“जब तुम ट्रैक पर दौड़ते हो तो ऐसा लगता है मानो पूरा ट्रैक तुम्हारे साथ भाग रहा है”
ये शब्द बर्लिन ओलंपिक में 4 गोल्ड मेडल्स जीतने वाले खिलाड़ी जेसी ओवन्स के लिए कहे गये थे | जी हां, वही जेसी ओवेन्स जिसने हिटलर के आर्यन रेस सुपरमेसी प्रोपगैंडा को ध्वस्त कर दिया था |
जेसी ओवेन्स ने घर से दूर जर्मनी में तो हिटलर की सोच को धत्ता बता दिया लेकिन अपने ही देश अमेरिका में उसे कम बेइज्जत नहीं किया गया |
अमेरिका में काले लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने का पुराना इतिहास रहा है |
जेसी को ना सिर्फ़ ओलंपिक के माध्यम से पूरी दुनिया बल्कि अमेरिका में भी एक संदेश देना था कि काले लोग किसी से भी किसी भी मायने में कम नहीं हैं |
ओलंपिक का खुमार लोगों के सर चढ़ कर बोलता है | जेसी ओवेन्स ने भी अपने करियर की शुरुआत इतिहास के एक विवादित ओलंपिक से की थी |
1936 के बर्लिन ओलंपिक के माध्यम से हिटलर अपने प्रोपगैंडा को आगे बढ़ाना चाहता था | इस ओलंपिक में जेसी ओवेन्स ने 4 ओलिंपिक गोल्ड मेडल्स जीतकर इतिहास बनाया था |
यही नहीं जेसी ओवेन्स का लोंग जंप का वर्ल्ड रिकॉर्ड 25 साल तक कोई भी नहीं तोड़ पाया था |
जेसी ओवेन्स की जीवनी Jesse Owens Biography in Hindi

जेसी ओवेन्स का जन्म 12 सितम्बर 1913 को अमेरिका के अलाबामा के वआकविल्ले में हुआ | वो एक गरीब और अमेरिका में गुलाम के तौर पर रखे जाने वाले काले लोगों के परिवार से भी था |
उसके दादा गुलामों की तरह काम किया करते थे जबकि उसके पिता खेती की जमीन किराए पर लेकर उस पर खेती करते थे |
जेसी का बचपन बड़ी मुश्किलों में बिता था क्यूंकी वो बचपन में बहुत बीमार रहा करता था | उसे बार बार खांसी और निमोनिया जैसी समस्याएं होती रहती थी |
लेकिन इन सब के बावजूद उसे खेती में अपने परिवार की मदद के लिए बहुत सारा काम करना पड़ता था | अमेरिका में कपास की खेती बहुत ज्यादा की जाती थी और सात साल की उम्र तक जेसी 40 से 50 किलो कपास को ढोता था |
शायद बचपन की इस कड़ी मेहनत ने उसे अंदर से बहुत मजबूत बना दिया था |
बहुत से ऐसे एथलीट सामने आए हैं जिनका बचपन बड़ी मुश्किलों में बिता और उसी संघर्ष ने उन्हें मजबूत बना दिया फिर चाहे वो मिल्खा सिंह हों या हिमा दास |
जेसी जब 9 वर्ष का था तो उसका पूरा परिवार ओहाइयो के क्लीवलैंड आ गया था |
क्लीवलैंड आने से जेसी की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया | यहाँ जिंदगी उसके पुराने कस्बे की तरह धीमी गति से ना चलकर तेज रफ्तार थी |
जेसी का ईस्ट टेक्निकल हाई स्कूल भी अपने पुराने स्कूल की तुलना में बहुत बेहतर था और उसके नये टीचर्स बच्चों पर बहुत ध्यान देते थे |
यहीं ओवन्स को एक नया नाम मिला “जेसी” |
असल में जब जेसी के इन्स्ट्रक्टर ने उससे पूछा की उसका नाम क्या है तो उसने बताया J. C. (जेम्स क्लीवलैंड) जबकि अपने एक्सेंट की वजह से इंस्ट्रक्टर को लगा की ओवन्स ने जेसी बताया है |
जेसी बहुत शर्मिला रहा होगा, जिसने अपने इंस्ट्रक्टर को करेक्ट नहीं किया | आगे चलकर वो एक बड़ा नाम बन गया और उसे जेसी के नाम से ही पहचाना जाने लगा |
बिग टेन चैंपियनशिप से मिली पहचान
स्कूल में ही जेसी ने एक स्प्रिंटर के रूप में बहुत नाम कमाया था |
उसने 100, 200 यार्ड डैश और लोंग जंप में ऐसे रिकॉर्ड बना दिए थे जिससे उसे इग्नोर करना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल था |
इसके बाद जेसी ने ओहाइयो यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया | यूनिवर्सिटी में जेसी को अपनी प्रतिभा को निखारने के और बेहतर मौके मिले |
