कहानी अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला की

Karim Lala Biography in Hindi – हमारे आस पास अच्छे लोगों के साथ साथ बुरे लोग भी होते हैं | अच्छे और बुरे लोगों में बहुत कम अंतर रह जाता है और ज्यादातर हमारी सोच समझ पर ही निर्भर करता है के हमारे लिए कौन अच्छा है और कौन बुरा | अच्छे और बुराई के बीच में एक बारीक रेखा होती है उस रेखा को पहचानना जरूरी है | 

कुछ लोग बुरे होकर भी अच्छा काम कर देते हैं जो अच्छे से अच्छा इंसान नहीं कर पता , तो ऐसे इंसान को अच्छे के श्रेणी में रखा जाये या बुरे की , ये भी एक द्वंद्व है | कुछ लोगों का मानना है के बुरे होकर अच्छे काम करने वाला एक अच्छा इंसान होता है |

खैर उसके लिए हरेक व्यक्ति की अपनी अलग धारणा है | भारत  में लोकतंत्र चलता है | हरेक व्यक्ति को खुले मन से अपने विचार पेश करने की आज़ादी है |  

कुछ लोगों का जीवन इतना ग़ज़ब का होता है के हम उसके जीवन चरित्र से, उसके व्यवहार से प्रभावित होने से खुद को नहीं रोक पाते | इतने प्रभावी शख़्सियत   वाले इंसानों के जीवन के बारे में जानना आपके लिए भी जरूरी है | आज हम जिस इंसान के बारे में पढ़ेंगे वो कोई साहित्यकार नहीं थे और न ही उनका संगीत या किसी और कला से कोई रिश्ता था |.

उन्होंने न तो किताबें लिखी थी और न ही किसी भगवान की भक्ति में अपने जीवन को न्योछावर कर दिया था | इन सब गुणों के न होने से भी उस इंसान ने मुंबई जैसे शहर पर लगभग 30 साल राज किया | बड़े से बड़ा नेता उससे घबराता  था |

एक समय ऐसा भी आया था जब उस अकेले इंसान ने भारत के पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया था |  हम बात कर रहे हैं अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला की | 

बहुत से लोग पहले से ही इनको जानते होंगे , पर बहुत सरे लोग इनके बारे में नहीं जानते | आज हम आपको अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला के बारे में बताएंगे |

अब्दुल करीम शेख के करीम लाला बनने की कहानी Karim Lala Biography in Hindi

अफगानिस्तान का रहने वाले था करीम लाला

करीम लाला भारतीय नहीं थे बल्कि वो अफगानिस्तान के रहने वाले थे | उनका जन्म 1911 में अफगानिस्तान के कुनर जगह पर हुआ | वो एक अच्छे राजसी परिवार से संबंध रखते थे | इलाके में उनके परिवार का अच्छा रुतबा था | उनका असली नाम अब्दुल करीम शेख खान था |

अपने देश में उनका रुतबा ज्यादा देर तक कायम न रहा और हालत बदलने के साथ वो 1931 में अपने परिवार एक साथ मुंबई आ गए और यहां पर एक मुस्लिम इलाके में रहने लग गए | 

कहानी मुंबई का डॉन बनने की

करीम लाला  जब भारत आया तो उस समय देश आज़ाद नहीं हुआ था | वो पहले पाकिस्तान के पेशावर में ए और उसके बाद वो मुंबई आये | मुंबई में उन्होंने 3 – 4 साल काम किया | उनके अंदर ढेर सारा पैसा कमाने की लालसा थी | करीम लाला ने सबसे पहले मुंबई में अपना ठिकाना बनाया और ग्रांट रोड स्टेशन के पास एक घर किराये पर लिया और वही रहने लगा |

करीम लाला ने सबसे पहले अपने घर पर ही जुए  का अड्डा खोला और देखते ही देखते वहां लोग आने शुरू हो गए | यहीं से करीम लाला का सफर शुरू हुआ | 

जुए के अड्डे से करीम लाला को बहुत कमाई होने लगी और उसके अड्डे पर अक्स इलाके के छोटे मोटे बदमाश आया करते थे जिससे उनकी दोस्ती करीम लाला से हो गयी | जुए के अड्डे से लाला को जो भी कमाई होती वो उन पैसों को ब्याज पर दे देते | लोगों से ब्याज एक नाम पर मोटी रकम वसूली जाती और जो ब्याज देने से या रकम देने से मना करता तो अपने बदमाश दोस्तों को भेज कर वो पैसे वसूल करता |

