किसानों के मसीहा बाबा टिकैत

Mahendra Singh Tikait Biography in Hindi – 32 साल पहले 1988 में किसानो का एक आंदोलन दिल्ली ने देखा था | उस आंदोलन को महेंद्र सिंह टिकैत लीड कर रहे थे |

उस आंदोलन ने दिल्ली सरकार को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था और पूरी दिल्ली में किसानो की बेल गाड़िया और पशु नज़र आने लगे थे |

फ़र्क बस इतना था की उस समय केंद्र में राजीव गाँधी की सरकार थी और आज नरेंदर मोदी की सरकार है |

इस लेख में हम आपको महेंद्र सिंह टिकैत और उनके उस आंदोलन के बारे में बताएँगे | आइये जानते हैं Mahendra Singh Tikait Biography in Hindi

महेंद्र सिंह टिकैत किसानो के नेता थे और उनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई लेना देना नहीं था | वो किसानो के बीच में से ही उभरे थे और किसानो से जुड़े मुद्दों पर बिल्कुल ठेठ देसी तरीके से अपनी बात रखा करते थे |

किसानो में महेंद्र सिंह टिकैत बाबा टिकैत के नाम से जाने जाते थे |

मेरठ का धरना Mahendra Singh Tikait’s Meerut Protest

उनका जन्म 1935 में मुज़फ्फरनगर के सिसोली गाँव में हुआ था | वो सबसे पहले उस समय चर्चा में आए जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के कर्नूखेड़ी गाँव में बिजली की समया को लेकर उन्होने मेरठ में धरना शुरू किया |

Mahendra Singh Tikait Biography in Hindi
Mahendra Singh Tikait Biography in Hindi

मेरठ में उनका ये धरना 24 दिनों तक चला और इस धरने ने उन्हें पूरे भारत में एक बड़े नेता के रूप में उभारा | शांतिपूर्ण ढंग से किसानो का धरना 24 दिन तक चलता रहा लेकिन सरकार के कानो पर जूँ तक नहीं रेंगी |

सरकार इस तरह से दिखाने की कोशिश करती रही थी कि उन्हें इस सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता | लेकिन सच ये था की इस आंदोलन से राज्य और केंद्र की सरकारें बुरी तरह भयभीत हो गई थी |

मेरठ के घेराव से किसानो को एकजुट होने का मौका भी मिल गया और किसानो का संगठन बहुत मजबूत हो गया | इस आंदोलन की सबसे खास बात ये रही की किसानो को एक नेता मिल गया जिसका नाम था महेंद्र सिंह टिकैत |

टिकैत ने इस आंदोलन को अहिंसक बनाए रखा और बड़ी संख्या में किसान उनसे जुड़ने लगे थे | मेरठ का वो धरना 24 दिनों बाद टिकैत ने खुद ही ख़तम कर दिया |

जिस पर बहुत से स्वाल उठे पर टिकैत को समझ आ गया था कि सरकार को शांतिपूर्ण आंदोलन की ताक़त के दम पर हिलाया जा सकता है |

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हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर

राजनीतिक पार्टियों की कोशिश रहती हैं लोगों को धर्म जाती में बाँट दिया जाए | आज के समय में इंटरनेट इस जहर को फैलने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है |

पर एक समय था जब टिकैत जैसे नेता इस एकता को बनाए रखने में कामयाब रहे | टिकैत के विरोधी भारतीय किसान यूनियन को जाटों का एक संगठन बताते रहे हैं लेकिन वास्तव में टिकेट ने सभी जातियों और धर्मों को साथ लिया है |

मेरठ के धरने से पहले कर्मूखेड़ी बिजलीघर पर हुए पुलिस गोलीकांड में दो नौजवानों जयपाल और अकबर की मौत हो गई थी |

भारतीय किसान यूनियन हिंदू मुस्लिम एकता में विश्वास रखती थी | इसलिए टिकैत के नेतृत्व में किसान पंचायतों की अध्यक्षता सरपंच एनुद्दीन करते थे और मंच संचालन का काम गुलाम मोहम्मद जौला संभाला करते थे |

मेरठ में 1987 में बहुत दंगे हुए, पर टिकैत ने उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में हिंदू मुस्लिम एकता को टूटने नहीं दिया |

मुज़फ्फरनगर के भोपा इलाक़े में एक मुस्लिम युवती को न्याए दिलाने के लिए भी बाबा टिकैत ने आंदोलन चलाया था जिससे पता चलता है की वो हिंदू मुस्लिम एकता में विश्वास रखते थे |

अपने देसी अंदाज़ के लिए जाने जाते थे Mahendra Singh Tikait Desi Style

एक बार महेंद्र सिंह टिकैत प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा से लखनऊ में किसानो पर मुलायम सिंह यादव की सरकार की ज़्यादत्ती का मसला रखने के लिए मिले |

