महाभारत काल में ऐसे अनेक योद्धा हुए जिनके प्रताप से पूरा ब्रह्माण्ड काँप उठता था | महाभारत काल के ये योद्धा सामान्य इंसान नहीं थे बल्कि ये पृथ्वी पर अवतार लेने वाले देवता थे |
महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने भी अपनी लीलाओं से संसार को अपने मानवीय रूप में दर्शन देकर ईश्वर की उपस्थिति का अहसास करवाया था |
आज हम आपको महाभारत काल के सबसे बड़े योद्धा गंगा पुत्र भीष्म पितामह की कहानी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं |
भीष्म का नाम भीष्म उनकी एक कठोर प्रतिज्ञा के कारण पड़ा था | उनकी इस प्रतिज्ञा ने ही उनसे द्रोपदी के चीर हरण को चुप चाप देखने का पाप करवाया था और उनकी ये भीष्म प्रतिज्ञा ही उनकी मौत का कारण भी बनी थी |
अपनी इसी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया था | जहाँ महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने प्रण लिया था की वो शस्त्र नहीं उठाएँगे वहीं भीष्म ने भी प्रण किया था की वो भगवान कृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे |
आइए जानते हैं महाभारत के सबसे बड़े योद्धा भीष्म पितामह की कहानी |
भीष्म का पूर्व जन्म का श्राप

आदि पर्व के अनुसार एक बार वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण के लिए गये | इन वसुओं में द्यौ नाम का एक वसु भी था | इसी पर्वत पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम भी था | ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में नंदिनी नाम की बड़ी सुंदर गाए बँधी थी |
जिसे देखकर धो वसु की पत्नी उस गाये को लेने की ज़िद करने लगी | अपनी पत्नी की बात मान कर उस वसु ने उस गायें को चुरा लिया |
जब महऋषि वशिष्ठ जी आश्रम में वापिस आए तो उन्होने देखा की उनकी गाये उनके आश्रम में नहीं है |
तो उन्होने दिव्य दृष्टि से सारी घटना को देख लिया | वसुओं के द्वारा इस प्रकार गाये चुराने से वशिष्ठ जी क्रोधित हो गये और उन्होने वसुओं को मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दिया |
इस पर सभी वसु महरषि वशिष्ठ जी से माफी माँगने लगे | तब वशिष्ठ जी ने बाकी वसुओं को माफ़ कर दिया लेकिन उन्होने कहा की द्यौ नाम के वसु को पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेना होगा और लंबी आयु तक जीवित रहकर संसार के दुख भोगने पड़ेंगे |
इस तरह वही द्यौ नाम का वसु राजा शांतनु के घर भीष्म के रूप में जन्म लेता है | श्राप के कारण ही उन्हें लंबे समय तक पृथ्वी पर रहना पड़ा और उन्होने अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त की |
भीष्म पितामह का जन्म – Bhishma Pitamah Story in Hindi

भीष्म ने राजा शांतनु की संतान के रूप में जन्म लिया था | उनका नाम भीष्म भी बाद में उनकी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण पड़ा था |
एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते हुए गंगा के तट पर पहुँच गये | गंगा के तट पर उन्होने एक सुंदर स्त्री को देखा और वो उस स्त्री पर मोहित हो गये |
राजा शांतनु ने उस सुन्दर स्त्री के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा | उस सुंदरी ने विवाह का प्रस्ताव मानने की एक शर्त रखी की वो चाहे कुछ भी करे शांतनु उससे उसका कारण नहीं पूछेंगे और ना ही उसे रोकेंगे |