और यही से उनका नाम अब्दुल करीम शेख खान से बदल कर करीम लाला हो गया |

जुए के अड्डे से मिलते पैसों से भी लाला की लालसा पूरी न हुई और उसने लगभग सारे मुस्लिम लोगों को इकक्ठा  करके अपनी एक गैंग बना ली जिसका नाम पठान गैंग रखा | करीम लाला ने अपने साथियों के साथ मिल कर सोने, शराब और हत्यारों की तस्करी भी शुरू कर दी, जिससे उसे कुछ ही समय में बहुत फायदा हुआ | और कुछ ही समय में करीम लाला और उसकी गैंग का क़ब्ज़ा पूरे मुंबई पर हो गया | 

करीम लाला की गैंग मुंबई की पहली गैंग थी | और करीम लाला ने ही मुंबई में अंडरवर्ल्ड की शुरुआत की |

करीम लाला का राज पूरे मुंबई पर हो गया था और अब वो अपना इलाका बढ़ाना चाहता था | उसने जितने भी गलत काम हो सकते थे वो सब किये | पुलिस वालों से बचने के लिए लाला अपनी कमाई में से कुछ हिस्सा पुलिस वालों को भी दे दिया करता था जिससे पुलिस वाले उसके काम में दख़ल नहीं देते थे | 

करीम लाला और राजनीति

करीम लाला राजनीति से दूर रहते थे | वो मानते थे के नेता होते , उनका लोग किसी के सगे नहीं होते और उनका कभी भरोसा नहीं किया जा सकता | अभी वो आपके साथ है और अगले ही पल आपके खिलाफ हो जाएंगे |

इसलिए वो खुद को राजनीति से दूर रखते थे | उनकी पहुंच इतनी ज्यादा थी के वो बड़े से बड़ा काम भी नेताओं को बीएस एक फोन करके करवा देते थे | और कई बार तो दो पार्टियों के बीच की लड़ाई भी वो खुद सुलझाया करते थे इन सबके बावजूद भी वो राजनीति से अपनी दूरी बना कर रखते थे |  

मुंबई के तीन हिस्से

1940 के समय तक करीम लाला एक नाम बन चुका था | हर आम खास व्यक्ति लाला को जनता था | यही वो दौर था जब मुंबई में 2 और लोग उभर कर आये | हाजी मस्तान और वरदराजन | हाजी मस्तान तस्करी करता था | पहले वो छोटी मोटी तस्करी ही करता था पर वो भी अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था |

मस्तान को पता था के करीम लाला के होते वो मुंबई में बड़े पैमाने पर अपना काम नहीं कर सकता इस लिए उसने करीम लाला के साथ मिल कर काम करने का सोचा और वरदराजन को भी ऐसा करने की सलाह दी क्योकि करीम लाला की ताकत उन दोनों से भी बढ़कर थी |  बड़ी  मछली से दुश्मनी करके वो खुद को खत्म नहीं करना चाहते थे |

उन तीनों ने समझौता किया और मुंबई को तीन हिस्सों में बाँट लिया | समुन्द्र वाला हिस्सा मस्तान के पास आया और बाकी के हिस्से करीम और वरदराजन कर पास |

जनता के लिए मसीहा

बेशक करीम लाला गलत काम करता था पर उसके अंदर इंसानियत कूट कुट कर भरी हुई थी | करीम लाला का रुतबा बहुत बढ़ गया था | उसकी एक खास बात थी के वो लोगों की बहुत मदद करता था | हर शाम उसके घर में भीड़ लग जाती थी |

लोग उसके पास अपनी मुश्किलें लेकर आते थे और करीम बिना किसी भेदभाव किये उनकी मुश्किलों का हल किया करता था | किसी जरूरत मंद को पैसे चाहिए , या किसी का झगड़ा हो गया हो , या पुलिस किसी की फर्याद न सुनती हो , ऐसी मुश्कलों का समाधान करीम लाला पलक झपकते कर देता था |

इब्राहीम ब्रदर्स और करीम लाला

तस्करी एक ऐसा धंधा था जिसे हर कोई करना चाहता था | क्योंकि बेशक इसमें जोखिम था पर पैसे खूब मिलते थे | मुंबई को पहले ही तीन भागों में बनता जा चुका था और सब लोग अपना काम शांति से कर रहे थे | लेकिन 1980 के समय मुंबई में इब्राहिम भाइयों ने अपना दबदबा कायम करना चाहा |

वो तस्करी में जल्दी से जल्दी आगे निकलना चाहते थे और मुंबई पर खुद का राज चाहते थे | उस समय हाजी मस्तान भी तस्करी का काम छोड़ चुका था और वो राजनीति में अपना हाथ आज़मा रहा था | करीम लाला और वरदराजन किसी भी तरह की लड़ाई नहीं कहते थे पर इसके बावजूद भी , इब्राहिम भाइयों ने करीम लाला के साथ लड़ाई शुरू की | उसके आदमियों को मरना शुरू किया और उसके माल को खुद हड़पना शुरू कर दिया |

