राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी

अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी।  आँचल में है दूध और आँखों में पानी। ।

जब भी हम देश भक्ति की बात करते हैं या जब भी हमारे मन में देश की आज़ादी का ख्याल अत है तो हमारे सामने उन शूरवीर योद्धाओं की छवियाँ आ जाती हैं जिन्होंने सीना तान कर अंग्रेज़ों का सामना किया और बिना किसी डर के हिचकिचाहट के या बिना किसी स्वार्थ के आने जीवन को देश के लिए समर्पित कर दिया।

परन्तु उन देश भक्तों में ऐसे नाम भी शामिल है जिन्होंने अपनी कलम की मदद से ही अंग्रेज़ों का मुकाबला किया और लोगों के अंदर जोश भर दिया।  कलम को ही हथ्यार बनाया और लोगों को जागरूक किया। 

maithili sharan gupt biography in hindi
Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

हम बात करे रहे हैं एक ऐसे कवि , रचनाकार की जिसने बहुत छोटी उम्र में ही अनेकों ही भाषाओं का ज्ञान प्राप्त  कर लिया था और जवानी में आते आते वो एक सम्पन्न कवि या रचनाकार बन गए थे थे और अपने समय के साहित्यकारों में अपनी एक अलग पहचान बना चुके थे। 

हम बात कर रहे है भारत के प्रसिद्ध कवि की जिनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम कूट कूट कर भरा हुआ है। हम बात कर रहे हैं मैथिलीशरण गुप्त जी की 

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म और शिक्षा Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

गुप्त जी का जन्म झाँसी के चिरगाँव के एक प्रसिद्ध कवि , साहित्यकार और एक भागवत भक्त  सेठ राम चरण जी के घर  3 अगस्त 1866 को हुआ था। 

सेठ राम चरण अपने इलाके के पहुंचे हुए विद्वान थे। वो वैष्णव को मैंने वाले थे और हमेशा भगवान का सिमरन किया करते थे। इनकी धर्म पत्नी कौशल्याबाई भी वैष्णव धर्म को मैंने वाली स्त्री थी और अपने पति  की तरह ही एक विद्वान स्त्री थी। 

घर में इतने सरे ज्ञानी और विद्वान लोगों के होने से गुप्त जी के अंदर भी ये गन बचपन में ही आ गए थे।  पिता जी को कविताये लिखते हुए देखते थे और वही से गुप्त जी को भी लिखने का शोंक पैदा हुआ। 

गुप्त जी की प्राथमिक शिक्षा तो घर से ही शुरू हो गयी थी। इन्हे स्कूली शिक्षा हासिल  करने के लिए गांव के ही स्कूल में दाखिल करवाया झा वो तीसरी श्रेणी तक पढ़े और फिर आगे की पढ़ाई के लिए इन्हे झाँसी के मेक्डोनल हाई स्कूल में दाखिल करवाया गया। 

बड़े स्कूल में दाखिला करवाने  के बाद भी इनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। इनके कुछ मित्र थे जो इनकी तरह ही थे।  मित्रों की टोली पढ़ाई छोड़ कर लोक कला , लोक नाटक और लोक संगीत किया करते थे जिससे उनके परिवार वाले बहुत परेशान थे।

गुप्त जी का मन हमेशा लोक कलाओं में ही लगता था। इन सब दे परेशान होकर पिता जी ने गुप्त जी को घर वापिस बुला लिया और घर पर  बैठा लिया।  जब भी पिता जी पूछते के उसका मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता तो वो एक ऐसा जवाब देते जिसे सुन कर सभी हैरान रह जाते , उनसे पूछने पर अक्सर वो कहते

“में दूसरों की लिखी किताबें क्यों पढूं ? में अपनी किताब लिखूंगा और उसे बाकी लोग पढ़ेंगे। “

ऐसा कहा जाता है है के दिन में एक समय माँ सरसवती हमारी ज़ुबान पर बैठी होती है और हम जो बोलते हैं वो सत्य हो जाता है। आज गुप्त जी द्वारा लिखी किताबें पूरा विश्व पढ़ता है और उनसे प्रभवित होता है।