राजा शांतनु का जीवन उस स्त्री के साथ सुख पूर्वक बीतने लगा | लेकिन जैसे की उस स्त्री की कोख से संतान जन्म लेती वो उसे गंगा नदी में प्रवाहित कर देती थी | इस तरह राजा शांतनु के घर सात पुत्रों ने जन्म लिया और सभी को उस स्त्री ने गंगा में प्रवाहित कर दिया |
राजा शांतनु अपने पुत्रों को खो कर भी उस स्त्री को रोक नही पाए और ना ही उससे अपने पुत्रों को गंगा में प्रवाहित करने का कारण पूछ पाए क्यूंकी वो वचन में बँधे हुए थे |
इसके बाद शांतनु के घर एक और पुत्र ने जन्म लिया लेकिन अब शांतनु अपने पुत्र को खोना नहीं चाहते थे |
जब वो स्त्री उस आठवें पुत्र को भी गंगा में बहाने के लिए जा रही थी तो राजा शांतनु ने उसे रोका और उससे ऐसे करने का कारण पूछा |
तब उस स्त्री ने बताया की में देव नदी गंगा हूँ | आपके जिन पुत्रों में मैने गंगा में प्रवाहित कर दिया वो सभी वसु थे जिन्हें ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा था और मैने उन्हें नदी में बहा कर उन्हें श्राप से मुक्ति दी है |
क्यूंकी तुमने मुझे वचन दिया था की तुम मुझसे कभी मेरे द्वारा किए कार्यों का कारण नहीं पूछोगे, पर अब तुमने अपना वचन तोड़ दिया है इसलिए में तुम्हे छोड़कर जा रही हूँ |
इस तरह गंगा उस आठवें पुत्र को साथ लेकर वहाँ से चली गई | राजा शांतनु और गंगा का आठवा पुत्र ही बाद में भीष्म के नाम से जाना गया |
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भीष्म से दोबारा मुलाकात
अपने आठ पुत्र और अपनी पत्नी को इस तरह से खोकर राजा शांतनु बहुत उदास हो गये | उनका एक मात्र पुत्र जो जीवित था उसे भी गंगा अपने साथ ले गई थी |
एक दिन राजा शांतनु गंगा के तट पर विचरण कर रहे थे | तभी उन्होने वहाँ एक हैरान करने वाला नज़ारा देखा |
उन्होने देखा की गंगा की धारा रुक गई है और जल नहीं बह रहा है | जब उन्होने आगे जाकर देखा तो पाया की एक छोटे से बालक ने अपने बाणों से गंगा की धारा को रोक दिया था |
इस बालक के इस कौशल से राजा शांतनु बहुत प्रभावित हुए उन्होने उस बालक से पूछा की वो कौन है तब वहाँ गंगा प्रकट होती है |
गंगा शांतनु को बताती है वो उनका पुत्र देवव्रत है | गंगा कहती है ये एक महान धनुर्धर है जिसने परशुराम से अस्त्र शस्त्रों की विद्या ग्रहण की है साथ है गुरु वशिष्ट जी से वेदों की शिक्षा भी ली है |
राजा शांतनु अपने पुत्र को देखकर बहुत खुश होते हैं इसके बाद गंगा देवव्रत को राजा शांतनु को सौंप कर वहाँ से चली जाती है |
देवव्रत शांतनु की संतान थे इसलिए राजा शांतनु उसे हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर देते हैं | देवव्रत भी वेदों के ज्ञाता और कुशल धनुर्धर थे उनके मुख पर इंद्र के समान तेज था |
सारी प्रजा उन्हें स्नेह करने लगती है और वो हस्तिनापुर के युवराज बनकर रहते हैं जब तक उनके पिता की मुलाकात सत्यवती से नहीं होती |
भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा – Bhishma Pratigya

देवव्रत शांतनु के राज्य को संभाल रहे थे | लेकिन एक दिन राजा शांतनु नदी के तट पर घूम रहे थे तभी वहाँ उन्हें एक सुंदर कन्या दिखाई देती है |
वो कन्या निषाद पुत्री सत्यवती थी | सत्यवती का रूप बहुत मनमोहक था जिसे देखकर राजा शांतनु उस पर मोहित हो गये |
