भारत के इतिहास में राजा पोरस को एक ऐसे राजा के रूप में याद किया जाता है जिसने सिकंदर जैसे ताक़तवर शख्स को टक्कर दी थी |
भारत में लोग उसे सिकंदर से महान और ज़्यादा बड़ा योद्धा मानते हैं |
सिकंदर पूरी दूनिया को जीतकर विश्व विजेता बनना चाहता था लेकिन कहते हैं कि पोरस ने उसके विजयअभियान को रोक दिया था |
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इस बारे में विदेशी इतिहासकारों का तो यही मानना है की सिकंदर ने पोरस को युद्ध में हरा दिया था और सिकंदर पोरस की बहादुरी से बहुत खुश हुआ था |
लेकिन भारत में लोग इस तथ्य को मानने के लिए कभी तैयार नही हुए, क्यूंकी पोरस से युद्ध के बाद सिकंदर वापिस अपने देश लौटना चाहता था और रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई थी |
भारत में कुछ लोगो ये तर्क भी देते हैं कि अगर सिकंदर जीता था तो वो वापिस क्यूँ लौटना चाहता था | लेकिन इतिहास के अनुसार युद्ध में सिकदंर ने पोरस पर विजय हासिल कर ली थी |
आज हम आपको राजा पोरस के इतिहास के बारे में बताएँगे और सिकंदर और पोरस के बीच में हुए युद्ध का क्या प्रिणाम निकला था ये भी आपको बताएँगे |
सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध
पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस या पुरुवास का राज्य था |
राजा पोरस पोरवा के वशंज थे |
बी बी सी हिन्दी की एक रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर डीपी दुबे कहते हैं
पोरस और सिकंदर के बीच हुए युद्ध में पोरस की हार हुई थी |
सिकंदर के पास 50 हज़ार की सेना थी जबकि पोरस के पास केवल 20 हज़ार सैनिक थे |
लेकिन पोरस ने इस युद्ध में अपने हाथियों को सिकंदर की सेना के सामने उतार दिया था जिससे सिकंदर दंग रह गया था |
इस युद्ध में सिकंदर को भारी नुकसान उठाना पड़ा था |
सिकदंर और पोरस के बीच युद्ध में पोरस की हार हुई थी जिसे भारतीय इतिहासकार मानते हैं लेकिन कुछ लोग भारत और इसके शासकों के प्रति प्रेम की वजह से इस बात को मानने को तैयार ही नहीं हैं |
हार के बाद जब पोरस को सिकंदर के सामने लाया गया तो सिकंदर ने पोरस से पूछा की उसके साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए |
इस पर पोरस ने जवाब दिया था कि वैसे ही बर्ताव करना चाहिए जैसा एक शासक दूसरे शासक के साथ करता है |
पोरस के आत्मविश्वास और निडरता से भरे इस जवाब से सिकंदर बहुत प्रभावित हुआ |
युद्ध में मिली कड़ी टक्कर से वो समझ गया कि पोरस एक शक्तिशाली और निडर योद्धा है |
इसलिए वो पोरस को अपने साथ मिलना चाहता था |
इसलिए सिकंदर ने पोरस के साथ संधि कर ली थी |
इस संधि के अनुसार पोरस को आगे के युद्ध अभियानो में सिकंदर का साथ देना था |
यहाँ पर आकर पोरस की देशभक्ति पर सवाल उठते हैं |
लेकिन देशभक्ति के बारे में बात करने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि उस वक़्त भारत एक देश नही था बल्कि यहाँ छोटे छोटे राज्य थे | फिर भी ये सभी राज्य खुद को एक और किसी भी राज्य पर बाहर से आक्रमण करने वाली को विदेशी मानते थे |
हालाँकि ये सभी राज्य आपस में लड़ते रहते थे |
इसलिए पोरस को देशभक्ति के पैमाने पर तोलना सही नही है क्यूंकी पोरस ने अपने राज्य के लिए ही सिकंदर से संधि की थी |
आचार्य चाणक्य को भी बहुत से सीरियल्स में देशभकत बताया जाता है लेकिन असल में अपने अपमान का बदला लेना ही उनका एकमात्र लक्ष्य था |
सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध के बाद सिकंदर की विश्वव विजेता बनने की इच्छा अधूरी रह गयी थी |
कहते हैं कि पोरस के साथ युद्ध के बाद सिकदंर की सेना बहुत अधिक थक गयी थी और उसकी सेना का मनोबल टूटने लगा था |
इस बात से सिकंदर भी चिंतित था इसलिए उसने वापिस लौटना बेहतर समझा |
सिकंदर ने आगे के युध अभियान की ज़िम्मेदारी जनरल नियाज़ को सौंप दी थी |
पोरस की मृत्यु
कुछ इतिहासकार इस बारे में ये भी बताते हैं कि सिकंदर के सबसे प्रिय सेनानायक यूडोमोस ने राजा पोरस को मार डाला था |
राजा पोरस की मृत्यु के बारे में कुछ लोगों की ये भी टिप्पणी रही है की चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रिय आचार्य चाणक्य ने राजा पोरस की हत्या करवा दी थी |