कारगिल युद्ध 1999 की कहानी

Kargil War Story in Hindi – पाकिस्तान की 6 नॉरदर्न लाइट इंफ़ैंट्री के कैप्टेन इफ़्तेख़ार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम अपने सैनिक साथियों के साथ कारगिल की आज़म चौकी पर कब्जा जमाए बैठे थे |

तभी कुछ भारतीय चरवाहे अपने मवेशियों को चराते हुए वहाँ पहुँचे | उन चरवाहों ने देख लिया था कि पाकिस्तानी फौज भारत की सीमा के अंदर उसकी चौकियों पर कब्जा जमा चुकी है |

उस चौकी पर कब्जा करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों के पास राशन सीमित था | इसलिए वो चाहकर भी उन चरवाहों को बंदी नहीं बना सके क्यूंकी उन्हें डर  था कि इससे उनका राशन ख़तम हो जाएगा |

इन्हीं चरवाहों ने सबसे पहले भारतीय सेना को जानकरी दी कि कारगिल पर पाकिस्तानी फौज ने कब्जा कर लिया है | सूचना की पुष्टि करने के लिए सबसे पहले भारतीय फौज के कुछ सैनिकों ने उस चौकी के आस पास का मुआयना किया |

स्थिति को अच्छी तरह समझने के लिए लामा हेलिकॉप्टर से सेना ने उस चौकी के उपर उड़ान भारी तो पाया कि सच में पाकिस्तान ने चौकी पर कब्जा जमा लिया है |

ये पहला मौका था जब भारतीय सेना को पता चला कि पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की चौकियों पर कब्जा कर लिया है | अगले दिन फिर से भारत के लामा हेलिकॉप्टर्स ने उड़ान भारी और दुश्मन के ठिकानों पर गोलियाँ बरसाई |

पाकिस्तानी सेना ने अपने मुख्यालय से भारत के लामा हेलिकोटेर्स पर जवाबी हमले की अनुमति माँगी, लेकिन मुख्यालय से इसकी अनुमति नहीं दी गई | क्यूंकी पाकिस्तान की सेना के उच्च अधिकारी भारत को एक बड़ा सर्प्राइज़ देना चाहते थे |

और भारत की सेना को भी लगा की ये एक बड़ी घुसपैठ है लेकिन फिर भी इसे अपने स्तर पर बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के सुलझाया जा सकता है |  पर बाद में भारत को एहसास हुआ की ये संकट बहुत बड़ा था |

3 मई 1999 को हुई कारगिल की लड़ाई की शुरुआत

Kargil War Story in Hindi
Kargil War Story in Hindi

3 मई 1999 को कारगिल युध शुरू हुआ था, जिसकी शुरुआत पाकिस्तान की तरफ से की गई थी | लेकिन इस युध की समाप्ति 26 जुलाई 1999 को भारत की तरफ से की गई |

इस दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है | कारगिल की लड़ाई लगभग 3 महीने तक चली, जिसमें भारत ने अपने सैंकड़ों वीरों को खोया था |

ये लड़ाई भारत की तरफ से शुरू नहीं की गई थी, बल्कि पाकिस्तान ने इस लड़ाई को हम पर थोपा था | वैसे तो सभी लड़ाइयां पाकिस्तान की तरफ से ही शुरू की गई थी लेकिन 1971 की भारत पाकिस्तान जंग में भारत ने भी पाकिस्तान पर हमले की पूरी तैयारी कर रखी थी |

कारगिल की इस लड़ाई में हमने पाकिस्तान को ऐसा जवाब दिया जिसके बाद पूरी दुनिया में पाकिस्तान की खूब बेइजत्ती हुई और अपने सैंकड़ों सैनिक खोकर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ |

कारगिल युद्ध में जहाँ भारत के 527 सैनिक शहीद हुए थे वहीं पाकिस्तान के 1000 से 1200 के करीब सैनिकों ने इस लड़ाई में अपनी जान गँवाई थी |

ये रिपोर्ट भारत के द्वारा पेश की गई थी जिसे पाकिस्तान नहीं मानता | इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के 200 सैनिकों को तो भारत में ही दफ़नाना पड़ा था |

पाकिस्तान के सैनिक ज़्यादा शहीद हुए या कम इस पर डिबेट हो सकती है लेकिन इस युध में भारत को अपने सैंकड़ों वीर खोने पड़े थे |

इस लड़ाई की शुरुवात तब हुई जब पाकिस्तान के सैनिकों और चरमपंथी ताक़तों ने सर्दियाँ ख़तम होने से पहले कारगिल की उँची पहाड़ियों पर घुसपैठ करके अपने सैनिक ठिकाने स्थापित कर लिए |

