कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi

Kabir Das Biography in Hindi – कबीर दास जी ऐसे संत थे जिन्हें उनके दोहों के लिए जाने अनजाने लोग याद कर ही लेते हैं | लेकिन कबीर जी शिक्षाओं को बहुत कम लोग समझ कर जीवन में आत्मसात कर पाए हैं | कबीर दास के बारे में जानने के लिए आपको कबीर दास का जीवन परिचय पढ़ना चाहिए ताकि आप उनके जीवन को थोड़ा ओर गहराई से समझ सकें |  

मेरा विश्वास है कबीर और कबीर के दोहे पढ़कर आपकी सोच में एक बदलाव जरूर आएगा | आप समझने लगेंगे कि धर्म जाति के नाम पर लड़ना मिथ्या है और सब इंसान उस एक ही ईश्वर की संतानें हैं |  

Kabir Das Short Biography in Hindi

कबीर दास की संक्षिप्त जीवनी Kabir Das Short Biography in Hindi

विषयजानकारी
नामसंत कबीर दास
जन्म1398 (लहरतारा ताल, बनारस)
गुरुरामानंद जी
पिता का नामनीरू
माता का नामनीमा
पत्नी का नामलोई
पुत्र व पुत्री का नामकमाल व कमाली
पहचानसंत, समाज सुधारक और कवि
प्रसिद्ध रचनाबीजक
मृत्यु1518 (मगहर, उत्तर प्रदेश)

कबीर दास का जीवन परिचय Kabir Das Biography in Hindi

कबीर जी ने अंधविश्वास और पाप-पुण्य के मायाजाल में फंसे लोगों को सही राह दिखाया, लोगों को समझाया कि धर्म इंसानों के द्वारा बनाए गए हैं | 

हम सब एक ही भगवान द्वारा बनाये गए हैं, हम सबका रचयिता एक ही है | धरती पर आने के बाद हमने खुद को धर्म और जाति के नाम पर आपस में बांट लिया है |  

जहाँ एक तरफ समाज में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, धर्म और जातियों के नाम पर समाज बहुत ज्यादा बंट गए हैं वहीं कुछ लोग अभी भी हैं जो कबीर साहेब के दोहे और कबीर जी के भजनों के माध्यम से उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे हैं | 

कबीर जी ने बेशक अपना पूरा जीवन गरीबी में बिता दिया पर उन्होंने पूरी इंसानियत को अपने उपदेशों से अमीर बना दिया | चलिए भक्ति काल के इस महान संत के जीवन से जुडी कुछ ऐसी बातें आपको बताते हैं  जो शायद आपको न पता हों | 

कबीर जी की जन्म कथा Kabir Das Date of Birth

आज समाज संत कबीरदास को एक जुलाहा मानता है लेकिन संत कबीर के जन्म के बारे में अलग अलग लोगों की अलग अलग धारणाएं हैं | उनके शिष्य उनके जन्म और बचपन को लेकर अपने अपने मत देते हैं | 

वैसे जो संत समाज में जाति के भेदभाव को मिटाने की कोशिश करता रहा उसके खुद के जन्म को भी हमारे समाज ने धर्म जाति के बंधनों में बाँट दिया |  

कबीर जी के जन्म को लेकर जो आम धारणा बनती है और जिसे भारत सरकार की कल्चर वेबसाइट पर भी जगह दी गयी है उसके अनुसार इस महान संत का जन्म एक योगी के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ था | 

लेकिन समाज में अपमान के डर से उस ब्राह्मण महिला ने उस बच्चे को लहरतारा तालाब के पास छोड़ दिया | जहाँ से नीरू और नीमा नाम के एक जुलाहा दम्पत्ति ने उस बालक को उठाया और उसका पालन पोषण किया |

वहीं कबीरपंथी मानते हैं कि संत कबीर लहरतारा तालाब में खिले हुए कमल के एक फूल के ऊपर प्रकट हुए थे | जिसके बाद नीरू और नीमा जुलाहा दम्पति ने उनका पालन पोषण किया | 

