भारत के खिलाडियों ने टोक्यो ओलिंपिक 2021 में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और सबसे ज्यादा मैडल जीते | वहीं नीरज चोपड़ा का जैवलिन में गोल्ड जीतना किसी सपने को सच करने जैसा था |
लेकिन जिस तरह से भारत के हॉकी के खिलाड़ियों ने प्रदर्शन किया है उसे देखकर हॉकी का सुनहरा समय याद आ गया |
इस ओलंपिक में पुरुष हॉकी की टीम जहाँ 41 साल बाद हॉकी के सेमीफाइनल में पहुंची थी तो वहीं महिला हॉकी टीम ने भी सेमीफाइनल तक पहुँच कर एक नया इतिहास बना दिया |

पर आपको बता दूँ कि भारत में हॉकी का इतिहास कहीं ज्यादा स्वर्णिम था |
क्या आप जानते हैं कि अभी मौजूदा समय में इतने सारे खेलों से उम्मीदें लगाने वाला भारत, एक समय पर ओलंपिक में केवल हॉकी से उम्मीदें लगाता था |
1928, 1932 और 1936 में लगातार भारत हॉकी के जरिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल लेकर आया है.
अब तक भारत को ओलंपिक में 8 बार हॉकी में गोल्ड मेडल मिला है जिसमें से सबसे आखिरी 1980 में आया था, वो भी आज से 41 साल पहले |
आज जानेंगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्यों भारत के राष्ट्रीय खेल में ही भारत की साख खत्म होती गई और क्यों हॉकी अब इंडिया में इतना पॉपुलर नहीं रह गया |
पहले याद करते हैं
भारत में हॉकी का इतिहास
साल था 1928. ये उन्हीं कुछ सालों में से एक था जब भारत की आज़ादी की सुगबुगाहट उठने लगी थी और यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि जल्दी ही भारत आजाद होगा.
आजाद भारत के लिए आजाद संस्थानों की जरूरत थी और इसलिए लगभग हर विभाग के लिए नए विभाग बनाए जा रहे थे.
इन्हीं में से एक विभाग था Indian Hockey Federation जिसका गठन हुआ था साल 1928 में.
फेडरेशन की तरफ से कहा गया कि भारत की टीम को भी उस साल के ऑलंपिक में भेजा जाना चाहिए.
भारत की वह पहली टीम थी हॉकी की, और उसका अनुभव लगभग शून्य ही था. लेकिन फेडरेशन की टीम भेजने की जिद के पीछे एक ऐसे खिलाड़ी का सामर्थ्य छिपा था, जिसने लगातार इंडिया को तीन बार ओलंपिक विजेता बनाया | हालांकि उस खिलाड़ी की बात करने से पहले बात उस साल के ऑलंपिक की.
Amsterdam में पहुंची भारतीय हॉकी टीम के लिए सब कुछ नया नया था. दुनिया लगभग हम पर हमेशा की तरह हंस रही थी और हम जानते थे कि हंसते हुए हम ही वापस जाएंगे. ऑलंपिक शुरू हुआ और भारत ने शुरू से अंत तक किसी भी टीम को जीतने नहीं दिया .
यह सिलसिला फाइनल तक चला, जहां उन्होंने जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में नीदरलैंड को भी 3-0 से हराया. इन जीतों में सबसे बड़ा योगदान था हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का |
हॉकी के इतिहास में ध्यानचंद का योगदान
ध्यानचंद का योगदान यही नहीं रुका. कहा जाता है कि अगर आप कोई achievement एक ही बार हासिल करें तो दुनिया उसे गलती से हासिल की गई अचीवमेंट घोषित करने में जरा भी देर नहीं लगाती है.
ऐसा ही लगातार 1928 के ऑलंपिक के बाद कहा जाने लगा. हालांकि मेजर ध्यानचंद के साथ टीम दुबारा मैदान पर उतरी और टीम ने वही करिश्मा 1932 और 1936 दोनों सालों में फिर से किया |
उसके बाद अगले दस बारह सालों तक हॉकी में सूखा कायम रहा. उसके बाद साल 1948 में आजाद भारत ने फिर से गोल्ड हासिल किया. उसके बाद 1952 और 1956 में भी हॉकी में भारत ने लगातार गोल्ड हासिल किए. लेकिन माना यह जाता है कि इसके बाद भारत में हॉकी का गोल्डन काल खत्म हो गया.
आपको जानकारी के लिए यह तो पता ही होना चाहिए कि हमारे देश में स्पोर्ट्स डे हॉकी के ही खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर मनाया जाता है.
केवल इस फैक्ट से आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि हॉकी की एक समय पर हमारे देश में क्या कीमत थी. हालांकि अपने गोल्डन पीरियड के बाद भी भारत में हॉकी की लौ अगले 10-20 साल जलती और बुझती रही.
1960 में टीम ने सिल्वर जीता. 1964 में टोक्यो ऑलंपिक में टीम ने गोल्ड जीता. 68 और 72 में Bronze जीतने के बाद टीम ने 1980 के मॉस्को ऑलंपिक में गोल्ड जीता और टीम इन्डिया का खाता वही बंद हो गया.
