दक्षिण अफ़्रीका का गाँधी : नेल्सन मंडेला

Nelson Mandela Biography in Hindi – अपने जीवन के 27 वर्ष जेल में बिताने के बाद भी, अपने मुल्क के लिए वो काम किये जिससे आज वो पूरे विश्व में एक शांति दूत के रूप में देखे जाते हैं |

जेल में रहकर ही अपनी आत्मकथा लिख दी और जेल से बाहर आते ही बन गए थे साउथ अफ्रीका के पहले गैर श्वेत राष्ट्रपति | 

हम बात कर रहे हैं नेल्सन मंडेला की | जिन्हे साउथ अफ्रीका का गाँधी भी कहा जाता है। 

नेल्सन मंडेला का जीवन परिचय Nelson Mandela Biography in Hindi

इंसान की ज़िंदगी में कितनी ही मुश्किलें क्यों न आये पर अगर वो उन मुश्किलों से लड़ कर आगे बढ़ता है तो ये लाज़मी है के वो दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा।  

दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हुए हैं जिन्होंने अपने दम पर  दुनिया को अपने आगे झुकाया है। उन में से नेल्सन मंडेला एक थे। इन्होने दक्षिण अफ़्रीका के लोगों की जिंदगी सुधरने का जिम्मा अपने सर लिया।

उस समय दक्षिण अफ़्रीका को पूरी दुनिया से अलग मन जाता था। वहां के लोगों को चमड़ी के रंग और जाती के आधार पर पुरे विश्व में प्रताड़ित किया जाता था। और यहीं की सरकार एकमात्र ऐसी सरकार थी जिसने रंगभेद को लेकर अलग से कानून बना रखे थे। 

किस तरह से नेल्सन मंडेला ने रंगभेद की बेड़ियों को तोड़ा और अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने का सफर तय किया आइये जानते हैं |

Nelson Mandela Biography in Hindi
Nelson Mandela Biography in Hindi

जन्म और बचपन (Nelson Mandela Birth and Childhood)

मंडेला शब्द का मतलब ” सरदार का बेटा ” होता है। नेल्सन का जन्म 18 जुलाई 1918 को म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में हुआ।  इनके पिता का नाम हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा था। नेल्सन की माँ हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा की तीसरी पत्नी थी और नेल्सन अपने 13 भाई बहनों में से तीसरे नंबर पर आते थे।  

इनके पिता अपनी जाती के सरदार थे। 

नेल्सन का प्रथम नाम रोलिह्लाला था जिसका स्थानक भाषा में अर्थ उपद्रव होता है। इनकी माँ मेथेडीस्ट थी। जब ये 12 वर्ष के थे तब इनके पिता की मृत्यु हो गयी। प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की और आगे की पढ़ाई मेथेडीस्ट मिशन स्कूल से की। 

पिता की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारियां नेल्सन पर आ गयी और उन्होंने एक जगह क्लर्क की नौकरी शुरू की। 

नेल्सन मंडेला का विवाह (Nelson Mandela Marriage)

नेल्सन ने 3 शादियां की और उनके 6 बच्चे हुए। बुज़ुर्ग होते होते नेल्सन 17 पोते – पोतियों के दादा बन गए। सबसे पहले उन्होंने अक्टूबर 1944 में इवलिन मेस से शादी की जो उनके दोस्त और सहयोगी वॉल्टर सिसुलू की बहन थी। 

1961 के समय जब उनपर देश द्रोह का मुकदमा चल रहा था तो उनकी मुलाकात नोमजामो विनी मेडीकिजाला से हुई और दोनों ने शादी कर ली।  नेल्सन इस मुकदमे  में भी निर्दोष पाए गए।  

इसके बाद जब 1998 में वो 80 साल के हुए तो उन्होंने ग्रेस मेकल से विवाह आकर लिया।  

नेल्सन मंडेला का राजनैतिक सफर – Nelson Mandela Biography in Hindi (Political)

नेल्सन मंडेला ने पूरे विश्व में दक्षिण अफ़्रीकी लोगों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और उनकी आवाज़ को कई बार दबाने की भी कोशिश की गयी।  पर बहुत सरे संघर्ष के बाद उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी लोगों को उनके हक़ दिलवाये।  उन्होंने अपने राजनैतिक सफर की शुरुआत 1941 में की।  

अपने देश की खराब दशा को देखते हुए वो 1941 में जोहान्सबर्ग चले गए। जहां इनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। इन दोनों से प्रभावित होकर ही नेल्सन ने अपने देश में हो रहे रंग और जाती के भेदभाव को दूर करने के लिए राजनीती में कदम रखा। वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन ही थे वो शक्श जिनकी वजह से नेल्सन राजनीती में आये।  

अपने लोगों के लिए लड़ते लड़ते नेल्सन मंडेला उस समय राजनीती में बहुत सक्रिय हो गए और 1944 में वो रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन करने वाली अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए।  इसी वर्ष उन्होंने अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की और इसके सचिव बने। 

