कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी

कारगिल की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया लेकिन इस लड़ाई में भारत ने अपने बहुत से बहादुर सैनिकों को खो दिया | 

कैप्टन विक्रम बत्रा भी उन्ही सैनिकों में एक थे, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से पाकिस्तानी फौज की ईंट से ईंट बजा दी थी |  

विक्रम बत्रा की बहादुरी से ही भारत स्ट्रॅटेजिक रूप से अहम अपने 2 पॉइंट्स को पाकिस्तान से वापिस छीन पाया था. 

captain vikram batra biography in hindi

24 साल के विक्रम ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े बहादुरी पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

उनके जीवन पर आधारित फिल्म शेरशाह में उनके जीवन को बेहद करीब से दिखाया गया है. 

बी बी सी को दिए अपने एक वक्तव्य में, उनके पिता बताते हैं की विक्रम बचपन से ही बहुत साहसिक और निडर थे.  उनके पिता बताते हैं की बचपन में एक बार विक्रम ने अपने से जूनियर एक बाकची की जान भी बचाई थी. 

जिस स्कूल बस में विक्रम स्कूल जाते थे उस बस का दरवाजा खुल जाने से एक बच्ची नीचे गिर गई, तब विक्रम ने छलांग लगाकर उस बच्ची  को संभाला जिससे उस बच्ची को मामूली चोट आई और एक बड़ा हादसा टल गया. 

1999 में कारगिल की लड़ाई के शुरू होने से पहले विक्रम होली की छुट्टियों में घर पर आए हुए थे. 

यहाँ अपने पसंदीदा कैफ़े में वो अपने सबसे अच्छे दोस्त से मिले.

उनका दोस्त कारगिल वॉर की वजह से उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे. 

तब विक्रम ने कहा था

या तो मैं तिरंगा लहरा कर आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा. पर मैं आऊंगा जरूर 

कैप्टन विक्रम बत्रा हिमाचल के रहने वेल थे, उनका जन्म 1974 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. 

विक्रम बत्रा का बचपन

उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और मा कमाल बत्रा भी स्कूल में शिक्षिका थी.

विक्रम का एक जुड़वा भाई भी है जिसका नाम विशाल है और विक्रम, विशाल से 14 मिनट पहले पैदा हुए थे. 

उनकी दो बड़ी बहने भी हैं. 

जब विक्रम कारगिल वॉर में शहीद हो गए तब उनकी मां ने कहा था की वो अक्सर सोचती थी कि भगवान ने उन्हें जुड़वा बच्चे क्यों दिए.

पर अब विक्रम के शहीद हो जाने के बाद उन्हें इस बात का जवाब मिला की विक्रम को भगवान ने देश के लिए चुना था और विशाल को मेरे लिए.

विक्रम ने डी ए वी से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन ले लिया.

बचपन से ही विक्रम स्कूल में बहुत पॉपुलर थे वो पढ़ाई के साथ साथ स्पोर्ट्स और एक्स्ट्रा करिकुलम अक्टिविटीस में भी बढ़ चढ़कर पार्टिसिपेट किया करते थे.

वो टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और टेबल टेनिस में नेशनल तक खेल चुके थे.

यहीं नहीं उत्तर भारत में वो एन सी सी के सबसे अच्छे कैडेट के रूप में भी चुने गये थे. 

उन्हें एन सी सी  एयर विंग के द्वारा फ्लाइयिंग क्लब और पिंजौर एयरफील्ड में 40 दिनों के प्रशिक्षण के लिए भी चुना गया था.

साथ ही उन्हें कराटे का भी शौक था, करते में वो ग्रीन बेल्ट थे. 

बचपन से ही उनमें देश की सेवा का जज़्बा पैदा हो गया था.

अपनी स्नातक की पढ़ाई उन्होंने चंडीगढ़ से की इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़ से एम ए की पढ़ाई शुरू कर दी.

एम ए की पढ़ाई के दौरान कॉलेज में उनकी मुलाकात डिंपल चीमा से हुई.  डिंपल ने भी एम ए इंग्लिश की पढ़ाई के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया था. 

कॉलेज में दोनों एक दूसरे के करीब आ गये और दोनो में प्यार हो गया. 

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें होंग कोंग की एक शिपिंग कंपनी द्वारा मर्चेंट नेवी के लिए चुन लिया गया था. 

पर अच्छी सैलरी की नौकरी को छोड़कर विक्रम ने अपने देश की सेवा को चुना.

चंडीगढ़ से ही कॅप्टन विक्रम ने सी डी एस की तैयारी करनी शुरू कर दी और इलाहाबाद एस एस बी के द्वारा उन्हें चुन लिया गया. 

