भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास

East India Company History in Hindi – दोस्तों बात जब भी ईस्ट इंडिया कंपनी की आती है तो हम सिर्फ इतनी कहानी जानते हैं कि कुछ अंग्रेज भारत में कारोबार करने के उद्देश्य से आए थे | लेकिन धीरे धीरे इन्होंने पूरे देश पर ऐसा कब्जा जमाया कि बिजनेस करने आए अंग्रेज देश के शासक बन गए |

लेकिन क्या आपको पता है ईस्ट इंडिया कंपनी की कहानी सिर्फ इतनी सी नहीं है |

तो आइये आपको बताते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी का पूरा इतिहास।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास East India Company History in Hindi

East India Company History in Hindi
East India Company History in Hindi

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना सन 1600 में महारानी एलिजाबेथ प्रथम के काल में हुई थी। उन्होंने इस कंपनी को पूरे एशिया में व्यापार करने की छूट दे रखी थी |

वहीं अगर भारत की बात करें तो दिल्ली में मुग़ल बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर का राज था। उसे दुनिया के सबसे अमीर शासकों में से गिना जाता था। दुनिया में जितना भी उत्पादन होता था उसका एक चौथाई हिस्सा भारत में ही बनाया जाता था।

वहीं पुर्तगाल, स्पेन जैसे देश व्यापार के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़ चुके थे | ब्रिटेन ग्रह युद्ध जैसी स्थितियों से उबर रहा था | उसी दौरान ब्रिटेन के व्यापारी राल्फ़ फ़िच व्यापार के लिए हिंद महासागर, मेसोपोटामिया, फ़ारस की खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा पर निकले थे |

इसी दौरान उन्हें भारत की समृद्धि के बारे में पता चला | इसके बाद भारत को ईस्ट इंडिया कंपनी का निशाना बनने में देर नहीं लगी |

राल्फ़ फ़िच की जानकारी के आधार पर एक अन्य ब्रिटिश ट्रैवेलेर सर जेम्स लैंकेस्टर सहित ब्रिटेन के 200 से अधिक प्रभावशाली और व्यावसायिक पेशेवरों को इस दिशा में आगे बढ़ने का विचार आया और भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से उन्होंने 31 दिसम्बर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव डाली |

भारत उस समय एक समृद्ध देश था और भारत से व्यापार कर पूरा लाभ लेने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए ये जरूरी था कि उनके अलावा कोई और कंपनी भारत में व्यापार ना कर पाएं |

अब दोस्तों बिजनेस चाहे 16वीं सदी का हो या आज 21वीं सदी का सबसे मुख्य चैलेंज अपने प्रतिद्वंदियों के सामने टिक पाना है और इसके लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने बहुत अच्छा रास्ता निकाला | उन्होंने महारानी एलिजाबेथ से पूर्वी एशिया में व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त किया। यानी अब उनके अलावा कोई और कंपनी पूर्वी एशिया में व्यापार कर ही नहीं सकती थी |

अगस्त 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस ने भारत के सूरत बंदरगाह पर अपने जहाज़ ‘हेक्टर’ का लंगर डालकर ईस्ट इंडिया कंपनी के आने का एलान किया | उस वक़्त तो किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था कि कुछ मुट्ठी भर ब्रिटिश लोग अपने देश से बीस गुना बड़े और अमीर देश पर एक लम्बे अरसे तक राज करने वाली है |

हॉकिंस को जल्द ही ये एहसास हो गया था कि वो मुगल सेना के साथ युद्ध नहीं कर सकते | क्योंकि मुगलों की 40 लाख सेना के सामने उनका टिक पाना असंभव ही था | ऐसे में वो भली भाँति जानते थे कि उन्हें भारत में व्यापार करने के लिए मुगलों की परमिशन के साथ उनके सहयोग की जरूरत थी |

ये भी पढ़ें:

