
महाराजा दिलीप सिंह सिख राज के अंतिम महाराजा थे | वो सिख साम्राज्य को सबसे समृद्ध बनाने वाले महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे थे |
दलीप सिंह को दुलीप सिंह के अलावा “द ब्लैक प्रिन्स” के नाम से भी जाना जाता है |
क्यूंकी दलीप सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म द ब्लैक प्रिन्स 2017 में रिलीज़ हो चुकी है | इस फिल्म में पंजाबी गायक सतिंदर सरताज ने महाराजा दलीप सिंह की भूमिका निभाई है |
महाराजा दलीप सिंह को बहुत ही छोटी सी आयु में सिख राज का भार अपने कंधों पर उठाना पड़ा था हालाँकि शासन को चलाने का पूरा काम उनकी मा जींद कौर और उनके चाचा के पास था |
चलिए जानते हैं कैसे महाराजा दलीप सिंह को अंग्रेज अपने साथ ले गये, क़्वीन विक्टोरीया और दलीप सिंह की कहानी और कैसे बड़ा होने के बाद उन्होने फिर से सिख राज को जिंदा करने की कोशिश की थी |
दलीप सिंह का जन्म 6 सितंबर 1838 को लाहौर में हुआ था | उनके जन्म के एक साल के भीतर ही उनके पिता महाराजा दलीप सिंह की मृत्यु हो गई |
महाराजा दलीप सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में अशांति फैल गई | महाराजा रंजीत सिंह जब तक जीवित थे तब तक किसी की हिम्मत नहीं हुई थी कि वो पंजाब की ओर आँख उठा कर देखे |
लेकिन महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद सब बदल गया | जब दलीप सिंह सिर्फ़ 5 वर्ष के थे तो उन्हें महाराजा की गद्दी सौंप दी गई | रंजीत सिंह के बाद पंजाब बहुत कमजोर हो चुका था जिसकी तलाश लंबे समय से अँग्रेज़ों को थी |
1845 में दूसरे एंग्लो सिख वॉर के बाद 1849 में उन्हें राजगद्दी से हटा दिया गया और पंजाब को अँग्रेज़ों ने अपने कब्ज़े में ले लिया |
अपनाना पड़ा इसाई धर्म
पंजाब पर कब्जा करने के बाद अँग्रेज़ों ने एक नयी चाल चली | उन्होने दलीप सिंह की माँ को क़ैद कर लिया और दलीप सिंह को उनसे अलग कर दिया |
सबसे पहले उन्हें फतेहगढ़ ले जाया गया जो कि अब उत्तर प्रदेश में है | फतेहगढ़ में ब्रितानी अधिकारियों के परिवार रहते थे | दलीप सिंह को भी इसी जगह आर्मी के सर्जन जॉन स्पेंसर लोगन और उनकी पत्नी के पास रखा गया |
उनका पालन पोषण किसी अंग्रेज परिवार के बच्चे की तरह से ही किया गया | इतनी छोटी उम्र में दलीप सिंह को पता ही नही चला कि कब उन्होने अँग्रेज़ों की तरह से रहना सीख लिया था |
उन्हें उनके धर्म, भाषा और संस्कृति से दूर कर दिया गया था | 1854 में दलीप सिंह इंग्लेंड पहुँचे जहाँ वो क़्वीन विक्टोरीया से मिले |
उन्हें इंग्लेंड ले जाने के पीछे अँग्रेज़ों का मकसद था की वो अपने राज्ये को पाने के फिर से संघर्ष ना करे और इंग्लेंड जाकर उनकी संस्कृति को पूरी तरह से अपना लें |
अब दलीप सिंह एक ईसाई बन चुके थे |
क़्वीन विक्टोरीया को दलीप सिंह बेहद आकर्षक लगे वो उनसे अपने बेटे की तरह से ही व्यवहार करती थी | वो उन्हें अपने पास रखती और राजघराने की पार्टियों में वो हमेशा नज़र आते थे |
दलीप सिंह का रंग इंग्लेंड के गोरों से थोड़ा अलग था इसलिए रानी उन्हें प्यार से द ब्लैक प्रिन्स कह कर बुलाती थी | महाराजा दुलीप सिंह जब इंग्लेंड पहुँचे थे तो उनके खजाने की दो बेशक़ीमती चीज़ें उनसे बहुत पहले वहाँ पहुँच गइ थी |
वो चीज़ें थी कोहिनूर हीरा और महाराजा रंजीत सिंह का सोने का सिंहासन | हालाँकि कोहिनूर हीरा पहले से ही रानी के पास था क्यूंकी एंग्लो सिख वॉर में हारने के बाद संधि की शर्तों के तहत इसे अँग्रेज़ों को दे दिया गया था |
लेकिन इंग्लेंड में रहते हुआ महाराजा दलीप सिंह इसे आधिकारिक रूप से क़्वीन विक्टोरीया को गिफ्ट दिया था | महाराजा रणजीत के पास कोहिनूर हीरा कहाँ से आया और कोहिनूर हीरे का इतिहास जरूर पढ़ें |
इंग्लेंड में कई वर्षों तक रहने के बाद दलीप सिंह पंजाब और सिख धर्म को पूरी तरह भूल चुके थे | धीरे धीरे वो अँग्रेज़ों के साथ रहते रहते पूरी तरह से एक अंग्रेज की तरह से लगने लगे थे |
लेकिन वो अपनी माँ को नहीं भूले थे | वो उनसे मिलना चाहते थे, इसलिए उन्होने अँग्रेज़ों के सामने अपनी माँ से मिलने की इच्छा जाहिर की |
माँ ने याद दिलाया गौरवमयी इतिहास
