पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

पृथ्वीराज चौहान भारत के इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं | फिर चाहे वो मोहम्मद गौरी जैसे आक्रमणकारियों को 17 बार हराकर देश से भगाने की बात हो, अंतिम हिंदू सम्राट होने की या फिर अपनी मोहब्बत को पाने के लिए हर सीमा को लाँघने की | पृथ्वीराज चौहान का इतिहास वीरता और शौर्य से भरा है और चंदबरदाई की कविताओं के रूप में वो आज भी जीवित हैं |

कुछ ऐतिहासिक कहानियों की माने तो वो शब्द भेदी बाण चलाना जानते थे अर्थात वो आँखें बंद करके भी अपने बाणों से किसी भी लक्ष्य को भेद सकते थे | 

पृथ्वीराज चौहान ने इतिहास में अपना स्थान एक सफल शासक के रूप में हमेशा बनाए रखा है | तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार के बाद भारत का इतिहास बदल गया | 

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

पृथ्वीराज चौहान का जन्म क्षत्रिय वंश में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के घर 1166 में हुआ | पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा और पृथ्वीराज तृतीए के नाम से भी जाना जाता है |

पृथ्वीराज की माता कर्पूरदेवी ने उनके जन्म के लिए ईश्वर से बहुत सी दुआएं माँगी थी | उनका जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षों के बाद हुआ था | 

वो अपने माता पिता के बहुत प्रिय थे उनका पालन पोषण बड़े लाड प्यार से हुआ | 

उनके जन्म के बाद से ही राज्य में उनको मारने के लिए षड्यंत्र होने लगे थे | जब उनकी आयु 11 वर्ष हुई तब उनके पिता राजा सोमेश्वर चौहान का निधन हो गया | इसके बाद राज्य और परिवार का दायित्व उनके उपर आ गया | 

पृथ्वीराज कुशाग्र बुद्धि वाले थे उन्हें संस्कृत, मगधि और अपभ्रंष आदि 6 भाषाओं का ज्ञान था | बाल्य अवस्था में ही वो युद्ध कला में निपुण हो गये थे और उन्होने शब्दभेदी बाण चलाना भी सीख लिया था |

वो हाथी और घोड़ों को नियंत्रण करने की विद्याएं भी जानते थे | उनके मित्र चंदबरदाई ने अपनी काव्य रचना “पृथ्वीराज रासो” में उनकी इस विदयाओं के बारे में उल्लेख किया है |

वो अपने राज्य को अच्छे से संभाल रहे थे लेकिन उनके चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर दिया क्यूंकी वो भी राजगद्दी को हथियाना चाहता था | 

पृथ्वीराज ने इस विद्रोह को कुचल डाला | इसके बाद पृथ्वीराज ने भदानक राज्य जो की भरतपुर, ढोलपुर, करौली और मथुरा व अलवर के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था उसे ख़तम कर दिया | 

भदानक हमेशा ही दिल्ली में उनके चौहान राज्य के लिए ख़तरा थे | इसके बाद 1182 में पृथ्वीराज ने जेजाकभुक्ति के राजा परमर्दिन देव चंडेला को हरा दिया | 

पृथ्वीराज का कद चंडेलास को हराने के बाद बहुत बढ़ गया | लेकिन उनके बहुत से दुश्मन भी पैदा हो गये | उत्तर भारत में पृथ्वीराज अब एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहे थे | 

उन्हें रोकने के लिए उत्तर भारत की दूसरी शक्तियों जैसे गढ़वाल और चंडेलास ने आपस में हाथ मिला लिया | पृथ्वीराज को भी इनसे मुकाबला करने के लिए अपने सैन्य ताक़त को बढ़ाना पड़ा | 

इसके बाद पृथ्वीराज ने चालुक्य वंश के शासक को भी पराजित किया और अब उत्तर में उनका विरोध करने वाला कोई नहीं था |

दिल्ली पर उस समय पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल का राज था | अनंगपाल का कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होने पृथ्वीराज से अनुरोध किया कि वो दिल्ली का शासन संभाल लें | 