वैसे कबीर जी खुद को जुलाहा ही कहते थे जैसे कि इस दोहे में उन्होंने बताया

जाति जुलाहा नाम कबीरा

बनि बनि फिरो उदासी।

बचपन में ये दूसरे बच्चों से अलग रहते थे | हमेशा अपने आप में ही रहना पसंद करते थे , दूसरे बच्चों के जैसे खेल कूद का शोंक नहीं था | माता पिता के गरीब होने की वजह से कबीर जी कभी मदरसे में पढ़ने न जा सके |

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Kabir Das Biography in Hindi

कबीर दास जी के गुरु Guru of Kabir Das in Hindi

जीवन में सफल होने के लिए एक गुरु का होना बहुत जरूरी है | गुरु ही वो व्यक्ति होता हैं जो हमें सही गलत का ज्ञान करवाता है और हमारा मार्गदर्शन करता है | 

कहते हैं कि गुरु के बिना गति नहीं है 

कबीर दास जी ने तो गुरु की महिमा की जिस तरीके से व्याख्या की है उसे सुनकर गुरु की महिमा के बारे में लेस मात्र भी शंका नहीं रहती |  

कबीर जी गुरु को ईश्वर से भी बड़ा मानते हैं जिसका उल्लेख वो इस दोहे के माध्यम से इस तरह करते हैं |

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काको लागूं पाय ।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।

अर्थात अगर गुरु और गोबिंद (ईश्वर) दोनों सामने खड़े हो तो मैं किसके पैर छुऊंगा | मैं अपने गुरु पर ही बलिहारी जाऊंगा जिन्होंने ईश्वर से मिलने का रास्ता बताया | 

कबीर जी गुरु की महिमा को समझ गए थे इसलिए वो भी गुरु की तलाश में लग गए थे | उस समय स्वामी आचार्य रामानंद जी काशी के सबसे बड़े संत थे और कबीर जी ने रामानन्द जी को ही अपना गुरु बनाने की ठान ली |

इस दौर में लोगों में जाति धर्म को लेकर उत्पात मचा रहता था | संत कबीर भले ही एक ब्राह्मणी की कोख से जन्मे हों परन्तु उनका पालन एक मुसलमान जुलाहा दम्पति ने किया | 

इस हिसाब से संत कबीर जी भी मुसलमान हुए |  हालांकि संत कबीर कभी भी हिन्दू मुसलमान में भेद नहीं करते थे |

जब कबीर जी रामानंद जी से मिलने के उद्देश्य से उनके आश्रम पहुंचे तो वहां उपस्थित ब्राह्मण पंडितों ने कबीर जी को अंदर नहीं जाने दिया |  

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पर कबीर जी ने रामानंद जी को ही गुरु बनाने की रट लगा ली थी | संत कबीर जी को आश्रम में नहीं जाने दिया गया तो कबीर जी ने एक उपाय निकाला | 

रामानंद जी हर रोज सुबह गंगा स्नान करने जाते थे | एक दिन कबीर जी घाट की सीढ़ियों पर लेट गए और रामानंद जी का स्नान करने से वापसी का इंतज़ार करने लगे | 

जब रामानंद जी स्नान से लोट रहे थे तो अँधेरा होने के कारण उन्हें सीढ़ियों पर लेटे कबीर नहीं दिखे और उनका पैर कबीर जी को लगा और उनके मुँह से राम राम निकला | 

बस इतना होना था के कबीर जी ख़ुशी के मारे उछल पड़े और रामानंद जी द्वारा बोले राम राम को ही गुरु मंत्र मान कर अपने गुरु और राम राम नाम का जप करने लगे गए |

ये बात पुरे नगर में फ़ैल गयी के रामानंद जी ने एक मुसलमान को गुरुमंत्र दिया हैं | जिससे पूरा ब्राह्मण समाज गुस्से में आ गया और एक सभा बुलाई गयी | सभा में कबीर जी को बुलाया गया और खुद रामानंद जी ने पूछा के मेने तुम्हे गुरुमंत्र कब दिया ?

