कभी भी उन फूलों की तरह मत जीना, एक दिन ऐसा आएगा जब ये खिला फूल बिखर जाएगा। जीना है तो पत्थर बन के जियो, किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओंगे।
ये विचार हमे जीवन में स्थिर रहने की और इशारा करता है। जरूरी नहीं के हम हमेशा फूल बनके ही अपना जीवन जिए, हमे एक पत्थर की तरह भी जिंदगी जीनी चाहिए क्योकि जब पत्थर को तराशा जाता है तो वो किसी फूल से भी ज्यादा खूबसूरत हो जाता है और लोग अक्सर पत्थर में ही भगवान को देखते है न के फूलों में। इतने गहरे विचार रखने वाले कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकते।

इलाहबाद की धरती को क्या पता था के एक दिन एक ऐसा महान कवि यह जन्म लेगा जो इलाहबाद को पुरे विश्व में प्रसिद्द कर देगा और ये प्रसिद्धि इलाहबाद को उस कवि के नाम से मिलेगी.
हम बात कर रहे है एक ऐसे कवि की जिन्होंने अपनी रचनाओं से एक नए युग की शुरुआत की , उनकी रचनाये न जाने कितने ही कविओं की प्रेरणा का स्त्रोत बनी। हम बात कर रहे है श्री हरिवंश राय बच्चन जी की।
बचपन और शिक्षा
श्री हरिवंशराय जी का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तरप्रदेश राज्य के इलाहबाद में प्रताप नारायण श्रीवास्तव जी के घर हुआ। हरिवंश जी का बच्चन नाम उन्के बचपन में ही पड़ गया था।
असल में बच्चन का शाब्दिक अर्थ होता है बच्चा , उन्के घर में सब उन बच्चन कह कर बुलाते थे तो इसी वजह से उनका नाम बच्चन पड़ गया और यही बच्चन नाम आगे उनकी सन्तानो ने भी अपना लिया और हम आपको बता दे की उन्के सुपुत्र को इस सदी के महानायक के रूप में पहचाना जाता है। जी हाँ बॉलीवुड के एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन जी इन महान कवि के सुपुत्र हैं।
हरिवंश जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा वही के ही एक म्युन्सिपल स्कूल से शुरू की थी जहाँ वो उर्दू भाषा को सिखने लग गए थे क्योकि उस समय कानून की पढ़ाई करने के लिए उर्दू का ज्ञान होना लाज़मी था।
इसके बाद वो अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए कायस्त स्कूल चले गए। इसके बाद वो इलाहबाद की यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा के लिए आ गए और उन्होंने यूनिवर्सिटी में MA अंग्रेजी में दाखिला लिया और यह अव्वल दर्ज़े में उत्तीर्ण करने के बाद यूनिवर्सिटी ने उनको वही पर प्रोफेसर की नौकरी के लिए रख लिया।
1952 तक वो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी करते रहे पर उन्हें भीतर से संतुष्टि नहीं मिल रही थी, यही समय था जब वह महात्मा गाँधी जी के साथ स्वतंत्रता आंदोलनों में भी उन्के साथ साथ रहे। परन्तु वो कुछ और करना चाहते थे इस लिए वो बनारस चले गए।
वो और भी आगे पढ़ना चाहते थे वो साहित्य को और गहराई से पढ़ना चाहते थे और समझना चाहते थे जिस कारण वो अंग्रेजी में PHD करने के लिए इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए।
वो दूसरे ऐसे भारतीय थे जीने कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी से PHD की डिग्री प्राप्त हुई थी और इसके बाद उन्होंने अपने नाम के पीछे से श्रीवास्तव हटा कर बच्चन कर लिया और वो हरिवंशराय बच्चन बन गए.