उसके बाद से हम तकरीबन 41 सालों से इंतजार कर रहे हैं कि शायद अब तो हॉकी में मेडल आयेगा |
पुरुष हॉकी टीम सेमीफाइनल में हारने के बाद ब्रॉन्ज़ मैडल जीत चुकी है | वहीँ महिला हॉकी टीम ब्रॉन्ज़ के लिए खेलते हुए हार गयी |
भारत में हॉकी की टीमों को उड़ीसा की राज्य सरकार के द्वारा स्पांसर किया जा रहा है और नवीन पटनायक इस खेल पर बहुत ज्यादा ध्यान दे रहे हैं |
यहीं कारण रहा कि भारत की टीम 41 साल बाद इस ओलिंपिक में अच्छा प्रदर्शन कर पाई | हालाँकि टीम अभी भी गोल्ड मैडल जीतकर वो करिश्मा नहीं कर पाई पर दो तीन सालों में टीम ने उड़ीसा का साथ मिलने के बाद जिस तरह इम्प्रूव किया है वो वाकई काबिले तारीफ है |
लेकिन क्यूँ हॉकी की हालत इस तरह की हो गयी थी कि एक स्टेट गवर्नमेंट को उसे स्पोंसर करना पड़ा |
हॉकी में हार के कारण
देश में हॉकी को बर्बाद करने का सबसे ज्यादा श्रेय हॉकी फेडरेशन को जाता है. इसक अलावा 70 के दशक तक हम बेहतर perform कर रहे थे लेकिन तभी scene में एंट्री हुई artificial turf की जिसने सब कुछ बदलकर रख दिया.
Artificial turf को आप Pitch और Cemented pitch के अंतर से समझ सकते हैं.
एक ओर बड़ी दिक्कत ये थी कि पारसी, पाकिस्तानी, एंग्लो इंडियन, यह सभी खिलाड़ी जो कि आजादी के पहले भारत का हिस्सा रहे थे आजादी के बाद अपने अपने देश चले गए थे.
भारत के भी कई शानदार खिलाडियों ने, पैसे की कमी के कारण दूसरे देशों में कोचिंग देनी शुरू कर दी थी, जिनमे से अधिकांश तो वहीँ जाकर बस गए थे.
भारत ने 50 और 60 के दशक में इस समस्या को face ही किया था, तभी Artificial Turf आ गया. इस Turf की समस्या यह थी हमारे यहां का फेडरेशन करोड़ों रुपये खर्च करके भी वैसा Turf नहीं बना पा रहा था जो कि ऑलंपिक में प्रयोग किए जाते हैं. 1976 के ऑलंपिक में तो टीम को कुछ अता पता ही नहीं चला कि यह हुआ क्या है.
हालांकि आगे मेहनत की गई, लेकिन पुराने खिलाडियों के लिए उस turf पर खेलना मुश्किल था, जिसके कारण या तो उन्होंने टीम छोड़ दी, या फिर वो हार का हिस्सा बने.
अब आप सभी के मन में यह तो आ ही रहा होगा कि जब पुराने वाले खिलाड़ी उस surface यानी कि turf पर नहीं खेल सकते थे, तब नए वाले खिलाड़ी या Coaching ले रहे kids ने तो सीखा होगा.
दोस्तों इन्डिया के उस समय के बाद की जनरेशन ने पूरी मेहनत करके खुद को उस Turf पर भी जीत का दावेदार साबित कर दिया था, लेकिन समस्या यह थी कि भारत एक मुसीबत से निकल रहा था, और दूसरी मुसीबत में पहुंच रहा था.
आइए जानते हैं दूसरी मुसीबत के बारे में |
साल था 1992. बार्सेलोना में हुए ऑलंपिक में भारत के गोल्ड का रास्ता साफ़ नजर आ रहा था और भारत के नए खिलाडियों ने पूरी मेहनत कर भी ली थी, लेकिन ऑलंपिक के कुछ समय पहले ही इन्टरनेशनल हॉकी फेडरेशन ने नए नियम बना दिए.
जिन हिस्सों में भारत को फायदा मिलता था, उसी हिस्से को खत्म कर दिया गया. उसके बाद से अब तक हम लगातार जुझ रहे हैं.
1992 का यह नुकसान इतना बड़ा था कि आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे दुनिया में स्पिनर को बैन कर दिया.
हॉकी का दुर्भाग्य यह भी रहा है कि जिस देश में हॉकी नेशनल स्पोर्ट्स है, वहाँ क्रिकेट हावी है, जैसे इस उदाहरण में आप देख सकते हैं हॉकी को समझने के लिए भी क्रिकेट का सहारा लेना पड़ा है.
टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारतीय हॉकी की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है और आने वाले समय में खिलाडियों से ज्यादा देश के कुछ राजनेताओं से उम्मीद है कि वो हॉकी के खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देंगे |
जिससे हॉकी का स्तर भारत में हॉकी का इतिहास की तरह हो पायेगा |
अगर आप भी यह चाहते हैं तो आपकी भी जिम्मेदारी बनती है कि हॉकी को भी उतना ही प्रेम दें, जितना कि आप क्रिकेट को देते हैं.