

हमें गणित के शून्य से लेकर बड़ी से बड़ी रकम के बारे में बताया है।  उन्होंने उस समय में ऐसी ऐसी खोजें कर दी थी जिनको करने के लिए आज कितने ही दशकों का समय लग जाता है और कितना ही पैसा लग जाता है।  उन्होंने सैकड़ों साल पहले ही सौरमंडल के बारे में ज्योतिष के बारे में हमें बता दिया था और गणित कैसे काम करता है ये भी हमें सिखा दिया था। 

आज हम एक ऐसे ही विद्वान की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने गणित को उसकी नींव दी। गणित जहा से शुरू होता है वो हमें बताया। आज हम बात कर रहे हैं एक महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की। 

आर्यभट्ट का जीवन परिचय Aryabhatta Biography in Hindi

आर्यभट्ट का जन्म स्थान और बचपन Aryabhatta Birthplace and Childhood

महान विद्वान आर्यभट्ट के जन्म के बारे में कोई ठोस परिमाण नहीं मिलता।  बहुत सारे इतिहासकारों के अलग अलग विचार है।  कुछ इतिहासकार मानते हैं के आर्यभट्ट का जन्म अश्मक नाम की जगह पर हुआ। 

भगवान बुद्ध के समय अश्मक देश के लोग भारत आ गए और वो भारत के मध्य में प्रवाहित होती गोदावरी और नर्मदा नदी के बीच वाले इलाके में बस  गए और यही पर आर्यभट्ट का जन्म हुआ और जन्म ईस्वी 476 ई स  बताई जाती है।  जहां कुछ इतिहासकार इनका जन्म बिहार के पाटलिपुत्र का बताते है जो आज के पटना का प्राचीन नाम था। 

आर्यभट्ट ने अपने लिखे ग्रंथ आर्यभटिया में अपना जन्म स्थान कुसुमपुर बताया है और इस भी कहा जाता है आर्यभट्ट उच्च शिक्षा के लिए कुसुमपुर आये थे और वही पर उन्होंने हिन्दू और बुद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षाओं के साथ साथ गणित की भी पढ़ाई की और माना जाता है के उन्होंने अपने ग्रंथ में नालंदा विश्वविद्यालय का भी ज़िक्र किया है जो विश्व की सबसे पहली यूनिवर्सिटी या विश्वविद्यालय था, हो सकता है आर्यभट्ट वहां से भी संबंध रखते हों।

कुछ इतिहासकार मानते हैं के गुप्त साम्राज्य के अंतिम दिनों में आर्यभट्ट वही पर रहते थे। उन्होंने इसी ग्रंथ में बताया है के जब वो 23 वर्ष के थे तब कल्युग 3600 वर्ष का था। 

आर्यभट्ट की रचनाएँ Aryabhatta Writings

आर्यभट्ट ने बहुत सारी महत्वपूर्ण रचनाएँ की है जिन्होंने गणित को एक नया रूप दिया है। आर्यभट्ट ने अपने जीवन कल में आर्यभटिय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत नाम के ग्रंथों की रचना की। आर्यभट्ट सिद्धांत को लेकर अक्सर मतभेद बने रहते है। 

ऐसा माना जाता है के सातवीं शताब्दी में इसका उपयोग होता था परन्तु आज इस ग्रंथ के केवल 34 श्लोक ही बचे है बाकी के ग्रंथ एक क्या हुआ , कहा गुम हुआ किसी को भी पता नहीं चला। 

आर्यभट्टीय रचना उनके द्वारा की गयी सबसे महत्वपूर्ण रचना है।  इतिहासकारों का मानना है के आर्यभट्टीय नाम उन्होंने खुद नहीं दिया बल्कि उनके बाद उनके शिष्यों ने उनके ग्रंथ को उनका नाम दिया था। इस ग्रंथ को आर्य-शत-अष्ट नाम से भी जाना जाता है।

आर्यभट्ट गणित और खगोल विज्ञानं के विद्वान थे उन्होंने आर्यभट्टीय में भी वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी  तथा खगोल  की  भी बहुत सारी परिभाषाएं और समीकरणें दी हैं। इस ग्रंथ के गणित के हिस्से में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति के बारे में पूर्ण रूप से बताया गया है। इसमें कुल 108 छंद है जिन्हे आगे 4 भागों में विभाजित किया है :