PHD की डिग्री हासिल करने के बाद वो वापिस अपने देश आ गए क्योकि वह देश के लिए कुछ करना चाहते थे। वो एक बार फिर से इलाहबाद विश्विद्यालय चले गए उन्होंने दोबारा वह बच्चो को पढ़ना शुरू किया और साथ के साथ वो रेडियो में भी काम करने लग गए क्योकि उन्के मन में कुछ अलग और कुछ बेहतर करने का ख्याल दिन भर अत रहता था।
हरिवंशराय जी का जीवन
प्यार किसी को करना लेकिन ,कह कर उसे बताना क्या, अपने को अर्पण करना पर , और को अपनाना क्या
कॉलेज के दिनों में जब हरिवंश जी ने बी ऐ प्रथम में दाखिला लिया था तब उनकी मुलाकात श्यामा नाम की लड़की से हुई और ये मुलकात कब प्रेम में बदल गयी पता नहीं चला |
ये प्रेम काफी समय तक चलता रहा और 1926 में दोनों ने अपने परिवारों की रज़ामंदी के साथ शादी कर ली। उस समय तक हरिवंश जी का नाम दूर दूर तक फ़ैल चुका था उनकी बहुत सारी रचनाये बहुत प्रसिद्ध हो गयी थी। उनकी इसी प्रसिद्धि को देखते उनसे मिलने बहुत दूर दूर से उन्के प्रशंशक घर तक चले आते थे ।
उनका जीवन बिलकुल वैसे चल रहा था जैसा वो कहते थे पर अचानक ही शादी के कुछ समय बाद ही श्यामा जी का निधन हो गया और वो बिलकुल अकेले पड़ गए।
हरिवंश जी उदास रहने लग गए और इसी दौरान उन्के दोस्त प्रकाश ने उन्हें अपने पास बुला लिया और वो कुछ समय अपने दोस्त के पास ही रहे। और यही पर शुरू होता है उन्के प्रेम का दूसरा अध्याय , प्रकाश के पास रहते उनकी मुलाकात तेजी सूरी नाम की लड़की से हुई और उनकी सारी उदासी ख़ुशी में बदल गयी
1942 में हरिवंश जी और तेजी ने शादी कर ली।
1955 में उन्हें विदेश मंत्रालय की तरफ से नौकरी के लिए न्योता मिला तो वो उसी समय दिल्ली चले गए और विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषयज्ञ के रूप में नौकरी ली । वह रह कर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी |
इसी पहचान के कारण 1966 में उनका नाम राज्य सभा के मेंबर के तौर पर लिया गया । अब तक हरिवंश जी की ख्याति पुरे विश्व भर में फ़ैल गयी थी। वो भारत के साथ साथ विश्व में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे थे इसी कारण से भारत सरकार ने उन्हें 1969 में उन्हें साहित्यक अकादमी अवार्ड से नवाज़ा।
यही दौर था जब हरिवंश जी की प्रसिद्धि पुरे विश्व में फ़ैल गयी थी. उनकी रचनाये हे आम खास व्यक्ति तक पहुंच गयी थी और उनकी रचनाओं का अनुवाद दूसरी भाषाओँ में होने लग गया था। साहित्य में उन्के इसी अमूल्य योगदान के लिए 1976 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरुस्कार से सम्मानित किया गया जिससे इनका नाम भारत के अनमोल साहित्यकारों में शामिल हो गया।
इसके इलावा अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार जिन्हे अंग्रेजी साहित्य में एक अव्वल दर्ज़े पर मन जाता है, शेक्सपियर जी ने बहुत सारी बहुमूल्य रचनाये लिखी जो अंग्रेजी में थी।
हरिवंश जी ने उनकी बहुचर्चित रचनाये Macbeth and ऑथेलो को हिंदी में अनुवाद किया ताकि भारतीय लोग बहबीन रचनाओं को पढ़ सके। इसके बाद उन्होंने उस समय की भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद आखिरी रचना 1 नवम्बर 1984 लिखी थी।
उनकी प्रसिद्धि केवल भारत वर्ष तक ही सिमित नहीं रही। समुन्द्र पार बसे पोलैंड देश के लोग भी हरिवंश जी की रचनाओं के दीवाने हो गए थे। इसी वजह से पोलैंड सरकार ने व्रोकलॉ में सिटी काउंसिल के एक चौराहे का नाम हरिवंश जी के नाम से रखा और वह पर उनकी एक मूर्ती भी लगाई जिसमे वो किताबें लिए कुर्सी पर बैठे हैं।
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हरिवंश राय जी और नेहरू जी का रिश्ता
भाषाओँ का अपना एक दायरा होता है कोई न कोई भाषा किसी दूसरी भाषा से जन्मी होती है या दूसरी भाषा से प्रभावित होती है। हरिवंश जी को हिंदी और उर्दू भाषाओँ का गहरा ज्ञान था।
अक्सर लोग लिखने समय पढ़ते समय दो भाषाओ को आपसे में मिला देते है पर हरिवंश जी को ये बात पसंद नहीं थी। उस समय भी नेता या दूसरे बड़ी उपाधि वाले लोग हिंदी और उर्दू भाषा को मिला कर बात करते थे।
हरिवंश जी जानते थे के अगर हिंदी को गहराई से जांचा जाये और उपयोग किया जाये तो वो संस्कृत भाषा की तरफ चली जाती है और अगर उर्दू को गहराई से उपयोग किया जाये तो वो फ़ारसी या अरबी भाषा की और चली जाती है और संस्कृत और उर्दू एवं फ़ारसी भाषाओँ में जमीन आसमान का फर्क है।