जिस पर कबीर जी बोले के उस दिन सुबह स्नान करने के बाद आपने सबसे पहले मुझे ही राम राम का गुरु मंत्र दिया था |  

जिससे रामानंद जी क्रोधित हो गए और उन्होंने पैर में पहनी लकड़ी की चप्पल जिसे खड़ाऊं भी कहते हैं, वो कबीर जी की तरह फेंकी और वो कबीर जी के सर पर जा लगी | 

रामानन्द जी ने बोला के राम राम इतना झूठा इंसान मैंने आज तक नहीं देखा, जिस पर कबीर जी बोले के अब तो मुझे गुरु मंत्र के साथ साथ अपने गुरु के चरणों की खडून भी मिल गयी, बेशक गुस्से में ही सही, मेरे गुरु ने मुझे रामनाम दे दिया | 

जिससे रामानंद जी बहुत प्रभावित हुए और पूरी सभा में ऐलान किया के कबीर जी उनके सबसे परम् शिष्य हैं |

कबीर जी भी रामानंद और अपने जन्म के बारे में कहते हैं | 

“हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये”

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कबीरदास की जाति व धर्म Kabir Das Caste Religion in Hindi

संत कबीर का कोई धर्म नहीं था, हालांकि उनके रहन सहन और खान पान के ढंग में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों की झलक दिखाई देती थी | वो हिन्दू और मुस्लिम के बीच नफ़रत की दीवार को खत्म करना चाहते थे शायद इसीलिए उनका रहन सहन दोनों धर्मों से मिलता जुलता था |

लोगों के अनुसार वो मुसलमान थे परन्तु वो खुद को धर्म के मामले में आज़ाद मानते थे | 

वो मानते थे के हम सब इंसानों को एक ही भगवान ने बनाया है, जब उसने हमे बनाते हुए किसी धर्म जाति को नहीं देखा तो हम इंसान के रूप में धर्म और जातिओं में क्यों बंटे हुए हैं |  

वो हिन्दू और मुसलमान धर्म में होने वाले रीति रिवाजों को सही नहीं मानते थे | उनके शिष्यों  में हिन्दू मुसलमान सब लोग थे और कबीर जी सबको एक ही नज़र से देखते थे | 

धर्मों को सही न मानने और सभी धार्मिक कर्मकांडों को अंधविश्वास बताने की वजह से कबीर जी का बहुत लोगों ने विरोध किया |  

कबीर ने खुद को जाति और धर्म के बंधनों से मुक्त रखने की कोशिश की, अपने एक दोहे के माध्यम से कबीर जी कहते हैं | 

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।

हालांकि इसका अर्थ बताने की जरूरत नहीं है फिर भी कबीर जी का मानना था कि साधु की जाति नहीं देखनी चाहिए बल्कि उसके ज्ञान के बारे में पूछना चाहिए |  

जैसे की समाज में तलवार का मिल होता है ना की म्यान का |  

संत कबीर ने जीते जी हर कर्मकाण्ड का विरोध किया लेकिन आगे चलकर उनके ही शिष्यों ने अपना एक अलग धर्म बना लिया |  

कबीर को मानने वाले ये लोग कबीर के उपदेशों पर चलते हैं और उन्होंने अपने अलग कर्मकांड बना लिए हैं |  आज इस धर्म में दुनिया भर से करोड़ों लोग जुड़ रहे हैं और इस धर्म को कबीरपंथ कहा जाता हैं | (कबीर पंथ के बारे में यहां पढ़े)

कबीरदास का विवाह Kabir Das Marriage Information in Hindi

संत कबीर के विवाह के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती | कुछ इतिहासकारों के अनुसार संत कबीर की शादी लोई नाम की लड़की से हुई थी | इस शादी से उनकी 2 संताने हुई थी जिनके नाम कमाल और कमाली थे | 

परन्तु इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया के असल में संत कबीर की शादी हुई थी या नहीं, संत कबीर के शिष्यों द्वारा चलाये कबीर पंथ के अनुसार, संत कबीर एक रूहानी शख्सियत थे |  

उनकी कभी शादी नहीं हुई बल्कि कमाल, कमाली और लोई उनका परिवार नहीं बल्कि शिष्य थे | क्योंकि संत कबीर जी एक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने अपने ब्रह्मचर्य का पालन किया था | 

