करतारपुर साहिब का इतिहास

करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नरोवाल जिले में है | नरोवाल से कुछ दूरी पर है एक छोटा सा गाँव है करतारपुर |

करतारपुर में बना ये गुरद्वारा सिखों के लिए बहुत अहम है | जिस तरह मुसलमानो के लिए मक्का की अहमियत है उसी तरह से सिखों के लिए इस गुरद्वारे की भी बड़ी अहमियत है |

क्यूंकी इस गुरूद्वारे की नीव first Sikh Guru श्री गुरु नानक देव जी के द्वारा ही रखी गई थी | या आप कह सकते हैं कि ये पहले गुरु का घर था क्यूंकी गुरुद्वारा का अर्थ भी गुरु का द्वारा ही होता है |

पाकिस्तान में चला गया करतारपुर

Kartarpur Sahib Pakistan History in Hindi

करतारपुर रावी नदी के किनारे बसा है | आज़ादी से पहले ये भारत का हिस्सा था और गुरदासपुर जिले में ही आता था | लेकिन आज़ादी के समय जो बँटवारा हुआ उसने सिखों से बहुत कुछ छीन लिया | उनके अपने उनसे बिछड़ गए और पंजाब के टुकड़े हो गए |

इसके साथ ही Kartarpur Sahib भी Pakistan में चला गया | हालाँकि ये बँटवारा हिंदू बहुल भारत और मुस्लिम बहुल पाकिस्तान का बँटवारा था लेकिन इसमें सिखों को बहुत ज़्यादा दुखों का सामना करना पड़ा |

ज़्यादातर सिख हिन्दुस्तान में आना चाहते थे तो कुछ पाकिस्तान में भी रहना चाहते थे | क्यूंकि जिस जगह पर वो सालों से रह रहे थे वो उसे अपने घर को छोड़ना नहीं चाहते थे |

भारत हमेशा से ही सभी धर्मों का सम्मान करने की संस्कृति को अपने में संजोने वाला देश है | हालाँकि आज कुछ पार्टियों ने देश में भाईचारे को कमजोर करने के लिए पूरी ताक़त लगा रखी है |

करतारपुर बँटवारे के समय Pakistan में चला गया लेकिन सिखों की आस्था इस जगह के लिए कभी कम नही हुई|

जिसका कारण था कि यहाँ पर Shri Guru Nanak Dev Ji जी ने अपने जीवन का बहुत सा समय बिताया था |

गुरु नानक देव ने बिताया आखिरी समय

गुरु नानक देव जी का जन्म 29 नवम्बर 1469 को लाहौर के पास तलवंडी में हुआ था | जो कि आज का ननकाना साहिब, पंजाब पाकिस्तान है |

कहते हैं कि 1522 में श्री गुरु नानक देव जी 28000 किलोमीटर की अपनी 5 बड़ी पैदल यात्राएँ पूरी करने के बाद इस जगह आकर रहने लगे थे |

उनके आने के बाद उनका परिवार भी उनके साथ इसी जगह पर रहने लगा था | श्री गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 17-18 साल इसी जगह पर बिताए थे |

जब गुरु नानक देव जी इस जगह पर रहने के लिए आए थे तो उस समय गवर्नर दुनी चंद ने गुरु नानक देव जी को 100 एकड़ ज़मीन गुरु घर के लिए दे दी थी |

इसी जगह पर गुरु नानक देव जी ने खेती बड़ी करनी शुरू कर दी | यहीं से पहली बार उन्होने लंगर की शुरुवात की थी |

कहा जाता है कि श्री गुरु नानक देव जी ने इसी जगह पर अपने तीन मुख्य उपदेश दिए थे |

  • नाम जपो
  • कीर्त करो
  • वंड छको

नाम जपो का अर्थ है – नाम का जाप करें | झूठे आडम्बरों से दूर रहे | समय समय पर आए बहुत से संतों ने ऐसे ही उपदेश दिए हैं फिर चाहे वो गौतम बुध हो या कबीर दास जी |

कीर्त करो – अर्थात मेहनत की कमाई करके खाओ | झूठ और बेईमानी से कमाया धन कभी भी सुख और शांति नही दे सकता |

