गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी Gangubai Kathiawadi Real Story in Hindi

Gangubai Kathiawadi Story in Hindi – ये कहानी है उस महिला की जिसे सिर्फ 500 रुपये में बेच दिया गया था, ये कहानी है उस महिला की जो शहर के सबसे बड़े कोठे में काम करती थी और बेंटले ड्राईव करती थी

ये वही महिला थी जिसका बेरहमी से बलात्कार कर दिया गया था और जो रोते रोते डॉन से मदद मांगने गई थी |

gangubai kathiawadi real story in hindi

देशभर में इस महिला का नाम इस कदर प्रसिद्ध था की उसे खुद प्रधानमंत्री नेहरू सेक्स वर्कर्स की स्थिति पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करते हैं |

दोस्तों हम बात कर रहे हैं गंगूबाई काठियावाड़ी की. गंगूबाई की जिंदगी के कई आयाम हैं और उन्हें इन्हीं अलग अलग आयामों के कारण याद किया जाता है. आइए जानते हैं

गंगूबाई की पूरी कहानी Gangubai Kathiawadi Real Story in Hindi

जब 500 रूपए में बेच दिया गया Gangubai Kathiawadi Sold in 500 Rs.

गंगूबाई का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में 1940 के दशक में हुआ था | गंगूबाई बचपन से दिखने में काफी खूबसूरत थीं | उन्हें फ़िल्में देखने का काफी शौक था. इसी शौक के कारण वह चाहती थीं कि वह फिल्मों में काम करें.

उनके पिता काठियावाड़ के एक बड़े सेठ थे. गंगूबाई ने अपने ही पिता के अकाउंटेंट के साथ काठियावाड़ से भागने का प्लान बनाया और वो काठियावाड़ से भाग भी गईं.

उन्हें एक तरफ एकाउंटेंट से प्यार था और एकाउंटेंट ने भी उन्हें वादा किया था कि वो मुंबई जाकर शादी करेंगे और वह उन्हें फिल्मों में काम ज़माने में मदद करेगा.

हालांकि मुंबई जाकर कुछ ऐसा हुआ जिसे गंगूबाई ने अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा. उन्हें फिल्मों का वादा करने वाला एकाउंटेंट, मुंबई ले जाकर 500 रुपयों में बेच देता है.

500 रुपये वैसे तो आज के समय में काफी छोटा अमाउंट लग सकता है लेकिन यह उस वक़्त काफी बड़ा अमाउंट था. आज के समय में तब के 500 रुपये लगभग 6 लाख रुपयों के बराबर होंगे.

इतनी ही कीमत लगाकर एकाउंटेंट ने गंगूबाई को वेश्यालय वालों के हवाले बेच दिया. गंगूबाई के लिए वैसे तो यह सदमे से कम नहीं था क्योंकि एक तो उनका फिल्मों में काम करने का सपना भी टूट चुका था और उन्हें अब इस नर्क में अपना जीवन भी गुजारना था.

करीम लाला के पास पहुंची गंगूबाई Gangubai Met Karim Lala

शुरुआत में उनके लिए सब कुछ खराब रहा और एक दिन ऐसा आया जब दुखों की सारी सीमा खत्म हो गई. करीम लाला के एक गुंडे ने उनका दो दो बार बलात्कार किया.

गंगूबाई के लिए वह उनके जीवन का सबसे बुरा दिन था हालांकि उन्हें नहीं पता था कि उनका जीवन यहां से बदलने वाला है. वह उस वक़्त दुखी थीं और न्याय चाहती थीं.

हालांकि पुलिस से ऐसे मामलों में न्याय की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं की जा सकती इसलिए गंगूबाई करीम लाला के पास चली गईं.

लाला को मुंबई के सबसे खतरनाक तीन डॉन में से एक माना जाता है. कोई और होता तो लाला के आदमी की शिकायत करीम लाला से करने जाने से पहले हज़ार बार सोचता लेकिन गंगूबाई ने कुछ भी बिना सोचे करीम लाला को उसके आदमी की शिकायत कर दी.

करीम लाला गंगूबाई की हिम्मत से काफी प्रभावित हुआ और उसने उन्हें अपनी बहन बना लिया. बस यहीं से गंगूबाई की जिंदगी इतनी बदली की जो गंगूबाई फिल्मों में काम नहीं कर पाई थी उस पर आज फिल्म बनने जा रही है.

करीम लाला की बहन बनने का मतलब उस वक़्त पूरे मुंबई पर राज करने जैसा था. करीम लाला गंगूबाई की पहनाई हुई राखी को कभी नहीं उतारता था.

उस दिन गंगूबाई जिस आदमी की शिकायत लेकर करीम लाला तक पहुंची थी उसका भी काम तमाम कर दिया गया.

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कमाठीपुरा के लोगों की लीडर Gangubai Become Leader of Kamathipura

करीम लाला की बहन होने का मतलब था कि पूरी मुंबई पर राज करना हालांकि करीम लाला ने पूरी मुंबई तो गंगूबाई को नहीं दी लेकिन कमाठीपुरा का सारा इलाक़ा गंगूबाई के नाम कर दिया.