कुछ लोगों के अनुसार लोई संत कबीर की पत्नी और शिष्य दोनों थी | कबीर जी के माता पिता ने जब देखा की कबीर जी का ध्यान साधु संतों की ओर ज्यादा है तो उन्होंने लोगों के कहे अनुसार उनका विवाह करने का निर्णय लिया | 

इस तरह उनका विवाह जुलाहे की कन्या लोई से हुआ जो कि विवाह के बाद कबीर जी की ही तरह राम नाम के रंग में रंग गयी | 

इस तरह कइयों का मानना है के लोई से शादी के बाद संत कबीर ने लोई को अपना शिष्य बना लिया होगा | इतिहासकारों के इस बारे में अपने अलग मत हैं |

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कबीर दास का साहित्यिक योगदान Kabir Das Literature Contribution

मसि कागद छूयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।
चारिक जुग को महातम, मुखहिं जनाई बात।।

कबीर पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन साहित्य में उनका बहुत बड़ा योगदान था | उन्होंने मुँह से जो बोला उनके शिष्यों ने उसे ग्रंथों में लिख दिया |

ऊपर लिखे इस दोहे के माध्यम से भी कबीर जी यही कह रहे हैं कि मैंने ना तो कभी कागज, स्याही को छुआ और ना ही कलम को हाथ लगाया | लेकिन चारों युगों के महात्मय को मुहजबानी ही बताता हूँ |

एच एच विल्सन के अनुसार कबीर के ग्रंथों की संख्या 8 है|

जबकि एक अन्य इतिहासकार विशप जी.एच. वेस्टकॉट के अनुसार उनके 84 ग्रन्थ हैं | वहीँ रामदास गौड के अनुसार उनकी 71 किताबें हैं |

संत कबीर की भाषा बहुत सरल थी ,वो हमेशा ऐसे शब्द इस्तेमाल करते थे जो आम लोगों की समझ में आ जाए और लोग उन पर अमल कर सकें | संत कबीर की अनेकों रचनाओं में से 3 सबसे अहम हैं :

साखी : साखी, साक्षी शब्द से बना हैं इसका अर्थ होता हैं उपदेश | धर्म का उपदेश | संत कबीर ने अपने  दोहों के ज़रिये आम इंसानों को धर्म का असल उपदेश दिया हैं | 

शब्द : धर्म के अलावा संत कबीर ने प्रेम को भी बहुत अलग तरीके से समझाया हैं | उन्होंने प्रेम को इंसानी प्रेम तक सीमित न करके रूहानी प्रेम बनाया हैं | 

रमैनी : संत कबीर द्वारा लिखी सबसे बड़ी रचना बीजक हैं | बीजक ही आगे जाकर कबीरपंथ का आधार बना, बीजक में संत कबीर ने हरेक चीज को बहुत बारीकी से समझाया हैं | रमैनी बीजक का ही अंश हैं | 

इसी तरह बीजक में 11 अंग है जिनमें रमैनी में 84, शब्द में 115, ज्ञान चौंतीसा में 34, विप्रमतीसी में 1, कहरा में 12, वसन्त में 12, चाचर में 2, बेलि में 2, बिरहुली में 1, हिंडोला में 3 और साखी में 353 छंद हैं | इस तरह बीजक में कुल 619 छंद हैं |

कबीर के दोहे

कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से जो सन्देश दिए हैं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता | उनके कुछ दोहे जीवन जीने, जीवन में कभी हार ना मानने, कर्म काण्ड से दूर रहने और ईश्वर प्राप्ति का सन्देश देते हैं |

आइए आपको बताते हैं कबीर दास जी कुछ दोहों के बारे में |

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

इस दोहे के माध्यम से कबीर जी कहते हैं जो खोज करते हैं वो ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकते हैं | बिना प्रयास के तो कुछ भी हासिल नहीं होता |

जैसे एक गोताखोर पानी में गहरा जाने पर कुछ लेकर आता है उसी तरह ईश्वर की खोज भी प्रयास से ही संभव है | लेकिन कुछ लोग डर की वजह से पानी में नहीं उतरते वो किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं उन्हें कुछ हासिल नहीं होता|