हर साल भारत के जवान उन चौकियों को सर्दियों में खाली कर दिया करते थे | और गर्मी में उन चौकियों पर वापिस आ जाया करते थे | लेकिन इस बार पाकिस्तानी घुसपेठियों ने पाकिस्तानी सैनिकों की मदद से भारतीय सेना के वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ कब्जा कर लिया |

पाकिस्तान के द्वारा किए गये इस अवैध कब्ज़े के बारे में भारतीय सैनिकों को शुरू में पता नहीं चला था | पर जब कुछ चरवाहों ने इसकी जानकारी दी और भारत की सरकार तक ये जानकारी पहुँची तो भारत को बहुत बड़ा झटका लगा |

अटल बिहारी वाजपेयी ने की नवाज़ शरीफ से फ़ोन पर बात

उस वक़्त जब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान की इस हरकत के बारे में पता चला तो उन्होने पाकिस्तानी प्रधानमत्री नवाज शरीफ को फोन किया |

उन्होने नवाज शरीफ को कहा कि आपने हमारे साथ धोखा किया, एक तरफ आप लाहौर में हमसे गले मिलते हैं और दूसरी तरफ हम पर हमला कर देते हैं | इस पर नवाज शरीफ ने जवाब दिया की उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है |

नवाज शरीफ ने यहाँ तक कहा कि वो जनरल परवेश मुशर्रफ से इस बारे में जानकारी लेकर वापिस बात करेंगे |

कारगिल की इस लड़ाई में सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये थी की भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों को पाकिस्तान की इस हरकत की बिल्कुल भी भनक नहीं लगी थी |

पर इसका बड़ा कारण ये था कि पाकिस्तान ने भारत की उन उँची चोटियों पर कब्जा करने के लिए अडीशनल फोर्स नही ली | पाकिस्तान ने सिर्फ़ एक या दो अडीशनल बटालियन की सहयता से ही उन चोकीयों को अपने कब्ज़े में ले लिया था |

क्यूंकी बर्फ पिघलने तक भारत की तरफ से वहाँ सैनिकों की तैनाती नहीं हुई थी | अगर पाकिस्तान वहाँ ज़्यादा फोर्स डिप्लाय करता तो रॉ उनकी मूव्मेंट को पकड़ पाता और इसी कारण भारत की ख़ुफ़ियाँ एजेन्सीस कुछ हद तक फैल हो गई |

आगे की लड़ाई और भी मुश्किल से भरी थी | 3 मई से लेकर जून के पहले हफ्ते तक भारतीय सेना को बहुत ज्यादा मुश्किल हुई | पर धीरे धीरे भारत इस लड़ाई में अपनी पकड़ बनाने लगा |

पाकिस्तान से अपने कब्ज़े के क्षेत्रों को आज़ाद करवाना बहुत ज़्यादा मुश्किल काम था क्यूंकी पाकिस्तान के सैनिक उँची पहाड़ियों पर बैठे हुए थे |

जबकि भारतीय सेना नीचे से पाकिस्तानी सेनिकों पर जोरदार हमले कर रही थी |

ऊँची पहाड़ियों पर थी मुश्किल लड़ाई

ये लड़ाई बहुत मुश्किल थी क्यूंकी कारगिल की उँची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के एक सैनिक के बदले में भारत को अपने 27 सैनिक लगाने पड़े थे |

अपनी आत्मकथा में जनरल मुशर्रफ ने भी कहा था की उन पहाड़ियों पर उँचाई पर होने का पाकिस्तान को बहुत फायदा मिला क्यूंकी पाकिस्तान के 8 से 10 सैनिकों के खिलाफ भारत को पूरी बटालियन लगानी पड़ रही थी |

मुशर्रफ ने ये भी कहा की उन्हें राजनीतिक समर्थन नहीं मिला वरना कारगिल युद्ध की कहानी कुछ और होती | भारत के संबंध में मुशर्रफ की बातों को ज्यादा  महत्व नहीं दिया जा सकता फिर भी ये लड़ाई भारत के सैनिकों के लिए बहुत मुश्किल थी |

भारत के बहुत ज़्यादा जवान इस लड़ाई में मारे गये और घायल भी हुए | कारगिल की इस जंग का टीवी पर सीधा प्रसारण किया गया | जिससे भारत के सैनिकों को भारत की आम जनता का खूब समर्थन मिला और उनके होंसले बुलंद हो गये |