  • गीतिकपाद
  • गणितपाद
  • कालक्रियापाद
  • गोलपाद

आर्यभट्ट का दूसरा ग्रंथ आर्यभट्ट सिद्धांत है यह ग्रंथ अब लुप्त हो चूका है इसका बस कुछ हिस्सा ही इतिहासकारों के पास सम्भाल कर रखा गया है।  यह ग्रंथ खगोल शास्त्र पर आधारित था इसमें आर्यभट्ट ने सूर्य ग्रहण , धरि की परिक्रमा के साथ साथ और भी बहुत सारे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की है।  इस ग्रंथ में उन्होंने खगोल शास्त्र से जुड़े उपकरणों के बारे में भी लिखा है , उनको बनाने का तरीका , उनके काम करने का तरीका यह सब उस ग्रंथ में लिखा है। 

उनके द्वारा लिखे कुछ महत्वपूर्ण यंत्र जैसे शंकु-यन्त्र, छाया-यन्त्र, संभवतः कोण मापी उपकरण, धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र, एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, छत्र-यन्त्र और जल घड़ियाँ  अदि थी। 

उनके तीसरे ग्रंथ के होने या न होने के कोई भी सबूत नहीं मिलते।  ऐसा कहा जाता है के अरबी भाषा का एक ग्रंथ अल न्त्फ़ या अल नन्फ़ आर्यभट्ट   के ही ग्रंथ का अनुवाद है , परन्तु कोनसे ग्रंथ का अनुवाद है यह अभी तक किसी को भी पता नहीं लग पाया है। 

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आर्यभट्ट की खोजें Aryabhatta Inventions in Hindi

गणित और खगोल दोनों विषयों में आर्यभट्ट की महारत  थी। दोनों विषयों के विद्वान थे।  उन्होंने गणित और खगोल से संबंधित बहुत सारी चीजों की खोज की।  जिसमे कुछ महत्वपूर्ण चीजें इस प्रकार हैं :

गणितज्ञ के रूप में उन्होंने गणित में इस्तेमाल होने वाली एक महत्वपूर्ण इकाई पाई की खोज की। उन्होंने पाई के मान की खोज की।  इसके बारे में उन्होंने अपन ग्रंथ आर्यभट्टिया में लिखते है और एक समीकरण के द्वारा इसे समझाते हैं। 

सौ  में  चार  जोड़ें,  फिर  आठ  से  गुणा  करें  और  फिर  62,000  जोड़ें  और  20,000  से  भागफल  निकालें,  इससे  प्राप्त  उत्तर  पाई  का  मान  होगा  अर्थात्

[ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 / 20,000 = 3.1416 

आर्यभट्ट का गणित में योगदान – शून्य की खोज

शून्य की खोज ही आर्यभट्ट की सबसे महान खोज थी।  शून्य गणित में एक अहम स्थान रखता है बल्कि ऐसा कहा जाये के शून्य के बिना गणित अधूरा है तो कोई गलत बात नहीं होगी।  शून्य एक ऐसा अंक है अगर वो किसी दूसरे अंक के साथ आये तो उसका मान 10  गुना बढ़ जाता है और शून्य ही ऐसा अंक है जिससे अरबों खरबों तक की गिनती  करना आसान हो गया है। 

आर्यभट्ट ने त्रिकोणमिति की खोज की।  

आर्यभट्ट ने गणित की यह अहम श्रेणी बीजगणित की खोज की।  उन्होंने अपने ग्रंथ में वर्गों  एवं  घनो की श्रृंखला के जोड़ का परिमाण बताया है।

12 + 22 + …………. + n2 =[ n ( n+1) ( 2n + 1) ]  / 6

13 + 23+ ………….. + n3 = ( 1+2 + ……….. + n )2

खगोलशास्त्री के रूप में आर्यभट्ट जी ने बहुत अहम खोजें की है।  उनके द्वारा बताई गयी चीजें आज भी विज्ञानी  मानते हैं और उनपर शोध करते हैं। 

सैकड़ों साल पहले बताई हुई उनकी बातें उस समय से लेकर आज तक सटीक साबित हुई हैं और आज के खगोल शास्त्री भी बड़ी से बड़ी खोज करके उसी नतीजे पर पहुंचते हैं जिसपर आर्यभट्ट सैकड़ों साल पहले पहुंच गए थे। 

उन्होंने सबसे अहम और सबसे बड़ी जानकारी “गोलपाद” में  सौरमंडल और पृथ्वी के अपने धुरे पर घूमने को लेकर दी थी।  उनके मुताबिक जब आप नाव से पानी में आगे की तरफ जा रहे होते हैं तो किनारे पर लगे पेड़ पौधे पीछे की तरफ जाते हैं ये इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी अपने धुरे पर घूमती है। और अपने धुरे पर घूमने के कारण से ही हमें आसमान में सितारों की स्थिति हमेशा अलग अलग होती रहती है। 

