छठ पूजा क्यों मनाई जाती है, छठ पूजा का इतिहास | Chhath Puja

कार्तिक का महीना त्योहारों व्रतों से भरा होता है, इसी महीने दिवाली होती है, भाई दूज होती है और इसी महीने छठ पूजा भी होती है | 

भारत के बिहार, झारखंड,उत्तरी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कई इलाकों में छठ पूजा की जाती है | उत्तर भारत के राज्यों में ये परम्परा अभी पैर पसारने लगी है क्योंकि इन इलाकों से बहुत सारे लोग पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जैसी जगहों पर आकर बस गए हैं और वो अपने साथ अपने त्यौहार, खान पान भी लाए हैं |

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है

पर हम नार्थ इंडियन जब बिहार, झारखण्ड के लोगों को ये पूजा करते देखते हैं तो मन में बहुत सारे सवाल आते हैं के छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ? छठ पुजा क्या होती है ? छठ पुजा की कहानी क्या है ? कैसे करते हैं छठ पूजा इत्यादि |

अगर आपके मन में भी ये सवाल आते हैं तो हम आपके सवालों के जवाब देने के लिए हैं | आईये जानते हैं छठ पूजा की कहानी, इसे करने की विधि ताकि आप भारत देश के एक अनोखे पर्व के बारे में और जान सके |

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ?

इस पूजा के दौरान सूर्य भगवान की पूजा की जाती है | इसके संबंध में बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं, कहा जाता है के भगवान राम ने भी ये पूजा की थी | पर सबसे ज्यादा प्रचलित है राजा प्रियंवद की कहानी |

कहा जाता है के राजा प्रियवंद एक सम्पन्न राजा थे पर उनकी विरासत को संभालने के लिए कोई वारिस नहीं था | वो निसंतान थे, जिसका उन्हें बहुत दुःख था और उन्होंने ऐसा कोई कर्म कांड नहीं छोड़ा था जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति हो | अत्यंत दुखी होकर वो महिषी कश्यप से इसके बारे में बात करते हैं |

महर्षि कश्यप राजा की पीड़ा समझते हुए पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं | यज्ञ में पूजा के लिए एक खीर बनाई गयी जिससे उस यज्ञ में आहुति दी जानी थी | वो खीर राजा की पत्नी मालिनी को दी गयी और चमत्कार ये हुआ के यज्ञ के असर से और खीर के पर्षद से मालिनी ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो पुत्र था, पर किस्मत का फेर , वो पुत्र मृत पैदा हुआ , जिससे राजा का दुःख आसमान छु गया और वो दुखी मन से पुत्र के संस्कार के लिए श्मशान पहुंचा और फैसला किया के पुत्र के साथ ही प्राण त्याग देगा | 

जब राजा अपने प्राण त्यागने लगा तो उस समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई | उन्होंने राजा को बताया के उनका नाम षष्ठी है क्योंकि वो सृष्टि की मूल पर्विटी के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ ,  मेरी पूजा करो और व्रत करो , जिससे तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी  |

राजा ने ऐसा ही किया, राजा ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी वाले दिन पूरे विधान से पूजा की और जिसके फलस्वरूप राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई | और तबसे ये पर्व और व्रत करने का विधान शुरू हुआ |

एक और कहानी के अनुसार, जब भगवान राम, रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे तो उन्होंने और माता सीता ने  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी वाले दिन सूर्य भगवान की उपासना की और व्रत रखा |

छठ पूजा को महाभारत के साथ जोड़ती एक कहानी भी है | जिसके अनुसार द्रोपदी ने पांडवों की अच्छी सेहत और लम्बी उम्र के लिए छठ का व्रत रखा था और सूर्य भगवान् की उपासना की थी |

एक और कथा ये भी बताई जाती है के छठ पूजा पर सूर्ये की उपासना का कारण सूर्य पुत्र थे | भगवान् सूर्य की उपासना करने का चलन उन्होंने शुरू किया क्योंकि वो हर रोज़ भगवान् सूर्य को पूजते थे |

कैसे करते हैं छठ पूजा

छठ की पूजा 4 दिन तक चलती है | और जिसने इसका व्रत रखा होता है वो पूरी निष्ठा से इसे निभाता है | छठ का व्रत रखना भी हर किसी के बस की बात नहीं | 

दिन पहला :

व्रत के पहले दिन को नहाए खाए कहा जाता है | जिसने व्रत रखा होता है , वो दोपहर में तालाब या नदी में स्नान करता है फिर अपने हाथों से भोजन बनता है | भोजन में चावल के भात , कद्दू , साग इत्यादि बनता है | जिसने व्रत रखा होता है , उसे दिन रात में केवल एक बार ही भोजन करना होता है |

दिन दूसरा :

दूसरा दिन होता है , इस दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी होती है | इस दिन भी , जिसने व्रत रखा होता है उसे केवल एक ही बार खाना होता है और वो भी सूर्यास्त के बाद | इस दिन गुड़ दूध और चावल की खीर बनती है , ठेकुआ और मिठाई बनती है और केवल केले के पत्ते के ऊपर छठ माता को भोग लगवाते हैं और इसके बाद 36 घंटे तक निराहार व्रत यानि बिना कुछ खाये व्रत करते हैं |

दिन तीसरा :

यह पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन है | इस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी है और छठ माता की पूजा की जाती है | जिसने व्रत रखा होता है वो अपने हाथों से मिठाई बनता है ,और फिर दोपहर के बाद छठ घाट जाने की तैयारी शुरू होती है |  जिसने व्रत रखा होता है वो घाट पर जाकर कमर तक पानी में  जाता है और अस्त होते सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं |

इस रात जागरण होते हैं , पूरी रात लोग नाचते गाते हैं और उत्सव मनाते हैं | 

दिन चौथा :

ये पर्व का आखिरी दिन है, ये कार्तिक शुक्ल सप्तमी का दिन है | जिसने व्रत रखा है वो फिर से घाट पर जाकर पानी में कमर तक प्रवेश करते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देते हैं | छथि माता की कथा सुनाई जाती है और अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है | जिसने व्रत रखा होता है , उसने पिछले 36 घंटों से कुछ नहीं खाया तो , वो हल्का गर्म दूध पीकर अपना व्रत खोलते हैं | और ऐसे छठ पूजा सम्पन्न होती है |

छठ पूजा का महत्त्व (वैज्ञानिक दृष्टिकोण)

हमारे व्रतों, पर्वों की एक खास बात यह है के इनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी होते हैं | ऐसे ही छठ पूजा का एक वैज्ञानिक एंगल भी है | कहा जाता है के इस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में होता है जिससे सूर्य के पराबैंगनी किरणे, पहले से ज्यादा होती है और धरती की तरफ केंद्रित हो जाती है |

इनका सीधा असर, आंख, पेट जैसे अंगों पर पड़ता है | सूर्य देव की उपासना करने से ये असर कम हो जाता है और लगातार 36 घंटे बिना कुछ खाये रहने से, हमारा शरीर सूर्य की अच्छी ऊर्जा ज्यादा मात्रा में लेने के लिए सक्षम हो जाता है | इस तरह इस व्रत का एक वैज्ञानिक महत्व भी है 

हरेक पर्व , हरेक संस्कृति में अपने अलग मायने रखता है और यही हमारे देश भारत की खासियत है | पंजाब में रहते, बिहार के लोग ये पर्व मनाते हैं तो हमारे अंदर भी सूर्य भगवान को लेकर आस्था और बढ़ जाती है | और यही आस्था हमारे देश को जोड़े रखती है |

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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