वंड छको – अर्थात जो भी खाओ मिल बाँट कर खाओ |

इसी जगह पर श्री गुरु नानक देव जी ने गुरु अंगद देव जी को गुरु गद्दी सौंपी थी |

हिंदू और मुसलमानों ने अंतिम विदाई

कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी समाधि लेने के बाद अलोप हो गये थे और किसी को भी उनका शरीर नही मिला था |

जहाँ पर उन्होने समाधि ली थी वहाँ पर कुछ फूल मिले थे | इन फूलों में से आधे फूल हिंदुओं और सिखों ने ले लिए तो आधे मुसलमानो ने |

सिखों ने जो फूल लिए थे उनका हिंदू रीति रिवाजों से अंतिम संस्कार किया गया और जो फूल मुसलमानो ने लिए थे उनको मुस्लिम रीति रिवाजो से दफ़ना कर Guru Nanak Dev Ji को विदाई दी |

गुरु नानक हिंदू मुस्लिम हर धर्म के गुरु थे वो सभी को एक ईश्वर की संतान मानते थे | इसलिए हिंदू और मुस्लिम दोनो धर्मों में उनके अनुयायी थे |

kartarpur Sahib के गुरुद्वारे में आज भी हिन्दुओं और सिखों के द्वारा बनाई गयी समाधि गुरुद्वारे के अंदर और मुसलमानो के द्वारा बनाई गयी समाधि गुरुद्वारे के बाहर है|

गुरद्वारे के लंगर में मुसलमान भी देते हैं सहयोग

गुरु नानक देव जी के द्वारा जिस इमारत को यहाँ बनवाया गया था वो रावी की बाढ़ में तबाह हो गयी थी | भारत पाक बटवारे के बाद तो ये गुरद्वारा बिल्कुल वीरान हो गया था | कुछ लोगों की माने तो ये जगह तस्करों का अड्डा तक बन गयी थी |

लेकिन धीरे धीरे बाबा नानक को मानने वाले मुसलमानो ने यहाँ आना शुरू किया और 2001 में यहाँ गुरुद्वारे की नयी इमारत बनकर तैयार हुई |

इस गुरद्वारे के लिए आस पास के मुसलमान चंदा इकट्ठा करते हैं और कहते हैं कि पाकिस्तान की आर्मी भी यहाँ लंगर के लिए लकड़ियां देती है | 2001 से फिर से यहाँ लुंगर शुरू हुआ था |

वाहिगुरू का चमत्कार

इस गुरद्वारे में एक बम को चबूतरे में मढ़कर रखा गया है | कहते हैं कि 1965 की लड़ाई के वक़्त ये बम गुरद्वारे के पास गिरा था लेकिन फूटा नही |

अब जिस चबूतरे में बम को रखा गया है उस पर लिखा है वहिगुरू जी का चमत्कार |

करतारपुर कॉरिडोर हुआ तैयार

लंबे समय से चली आ रही सिखों की बिना वीज़ा के करतारपुर दर्शन की माँग अब पूरी हो चुकी है | गुरु नानक जी के 550 वें प्रकाश उत्सव के मौके पर अब सिख संगत के लिए इस गुरूद्वारे में जाने के लिए Kartarpur Corridor खोल दिया जाएगा |

इससे श्रद्धालु बिना किसी वीज़ा के भारत से करतारपुर जाकर शाम तक वापिस भारत आ सकते हैं |

इस कॉरिडोर की लम्बाई 4.1 किलोमीटर है जो कि पाकिस्तान में स्थित करतारपुर साहिब को भारत में पंजाब के गुरदासपुर में स्थित डेरा बाबा नानक तीर्थ स्थल से जोड़ेगा |

इस कॉरिडर के बनने से पहले भारत में सिख श्रद्धालु दूरबीन के माध्यम से इस गुरुद्वारे के दर्शन करते थे | क्यूंकी ये गुरद्वारा भारत की सीमा से 3 से 4 किलोमीटर की ही दूरी पर है |

बी एस फ ने सीमा पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक दर्शन स्थल भी बना रखा है ताकि संगत को दर्शन करने में दिक्कत ना हो |

बहरहाल भारत और पाकिस्तान के बीच ये कॉरिडर अब बन कर तैयार है और हर रोज 5000 श्रद्धालु दर्शन के लिए जा सकते हैं |

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Mohan

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