दलीप सिंह को इंग्लेंड में रहते हुए और अपनी माँ से बिछड़े हुए 13 साल हो चुके थे | उस समय उनकी मा नेपाल में थी और वो इंग्लेंड में थे | अँग्रेज़ों को लगा की उन्हें अपनी मा से मिलाने में उन्हें कोई ख़तरा नहीं है इसलिए उन्हें उनकी मा से मिलने की इजाज़त दे दी गई |
दलीप सिंह की मुलाकात उनकी मा जिंद कौर के साथ कोलकाता में करवाई गयी | जब दलीप सिंह अपनी मा के सामने पहुँचे तो वो अँग्रेज़ों की वेशभूषा पहने हुए थे |
उन्हें इस तरह से देखकर उनकी मा बहुत नाराज़ हुई और दलीप सिंह को बताया कि वो महाराजा रंजीत सिंह के बेटे हैं | जिनकी बहादुरी और कौशल की मिशाल पूरे विश्व में दी जाती है |
उनकी मा चाहती थी कि वो अपने पिता महाराजा रंजीत सिंह जैसे बने और पंजाब को अँग्रेज़ों की क़ैद से आज़ाद करवायें |
अपनी मा से अपने पिता, अपने राज्य के बारे में सुनकर दलीप सिंह ने फिर से सिख धर्म को अपना लिया और पंजाब को हासिल करने की कोशिशों में लग गये |
अपने बेटे से मिलने के दो साल बाद महारानी जिंद कौर चल बसी और दलीप सिंह वापिस इंग्लेंड आ गये थे |
दलीप सिंह का परिवार
इंग्लेंड में दलीप सिंह ने दो शादियाँ की थी | पहली शादी से दलीप सिंह के 6 बच्चे हुए थे और दूसरी शादी से 2 बच्चे | इन 8 बच्चों में से 4 की बिना किसी खास वजह से मृत्यु हो गई थी |
जिस कारण लोगों को शक़ होता है की महाराजा के वंश को आगे बढ़ने से रोकने में भी अँग्रेज़ों का हाथ था | हालाँकि इसमें कितनी सच्चाई है इसके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता |
बेन्स नाम के लंदन के एक राइटर ने अपनी किताब में दावा किया था की रानी विक्टोरीया ने दलीप सिंह के सबसे बड़े बेटे प्रिन्स विक्टर आल्बर्ट जे की पत्नी को निर्देश दिया था की उन्हें दलीप सिंह के वंश को आगे नहीं बढ़ाना है |
पीटर बेन्स की किताब (Sovereign, Squire & Rebel: Maharajah Duleep Singh & the Heirs of a Lost Kingdom) में ये दावा भी किया दलीप सिंह के वंशजों को ऐसी दवाएं तक दी गइ जिनसे उनका वंश आगे नहीं बढ़े |
ये सभी दावे बहुत ही अजीब थे लेकिन बेन्स कहते हैं ये बड़ा ही अजीब था की दलीप सिंह के 8 बच्चे होने के बाद भी उनका कोई ग्रैंडचिल्ड्रन नही था |
पंजाब को वापिस पाने का संघर्ष
जब दलीप सिंह अपनी मा से मिलने के बाद वापिस इंग्लेंड पहुँचे तो उन्होने अपने परिवार के साथ भारत लौटने का फ़ैसला लिया |
दलीप सिंह ने अपने इस निर्णय के बारे में अँग्रेज़ी हुकूमत को जानकारी दे दी थी | जिसे सुनकर अँग्रेज़ों को डर सताने लगा कि अगर दलीप सिंह वापिस पंजाब की धरती पर पहुँचेंगे तो पंजाब में उनके खिलाफ एक माहोल बन सकता है |
इस लिए अँग्रेज़ों ने दलीप सिंह को नज़रबंद कर दिया | जिसके बाद दलीप सिंह पानी के जहाज़ के ज़रिए भारत की और बढ़ने लगे | लेकिन अँग्रेज़ों को इसकी भनक लग गइ और जब उनका जहाज एडेन नामक जगह पर रुका तो दलीप सिंह और उनके परिवार को पकड़ लिया गया |
इसके बाद दलीप सिंह के परिवार को वापिस इंग्लेंड भेज दिया गया लेकिन दलीप सिंह को नज़रबंद कर दिया गया |
पेरिस में ली आख़िरी साँस
दलीप सिंह अँग्रेज़ों की नज़रबंदी में थे लेकिन उनके दिमाग़ में भारत लौटने की इच्छा बनी हुई थी | उन्होने क़ैद से निकलने की बहुत कोशिश की पर वो उसमें सफल नहीं हो पाए |
ये भी कहा जाता है की पंजाब में अपनी हुकूमत को वापिस पाने के लिए उन्होने रूस से भी संपर्क किया था | दलीप सिंह का आख़िरी समय पेरिस के होटल में बिता जहाँ उन्होने आख़िरी साँसें ली |
उनके मरने के बाद उनके शरीर को इंग्लेंड में ही ईसाई रीति रिवाजों के साथ सेंट एंड्यूज एंड सेंट पैट्रिक चर्च में दफ़ना दिया गया |
हालाँकि उन्होने सिख धर्म को वापिस अपना लिया था और इतिहासकारों के अनुसार उनकी आख़िरी इच्छा थी उनके शरीर को वापिस भारत भेज दिया जाए |
अँग्रेज़ों ने दलीप सिंह पर अपना हक़ जमाए रखने के लिए ईसाई रीति रिवाजों से उनकी अंतिम क्रियाएं की | साथ ही उन्हें डर था की अगर उनकी लाश को पंजाब ले जाया गया तो इससे भी उनके खिलाफ विद्रोह हो सकता है |
सिख राज के अंतिम शासक दलीप सिंह के अवशेष ब्रिटेन से भारत लाने की माँग संसद में भी उठ चुकी है |