लाखों सालों से हिन्दू मान्यता यह थी थी राहु नाम का एक राक्षश जब सूर्य या चन्द्रम को निगलता है तो ग्रहण लगता है पर आर्यभट्ट ने इस धरना को बिलकुल गलत बताया उन्होएँ ग्रहण को बिलकुल आसान भाषा में समझाते हुए बताया के सूर्य के इलावा किसी अन्य सितारे का अपना प्रकाश नहीं होता। जब कोई सितारा सूर्य से प्रकाश लेकर चमकता है तो उसकी परछाई दूसरे सितारे पर पड़ती है जिसे ग्रहण कहा जाता है। असल में ग्रहण कोई राक्षश नहीं बल्कि परछाई है। 

उन्होंने सूर्य ग्रहण को बहुत आसान किन्तु प्रभावशाली तरीके से समझाया है।  उनके मुताबिक  धरती अपने धुरे पर घूमती है और सूर्य के चक्कर लगती है और चन्द्रमा भी धरती का चक्कर लगता है एक समय ऐसा आता है के सूर्य और धरती के बीच चन्द्रमा आ जाता है जिससे सूर्य का कुछ हिस्सा छुप जाता है उसी को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। 

ऐसे ही जब धरती घूमते घूमते सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर नहीं पड़ता और धरती की परछाई चन्द्रमा को ढक लेती है इस पूरी क्रिया को चंद्रग्रहण कहा जाता है। 

आर्यभट्ट  ने पृथ्वी द्वारा लगाए जाने वाले सूर्य चक्कर को बहुत सटीक तरीके से बताया के धरती 23 घंटे 56 मिनट और 1 सेकंड में अपने धुरा पर घूमकर   चक्कर पूरा करती जिससे एक पूरा दिन बनता है ,और वो सूर्य का चक्कर  1  साल  में  365  दिन,  6  घंटे,  12  मिनिट  और  30  सेकेंड में पूरा करती है जिससे एक साल बनता है। 

इसके इलावा आर्यभट्ट ने सैकड़ों साल पहले ही ज्योतिष विज्ञान की खोज भी कर ली थी। इसके इलावा आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का निर्माण किया और उनके द्वारा ज्योतिष शास्त्र के नियम आज भी हिन्दू पंचांग में इस्तेमाल होते हैं। 

आर्यभट्ट भारत के कुछ ऐसे विद्वानों में से हैं जिनके बारे में कोई पुख़्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।  परन्तु उनके द्वारा दी हुई जानकारी भरपूर   मात्रा में उपलब्ध है।  उनके द्वारा रचित ग्रंथों को आज भी सम्भाल कर रखा गया है।  जो जानकारी उन्होंने सैकड़ों साल पहले दी थी , जब विज्ञान का कोई पसार नहीं था न ही कोई आधुनिक यंत्र थे , और न ही इतने  विकसित विशविद्यालय थे जो विद्यार्थीओं को उस विषय पर उचित जानकारी दे सके।

  इन सब के आभाव में भी आर्यभट्ट ने उन चीजों की खोज की. ऐसी ऐसी रचनाएँ की जो आज भी कायम है और उसके ऊपर बड़े से बड़े वैज्ञानिकों ने खोज करके पता लगाया के वो सब सच हैं। धरती का अपने धरा पर घूमना ,  सूर्य या चंद्र ग्रहण , ये सब सच है।  

भारत देश ने इसी विद्वान के नाम पर अपने प्रथम उपग्रह का नाम रखा ” आर्यभट्ट “

आर्यभट्ट ने गणित, खगोल में बहुत सारी रचनाएँ की और खोजें की है। सौरमंडल के गतिशील होने की बात भी सबसे पहले उन्होंने कही।  जैसे इनके जन्म को लेकर कोई पक्का सबूत नहीं है वैसे ही इनकी मृत्यु को लेकर भी कोई सबूत नहीं है परन्तु इतिहासकारों का मानना है के इनकी मृत्यु 550 ई स के लगभग हुई होगी। 

विज्ञान, गणित और खगोल कभी भी एक जैसे नहीं रहते ये हमेशा समय के साथ साथ बदलते रहते हैं क्योंकि समय के साथ साथ इनमे भी नई से नई खोजें जुड़ती रहती है परन्तु आर्यभट्ट द्वारा बताई कितनी ही चीजें आज तक वैसी की वैसी ही हैं।

उनमे कुछ खास या ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है।  उनकी द्वारा की गयी खोजों ने भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है।  विषयों के बारे में उनकी सटीक जानकारी से आज भी  पूरी दुनिया के वैज्ञानिक हैरान रह जाते हैं।  इस महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री को हम प्रणाम करते है।  

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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