यहाँ भी अपनी प्रतिभा के दम पर वो चुने गये पहले 35 उम्मीदवारों में शामिल थे.

आर्मी करियर

जून 1996 में विक्रम ने देहरादून की इंडियन मिलिटरी अकॅडमी की मानेकशॉ बटालियन को ज्वाइन किया. 

लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात विक्रम बत्रा की पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर के बारामूला डिस्ट्रिक्ट के सोपोर में हुई.

जम्मू कश्मीर के हालात से तो आप वाकिफ़ ही हैं, बारामूला में बहुत बार आतंकवादियों से उनकी मुठभेड़ हुई.

ऐसे ही एक बार आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान उनकी तरफ आने वाली एक गोली उनके एक साथी को जा लगी. 

जिससे वो सैनिक शहीद हो गया. विक्रम को एहसास हुआ की वो बुलेट उनकी लिए थी जिसने उनके साथी की जान ले ली. 

इससे विक्रम बहुत दुखी हुए और अपने उस साथी की शहादत का बदला लेते हुए सभी आतंकवादियों को मार गिराया.

1999 में विक्रम को कर्नाटक के बेलगाम में दो महीने कमांडो कोर्स के लिए भेजा गया, जिसे सफलता पूर्वक पूरा करने पर उन्हें इंस्ट्रक्टर ग्रेड से सम्मानित किया गया.

विक्रम का अपने शहर से भी बहुत लगाव था. वो जब भी घर आते पालमपुर में नेउगाल कैफ़े ज़रूर जाते. 

कारगिल की लड़ाई शुरू हो चुकी थी और जल्दी ही विक्रम को कारगिल के लड़ाई में जाने के ऑर्डर मिल गये. 6 

जून 1999 को वो द्रास पहुँच गये और उन्होंने 56 माउंटेन ब्रिगेड की कमांड में जाय्न किया. 

पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठियों ने भारत की बहुत सी चौकियों पर कब्जा कर लिया था जिन्हें पाकिस्तानी आर्मी का पूरा साथ मिल रहा था.

कब्जाए गये इन पायंट्स को वापिस लेने की जिम्मेदारी भारत की फौज पर थी.

कारगिल की लड़ाई में योगदान

ऐसे ही एक पॉइंट 5140 को वापिस लेने की ज़िम्मेदारी 13 ज़ाक रीफ़ को दी गयी जिसकी डिमांड लेफ्टिनेंट कर्नल योगेश कुमार जोशी के पास थी.

कर्नल योगेश की कंपनी के साथ विक्रम बत्रा की डेल्टा और संजीव सिंह जामवाल की ब्रावो कंपनी भी इस मिशन में शामिल थी. 

विक्रम ने अपनी कंपनी के सफल होने की सूरत में जिन शब्दों का चयन किया था वो थे “ये दिल माँगे मोरे”

जब कर्नल योगेश जोशी ने उनसे पूछा की उन्होने ये शबाद क्यूँ चुने तो विक्रम का कहना था वो वहाँ रुकेंगे नहीं बल्कि और आयेज की पोस्ट्स को भी फ़तेह करते जाँएंगे.

इन शब्दों की वजह से विक्रम आज भी याद किए जाते हैं. 

उस मिशन में विक्रम ने अकेले ही बिल्कुल आमने सामने की लड़ाई में टीन दुश्मनों को मार गिराया था.

इस लड़ाई में विक्रम बुरी तरह घायल भी हो गये थे लेकिन उन्होंने बड़ी कुशलता से बिना किसी सैनिक को खोए इस पॉइंट पर कब्जा कर लिया. 

और पॉइंट पर कब्जा करने के बाद पेप्सी का स्लोगन ये दिल माँगे मोरे बोला. इस मिशन में उनकी बहादुरी और कार्यक्षमता  को देखते हुए उन्हें कैप्टन के पद पर प्रमोट कर दिया गया. 

कारगिल की लड़ाई भारत की पहली ऐसी लड़ाई थी जिसका प्रसारण टीवी पर किया गया और हर तरफ कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के चर्चे थे. 

इसी बीच विक्रम अपने पिता से बात करते हुए उन्हें बताते हैं की उन्होंने दुश्मन से एक पोस्ट को छीन लिया है. 

विक्रम के पिता उन्हें आशीर्वाद देते हैं. 

इसके 9 दिन बाद जब विक्रम अपने नये मिशन पर जाने की तैयारी कर रहे थे तो उन्होंने फिर से अपने घर पर बात की.