जेसी ट्रैक पर इतनी तेज दौड़ता था की उसे लोग “Buckeye Bullet” कहने लगे थे | 1935 में हुई बिग टेन चैंपियनशिप में भाग लेने से पहले जेसी चोटिल हो गया था |
लेकिन जेसी ने ना सिर्फ चोट से उबरकर खेलों में भाग लिया बल्कि 100 यार्ड डैश , 220 यार्ड डैश , 220 यार्ड लो हर्डल और लोंग जंप का वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित कर दिया |
जेसी ने 100 यार्ड डैश 9.4 सेकंड में पूरी करके वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी की और 220 यार्ड दश 20.3 सेकेंड में पूरी करके वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ा |
हालांकि उसैन बोल्ट ने 100 मीटर 9.58 सेकेंड में पूरा करके विश्व रिकॉर्ड बनाया है | इसलिए बोल्ट दुनिया के सबसे तेज जीवित खिलाडी है | चलिए वापिस चलते हैं जेसी ओवेन्स की उपलब्धदीयों पर |
जेसी ने 8.13 मीटर लोंग जंप करके जो रिकॉर्ड बनाया था उसे अगले 25 सालों तक कोई भी नहीं तोड़ पाया था |
1935 का ये साल जेसी के लिए बहुत अच्छा रहा क्योंकि इस साल जेसी ने 42 इवेंट्स में भाग लिया और सभी के सभी इवेंट्स में जीत हासिल की |
जिनमें नका चैंपियनशिप में 4, ओउ चैंपियनशिप में 2 और ओलिंपिक ट्रायल की 3 इवेंट भी शामिल हैं |
1936 का बर्लिन ओलंपिक
इसके बाद दुनिया के जिस सबसे बड़े इवेंट ने जेसी को नयी पहचान दी थी वो था 1936 का बर्लिन ओलंपिक |
इस ओलंपिक में जेसी ने जिस तरह हिटलर की सोच पर तमाचा मारा था उसने न केवल अमेरिकन और अफ्रीकन अमेरिकन बल्कि समाज के हर कमजोर तबके को एक नयी राह दिखाई थी |
अमेरिका को ओलंपिक में मेडल दिलाने में काले लोगों की बहुत अहम भूमिका थी |
इसीलिए हिटलर और उसका प्रचार तंत्र अमेरिका की टीम में काले लोगों की उपस्थिति को लेकर उसकी आलोचना भी कर रहे थे |
ये सच है कि अमेरिका में भी काले और गोरे लोगों के बीच तकरार चलती रहती है लेकिन वहाँ का लोकतंत्र इतना मजबूत है की वो उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बार बार उठ खड़ा होता है |
और वहाँ रहने वाले काले लोग भी अमेरिका को दुनिया का नंबर वन देश बनाना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते |
इसी बात का प्रमाण था की अमेरिका के द्वारा जीते गये 11 गोल्ड मेडल्स में से 6 काले लोगों ने जीते थे जिसमें 4 जेसी के नाम थे |
जेसी ने अपने प्रदर्शन से पिछले दो ओलंपिक रिकॉर्ड भी तोड़ दिए थे |
जेसी ने ओलंपिक में 100 मीटर 10.3 सेकेंड्स, 200 मीटर 20.7 सेकेंड्स, लोंग जंप 8.06 मीटर और 4*100 मीटर रिले 39.8 सेकेंड में पूरी करके नये कीर्तिमान बनाए |
हिटलर को अमेरिकन आफ्रिकन और ज्यूस पसंद नहीं थे और जर्मनी में ज्यूस के प्रति हो रहे अत्याचार के विरोध में बहुत से ज्यूस ने इस ओलंपिक में हिस्सा भी नहीं लिया था |
स्पेन ने इससे आगे जाकर बार्सिलोना में “पीपल ओलम्पिक” नाम का इवेंट करवाने पर भी विचार किया पर सिविल वॉर की वजह से वो इवेंट नहीं हो पाया |
आखिरकार 49 देशों के 4000 एथलीट ने इस ओलंपिक में हिस्सा लिया |
अंतरराष्ट्रीय दबाव में फेनसर हेलेन मेयर नाम के ज्यूस एथलीट ने जर्मनी की तरफ से भाग लिया लेकिन गीब्बेल्स ने मीडीया को उसके ज्यूस होने की बात को छापने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया |
पर जर्मनी के लोग जेसी को देखकर बहुत खुश थे | एक जर्मन खिलाड़ी ने तो जेसी की ऐसी मद्द की थी जिसके बाद जेसी उस हारते हुए गोल्ड जीत पाया था |
जर्मनी के कार्ल लुडविग ने जितवाया गोल्ड