पी वी नरसिम्हा की सरकार में हर्षद मेहता कांड हुआ था | इस कांड की वजह से सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी |

जब चौधरी साहब प्रधानमंत्री से मिले तो उन्होने अपनी समस्या रखने के बाद प्रधानमंत्री से सीधा पूछ लिया क्या आपने हर्षद मेहता प्रकरण में एक करोड़ रुपया लिया था |

उन्होने प्रधानमंत्री से ये भी कहा की वो आदमी 5 हज़ार करोड़ का घपला करके बैठा है | साथ ही सरकार के बहुत से मंत्री भी इस घपले में शामिल हैं | सरकार उनसे कुछ वसूली नहीं कर पा रही लेकिन किसानो को सिर्फ़ 200 रूपए की वसूली के लिए जेलों में भेजा जा रहा है |

दिल्ली का धरना Mahendra Singh Tikait Delhi Protest

इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानो की माँगों को लेकर एक और बड़ा आंदोलन किया | इस आंदोलन के लिए दिल्ली के बोट क्लब को चुना गया |

25 अक्टूबर 1988 को टिकेट के नेतृत्व में किसान दिल्ली के बोट क्लब पर इकट्ठा होना शुरू हो गये | किसानो को रोकने के लिए उस वक़्त की राजीव गाँधी सरकार ने हर संभव कोशिश की |

यहाँ तक की किसानो को रोकने के लिए पुलिस ने फाइरिंग भी कर दी | लोनी बॉर्डर पर हुई फाइरिंग में दो किसानो की मौत हो गइ | पर इसके बाद भी किसानों के आंदोलन की धार कम नहीं हुई और लगातार पुर देश के किसान दिल्ली की और बढ़ते रहे |

बहुत बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के बोट क्लब पर इकाता हो गये | बोट क्लब पर उस समय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि मनाई जानी थी | लेकिन बोट क्लब पर तो किसान अपनी बेल गाड़ियों के साथ जमा हो गये थे |

दिल्ली में विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक किसान की बेल गाड़ियाँ और ट्रेक्टर ट्रॉलियां ही नज़र आ रही थी | किसानो का वो धारणा सिर्फ़ 7 दिन चला था लेकिन सिर्फ़ 7 दिन में ही केंद्र की सरकार घुटनो पर आ गइ थी |

कहा जाता है की टिकेट के उस आंदोलन में लगभग 5 लाख किसान पुर देश से शामिल हुए थे |

ये वो दौर था जब इंटरनेट से चीज़ों को जन जन तक नहीं पहुँचाया जा सकता था और ना ही आज की तरह 24*7 काम करने वाले मीडीया चैनल्स थे | फिर भी टिकेट के एक आहवान पर लाखों किसान दिल्ली में जमा हो गये |

जब किसानो और सरकार के बीच बात नहीं बन पाई तो 30 अक्टूबर 1988 की रात को किसानो पर लाठीचार्ज कर दिया गया |

किसानो पर लाठी चार्ज किए जाने पर टिकेट ने कहा था

प्रधानमंत्री ने दुश्मन जैसा व्यवहार किया है। किसानों की नाराजगी उन्हें सस्ती नहीं पड़ेगी।

महेंद्र सिंह टिकैत

सरकार की लाठियाँ खाने के बाद भी किसान डंटे रहे और सरकार को माँगे मानने का आश्वासन देना पड़ा | उसके बाद 31 अक्टूबर 1988 को किसानो ने अपना धरना ख़तम कर दिया |

राजनीतिक गलियारों में थी अलग पहचान

महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानो की आवाज़ को उठाया और राजनीतिक दलों में अपनी पेठ बनाई | लेकिन उन्होने कभी अपना राजनीतिक दल नहीं बनाया |

हालाँकि उन्होने जनता दल के प्रत्याशी मुफ़्ती मोहम्मद सईद को समर्थन दिया जिसके बाद वो लोकसभा के सदस्य बने |

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों के खिलाफ उनका संघर्ष चलता रहा | जिनमें मायावती से उनकी तल्खी बनी रही और नौबत यहाँ तक आ गइ की मायावती ने उनके खिलाफ अनुसूचित जाति उत्पीड़न क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज करवा दिया |

यही नहीं मुलायम सिंह के साथ भी उन्होने संघर्ष किया और जब 1990 में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्होने टिकैत को गिरफ्तार करवा दिया | मुलायम सिंह को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की उनकी गिरफ्तारी के विरोध में 67 विधयाक इस्तीफ़ा दे देंगे |

महेंद्र सिंह टिकैत, चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवी लाल की तरह से किसानो के एक लोकप्रिय नेता के रूप में हमेशा जाने जाते रहेंगे | कुछ लोग उन्हें जाटों का नेता कह सकते हैं लेकिन वो खेती किसानी से जुड़े हर इंसान के नेता थे |

Mohan

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