तब विक्रम ने कहा था “एक दम फिट हूँ, फिकर मत करना”.

ये विक्रम के अपने माता पिता को कहे गये आखिरी शब्द थे. 

विक्रम का अगला मिशन बहुत मुश्किल था क्यूंकी इस मिशन में उन्हें 17000 फीट की उँचाई पर पॉइंट 4875 पर कब्जा करना था. 

पाकिस्तानी फौजियों को ऊँची जगह पर होने का फायदा मिल रहा था लेकिन भारत के फौजियों में भी जोश और जुनून की कमी नहीं थी. 

इतनी ऊंचाई पर चड़ते चड़ते कैप्टन विक्रम को ठंड और थकान की वजह से बुखार हो गया. 

बत्रा बेस कैंप से पूरी स्थिति को देख रहे थे. इस मिशन में कॅप्टन नागप्पा जो पाकिस्तानी की गोला बरी का मूह तोड़ जवाब दे रहे थे, गोली से घायल हो गये.

तब कैप्टन बत्रा ने अपने कमांडिंग ऑफिसर से आगे जाने के लिए परमिशन माँगी. 

लेकिन कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें जाने की परमिशन नहीं दी क्यूंकि वो अभी भी बीमार थे. 

लेकिन कॅप्टन विक्रम बत्रा किसी भी हाल में उस पोस्ट पर कब्जा करना चाहते थे. 

शेरशाह की शहादत

मिशन के लिए कैप्टन का कोड वर्ड था शेरशाह | 

6-7 जुलाई की रात को कैप्टन बत्रा अपने 25 साथियों के साथ पोस्ट पर कब्जा करने के लिए आयेज बढ़ते हैं. 

16000 फीट की ऊंचाई पर इंडियन आर्मी पाकिस्तानी फौज से लोहा ले रही थी. तभी पाकिस्तानी सेना एक मैसेज को इंटर्सेप्ट करती है 

“शेर शाह वाज़ कमिंग”. 

इस वक़्त तक पाकिस्तानी फौजियों को भी टा चल चुका था की कौन है शेरशाह | 

जिससे पाकिस्तानी सेना उन्हें रोकने के लिए अपनी गोलीबारी को तेज कर देती है. 

इस मिशन में भी कैप्टन पाकिस्तानियों पर भारी पड़ते हैं और 5 दुश्मनों को मार गिरते हैं.

लेकिन इसी बीच उनके एक साथी एक बम धमाके में बुरी तरह घायल हो जाता है. कॅप्टन विक्रम अपने देश ही नहीं बल्कि अपने साथियों पर भी जान छिड़कते थे. 

जब विक्रम उस साथी सैनिक को बचाने के लिए पत्रों के पीछे से बाहर जा रहे थे तो उनके साथी सैनिक ने उनसे कहा की साहब बाहर मत जाइए हमें गोली लग सकती है. और शायद ही वो सैनिक जिंदा बचे.

तो विक्रम तोड़ा नाराज़ हो गये और बोले की तुम डरते हो, जिस पर उस सैनिक ने कहा नहीं सर अगर आप कहेंगे तो हम ज़रूर आयेज जएनेगे.

जैसे ही दोनों उस घायल सैनिक को बचाने जा रहे थे तो विक्रम ने अपने साथी सिपाही को कहा तुम पैरों की तरफ से उठाओगे और मैं सिर की तरफ से क्यूंकी..

“तुम्हारा परिवार और बच्चे हैं जबकि मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई.”

विक्रम पत्रों के पीछे से बाहर आकर उस घायल सैनिक की बचा रहे थे की एक गोली उनकी छाती में आ लगती है और वो शहीद हो जाते हैं. 

इस मिशन में उन्होंने अपने साथी कैप्टन अनुज नायर को भी खो दिया, लेकिन सुबह तक भारत ने 4875 की चोटी   पर कब्जा कर लिया था. 

उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत 15 अगस्त 2000 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा ने अपने बेटे का वो सम्मान प्राप्त किया. 

कारगिल की लड़ाई के बाद से अगस्त 2021 तक वो आखिरी नायक थे जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

जिस पॉइंट 4875 को हासिल करने में कैप्टन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी उस पॉइंट का नाम उनके सम्मान में बत्रा टॉप रखा गया. 

कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित फिल्म शेरशाह भी बन चुकी है और ओ टी टी प्लेटफार्म पर आप उसे देख सकते हैं. 

शेरशाह के अलावा LOC – कारगिल में भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिखाया गया है जिसमें अभिषेक बच्चन ने उनका किरदार निभाया था. 

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

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