उसके बाद ये स्कूल नहीं गए और इन्होने अपनी पढ़ाई घर से ही की। इन्होने घर पर ही हिंदी भाषा ,बंगाली भाषा और साहित्य को पढ़ा और समझा।  इसके इलावा इन्होने श्रीमद्भागवतगीता, रामायण और महाभारत को भी पढ़ा और उनको कंठस्त कर लिया।  

लिखने की शैली इन्होने इन्ही ग्रंथो से सीखी। 

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ Maithili Sharan Gupt’s Writings

ये हिन्दोस्तान के पहले ऐसे कवि थे जिन्होंने बृज भाषा में लिखा। इन्होंने 12 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया और इनका मार्गदर्शन किया मुंशी अजमेरी जी ने। मुंशी जी ने ही इन्हें बृज भाषा में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।

इसके बाद इनकी मुलाकात आचार्य महावीर द्वेदी जी से हुई। महावीर दवेदी जी ही वो पहले इंसान थे जिन्होंने गुप्त जी की रचनाओं को प्रकाशित   करवाया। एक 12 वर्ष के बालक की कविताएं हर कोई नहीं छापता था परन्तु दवेदी जी के प्रयासों से गुप्त जी की पहली रचना रंग भेद और दूसरी रचना जयद्र्थ वध , सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई।

 इसके बाद रचनाओं का और प्रकाशन का सिलसिला चल पड़ा।  गुप्त जी लिखते जाते और वो रचनाएँ प्रकाशित होती जाती।  गुप्त जी ने एक बहुप्रसिध बंगाली काव्यग्रंथ “मेघनाथ वध” का बृज भाषा में अनुवाद किया और उस काव्य को उन लोगों तक पहुंचाया जिनको बंगाली भाषा नहीं आती थी।   

1912 में देश भक्त अंग्रेज़ों से आज़ादी हासिल करने की हर एक कोशिश कर रहे थे।  भारत के हर हिस्से से देशभक्त पूरा ज़ोर लगा रहे थे स्वतंत्रता हासिल करने के लिए।  देश भक्तों के इसी जुनून ने गुप्त जी को प्रभावित   किया और उन्होंने “भारत भारती” लिखा। उनकी यह रचना पूरे भारत में आग की तरह फैल गयी और उन्हें एक सफल कविओं की श्रेणी में खड़ा कर दिया। 

भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ? फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ। सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है, उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारत वर्ष है।

अब तक गुप्त जी की प्रसिद्धि पूरे भारत में फैल गयी थी।  साहित्यकारों में उनका नाम शुमार हो गया था। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध ग्रंथ “स्वप्नवासवदत्ता” को अनुवाद किया।  इसके बाद उन्होंने अपने गांव में  ‘साहित्य सदन’  नाम की अपनी ही प्रेस शुरू की और अब वो अपनी सारी रचनाएँ अपनी ही प्रेस में छापते थे।  गुप्त जी की रचनाएँ कलकत्ता , मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी प्रकाशित होती थी।  गुप्त जी द्वारा लिखी कुछ बहुचर्चित रचनाएँ 

  • यशोधरा
  • रंग में भंग
  • साकेत
  • भारत भारती
  • पंचवटी
  • जय भारत
  • पृथ्वीपुत्र
  • किसान
  • हिन्दू
  • चन्द्रहास
  • कुणालगीत
  • द्वापर  आदि थी।  

गुप्त जी का जीवन Maithili Sharan Gupt’s Life

गुप्त जी एक आत्मविश्वाशी व्यक्ति थे वो बहुत हस्मुख थे।  जो भी उनसे मिलता वो उनकी शख़्शियत का दीवाना हो जाता था।  जीवन को सरलता से जीते थे। उनका अपनी बहु के साथ भी एक अनोखा रिश्ता था। 