राजा शांतनु उस पर इतने मोहित हुए की वो विवाह का प्रस्ताव लेकर उसके पिता के पास पहुँच गये | निषादराज़ ने अपनी कन्या के विवाह की एक शर्त रखी वो शर्त ये थी कि उसकी पुत्री से जो भी संतान होगी उसे ही राजा शांतनु अपना उत्तराधिकारी बनाएँगे |
किंतु शांतनु तो पहले ही देववृत को अपने राज्ये का उत्तराधिकारी और युवराज घोषित कर चुके थे इसलिए उन्होने इस विवाह से मना कर दिया |
लेकिन राजा शांतनु निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम कर बैठे थे जिस कारण वो बहुत उदास रहने लगे | किंतु उन्होने देवव्रत को इस घटना के बारे में नहीं बताया |
जब देवव्रत को इस घटना के बारे में पता चला तो वो निषादराज के पास उस कन्या को अपने पिता से विवाह करने के लिए लेने पहुँच गये | निषादराज ने देवव्रत के सामने भी वही शर्त रखी की अगर उस कन्या की संतान को वो राज्य का उत्तराधिकारी बनाएँगे तब ही वो उसका विवाह राजा शांतनु से करेंगे |
तब देवव्रत ने निषादराज के समक्ष ये प्रतिज्ञा ली थी की वो निषादपुत्री के गर्भ से पैदा होने वाली संतान को ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनाएँगे |
किंतु निषादराज इससे भी संतुष्ट नहीं हुए | निषादराज ने संदेह प्रकट किया की अगर देवव्रत की संतान ने उसकी पुत्री के गर्भ से जन्मी संतान का वध कर राज्य पर अधिकार कर लिया तो क्या होगा |
ऐसे में देवव्रत ने धरती, आकाश और चारों दिशाओं को साक्षी मानकर भीष्म प्रतिज्ञा की थी की वो आजीवन विवाह नहीं करेंगे और ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे |
इसी भीषण प्रतिज्ञा के कारण देवव्रत का नाम भीष्म पड़ा था |
कैसे विचित्रवीर्य बना हस्तिनापुर नरेश
भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार ही विवाह नहीं करते | शांतनु निषाद पुत्री सत्यावती से विवाह कर लेते हैं |
शांतनु देवव्रत की अपने प्रति इस निष्ठा से बहुत खुश होते हैं और उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान देते हैं |
शांतनु और सत्यवती से दो पुत्र होते हैं एक का नाम चित्रांगद और दूसरे का नाम विचित्रवीर्य रखा जाता है | कुछ समय के बाद राजा शांतनु की मृत्यु हो जाती है | इसके बाद चित्रांगद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठते हैं |
चित्रांगद एक बहुत अच्छा राजा था उसके समय में हस्तिनापुर में बहुत खुशहाली थी | भीष्म ने उसे युद्ध की शिक्षा दी थी |
लेकिन चित्रांगद नाम का ही एक गन्धर्व राजा था जिसने चित्रांगद को अकेले युद्ध के लिए ललकारा वो चाहता था की इस नाम का कोई और राजा नहीं हो सकता |
कहा जाता है और हस्तिनापुर नरेश चित्रांगद और गन्धर्व राजा के बीच ये युद्ध 3 वर्षों तक चलता रहा था | अंत में हस्तिनापुर नरेश की इस युद्ध में मृत्यु हो जाती है और उनका छोटा भाई विचित्रवीर्य राजा बनता है |
भीष्म ने किया था राजकुमारियों का हरण

विचित्रवीर्य मदिरा पान करता था वो उस तरह का राजा नहीं था जैसे उसके पिता और बड़े भाई थे | विचित्रवीर्य की आयु विवाह योग्य हो गई थी | काशी नरेश ने अपनी पुत्रियों के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया |
किंतु काशी नरेश ने हस्तिनापुर को न्योता नहीं भेजा | जिसे भीष्म ने हस्तिनापुर का अपमान समझा और भीष्म स्वयं उस स्वयंवर में जा पहुँचे |