कमाठीपुरा ही वह जगह थी जहां पर गंगूबाई को बेचा गया था. हालाँकि केवल करीम लाला की तरफ से ही नहीं बल्कि कमाठीपुरा से भी हर एक वेश्या से उन्हें पूरा सपोर्ट था.

ऐसा इसलिए क्योंकि कमाठीपुरा में इलेक्शन हुआ करते थे जिससे कि यह जानने की कोशिश की जाती थी कि किस वेश्या की वेश्यालय में कितनी पकड़ या कितना समर्थन है.

जब भी इस तरह का इलेक्शन होता था, गंगूबाई को ही सबसे ज्यादा वोट मिलते थे. गंगूबाई एक तरह से कमाठीपुरा के लोगों की लीडर बन चुकी थीं. और करीम लाला के कमाठीपुरा दे देने के बाद गंगूबाई लीडर के साथ साथ उस जगह की मालिक भी थी.

वेश्याओं के अधिकारों की आवाज उठाई

हालंकि मालिक होने के बावजूद उन्होंने वह काम कभी भी नहीं किया जो काम बाकी के वेश्यालय के मालिक करते हैं. ना तो उन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी में किसी भी महिला को उसकी मर्जी के बिना वेश्यावृति में धकेला और ना ही उन्होंने कभी किसी महिला के साथ जबरदस्ती होने दी.

वह हमेशा इस बात का ध्यान रखती थीं कि वेश्यालय में जो भी महिलाएं काम करें वह सब अपने Consent के साथ काम करें.

किसी के साथ ना तो जोर जबरदस्ती की जाए और ना ही किसी को जोर जबरदस्ती इस धंधे में धकेला जाए. यहां तक कि उन्होंने लड़कियों को खरीदना भी बंद कर दिया था.

गंगूबाई के लिए महिलाओं का Consent पैसों से भी ऊपर था. हालांकि फिर भी गंगूबाई को मुंबई की माफिया क्विन कहा जाता है |

करीम लाला ने गंगूबाई को अपनी बहन शायद इसलिए भी बनाया था क्योंकि गंगूबाई काफी तेजतर्रार थीं. करीम लाला के कई सारे बिजनैस में गंगूबाई का पूरा तरह से हाथ था.

उन पर कई मर्डर के चार्जेस से लेकर दूसरी गैंग वालों के खिलाफ साजिश करने के इल्ज़ाम भी बनाए जाते हैं. हथियारों और दारू की तस्करी मे भी उनका नाम लिया जाता है.

नेहरू से पूछ लिया आप मुझे श्रीमती बनाएंगे

दोस्तों यह किस्सा है तब का जब गंगूबाई को कमाठीपुरा का लीडर बना दिया गया था. वह करीम लाला के सपोर्ट से कमाठीपुरा की मालकिन भी थी, और अपने नारीवादी स्वभाव के कारण वह लोगों द्वारा पसन्द भी की जाती थीं.

ऐसे में अक्सर ही उन्हें भाषण देते हुए पाया जाता है. जैसे नेता वादे करते हैं कि वह नाली बनवा देंगे, सड़के बनवा देंगे.

गंगूबाई भी अपने भाषणों में कहा करती थीं कि वेश्याओं को बीमारियों से छुट्टी मिलेगी, अनचाहे गर्भ से बचाया जाएगा और साथ ही consent का भी ध्यान रखा जाएगा. यह सब वेश्याओं की जरूरतें थीं जिन्हें गंगूबाई अक्सर मंच से उठाया करती थीं.

एक दिन ऐसे ही किसी भाषण की आवाज प्रधानमंत्री नेहरू के कानों तक भी पहुंची. उन्होंने समस्याओं को समझा और गंगूबाई से इस बारे में चर्चा करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया.

गंगूबाई से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि आप इतनी समझदार हैं तो आपने यहां से खुद को निकाला क्यों नहीं? आपको तो अच्छा खासा पति मिल जाता. इस पर गंगूबाई ने तपाक से जवाब दिया कि क्या आप मुझे श्रीमती नेहरू बनाएंगे! नेहरू का चेहरा लाल हो गया और शर्मसार हो गए.

आगे गंगूबाई ने कहा कि वेश्याओं के लिए यह कहना आसान होता है कि वह खुद को यहां से निकाल सकती हैं वगैरह वगैरह लेकिन कोई उनका साथ देने के लिए तैयार नहीं है.

गंगूबाई की आगे चलकर लगभग 1975 से 1978 के बीच मृत्यु हो गई. गंगूबाई की पूरी जिंदगी पर फिल्म बनाई जा रही है जो कि पत्रकार हुसैन जैदी की किताब माफ़िया क्विन ऑफ मुंबई के उपन्यास पर आधारित है. गंगूबाई सच में एक माफिया क्विन ही थीं.

उनका प्रभाव आज भी इतना है कि कमाठीपुरा में उनकी ही जैसी सफेद गोल्डन बोर्डर साड़ियां पहने हुए औरतों को देखा जा सकता है |

Mohan

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