और एक बार इसी इसी बात से नेहरू जी नराज़ हो गए थे क्योकि हरिवंश जी के साथ उनका भाषा को लेकर तर्क वितर्क हो गया था। हरिवंश जी जब विदेश विभाग में नौकरी कर रहे थे तब उनका काम वह पर दूसरी भाषा से हिंदी में अनुवाद करना होता था और वह ज्यादातर पंडित नेहरू के लिए अनुवाद किया करते थे।
कभी कभार वह उस समय के मौजूदा राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के लिए भी भाषण अनुवाद किया करते थे. राधाकृष्णन जी एक दार्शनिक थे और विद्वान् थे। और उनकी अंग्रेजी भी बहुत अच्छी थी। इस लिए हरिवंश जी उन्के भाषण में हिंदी के भारी शब्दों का इस्तेमाल कर दिया करते थे ताकि उन्के भाषण में एक गरिमा और गंभीरता बनी रहे और श्रोता को सुनने में अच्छा लगे।
एक बार सत्र के बाद पंडित नेहरू जी ने बच्चन जी को अपने पास बुलाया और उन्हें कहा ” भाषण का अनुवाद तो तुमने अच्छा किया है परन्तु भाषण में हिंदी के बहुत भरी एवं कठिन शब्दों का प्रयोग किया है। जिससे भाषा कठिन हो गयी।
“तो बच्चन जी ने कहा” पंडित जी ये भाषण महान विद्वान् डॉ राधाकृष्णन जी के लिए है तो उन जैसे विद्वान् के लिए कठिन शब्दों को पढ़ पाना मुश्किल नहीं। और मेने शब्दों को उन्के अनुरूप ही रखा है। ” नेहरू जी फिर कहा ” लेकिन आपको पता है इन शब्दों को डॉ ज़ाकिर हुसैन जी पढ़ेंगे और उन्के लिए ऐसे शब्दों को पढ़ पाना मुश्किल होगा। “
उस समय बच्चन जी ने कहा ” जी देखिये किसी की भाषा की कठिनाई को देखते हुए हम उस भाषा को नहीं बदल सकते अगर हुसैन साहब को ऐसे शब्द पढ़ने में कठिनाई है तो आप उनका भाषण उर्दू में अनुवाद करवा लीजिये “
ये सुन कर नेहरू जी गुस्सा हो गए और गुस्से में बोले
“मैं रेडियो में काम करने वाले एक व्यक्ति को बुलाता हूँ जिनका नाम पूरी है वो उर्दू में आपसे ज्यादा बेहतर है , आप उनकी मदद लीजिये और जितने भी कठिन शब्द हैं उन्हें बदल कर उर्दू के आसान शब्द डाल दीजिये और ये काम जल्दी से जल्दी खत्म कीजिये। “
पंडित नेहरू जी की इसी बात से हरिवंश जी को नाराज़गी हुई। वो कभी भी हिंदी और उर्दू का मेल पसंद नहीं करते थे।
हरिवंश जी की रचनाएँ
हरिवंश जी कुछ गिने चुने सहित्यकारों में से हैं जिन्हे साहित्य के लिए अकादमी पुरुस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने व्यक्तिवादी कविताये लिखी जिनसे वो आम लोगों के बीच प्रसिद्द हो गए। उनकी कुछ रचनाये निम्नलिखित है।
- मधुशाला
- मधुकलश,
- सतरंगिनी
- एकांत संगीत
- खादी के फूल
- दो चट्टान
- मिलन
- सूत की माला
- आरती व अंगारे
अदि रचनाये लिखी इसके इलावा उन्होंने अपनी आत्मकथा को चार भागों में लिखा जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया उनकी आत्मकथा के भाग निम्नलिखित है
- क्या भूलूं क्या याद करूं,
- नींड़ का निर्माण फिर,
- बसेरे से दूर,
- दशद्वारा से सोपाना
उन्होंने अपनी जीवन की पूरी गाथा इन चार किताबों में ब्यान कर दी उनकी यह आत्मकथा बहुत सरे लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी और साहित्य पसंद करने वाले लोग आज भी उनकी आत्मकथा को पढ़ना और उसपे विचार करना पसंद करते हैं।
बच्चन जी के अंतिम दिन
कविता से रोटी नहीं पाओगे, अगर कविता पढोगे तो सलीके से खाओगे
यह शब्द थे बच्चन जी के। उन्हें प्रेम और मस्ती का कवि कहा जाता है। उनकी कविताये पढ़ कर एक अलग तरह का जूनून और मस्ती छा जाती है। उन्होंने जीवन के अलग अलग दौर पर बेहतरीन कविताये लिखी। उन्होंने अपनी रचनाओं के ज़रिये जीवन को समझाया और बताया के हमे जीवन में हरपल संघर्ष करते रहना चाहिए।
ये महान कवि 18 जनवरी 2003 में 95 साल की उम्र भोग कर इस दुनिया को अलविदा कह गया। पर इस कवि की रचनाये हमारे बीच जीवित रह गयी और हमेशा रहेगी। हरिवंश जी ने हमे जीवन को अनमोल मोती दिए हैं अपनी रचनाओं के ज़रिये। साहित्यकार आज भी बच्चन जी को उतनी ही शिद्द्त से पढ़ते है जितनी शिद्द्त से वो उन्हें पहले पढ़ते थे।
हम से आशावादी, संघर्षवादी , और दूसरे साहित्यकारों से अलग सोच रखने वाले महान साहित्यकार को जिन्होंने हमे अग्नीपथ और मधुशाला जैसी रचनाये दी जो हमे हर पल प्रेरित करती है जीवन में निरंतर आगे बढ़ने के लिए , ऐसे महान कवि को हम शत शत नमन करते हैं।