भीष्म ने उस स्वयंवर में मौजूद सभी राजाओं को हराकर काशी नरेश की तीनो कन्याओं अंबा, अंबिका और अंबलिका का हरण कर लिया |
काशी नरेश की पुत्री अंबा मन ही मन राजा शल्व को प्रेम करती थी | उसने भीष्म को अपने प्रेम के बारे में बताया जिसके बाद भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास जाने की अनुमति दे दी |
और काशी नरेश की बाकी दोनो पुत्रियों अंबिका और अंबलिका का विवाह विचित्रवीर्य से करवा दिया |
अंबा बड़ी प्रसन्न होकर राजा शाल्व के पास पहुंची लेकिन राजा शल्व ने अपहरण कर ले जाई गई कन्या को अपनाने से मना कर दिया |
इसके बाद अंबा फिर से गंगा पुत्र भीष्म के पास आई और कहा की आपने मेरा हरण किया है अब आप ही मुझसे विवाह करें| लेकिन भीष्म ने कहा की उन्होने आजीवन ब्रह्मचर्य रहने की प्रतिज्ञा की है इसलिए वो उससे विवाह नहीं कर सकते |
परंतु अंबा भीष्म से विवाह करने की ज़िद पर अड़ी रही और भीष्म को मनाने के लिए परशुराम जी के पास जा पहुँची |
परशुराम ने ही भीष्म को शस्त्र विद्या सिखाई थी वो भीष्म के गुरु थे | उन्होने भी भीष्म से कहा की वो अंबा से विवाह कर ले लेकिन भीष्म की प्रतिज्ञा अडिग थी वो अपनी प्रतिज्ञा को किसी भी कीमत पर नहीं तोड़ सकते थे |
परशुराम और भीष्म में इस विवाद को लेकर भयंकर युद्ध हुआ | दोनो ही एक से बढ़कर एक थे दोनो के बीच ये युद्ध 23 दिन तक चला | दोनो में युद्ध के कारण भारी विनाश हुआ अंत में देवताओं ने इस युद्ध को बंद करवाया |
युद्ध समाप्त हो गया किंतु अंबा की इच्छा अब भी अधूरी थी उसके पास कोई विकल्प नहीं था | अंबा ने अपनी इस हालत के लिए भीष्म को ज़िम्मेदार ठहराया और भीष्म को श्राप दिया की जिस तरह मेरा अपमान हुआ है उसी तरह तुम्हारे कुल की एक स्त्री का अपमान होगा और तुम अपनी इसी प्रतिज्ञा के कारण कुछ भी नहीं कर पाओगे |
अंबा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए तप करना शुरू कर दिया | तप करते करते अंबा ने अपनी देह त्याग दी और अगले जन्म में वत्सदेश की कन्या के रूप में जन्म लिया |
अंबा को इस जन्म में भी अपने पिछले जन्म का सब कुछ याद था इसलिए उसने फिर से तप करना शुरू कर दिया और उसकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गये |
भगवान शिव से अंबा ने वरदान माँगा की वो भीष्म की मृत्यु का कारण बने | भगवान शिव ने अंबा को वरदान दे दिया |
किंतु अंबा ने पूछा की वो स्त्री रूप में कैसे भीष्म वध का कारण बन सकती है तब भगवान शिव ने उसे कहा की अगले जन्म में वो पुनः कन्या के रूप में जन्म लेगी | किंतु युवा अवस्था में वो पुरुष बन जाएगी |
भगवान शिव से ये वरदान पाकर अंबा ने खुद को अग्नि के समर्पित कर दिया और अपने प्राण त्याग दिए |
अगले जन्म में इसी कन्या ने राजा द्रुपद के घर द्रोपदी की बहन शिखण्डी के रूप में जन्म लिया जो आगे चलकर भीष्म की मृत्यु का कारण बनी |
द्रोपदी का चीरहरण
कौरवों ने पांडवों को जुए में हरा कर सारे पांडवों को अपना दास बना लिया | उन्होने द्रोपदी को भी पांडवों से जीत लिया और भरी सभा में द्रोपदी का अपमान किया |
भारतवंश के सबसे बड़े योद्धा की पुत्र वधु का भरी सभा में चीरहरण हो रहा था किंतु वो योद्धा चुप था वो कुछ नहीं बोल सका |