मुगल बादशाह जहाँगीर से मिली व्यापार की इजाजत

हॉकिंस मुगलों की राजधानी आगरा पहुँच तो गया लेकिन कम पढ़े लिखे होने की वजह से जहाँगीर ने उसे व्यापार करने की इजाजत नहीं दी | उसके बाद संसद के सदस्य और राजदूत सर थॉमस रो को शाही दूत बनाकर कर भेजा गया |

वो 1615 में भारत आए थे | लेकिन व्यापार के लिए इजाजत लेने में उन्हें तीन साल का समय लग गया | इसके बाद उन्हें इजाजत मिली और समझौता ये हुआ कि कंपनी और ब्रिटेन के सभी व्यापारी उपमहाद्वीप के बंदरगाह और ख़रीदने तथा बेचने के लिए जगहों के इस्तेमाल कर सकते हैं |

लेकिन बदले में उन्हें यूरोप में बनने वाले उत्पाद भारत को देने होंगे। लेकिन तब वहाँ बनता ही क्या था? कंपनी ने भारत से सूत, नील, चाय आदि लेकर विदेश में महंगे दामों पर बेचना शुरू कर दिया |

1670 तक ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को विदेश में युद्ध लड़ने और उपनिवेश स्थापित करने की भी अनुमति दे दी थी | जिसके बाद उनका रास्ता काफी साफ हो गया था |

उन्होंने भारत में उनकी प्रतिद्वंदी पुर्तगाली, फ्रांसीसी, डच कंपनियों को हराकर व्यापार के क्षेत्र में अपना कंपटीशन खत्म कर दिया |

औरंगजेब के साथ युद्ध

1686 में औरंगजेब के शासनकाल में पहली बार अंग्रेजों का सामना मुगलों से हुआ | मुगलों ने जीत हासिल की और ब्रिटिश सेना को बुरी तरह हराया |

17वीं सदी के अंत तक ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने लगी थी | लेकिन इसमें उनको कोई खास फायदा नहीं था | क्योंकि इस सब सामान का मूल्य उन्हें चाँदी देकर चुकाना पड़ता था | और उस समय उनके पास ऐसा कोई सामान नहीं था जिसकी चीन को जरूरत पड़ती हो।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका भी एक रास्ता निकाल लिया | उन्होंने बंगाल में पोस्त की खेती की और बिहार में अफीम बनाने के लिए कारखाने लगा दिये | ऐसा नहीं था कि उस समय चीन में अफीम का सेवन खूब होता था |

लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी चीन के लोगों को अफीम की लत लगवाना चाहती थी और इसके लिए उन्होंने तस्करी करके चीन में अफीम पहुँचाना शुरू कर दिया | जब चीन की सरकार ने इसका विरोध किया तो ब्रिटिश सेना और चीन में युद्ध हुए | जिसमें ब्रिटिश सेना जीती और फिर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी मनमानी शर्तों पर चीन के साथ समझौता किया |

उन्होंने चीन से नष्ट किये गए अफीम का मुआवजा वसूला और उनके बंदरगाहों पर भी कब्जा कर लिया | जब चीन ने अफीम व्यापार को रोकने के लिए महारानी विक्टोरिया को पत्र लिखा तो उस पत्र का कोई जवाब ही नहीं आया |

ईस्ट इंडिया कंपनी धीरे धीरे एशिया में अपने पैर पसार रही थी तभी 1707 में भारत में औरंगजेब की मृत्यु के बाद जगह जगह पर खिलाफत जन्म लेने लगी थी | ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसी मौके का फायदा उठाया | उन्हें पता था उनकी सेना भारतीय शासकों के सामने टिक पाने में असमर्थ है इसलिए उन्होंने स्थानीय लोगों को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया |

उस समय यूरोप की औद्योगिक क्रांति की वजह से वो युद्ध तकनीकों में भी भारत की सेना से बेहतर हो गए थे | इसलिए छोटी सेना होने के बाद भी उन्होंने एक एक करके कई भारतीय शासकों की सेनाओं को हराया। लेकिन अंग्रेजों के युद्ध जीतने कि एक मात्र वजह यही नहीं थी कि वो अब शक्तिशाली हो गए थे |

बल्कि वो युद्ध जीतने के लिए कई अन्य तरीके भी अपनाते थे | जैसे कि राजाओं के विश्वास पत्रों को अपने साथ मिला लेना |