नेल्सन अब राजनीती में पूरी तरह सक्रिय हो चुके थे और रंगभेद, जाती के विरुद्ध अपनी आवाज़ को और बुलंद कर रहे थे।  1961 में इनके साथ साथ इनके दोस्तों पर भी देशद्रोह का इलज़ाम लगा और केस चला पर ये उस केस में निर्दोष साबित हुए।  जिससे इनका हौसला और बढ़ गया। 

यह वो द्वार था जब रंगभेद पर दक्षिण अफ़्रीकी लोगों को गुलामों की तरह रखा जाता था। बहुत सारे लोग बंधुआ मज़दूर बन कर अपनी जिदंगी बिता रहे थे। नेल्सन ने इन्ही लोगों की फरिश्ता बनकर सहायता की। इन मज़दूर लोगों को उनके हकों के बार में बताया।  

1962 में इन पर मज़दूरों को हड़ताल के लिए उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के लिए मुकदमा चलाया गया। 1964 में इन्हे मुकदमे में हार मिली और अदालत ने इन्हे आजीवन करावस की सजा सुनाई। 1964 से लेकर 1990 तक ये जेल में रहे।  

रंगभेद और अन्याय के खिलाफ लड़ने के कारण ये तकरीबन 27 साल जेल में रहे। जेल में भी इनका जीवन बहुत बदतर हो गया था। इनको एक अलग और दूर दर्ज के रोबिन द्वीप नाम के द्वीप में बनी जेल में भेजा गया ताकि बाहरी दुनिया और इनके लोगों से इनका संबंध हमेशा के लिए टूट जाये।

जेल में भी इनके रंग को लेकर दूसरे कैदियों द्वारा बहुत परेशान किया जाता था।  

जेल में रहकर नेल्सन ने कोयले की खदान में काम किया और अपनी एक आत्मकथा लिख दी जिसका नाम ‘लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम’ है। जेल में रहकर जैसे जैसे वो बूढ़े होते गए , दक्षिण अफ्रीका के लोगों के प्रति और उनपर हो रहे अत्याचारों के प्रति उनकी आवाज़ और बुलंद होती गयी। 

11 फरवरी 1990 को उनकी रही हुई। जेल में रहकर भी उन्होंने बहुत सारी चीजें सीखी। जब वो जेल से रिहा हुए तो उन्होंने प्रेम , शांति की नीतियाँ बनाई और एक नए लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की स्थापना की। जो उनका बरसों पुराना सपना था। गोरी सरकार के साथ हुए समझौते की वजह से वो पूरे विश्व में बहुचर्चित हो गए।  

ऐसा भी कहा जाता है के नेल्सन ने अपने शांतिपूर्ण आन्दोलन के साथ-साथ एक हिंसक क्रांति शुरुआत की थी।  1961 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सशस्त्र शाखा ‘उम्खोंतो वे सिजवे’ का गठन किया था और वे इसके कमांडर इन चीफ थे |

मंडेला कुछ हद तक साम्यवाद के दर्शन से भी जुड़े रहे और क्यूबा के आन्दोलन ने भी उन्हें प्रभावित किया था, लेकिन फिर भी वो गांधीवाद और महात्मा गाँधी की शिक्षाओं और अहिंसा का सहारा लिए चलते गए। 

कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं के मंडेला ने अफ्रीकी देश अल्जीरिया में जाकर सैन्य प्रशिक्षण लिया था क्योंकि वो मानते थे के श्वेत आंदोलन में हो सकता है किसी जगह पर उन्हें अहिंसा त्याग कर हिंसा का सहारा लेना पड़े। 

वो यह भी जानते थे के अगर ऐसे हालत पैदा हुए तो अफ्रीकन नेशनल पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा  ऐसे कदम उठाने में कई साल लग जायेगे, अर्थात वो पहले से ही खुद को हर तरह के संघर्ष के लिए त्यार कर रहे थे। 

रंगभेद के आधार पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ  आवाज़ उठाने के लिए और न्याय दिलाने के लिए वो पूरी दुनिया के लिए प्रतीक बन गए।

ये भी पढ़ें: 

नेल्सन के जीवन के किस्से

कहा जाता है के अपने शुरुआती दिनों में  जब नेल्सन एक दफ्तर में नौकरी किया करते थे | उस समय उनको भी रंगभेद का सामना करना पड़ता था। जब नेल्सन वित्किन-सिदेलसकी-एडिलमैन कम्पनी में बतोर वकील काम करते थे। 

वहां काम करने वाली श्वेत टाइपिस्ट अपने खली समय में अक्सर नेल्सन से काम मांगने आ जाती थी और वकील होने के नाते नेल्सन उसे काम दे दिया करता था |

पर एक बार जब वो नेल्सन के पास काम मांगने गयी तो अचानक ही एक श्वेत ग्राहक आ गया तो उस टाइपिस्ट ने नए ग्राहक को देखते ही नेल्सन को बोल दिया के “नेल्सन ये लो पैसे और मेरे लिए शैम्पू ले कर आओ” 