तब पृथ्वीराज ने दिल्ली और अजमेर दोनो पर शासन करना शुरू किया | 

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी

पृथ्वीराज का प्रभाव उत्तर भारत में बढ़ता जा रहा था | जिस कारण बहुत से स्थानीय राजा उससे ईर्ष्या करने लगे थे | कन्नौज के जयचंद भी उन्हीं राजाओं में से थे जो पृथ्वीराज की इस बढ़ती हुई ताक़त को रोकना चाहते थे |

पृथ्वीराज और जयचंद में टकराव की एक और वजह भी थी वो था जयचंद की बेटी संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम संबंध | पृथ्वीराज की वीरता के चर्चे उस समय हर किसी की ज़ुबान पर थे | जब संयोगिता ने पृथ्वीराज के बारे में सुना तो उनसे प्रेम करने लगी |

संयोगिता पृथ्वीराज के एक चित्र को देखकर उनपर मोहित हो गई और उसने अपना भी एक चित्र पृथ्वीराज के पास भिजवाया | दोनो में पत्राचार होने लगा और दोनो की प्रेम कहानी आगे बढ़ने लगी |

जबकि जयचंद पृथ्वीराज के प्रभाव और उसकी महत्वकांक्षाओं को खत्म करना चाहता था | जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रचाया और सभी राजाओं को आमंत्रित किया लेकिन पृथ्वीराज को नहीं |

बल्कि पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए उसने द्वार पर द्वारपाल की जगह पृथ्वीराज की मूर्ति रख दी | इस बारे में सुनकर पृथ्वीराज बहुत क्रोधित हुए | संयोगिता भी किसी ओर से विवाह नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने पृथ्वीराज को स्वयंवर में बुलाया |

स्वयंवर में संयोगिता ने पृथ्वीराज की उस मूर्ति के गले में ही वरमाला डाल दी और उसी समय पृथ्वीराज वहाँ आ गये और संयोगिता को लेकर वहाँ से चले गये | 

जयचंद की सेना ने उनका पीछा किया लेकिन कोई भी उन्हें पकड़ नहीं पाया | इस तरह संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कहानी पूरी हुई जिसे पृथ्वीराज चौहान इतिहास में विशेष स्थान मिलता है |

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चंदबरदाई से मित्रता

पृथ्वीराज के सबसे करीबी मित्र और कवि चंदबरदाई थे | चंदबरदाई को बज्रभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवी भी कहा जाता है | उनके द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो हिन्दी का बहुत बड़ा काव्य ग्रंथ है जिसमें 10000 से अधिक छंद हैं |

इसमें उन्होंने पृथ्वीराज चौहान का इतिहास और उनके जीवन की कहानी का उल्लेख किया है |

वो पृथ्वीराज के बहुत घनिष्ठ मित्र थे और उनके जीवन का ज़्यादातर समय पृथ्वीराज के साथ ही बिता, फिर चाहे वो दरबार हो या युद्ध क्षेत्र | उनके अंतिम समय में उन्हें ही दुर्भाग्यवश पृथ्वीराज की हत्या करनी पड़ी | मोहम्मद गौरी को मारने में भी उन्होने ही पृथ्वीराज की मदद की थी |

पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी का युद्ध

पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी का युद्ध

मुहम्मद गौरी भारत में अपने प्रभाव को लगातार बढ़ाना चाहता था | उसने सिंध, मुल्तान और पंजाब को अपने कब्ज़े में ले लिया था | 1190 के अंत तक घोरी ने बठिंडा पर भी अपना अधिकार कर लिया था | 

बठिंडा पृथ्वीराज चौहान के क्षेत्र में आता था | जिससे गौरी और पृथ्वीराज में संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई |

तराइन का पहला युध:

पृथ्वीराज और मुहम्मद गौरी के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि दोनो 1191 में दिल्ली से 110 किलोमीटर की दूरी पर आज के हरियाणा के तरावड़ी नामक स्थान पर एक दूसरे के आमने सामने थे | 

इस लड़ाई में गौरी बुरी तरह घायल हो गया और उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा | लेकिन इस लड़ाई में हारने के बाद अब वो पहले से ज़्यादा सजग हो गया था और अब किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज को हराना चाहता था | 

तराइन का दूसरा युध:

पहले युध में हारने के बाद भी गौरी ने हार नही मानी और उसने एक बड़ी आर्मी इकट्ठा की | इस सेना में उसके साथ फ़ारसी, तुर्क और अफ़ग़ान भी शामिल हुए | इस तरह उसकी सेना पृथ्वीराज की सेना से भी बड़ी हो गई थी |