दाऊद इब्राहिम और करीम लाला की दुश्मनी बढ़ती गयी |  दाऊद और उसका भाई शब्बीर , लाला के इलाके में तस्करी करते थे | इस बात का पता जब लाला को लगा तो पहले उसने दोनों भाइयों को समझाया , पर जब समझने से वो न समझे तो लाला ने दाऊद की पिटाई की |

लाला से  पिटाई खाने के बाद  दाऊद गुम हो गया और लगभग एक साल तक नज़र नहीं आया | दाऊद हमेशा चोरी छुपे लाला को मरने की स्कीम बनता था | 1981 में लाला के लोगों ने दाऊद के भाई शब्बीर को मार दिया | जिससे मुंबई में गैंगवार शुरू हो गयी | मुंबई में दिन धड़े गोलियां चलती , तलवारें चलती जिससे आम लोगों के बीच भी दहशत फ़ैल गयी | 

अपने भाई की मौत से दाऊद गुस्से से भर गया और उसने अपने भाई की मौत का बदला करीम लाला के भाई रहीम खान को मार कर लिया |. इसके बाद दाऊद ने करीम के बहुत सरे लोगों को मार दिया और जिससे करीम की गैंग कम हो गयी और दाऊद के सामने कमज़ोर हो गयी |

करीम लाला और गंगूबाई

एक बार करीम लाला के कुछ आदमियों ने गंगूबाई नाम की एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया | करीम लाला हर रोज एक सभा लगते थे जिसमे जरूरतमंद लोगों की मदद की जाती थी | उस सभा में गंगूबाई भी आई और उसने उसके साथ हुए दुष्कर्म कर बारे में बताया |

जिसे सुन कर लाला को धक्का लगा और उसने पूरी सभा में सबके सामने गंगूबाई से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी और उसे अपनी बहन बना लिया | करीम लाला ने गंगूबाई को कमाठीपुरा नाम की जगा थमा दी और पूरी बागडोर दे दी | इसके बाद गंगूबाई अंडरवर्ल्ड  की रानी के नाम से मशहूर हुई |

इंदिरा गाँधी से मुलाकात

करीम लाला को सिनेमा बहुत पसंद था | वो अक्सर ही सिनेमा से संबंधित कार्यक्रमों में जाया करते थे | 1973 में पद्मभूषण और पद्मविभूषण  पुरुस्कार दिए जाने थे | ये कार्यक्रम दिल्ली में हुआ था और सिनेमा के लिए ये पुरुस्कार हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय जी को दिया जाना था |

हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय जी के दिल्ली रवाना होने से पहले करीम लाला ने उन्हें अपने पास बुलाया और बोले के उन्होंने कभी राष्ट्रपति भवन नहीं देखा और उनकी इच्छा है के एक बार वो उसके दीदार जरूर करें | हरेन्दरनाथ जी करीम लाला को मना नहीं कर पाए और अपने साथ दिल्ली ले गए | 

पुरुस्कार समारोह खत्म होने के बाद उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी हरेन्दरनाथ जी से मिलने आई और उन्हें शुभकामना दी | तब करीम लाला ने अपनी पहचान करवाते हुए बताया के मैं एक पठान हूँ और पठान कौम के लिए काम करता हूँ | 

बीमारी से हुई करीम लाला की मृत्यु

करीम लाला ने अपने पूरे जीवन में बहुत गलत काम किये हैं | कितने ही लोगों को मारा और मरवाया है | और उसने अच्छे काम भी किये हैं | आम और जरूतमन्द लोगों की बहुत मदद की है | पर बुरे काम का नतीजा बुरे ही होता है | अंतिम दिनों में वो एक गंभीर बीमारी के शिकार हो गए और 19 फरवरी 2002 को उनकी मृत्यु हो गयी |

हाजी मस्तान के अनुसार करीम लाला 6 फुट लम्बा और रोबदार शरीर वाला इंसान था | बेशक उसने मुंबई पर बहुत समय तक राज किया पर मुंबई का असली डॉन करीम लाला ही था | करीम लाला के समय मुंबई में कोई भी खून ख़राबा नहीं हुआ , परन्तु जब दूसरे लोग जबर्दस्ती इस धंदे में आये तबसे मुंबई की हवा बदल गयी थी |

बुरा काम बुरा ही होता है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता के आप जो काम कर रहे हैं वो कम बुरा है या ज्यादा | बुराई , बुराई ही होती है और बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है |  हम कितने ही पुण्य कर लें परन्तु एक पाप सभी पुण्यों को पीछे धकेल देता है |

हम जो भी कर रहे हैं , उसे करने से पहले एक बार जरुर सोचना होगा के इससे समाज पर क्या असर पड़ेगा , आम लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा | कोई भी काम अपने स्वार्थ के लिए नहीं करना चाहिए | 

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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