हुआ यूँ की लोंग जंप में जेसी की शुरुआत बहुत खराब रही थी | जेसी ने लोंग जंप के पहले अटेंप्ट को प्रैक्टिस जंप समझ लिया था और इसी वजह से दूसरे अटेंप्ट में भी जेसी ने फुट फाउल कर दिया |
तब जर्मनी के लोंग जंपर कार्ल लुडविग लोंग ने उसे सलाह दी की वो जंपिंग लाइन से पीछे टवल रख लें |
जेसी ने वैसा ही किया और उस जगह से लोंग जंप लगाकर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया और अंत में कार्ल को हराकर गोल्ड जीतने में कामयाब रहे |
हिटलर के प्रोपेगंडा को पहुंचाई थी चोट
हिटलर तो शुरू में जर्मनी में ओलंपिक करवाने के पक्ष में नहीं था |
लेकिन हिटलर के प्रोपगैंडा मंत्री जोसेफ गोबेल्स ने हिटलर को बताया की ये गेम्स हिटलर के लिए दुनिया में आर्यन रेस को श्रेष्ठ साबित करने का एक बेहतर ज़रिया हो सकते हैं |
क्यूंकी ये पहले गेम्स थे जो टेलिविषन के माध्यम से पूरी दुनिया में प्रसारित होने वाले थे |
तो हिट्लर इन गेम्स के लिए राज़ी हुआ और उसने बर्लिन ओलंपिक में बहुत सारा पैसा खर्च करके इसे एक भव्य आयोजन बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी |
हालांकि इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के द्वारा जर्मनी में ओलंपिक कराने का फ़ैसला 1931 में ले लिया गया था |
जिसका मकसद प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार और उसपे लगे प्रतिबंधों के बाद जर्मनी को फिर से वर्ल्ड कम्युनिटी में शामिल करना था |
पर इसके दो साल बाद जर्मनी में हिटलर ने राज करना शुरू कर दिया था और वहाँ लोकतंत्र की हत्या करके तानाशाही की शुरुआत कर दी थी |
पर एक कहानी जो बड़ी प्रसिद्ध है की जेसी के 100 मीटर इवेंट में गोल्ड जीतने के बाद भी हिटलर ने उससे हाथ नहीं मिलाया |
ओलंपिक कमेटी के हेड ने हिटलर से अपील की थी की वो या तो सभी जीतने वाले प्लेयर्स से मिले या फिर किसी से नहीं |
इसलिए हिटलर ने ओलंपिक में सिर्फ़ पहले दिन का ही खेल देखा था और किसी भी खिलाड़ी के जीतने पर सार्वजनिक रूप से उसे बधाई नहीं दी |
पर जो लोग हिटलर को जानते हैं उनका मानना था की हिट्लर इस बात से नाराज था की एक आफ्रिकन अमेरिकन ने ओलंपिक में गोल्ड कैसे जीत लिया |
इससे उसके आर्यन को सबसे बेहतर साबित करने के प्रोपगैंडा को झटका लगा था |
पर गैरों से क्या गिला करें जब अपने ही बदल गये |
अपने ही देश में नहीं मिला सम्मान
खैर यहाँ अपने बदले नहीं थे बल्कि अमेरिका में भी ब्लैक लोगों के लिए सोच ज्यादा अच्छी नहीं थी |
जब जेसी वापिस अपने देश लौटे तो लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन द रोज़वेल्ट उन्हें नहीं मिले |
1936 के ओलंपिक के बाद जेसी आमेचर एथलेटिक्स से रिटायर हो गये |
एक ही ओलिमपिक्स में 4-4 गोल्ड मेडल्स जीतने के बाद भी जेसी आर्थिक रूप से उतने मजबूत नहीं हो पाए थी की बिना कुछ किए अपना गुज़रा चला सके |
अपना गुज़रा चलाने लिए और पैसे कमाने लिए उसने अपने स्पोर्ट टैलेंट का सहारा लिया |
लेकिन इस बार जेसी ने इंसानो नहीं बल्कि उससे आगे बढ़ते हुए कारो, घोड़ों और कुत्तों के साथ भी रेस लगाई |
जिस देश का नाम जेसी ने इतना ऊँचा उठाया था उस देश में जेसी को अभी तक वो सम्मान नहीं मिला था जिसके वो हकदार थे |
इसके बाद 1951 में आख़िरकार उन्हें इल्लीनोय आठेलेटिक कमिशन का सचिव बनाया गया | 1976 में प्रेसिडेंट गेराल्ड फोर्ड ने प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम देकर असली पहचान दिलाई |
जेसी के जीवन पर आधारित एक फिल्म रेस भी 2016 में रिलीज हुई जिसमें उसके संघर्ष को दिखाया गया है |
जेसी ने लंबे समय तक सिगरेट पिया जिसकी वजह से 31 मार्च 1980 को लंग कैंसर की वजह से उसकी मृत्यु हो गइ |