ऐसी घटनाएं अश्वेत लोगों के साथ हर रोज हुआ करती थी।  नेल्सन के दफ्तर वालों ने तो नेल्सन के लिए चाय पीने के  लिए अलग से बर्तन ला कर रखे थे। 

एक बार रिचर्ड स्टेंगल और नेल्सन जहाज़ में सफर कर रहे थे।  नेल्सन को अख़बार पढ़ने  का बहुत शोक था।  वो हर खबर को पढ़ते थे।  जब रिचर्ड स्टेंगल जहाज़ की खिड़की से बाहर देख रहे थे तो उन्होंने देखा के जहाज़ का एक प्रोपेलर बंद हो गया है और उसने जब नेल्सन को बताया तो नेल्सन ने कोई जवाब नहीं दिया और अख़बार पढ़ते रहे। 

रिचर्ड स्टेंगल ने फैसला किया के वो खुद पाइलेट को जाकर बताएगा , और उसके बताने पर जहाज़ को तुरंत जमीन पर उतरा गया , नेल्सन तब भी अख़बार पढ़ रहे थे।  

रिचर्ड स्टेंगल ने पूछा के हम मरते मरते बचे हैं और आप अभी भी अख़बार पढ़ रहे हो आपको डर नहीं लग रहा ? 

तो नेल्सन ने कहा के में बहुत घबराया हुआ हु, पर अगर में अपनी घबराहट को अपने चेहरे पर लता तो तुम्हारे साथ साथ बाकी यात्री भी घबरा जाते, इसी लिए मैंने मन के भाव को चेहरे पर नहीं आने दिया , मैंने साहस से काम लिया। 

“असल में अपने डर को चेहरे पर न आने देना ही साहस है।”

सम्मान

संयुक्त राष्ट्र ने नेल्सन द्वारा किये कामों का लोहा मन है। जिस तरह शांति से उन्होंने एक देश की स्थापना की उसके लिए सब नेल्सन की तारीफ करते हैं यही कारण है के नेल्सन के जन्मदिन पर नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। 

बेशक वो दूसरे देश के हों परन्तु भारत देश ने भी उनके साहस और अहिंसावादी सोच को 1990 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोत्तम पुरूस्कार भारत रत्न दिया और वो पहले गैर भारतीय बने जिसे यह पुरूस्कार मिला। 

10 मई 1994 को अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा उनके जन्मदिन यानि 18 जुलाई को मंडेला दिवस मनाने का फैसला किया। 

मृत्यु

बढ़ती उम्र के साथ साथ उन्हें फेफड़ों की बीमारियां हो गयी थी और 5 दिसम्बर 2013  को उनकी जोहान्सबर्ग में स्थित उनके घर पर मृत्यु हो गयी जो पूरे विश्व के लिए एक चौंका देने वाली बात थी।  

नेल्सन मंडेला के विचार

नेल्सन आज़ाद विचारों वाले थे।  उन्हें गुलामी पसंद नहीं थी और आम लोगों पर होते अत्याचारों को वो सहन नहीं करते थे।  

वो कहा करते थे के शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथ्यार है जिससे दुनिया बदली जा सकती है। वो अक्सर कहते थे के बहादुर आदमी वो नहीं जिसे डर महसूस न होता हो बल्कि असली मायने में वो आदमी बहादुर है जिसने अपने डर को जीत लिया है।  

अपने देश को स्वतंत्र करवाने के लिए वो बोलते थे के ऐसी कोई चीज नहीं है जो स्वतंत्र न हो सके।  रंगभेद एक कुरीति है , वो चाहे श्वेत व्यक्ति कर रहा हो या अश्वेत।  बुराई हमेशा बुराई होती है कोई फर्क नहीं पड़ता उसे कौन कर रहा है।  

नेल्सन मंडेला वो महान व्यक्ति थे जिन्होंने अकेले दम पर पूरी दुनिया की सोच बदल दी। पूरी दुनिया को समझाया के गोरा कला श्वेत अश्वेत  कुछ नहीं होता।  हम सब इंसान हैं और सबको बराबर का हक़ है। 

हर किसी को आज़ाद होने का हक़ है आज़ादी से जीने का हक़ है। कोई भी किसी को भी गुलाम नहीं बना सकता। वो एक प्रतिभाशाली वकील थे जिसने अपने हकों के लिए आवाज़ उठाई और 27 साल जेल में बिताये। वो कहते थे के मेरे देश के लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं। 

नेल्सन के जीवन के ऊपर बहुत सारी फ़िल्में भी बन चुकी हैं। नेल्सन महात्मा गाँधी को अपना गुरु मानते थे।  और सदा अहिंसा के रस्ते पर चले हैं। 

उन्होंने समाज से जो भेदभाव खत्म किया है उसके लिए दक्षिण अफ़्रीका से लेकर पूरा विश्व उनका कर्ज़दार है।  सिर्फ अफ़्रीका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोगों को आज़ादी से जीना सीखने वाले नेल्सन मंडेला ही थे।  

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

Leave a Comment