प्रेम, मोह माया और जीवन से जुड़े कबीर के दोहे

संत कबीर एक महान संत थे | उन्होंने पूरी दुनिया को इंसानियत का पाठ पढ़ाया और बताया कि भगवान एक है, वो न हिन्दू है न मुसलमान। वो एक ही है जिसने हमें बनाया है।  

कबीर के दोहे के माध्यम से उनकी शिक्षाओं को बहुत सरलता से समझा जा सकता है। उनकी भाषा बहुत सरल और सटीक होती थी। ताकि कोई भी इंसान उनके उपदेशों को आसानी से समझ सके और उस पे अमल कर सके। अगर आप कबीर जी के जीवन के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करके उनके बारे में पढ़ सकते हैं |

कबीर के दोहे
कबीर के दोहे

आज हम उनके द्वारा लिखे कुछ दोहों के बारे में पढ़ेंगे। उनके दोहों को हम श्रेणीबद्ध करेगें ताकि संत कबीर की शिक्षाओं को आप और गहराई से और सरलता से समझ सको। 

कबीर के प्रेम से जुड़े दोहे

संत कबीर ने प्रेम को बेहद आसान भाषा में समझा दिया। जहां उस समय प्रेम जैसे विषयों पर बात नहीं होती थी वहीं संत कबीर ने प्रेम के ऊपर लिखा भी और लोगों को समझाया भी। उन्होंने प्रेम को भक्ति भाव से जोड़ा है। रूहानी प्रेम को उन्होंने सबसे उत्तम बताया है।  

प्रेम  न बाडी उपजे प्रेम  न हाट बिकाई |

राजा परजा जेह रुचे  सीस देह ले जाई ॥

संत कबीर अपने दोहे के माध्यम से कहते हैं कि प्रेम एक ऐसी चीज है जिसे बस महसूस किया जा सकता है। प्रेम किसी खेत में नहीं बोया जा सकता, न ही वो किसी दुकान पर बिकता है। प्रेम तो ऐसी भावना है जो हम सबके अंदर होती है , बस जरूरत है उसे प्रकट करने की। 

कोई राजा को या कोई रैंक हो , प्रेम बलिदान मांगता है , प्रेम त्याग मांगता है , बिना त्याग और बलिदान के प्रेम नहीं मिल सकता। प्रेम हासिल करने के लिए हमें लालसा , घमंड , बुरी आदतों का त्याग और बलिदान करना पड़ेगा।  प्रेम कोई वस्तु नहीं है बल्कि ये वो एहसास है जो किसी भी वस्तु से बढ़कर है। 

पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट ।

कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट ॥

प्रेम दुनिया में किसी भी चीज  से बड़ा होता है।  ये ज्ञान से भी बड़ा होता है। अपने बहुत सारा ज्ञान इकट्ठा कर लिया और हज़ारों किस्म का ज्ञान इकट्ठा करके अगर आपका हृदय कठोर हो गया है , आप प्रेम को नहीं समझ रहे तो उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं। 

आपसे अच्छा वो अज्ञानी है जो प्रेम की भाषा को समझता है। अगर आपको प्रेम का ज्ञान है तो आप सर्वज्ञानी हो। प्रेम का छोटा सा छींटा भी किसी पत्थर को संजीव बना सकता है।  

जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।

ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ॥

संत कबीर के अनुसार जिसके दिल में प्रेम नहीं है , जिसने कभी किसी से प्रेम से बात नहीं की , किसी के सामने प्रेम व्यक्त नहीं किया , जिसने कभी प्रेम से भगवान राम का नाम नहीं लिया उसका जन्म व्यर्थ है।  वो धरती पर आया न आया एक बराबर है। 

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।

अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ॥

प्रेम की व्याख्या करते हुए कबीर के दोहे में आया है कि प्रेम का बादल पूरी दुनिया कर ऊपर छाया है पर वो बस कुछ लोगों पर ही बरसता है। में भाग्यशाली हूँ मेरे ऊपर प्रेम के बदल बरसे हैं, और सब कुछ हरा भरा हो गया है। 

मेरी अंतरात्मा तृप्त हो गयी है और एक संतुष्टि मिल गयी है। प्रेम की शक्ति और ताकत को महसूस किया है। ये बदल सबके ऊपर बरसते हैं पर कोई कोई ही इसे पहचान पाता है।  हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते ? क्यों हम नफरतों के काले बादलों से घिरे हुए हैं ?

कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।

सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूं जाव॥

संत कबीर कहते हैं के इस दुनिया में जिस व्यक्ति ने प्रेम का स्वाद नहीं चखा उसने कुछ नहीं चखा। बिना प्रेम के इंसान वैसा होता है जैसे बिना मनुष्य के घर।  हमें सबके साथ प्रेम करना चाहिए और प्रेम ही हमारे जीवन का धुरा होना चाहिए। बिना प्रेम के आप दुनिया में ए न ए एक बराबर है। 

मोह माया पर कबीर के दोहे

संत कबीर ने अपने दोहों के ज़रिये मोह माया को बहुत अच्छे से समझाया है।  इंसान को मोह माया से लालच से दूर रहना चाहिए उन्होंने बहुत सहज तरीके से बता दिया है। 

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय |

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय ||

संत कबीर कहते हैं के हमें फालतू की लालसा नहीं करनी चाहिए। हमें लालच नहीं करना चाहिए हमें सिर्फ उतना धन ही अर्जित करना चाहिए जितना हमारे मुश्किल समय में काम आ सके। लालच वश आकर हमें अपरम्पार धन नहीं जुटाना चाहिए क्योंकि आज तक कोई भी इंसान मरते समय धन की पोटली अपने साथ नहीं ले जाता।  सब धन दौलत यही छोड़ जाता है।  इसलिए फालतू का लालच नहीं सिर्फ जरूरत का धन इकट्ठा करना चाहिए। 

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ||

संत कबीर कहते हैं के ये दुनिया ऐसी है के इसमें हरेक व्यक्ति की लाखों की इच्छाएं , लालसाएं है।  इंसान की मोह माया कभी नहीं मरती।  हम एक चीज हासिल करने के बाद दूसरी चीज के पीछे भाग जाते हैं , ये लालच सिर्फ हमारी मृत्यु के बाद ही खत्म हो पाता है , आदिम समय में भी हम सब कुछ हासिल करने की सोचते हैं।  

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।

पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।।

मनुष्य की लालसाएँ अनगिनत हैं।  हम कभी भी ईश्वर द्वारा प्रदान की हुई चीजों से संतुष्ट नहीं होते।  हम माया के पीछे भागते रहते हैं।  परन्तु मनुष्य को ये बात समझनी चाहिए के वो अपनी लालसाएँ कभी पूर्ण नहीं कर सकता।  अपने लालच का समुंदर कभी नहीं भर सकता , अगर पानी में से भी घी निकलने लग जाये तो कोई भी आदमी रूखी रोटी नहीं खायेगा अर्थ अगर सबकी इच्छाएँ पूरी होने लग गयी तो उस ऊपरवाले को कोई याद नहीं करेगा। 

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मौत के दोहे

हरेक व्यक्ति को मृत्यु से डर लगता है परन्तु संत कबीर ने मृत्यु को जिस ढंग से समझाया है, वो बिलकुल अलग है । मृत्यु के संदर्भ में संत कबीर कहते हैं :

इक दिन ऐसा होइगा, सब सूँ पड़ै बिछोइ।

राजा राणा छत्रापति, सावधान किन होइ॥

मृत्यु एक ऐसा सत्य है जो अटल है।  वो होकर रहेगा आज नहीं तो कल।  मृत्यु ने आना ही आना है और यही प्रकृति का असूल है , जिस वस्तु ने जन्म लिया है उसका नाश होगा और अवश्य होगा।  जब मृत्यु आएगी तब हम सभी मित्र, बंधु, सगे संबंधियों को छोड़ देंगे , मृत्यु से कोई राजा, रंक, अमीर गरीब कोई नहीं बच पाया है तो हम उसे मान क्यों नहीं लेते। हम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते। 

मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी।

जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ।।

एक सच्चा संत , योगी वही होता है जो अपने अंदर के सभी विकारों को मर देता है।  जब आप अपने अंदर से अहंकार , लोभ , मोह , लालसा , इच्छा आदि विकारों को मर दोगे , अपने अंदर भगवान को बसा लोगे और भगवान का सिमरण करते हुए इस दुनिया  से चले जाओगे तो बेशक आपका शरीर दुनिया पर न हो पर आपका यश , आपका गुणगान दुनिया में रहेगा।  इंसान आपको याद करते रहेंगे और यही एक सच्चे इंसान की पहचान है।

काची काया मन अथिर थिर थिर  काम करंत ।

ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ॥

हमें पता है के आत्मा जिस शरीर में रह रही है वह नश्वर है।  इस शरीर ने एक दिन खत्म होना ही है।  हम फिर भी दुनियावी  विकारों में पड़े रहते हैं और हम बेवजह विकारों को अपने जीवन के साथ जोड़ कर रखते हैं। 

हम सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनकर घूमते हैं और ऐसा देख कर मृत्यु हम पर   हमारी दशा पर हस्ती है।  हम यह नहीं जानते के मृत्यु कब और कैसे आएगी , परन्तु भगवान को पता है , ये कितनी दुःखभरी बात है के हम नाशवान चीजों के लिए खुश होते हैं। 

जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ।।

बहुत आसान बात है , उदाहरण के लिए , हम घड़े में एक जलाशय से पानी भरते हैं , तो घड़े के अंदर भी पानी है और घड़े के बाहर भी। परन्तु जब घड़ा फुट जाता है तो वो अंदर वाला पानी जलाशय के पानी से ही मिल जाता है अर्थात जिसका अंश था उसी में मिल जाता है। 

ऐसा ही मनुष्य के साथ होता है।  आत्मा और परमात्मा अलग अलग नहीं है , बल्कि एक ही है , हमारा शरीर घड़ा रूप है जब यह फूटेगा अर्थात मृत्यु होगी तो आत्मा परमात्मा से ही मिल जाएगी जैसे अंदर का पानी जलाशय से मिल जाता है।  

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भगवान के बारे में कबीर दोहे

संत कबीर ने भगवान को एक बताया है।  उनके अनुसार न कोई हिन्दू है न मुसलमान , हम सब एक ही भगवान द्वारा बनाये गए हैं। 

संत कबीर कहते हैं :

कबीर कूता राम का…, मुटिया मेरा नाऊ |

गले राम की जेवड़ी…, जित खींचे तित जाऊं ||

भगवान राम के बारे में संत कबीर के दोहे के अनुसार इस दुनिया की डोर राम के हाथ में है। इस दुनिया को राम ही चला रहा है। कबीर राम का पालतू है और जैसे जेसे राम बोलता है में वैसे वैसे करता हु।  जिधर राम लेकर जाता है में उसी तरफ चला जाता हु।  इसी तरह इस दुनिया में कुछ भी हमारी मर्जी से नहीं हो रहा , जो भी कर रहा है वो राम कर रहा है।  राम हमें जहां लेकर जा रहा है हम उसी तरफ चले जा रहे हैं। 

जब ही नाम हिरदय धर्यो… , भयो पाप का नाश |

मानो चिनगी अग्नि की… , परी पुरानी घास ||

राम का नाम एक ऐसी चीज है जो सबसे बड़ी है।  राम से बड़ा कुछ नहीं। जब हम राम को याद करते हैं तो हमारे अंदर के विकार अपने आप खत्म हो जाते हैं और हम राम के और करीब हो जाते हैं। राम का नाम ही सभी विकारों को खत्म करने के लिए काफी है, जैसे आग के सम्पर्क में आते ही सुखी घास खत्म हो जाती है वैसे ही राम का सिमरण करते ही विकार सुखी घास जैसे जल कर राख़ हो जाते हैं। 

फल कारन सेवा करे… , करे ना मन से काम |

कहे कबीर सेवक नहीं… , चाहे चौगुना दाम ||

हम मंदिर में जाते है , मस्जिद में जाते हैं और भगवान की पूजा करते हैं।  हम भगवान के पास कुछ दान भी कर देते हैं पर उस दान के बदले भगवान से 4 गुना ज्यादा मांगते हैं , हम भगवान के पास सिर्फ मांगने ही जाते हैं , उसकी पूजा करने नहीं।  हम उसके सेवक नहीं हैं , क्योंकि उसके दरवाजे पर आने से पहले हमने अपने लालच को बाहर नहीं छोड़ा, उसके पास भी हम लालच लेकर आये हैं , हम उसके सेवक नहीं हैं। 