उसने भारत में पृथ्वीराज के विरोधी जयचंद को भी अपने साथ मिला लिया | पृथ्वीराज ने अन्य राजपूत राजाओं से भी मदद माँगी थी लेकिन संयोगिता के स्वयंवर में हुए अपमान की वजह से किसी राजा ने उनका साथ नहीं दिया | 

इस तरह पृथ्वीराज की सेना गौरी की बहुत बड़ी सेना के सामने छोटी पड़ गई थी | गौरी ने पृथ्वीराज को चारों और से घेर लिया और उसे बंदी बना लिया | 

कहा जाता है कि पृथ्वीराज को क़ैद करने के बाद बहुत सी यातनायें दी गई | गरम सलाँखों से पृथ्वीराज की आँखें निकाल ली गई |

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पृथ्वीराज की मृत्यु

पृथ्वीराज की मृत्यु  कैसे हुई इस बारे में एक कथा प्रचलित है | इसमें कितनी सच्चाई है इसके बारे में ज़्यादा प्रमाण नहीं है | कहा जाता है की मुहम्मद गौरी को पता चला की पृथ्वीराज बिना देखे भी सही जगह निशाना लगा सकते हैं |

गौरी ये बातें सुनकर रोमांचित हो गया वो देखना चाहता था की क्या सच में पृथ्वीराज ऐसा कर सकते हैं | दरबार में पृथ्वीराज जो की अंधे हो चुके थे उन्हें तीर कमान दे दिया गया | 

तब उनके साथ मौजूद उनके मित्र चंदबरदाई ने एक कुछ पंक्तियाँ कही

जो की इस प्रकार थी….

“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान”

इन पंक्तियों को सुनकर पृथ्वीराज को गौरी की सही स्थिति का पता चल गया और उनमें एक नयी उर्जा आ गई | पृथ्वीराज ने सटीक निशाना लगाते हुए गौरी  पर बाण छोड़ दिया और उसकी मृत्यु हो गई |

इसके बाद पृथ्वीराज और चंदरबरदाई ने एक दूसरे की हत्या कर दी | वहीं कुछ जगह पर कहा गया की गोरी ने अपनी जगह अपनी मूर्ति रख दी थी | पृथ्वीराज चव्हाण का छोड़ा गया बान उस मूर्ति को लगा और गौरी बच गया | बाद में उसने पृथ्वीराज और उनके मित्र की हत्या कर दी |

जबकि हसम निज़ामी के अनुसार युध में पराजित होने के बाद पृथ्वीराज ने अपनी हार स्वीकार कर ली थी | और गोरी के अधीन रहते हुए अजमेर पर शासन  किया | बाद में पृथ्वीराज के विद्रोह करने के बाद उनकी हत्या कर दी गई | हालाँकि इसमें कितनी सच्चाई है इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता |

पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी की लड़ाई के परिणाम

इस तरह पृथ्वीराज का अंत हो गया जिसमें बड़ा हाथ जयचंद का रहा | आज भी गद्दारों को जयचंद कहा जाता है | अगर आप भारत के सबसे बड़े गद्दारों के बारे में जानना चाहते हैं तो ये वीडियो देखें |

इस लड़ाई के बाद भारत में मुस्लिम राज की शुरुआत हुई जो सैंकड़ों सालों तक चला | गोरी ने अपने दास ऐबक को भारत के क्षेत्रों का नियंत्रण दे दिया | ये वही क़ुतुब दिन ऐबक है जिसने क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया था | ऐबक ने ही भारत में गुलाम वंश की नींव रखी थी |

इसी के बाद से भारत में पहले दिल्ली सल्तनत और बाद में मुग़ल वंश की स्थापना हुई और भारत पर आगे कई 100 सालों तक मुस्लिम शासकों का राज रहा |   उसके बाद अँग्रेज़ों ने भारत पर कब्जा कर लिया | 

पृथ्वीराज चौहान को भारत के अंतिम हिंदू सम्राट के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा | कहा जाता है की तराइन के युद्ध से पहले मुहम्मद गौरी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था लेकिन हर बार उसे मुँह की खानी पड़ी | 

Mohan

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