गुप्त जी को ताश खेलने का शोंक था और वो अपनी बहु को ताश खेलने के लिए बोलते थे पर बहू शांति शरण गुप्त को ताश खेलना नहीं अत था तो गुप्त जी जान बूझ कर ताश में हार जाते थे।  एक बार जब उनकी बहु ने आगे पढ़ाई करने की इच्छा जताई तो गुप्त जी ने मना कर दिया क्योंकि वो किताबी पढ़ाई से ज्यादा प्रैक्टिकल पढ़ाई को महत्व देते थे। 

गुप्त जी की ज़िंदगी में गिरधारी जी का एक अहम किरदार है।  अगर ऐसा खा जाये के गुप्त जी का जीवन गिरधारी जी के बिना अधूरा है तो कुछ गलत नहीं होगा।  गिरधारी जी रसोइया थे। 

वो बुंदेली खाना बनाने में माहिर थे और गुप्त जी को बुंदेली खाना बहुत पसंद था। इस लिए गिरधारी जी उनके लिए बहुत अहम थे। अक्सर बहुत सारे कवि  जैसे रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा , नरेंद्र शर्मा अक्सर गुप्त जी को मिलने आते रहते थे और वो सब भी गिरधारी जी के हाथ का बना खाना बहुत पसंद करते थे। 

सम्मान और पुरुस्कार

गुप्त जी वो पहले साहित्यकार थे जिन्होंने बृज भाषा में साहित्य की रचना की और इसी वजह से उन्हें दद्दा की उपाधि मिली। गुप्त जी द्वारा लिखी गयी देश भक्ति की रचनाएँ जिन्हे पढ़ कर किसी भी आम इंसान के अंदर का वीर जाग जाता था,

ऐसी रचनाओं से महात्मा गाँधी जी बहुत प्रभावित हुए। गाँधी जी ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी। गुप्त जी ने भट सारे आंदोलनों में हिस्सा लिया जिसकी वजह से उन्हें बहुत बार जेल भी जाना पड़ा परन्तु ये सब घटनाएं उनके अंदर के राष्ट्रकवि को मार नहीं पायी और उन्होंने और ज़ोर शोर से अपनी रचनाओं में देशभक्ति और भर दी। 

देश के प्रति इसी जज़्बे की वजह से और देश के साहित्य में दिए अपने अमूल्य योगदान की वजह से 1954 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। वो कुछ समय तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इसके बाद उन्हें इलाहबाद विश्विद्यालय से डी लिट् की उपाधि भी प्राप्र्त हुई। 

नर हो, न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रह कर कुछ नाम करो।

मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु Maithali Sharan’ Death

राष्ट्रवाद ,सामाजिक और एक हंसमुख   कवि 12 दसंबर 1964 को हमे अलविदा कह गया।  उनकी मृत्यु आकस्मक हृदय घात से हुई थी। 

गुप्त जी ने अपने जीवन में बहुत सारे ऐसे काम किये है और ऐसी रचनाएँ की है जो आज भी देश को प्यार करने के लिए हमें हरपल प्रेरित करती हैं। उनकी द्वारा रचित रचनाएँ सादगी से भरी हुई है।

उन्होंने बहुत सरल भाषा का इस्तेमाल किया ताकि उनकी बात हर कोई समझ सके , वो जो कहना चाहते है , जो वो समझना चाहते हैं , वो आम लोग आसानी से समझ सके।  इनके द्वारा रचित रचनाएँ हमेशा हमारा मनोबल बढ़ाती रहेंगी। 

 जिस तरह से उन्होंने अपनी रचनाओं में स्त्रियों का , युवाओं का और अपने देश का विवरण किया है , वो सराहनीय है।  उनके द्वारा दिए गए काव्यसंग्रह भारतीय साहित्य के एक अभिन्न स्थान बना चुके हैं।  ऐसे राष्ट्रवादी देशभक्त कवि की कमी हमेशा हमारे समाज को खलती रहेंगी और चिरों तक इस महान कवि को याद किया जायेगा।

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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