उज्जवल पहरे कापड़ा… , पान सुपारी खाय |

एक हरी के नाम बिन… , बंधा यमपुर जाय ||

भगवान का नाम कैसे आपको नर्क से बचा सकता है इस बारे में कबीर के दोहे में आया है, बेशक आपके पास बहुत सारा धन है , आपके पास दुनिया भर की सुख सुविधाएँ हैं , आपके पास महंगे महंगे लिबास हैं , बेशक आप दुनिया भर के भेंट भेंट के व्यंजन खा रहे हैं पर फिर भी आप नर्क से नहीं बच सकते जब तक आप भगवान को याद नहीं करोगे।  बिना भगवान की स्तुति के अपना नर्क जाना तय है।  आपको सिर्फ भगवान का नाम ही बचा सकता है। 

संत कबीर के शरीर से जुड़े दोहे

संत कबीर ने इंसानी शरीर की उदाहरण देकर भट सारी ज्ञान वर्धक वतन हमें बताई हैं :

नहाये धोये क्या हुआ… , जो मन मेल न जाय |

मीन सदा जल में रही… , धोये बॉस न जाय ||

इंसान हर रोज नहाता है, तरह तरह के इत्र से सुगंधित होता है और अपने शरीर का ख्याल रखता है, परन्तु अगर आपके मन में मैल है तो ऊपरी सफाई का कोई महत्व नहीं रह जाता।  जैसे मछली को देख लो , बेशक वो पूरा समय पानी के अंदर रहती है परन्तु फिर भी उसके शरीर से दुर्गंध आती है , ऐसे ही हमें अपने शरीर को  साफ करने के साथ साथ मन की सफाई भी करनी चाहिए।  क्योंकि अगर मन गंदा और बदबूदार होगा तो आपको नर्क मिलेगा। 

तन को जोगी सब करे… , मन को बिरला कोय |

सहजी सब बिधि पिये… , जो मन जोगी होय ||

ऋषि एक आसान शब्द है , हम अपने शरीर पर निशान बना कर , भगवें कपड़े पहन कर ऋषि बन सकते हैं , वो बहुत आसान ही , परन्तु अपनी आत्मा को सुध करके , सभी विकारों को बुरी आदतों को त्याग कर इस दुनिया में विचरण बेहद मुश्किल है और एक ऋषि की यही पहचान होती है।  असलियत में ऋषि बनना बहुत कठिन है। 

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार ।।

हम कभी भी इस चीज के बारे में नहीं सोचते।  हमारा जन्म बहुत मुश्किल से होता है।  हमें ये शरीर कितनी लाखों योनियां भुगतने के बाद मिलता है।  और यह भी सत्य है के हमें यह जीवन बार बार नहीं मिलता। 

अगर हम एक बार इस पवन जीवन को गवां दे तो ये दोबारा मिलना मुमकिन नहीं है जैसे किसी वृक्ष से एक अब्र पत्ता टूट जाये तो दोबारा जुड़ नहीं सकता ऐसे ही अगर हमने अपना जीवन लोभ लालच में व्यर्थ  कर दिया और भगवान को याद नहीं किया तो हमें भी यह जीवन दोबारा नहीं मिलगा। 

संत कबीर ने हमें दोहों की मदद से जीवन की सच्चाई , भगवान का महत्व बताया है।  भगवान की सिमरन करने पर ज़ोर दिया हिअ क्योंकि यह जीवन हमें बार बार नहीं मिलता , हमारे पास ये एक छोटा सा जीवन है और हमें चाहिए के हम अच्छे काम करें और भगवान  का सिमरन करें। ताकि  हमारा आगे का रास्ता आसान हो जाये।  

संत कबीर द्वारा कहे ये दोहे आज भी उतने ही कारगर हैं  और लोगों का मर्गदर्शन कर रहे हैं।  

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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