क्यूंकी भीष्म ने हस्तिनापुर के सिंहासन का दास बने रहने की प्रतिज्ञा की थी | अंबा के श्राप के कारण भीष्म को अपने कुल की पुत्र वधू द्रोपदी का वो अपमान देखना पड़ा |
द्रोपदी उस सभा में मौजूद द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, भीष्म और धृतराष्ट्र तक सबसे उसे दुशासन से छुड़वाने की गुहार लगाती रही किंतु किसी ने उसे बचाने की हिम्मत नहीं दिखाई |
अंत में द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण को याद किया जिसके बाद स्वयं भगवान कृष्ण ने उसकी लाज बचाई |
इसी सभा में भीम ने प्रतिज्ञा की थी की वो दुशासन की छाती को फाड़कर उसका रक्त पीयेगा |
द्रोपदी का ये चीरहरण महाभारत के युद्ध का सबसे बड़ा कारण बना |
महाभारत का युद्ध
महाभारत के युद्ध में भीष्म, द्रोणाचार्य, अश्वथामा जैसे बड़े योद्धा कौरवों की ओर थे जबकि पांडवों की तरफ भगवान श्री कृष्ण थे |
कौरवों और पांडवों दोनो ने श्री कृष्ण से सहयता माँगी थी | तब भगवान श्री कृष्ण ने कोरवों को अपनी नारायणी सेना दे दी थी और खुद पांडवों की तरफ हो गये थे |
भगवान कृष्ण ने ये प्रतिज्ञा की थी की वो इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएँगे |
गंगा पुत्र भीष्म युद्ध में कौरवों के सेनापति थे भीष्म पांडवों से बहुत स्नेह करते थे इसलिए वो पांडवों को क्षति नहीं पहुँचना चाहते थे |
युद्ध में कुछ दिन बीत जाने के बाद दुर्योधन ने भीष्म से कहा की अगर वो अर्जुन का वध नहीं कर सकते तो वो सेनापति का पद छोड़ दे |
तब भीष्म ने युद्ध में भारी तबाही मचाई और अर्जुन से युद्ध करने लगे | धर्म युद्ध में पांडवों को हारता देख और अर्जुन को भीष्म के सामने सफल होते ना देखकर भगवान श्री कृष्ण रणभूमि में उतर गये |
भगवान श्री कृष्ण भीष्म का वध करने ही वाले थे की अर्जुन ने उन्हें रोक लिया | अर्जुन ने कहा की हे केशव मेरे लिए आप अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़े |
इस तरह भीष्म ने श्री कृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए मजबूर कर दिया था |
पांडवों के पास कोई ऐसा योद्धा नहीं था वो भीष्म का वध कर सकता | इस पर भीष्म ने स्वयं पांडवों को अपनी मृत्यु का राज बताया |
भीष्म ने बताया की युद्ध भूमि में शिखण्डी को मेरे सामने ले आना उसके सामने आने पर मैं शस्त्र त्याग दूँगा क्यूंकी में किसी स्त्री के समक्ष शस्त्र नहीं उठा सकता |
शिखण्डी जो पूर्व जन्म में अंबा थी इस जन्म में युवा अवस्था में आने के बाद भगवान शिव के वरदान से पुरुष बन गयी थी | किंतु भीष्म उसे स्त्री ही मानते थे |
पांडवों ने ऐसा ही किया वो शिखण्डी को युद्ध भूमि में भीष्म के सामने ले आए | शिखण्डी को सामने देखकर भीष्म ने अपने शस्त्र त्याग दिए | और अर्जुन ने भीष्म को बाणों की सैया पर लिटा दिया |
भीष्म एक वीर और वचन का पक्का योद्धा कौरवों और पांडवों के भीष्म पितामह बाणों पर लेटे हुए थे परंतु प्राण नहीं त्याग रहे थे | भीष्म को बहुत अधिक पीड़ा हो रही थी लेकिन उन्हें अपने पिता से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था |
वो हस्तीनापुर को सुरक्षित हाथों में देखना चाहते थे |
भीष्म ने महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद अपने प्राण त्यागे और युधिस्टर को धर्म पर चलते हुए शासन करने का आशीर्वाद दिया |