साथ ही पूरी दुनिया ने देखा की किस तरह पाकिस्तान ने पहल की थी और भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़े कर लिया था |

सियाचिन को हथियाने की थी साज़िश

पाकिस्तान के इस कब्ज़े का मकसद NH 1 D को पूरी तरह से काटना था ताकि सियाचिन को भारत से अलग किया जा सके |

जनरल परवेश मुशर्रफ को हमेशा से इस बात का गम था कि भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा कर लिया था | परवेश मुशर्रफ ने कई बार सियाचिन से भारत को हटाने की कोशिश की थी लेकिन वो उसमें सफल नहीं हो पाए थे |

मुशर्रफ का सियाचिन को पाने का मकसद इस बार भी पूरा नहीं हुआ और भारत ने लड़ाई में बढ़त हासिल कर ली | पर पाकिस्तानी आर्मी के उँची चोटियों पर बैठे होने की वजह से भारत के बहुत से सैनिक मारे जा रहे थे |

इसलिए 25 मई को भारत सरकार ने फैसला लिया की पाकिस्तान समर्थित घुसपेठियों पर भारत एयर फोर्स का इस्तेमाल करेगा | 27 मई से भारत ने घुसपैठियों  को खदेड़ने के लिए मिग 27 और मिग 29 को मैदान में उतार दिया |

भारत की वायु सेना ने पाकिस्तान की सीमा के अंदर घुस कर भी हमले किए | जिसमें भारत के दो लड़ाकू विमानो को भी पाकिस्तान ने मार गिराया |

9 जून तक भारत ने बाल्टिक की दो चोकीयों पर भी तिरंगा लहरा दिया था | पाकिस्तान इस कब्ज़े को कुछ आतंकवादी संगठनो का काम बता रहा था लेकिन जब 11 जून को भारत ने जनरल परवेज़ मुशर्रफ और जनरल अज़ीज ख़ान के बीच बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग पूरी दुनिया के सामने रखी तो सबको पता  चल गया की इसमें पाकिस्तानी सेना का हाथ है |

13 जून तक भारत ने द्रास सेक्टर में तोलिंग पोस्ट से भी पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया | इसके बाद 15 जून को अमेरिका ने इस युध में हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान को अपनी सेना को उस क्षेत्र से हटाने को कहा |

पर पाकिस्तान अभी भी उन पोस्ट्स पर जमा रहा | 29 जून आते आते भारत ने टाइगर हिल की दो पोस्ट पर तिरंगा लहरा दिया, इन पोस्ट्स का नाम 5060 और 5100 था |

रणनीतिक तौर पर ये दोनो पोस्ट्स भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी | जब भारत ने पाकिस्तान को सबक सीखना शुरू किया तो युध विराम की गुहार लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अमेरिका की शरण में पहुँच गये |

अमेरिकी से मदद मांगने पहुंचा पाकिस्तान

अमेरिका ने पाकिस्तान को जम कर लताड़ लगाई और कहा की उन्होने पाकिस्तान को पहले ही बिना शर्त अपने सैनिक हटाने के लिए कहा था | अगर पाकिस्तान ऐसा नहीं करता तो इस युध के लिए पूरा विश्व पाकिस्तान को दोषी मानेगा |

भारतीय सेना की इस कारवाई और पाकिस्तान पर अमेरिका के दबाव के कारण राजनीतिक सहयोग नहीं मिलने से पाकिस्तानी सेना का मनोबल बुरी तरह से टूट गया |

2 जुलाई के दिन भारत ने कारगिल को तीन तरफ से घेर लिया | इस दिन घमासान युध हुआ | भारत और पाकिस्तान की तरफ से बहुत से सैनिक शहीद हुए | आख़िरकार टाइगर हिल पर भारत ने तिरंगा लहरा कर सभी पोस्ट्स अपने कब्ज़े में ले ली |

 26 जुलाई को कारगिल युध समाप्त हो गया | इसके बाद से हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है |

इस युध का जब विश्लेषण किया गया तो कारगिल रिव्यू कमिटी की तरफ से भारत की सेना को सी डी एस यानी चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ बनाने सुझाव दिया गया ताकि युद्ध की स्थिति में तीनो सेनाओं में आपसी तालमेल बना रहे | 

हाल ही में लंबे समय से चली आ रही सी डी एस की माँग को पूरा किया गया है | सी डी एस के पद पर आज पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत हैं |

भारत से इतने युधों में हारने के बावजूद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता | कारगिल युध की पूरी कहानी का ये लेख आपको कैसा लगा आप हमें कॉमेंट करके ज़रूर बतायें………

Mohan

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