प्लासी और बक्सर की लड़ाई

कुछ ऐसा ही 1757 के प्लासी के युद्ध में हुआ | उन्होंने सिराजुदौला के सेनापति मीर जाफर को अपने साथ मिलाया और उसे युद्ध में हरा दिया | जीतने के बाद उन्होंने मीर जाफर को बंगाल के तख्त पर बिठा दिया और फिर उससे मालगुजारी वसूलने लगे और इस तरह अंग्रेजों ने भारत में लूटपाट का सिलसिला शुरू किया |

वसूली की वजह से धीरे धीरे मीर जाफर का खजाना भी खाली होने लगा और अंग्रेजों से पीछा छुड़ाने के लिए उसने डच सेना की मदद ली | लेकिन 1759 और 1764 के बक्सर के युद्ध में अंग्रेज जीते और उन्होंने बंगाल की कमान अपने हाथ में ले ली | इस तरह भारत में व्यापार करने आई कंपनी सरकार ही बन बैठी |

इसके बाद धीरे धीरे उन्होंने नये नये कर लगाने शुरू कर दिया | भारत का सामान सस्ते दामों पर खरीदकर अन्य देशों में महँगा बेचना शुरू कर दिया | यह व्यवस्था की गई कि भारतीयों से प्राप्त राजस्व का एक तिहाई हिस्सा भारतीय उत्पादों को ख़रीदने में खर्च किया जाएगा |

इस तरह भारत के लोग जो राजस्व देते थे उसके एक तिहाई के बदले उन्हें अपना उत्पाद बेचने के लिए मजबूर किया जाता था | अब आलम ये हो चुका था कि भारत के हर हिस्से के व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा था | जहाँ आसानी से व्यापार की संभावना नहीं होती वहाँ कंपनी की सेना दबाव बनाकर संभव बना देती थी |

यहाँ तक कि 1769 से 1773 में बंगाल और बिहार के अकाल के समय का भी कंपनी ने खूब फायदा उठाया | चीजों के दाम तो बढ़े ही, स्थितियाँ ये आ गयी थी कि लोग अपने बच्चों को बेचने लगे थे |

कंपनी के 120 वर्षों के शासनकाल के दौरान लगभग 34 बार आकाल पड़ा था | वैसे तो कंपनी ने सड़कें, सराय रेल ट्रैक आदि बनाये जिससे आम लोगों को यातायात की सुविधा हुई लेकिन ये सब कंपनी के व्यापारिक फायदे के लिए था और इसका असली उद्देश्य कपास, रेशम, अफ़ीम, चीनी और मसालों के व्यापार को बढ़ावा देना था |

कंपनी की सारी नीतियाँ अपने फायदे के लिए होती थी और इसलिए धीरे धीरे लोग इसके विरोध में खड़े होने लगे | 1857 के स्वतंत्रता संग्राम जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी विद्रोह कहती है के दौरान, कंपनी ने बाज़ारों में और सड़कों पर हज़ारों लोगों की बर्बरता से हत्या की |

अगले साल एक नवंबर को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने कंपनी के अधिकारों को समाप्त कर शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली | कंपनी की सेना को ब्रिटिश सेना में मिला दिया गया |

1874 तक ये कंपनी ब्रिटिश सेना के साथ मिलकर ही अस्तित्व में रही लेकिन उसके बाद पूरी तरह खत्म हो गयी | तो ये था ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास (East India Company History in Hindi) भले ही एक दौर था जब कंपनी के पैसा था पॉवर थी लेकिन हर चीज का एक दौर होता है और कंपनी के बढ़ते अत्याचारों के चलते उसका दौर भी खत्म हुआ |

Shubham

नमस्ते! मेरा नाम शुभम जैन है। मैं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में रहता हूं और मैंने Physics में M. Sc. की है। मुझे साइंस से जुड़े फैक्ट्स, महान लोगों की जीवनियां और इतिहास से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखने का अनुभव है |

1 thought on “भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास”

Leave a Comment