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

इस दोहे के माध्यम से कबीर जी कहते हैं ईश्वर प्राप्ति के लिए सारा संसार हाथ में माला फेरता रहता है | लेकिन वो अपने मन को नियंत्रण में नहीं रख पाता | कबीर जी कहते हैं ऐसे माला फेरने से कुछ नहीं होगा माला का त्याग कर अपने मन को नियंत्रण में करने का प्रयास करना चाहिए | (कबीर के सभी दोहे यहाँ पढ़ें)

कबीर जी की मृत्यु Kabir Das Death in Hindi

कबीर जी के दोहे दुनिया को सन्देश देने के लिए थे | वो सभी को मिलजुल कर रहने और भाईचारे का सन्देश देते थे |

वो मूर्ति पूजा, कर्मकाण्ड, रोजा, उपवास, मंदिरों में पूजा, मस्जिदों में नमाज पढ़ना सभी तरह के कर्मकाण्ड के विरोधी थे | उनका मानना था कि ईश्वर हर जगह है |

कबीर जी ने अपना पूरा जीवन काशी में बिता दिया लेकिन मृत्यु के समय वो मगहर चले गए थे |

संत कबीर के समय से लेकर आज तक एक मिथ बना हुआ हैं के काशी में मरने वाला इंसान सीधा स्वर्ग जाता हैं और मगहर में मरने वाला नर्क भोगता हैं |

संत कबीर ने लोगों का यह भरम तोड़ने के लिए मगहर में अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया | अपने अंतिम समय में कबीर जी मगहर आ गए | कबीर जी कहते थे के जिस इंसान ने पूरी उम्र पाप किये और अगर वो अपने प्राण काशी में त्यागता हैं तो उसे स्वर्ग कैसे मिलेगा | क्योंकि स्वर्ग नर्क जगह के अनुसार नहीं बल्कि कर्मों के अनुसार मिलता हैं |

जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसी ही जगह मिलेगी |

संत कबीर ने 1551 में  मगहर में जाकर प्राण त्यागे और यहीं पर उनका मकबरा बनाया गया | 

मृत्यु के बाद हिन्दू मुस्लिम में बंट गए कबीर

मृत्यु के बाद भी संत कबीर के शिष्यों में देह संस्कार को लेकर मतभेद हो गए थे | हिन्दू शिष्य उनकी देह को जलाना चाहते थे और जबकि मुसलमान शिष्य उनकी देह को दफनाना |

तो आकाश से एक आकाशवाणी हुई और उस आकाशवाणी ने बोला के संत कबीर की देह के ऊपर दी हुई चादर को हटाओ | उसके नीचे जो भी मिलेगा उसे आधा आधा कर लो, जब देह के ऊपर से चादर हटाई गयी तो सब लोग हैरान रह गए क्योंकि वहां संत कबीर की देह की जगह फूल पड़े थे |  

संत कबीर एक ऐसे संत थे जो सब धर्मों से ऊपर थे | उन्होंने अभी लोगों को हमेशा एक होकर रहने का संदेश दिया , और हमेशा यही समझाया के हम सब एक ही भगवान द्वारा बनाये गए हैं |

संत कबीर के उपदेशों को सिखों के सबसे धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहेब में भी दर्ज़ किया गया | संत कबीर ने अपनी पूरी उम्र हिन्दू मुस्लिम के बीच के अंतर् को मिटने में लगा दी | जिसकी वजह से उन्हें बहुत बार लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा | संत कबीर का खुद कोई धर्म न था, वो खुद किसी धर्म को नहीं मानते थे, परन्तु उनके शिष्यों ने कबीरपंथ के नाम से अलग धर्म बना दिया | 

संत कबीर की शिक्षाएं हमेशा जीवित रहेगी | लोग हमेशा उनकी शिक्षाओं पर अमल करते रहेंगे और हो सकता है आज भी विश्व से धर्म, जाति का जो बंटवारा हुआ है वो खत्म हो जाये |

वैसे तो कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Biography in Hindi) का मोहताज नहीं है फिर भी हमने कोशिश की है कि आप तक उनके जीवन के बारे में हर जानकारी पहुंचा पाएं |

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

9 thoughts on “कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi”

  1. आपका हर पोस्ट बहुत ही जानकारी से भरा हुआ हैं। महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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