राकेश टिकैत का जीवन परिचय

Rakesh Tikait Biography In Hindi – भारत के इतिहास के सबसे बड़े किसान आंदोलन से बहुत से किसान नेताओं का उदय हुआ है | राकेश टिकैत भी उन्हीं किसान नेताओं में से एक हैं | 

अपने बोलने के ठेठ अंदाज़, हाज़िर जवाबी और राजनीति की समझ के कारण वो अक्सर टी वी चैनलों पर नजर आते रहते हैं | 

जिस दौर में मीडिया सत्ताधारियों से सवाल न पूछकर उल्टा आंदोलन करने वालों और विपक्ष से सवाल करती है उस दौर में राकेश टिकैत की शैली लोगों को बहुत पसंद आती है |  

लेकिन आखिर राकेश टिकैत कौन हैं और क्यूँ वो इतने लोकप्रिय हो गए कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दूसरे प्रदेशों की जाट बिरादरी के लोग एकजुट हो गए हैं | 

जाटों को एकजुट करने में टिकैत ने अहम् भूमिका निभाई है लेकिन वास्तव में किसान आंदोलन किसी एक धर्म, जाति या बड़े किसानो का आंदोलन नहीं है बल्कि इसमें हर वर्ग के लोग हिस्सा ले रहे हैं |  

rakesh tikait biography in hindi
Rakesh Tikait Biography in Hindi

आज के वीडियो में हम सिर्फ राकेश टिकैत के बारे में बात करेंगे और आपको बताएंगे की उन्होंने कैसे यहाँ तक का सफर पूरा किया | 

राकेश टिकैत के किसान आंदोलन के शुरू होने से पहले ही एक बड़ा नाम था क्यूंकि उनके साथ उनके पिता और किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत का नाम जुड़ा है | 

किसानों की आवाज उठाने के लिए छोड़ दी पुलिस की नौकरी

महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे | 1988 में दिल्ली में किसानों के हकों के लिए उन्होंने एक बहुत बड़ा आंदोलन था | 

दिल्ली के बोट क्लब में लाखों की संख्या में किसान अपनी बैल गाड़ियों के साथ जमा हो गए थे जिससे केंद्र सरकार की नींद उड़ गयी थी |

इस आंदोलन के बाद महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के एक बहुत बड़े नेता के रूप में उभरे | 88 के उस आंदोलन के बाद पंजाब से जो किसानों का आंदोलन शुरू होकर पूरे देश में फ़ैल चूका है उसमें महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे राकेश टिकैत मुख्य भूमिका निभा रहे हैं |  

राकेश टिकैत का जन्म 4 जून, 1969 को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। 

साल 1992 में, 23 साल की उम्र में राकेश दिल्ली पुलिस में बतौर कॉन्स्टेबल भर्ती हुए थे । लेकिन इसके दो साल बाद ही, राकेश ने अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत द्वारा चलाये जा रहे किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी। 

कहा जाता है पुलिस की तरफ से उन पर दबाव बनाया जा रहा था कि वो अपने पिता को किसान आंदोलन को ख़तम करने के लिए कहें लेकिन उन्होंने पिता पर दबाव बनाने की बजाए आंदोलन के समर्थन में खुद ही नौकरी छोड़ दी थी |  

साल 2011 में पिता की कैंसर से मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद इस यूनियन की कमान उनके दोनों बेटों ने संभाल ली। 

40 से अधिक बार जा चुकें है जेल राकेश टिकैत

असल मे भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश के बड़े भाई नरेश टिकैत हैं, लेकिन यूनियन से जुड़े सभी बड़े मुद्दों और समस्याओ से जुड़े फैसले राकेश ही लेते हैं और वो भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं | 

किसानों के हकों के लिए लड़ते हुए वो 40 से अधिक बार जेल भी जा चुके हैं | मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध करने के कारण उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था | 

राजस्थान में बाजरे के उचित मुल्य को लेकर और दिल्ली में लोकसभा के बाहर गन्ने की कीमत को बढ़ाने को लेकर किये गए आंदोलनों में भी उन्हें जेल में रहना पड़ा था |  

राकेश टिकैत बहुत बार केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहते हैं की जल्दी ही सरकार को उनकी मांगों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा | 

हालाँकि उन्होंने सरकार के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चे के बैनर तले सबकुछ करके देख लिया लेकिन सरकार बिलों को रद्द करने और MSP पर कानून बनाने को लेकर अभी तक राजी नहीं हुई है |  

इसके बाद राकेश टिकैत और टीम ने चुनावों में भाजपा सरकार को वोट ना देने तक का कैंपेन भी चला दिया लेकिन सरकार को इससे भी फर्क नहीं पड़ा | 

हालाँकि 51 साल के टिकैत ने खुद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपना वोट देकर जिताने की बात स्वीकार की है। 

राजा हर्षवर्धन ने दिया था ‘टिकैत’ का टाइटल

दिल्ली पुलिस कांस्टेबल से किसान बने राकेश टिकैत की तरह ही उनकी बिरादरी के बाकी लोगों ने भी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव के प्रत्याशी (अब केंद्रीय मंत्री) संजीव कुमार बाल्यान को अपना वोट देकर जिताया था। 

इसकी एक वजह ये भी थी कि संजीव जाट समुदाय की बाल्यान खाप के ही सदस्य हैं, जिसके प्रमुख अध्यक्ष राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत हैं। 

टिकैत नाम बाल्यान खाप के मुखिया को थानेसर के जाट राजा हर्षवर्धन के द्वारा 7 वीं शताब्दी में दिया गया था तब से इस खाप के मुखिया और उसके परिवार के पुरुषों को ये टाइटल मिला हुआ है |  

राकेश टिकैत ने भी दो बार राजनीति में अपने कदम जमाने की कोशिश की लेकिन उनका राजनीतिक करियर कुछ विशेष नहीं रहा | 

साल 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राकेश टिकैत खतौली सीट से चुनाव में उतरे थे, यहाँ उन्हें पीछे से कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिल रहा था। 

लेकिन इस चुनाव के नतीजे राकेश टिकैत के लिए निराशा भरे रहे और उन्हें खतौली की जनता ने छठवें स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया। 

इसके बाद साल 2014 के लोक सभा चुनाव में वे राष्ट्रीय लोक दल पार्टी के टिकट पर अमरोहा सीट से लड़े, जहां मात्र 9,539 वोट मिलने की वजह से उन्हें अपनी डिपॉज़िट राशि भी गंवानी पड़ गई। 

रोने पर मिला लोगों का भरपूर समर्थन

केंद्र सरकार के साथ नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर चल रही तनातनी में शुरू में टिकैत की भारतीय किसान यूनियन की तरफ से दिल्ली- ग़ाज़ीपुर बॉर्डर धरने पर जुटे किसानों की संख्या काफी कम थी | 

जबकि टिकैत के प्रतिद्वंदी वी. एम. सिंह की राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन से ज्यादा किसान इस धरने में शामिल होने आये थे।

लेकिन वी. एम. सिंह जल्दी ही बोरिया बिस्तर बांधकर इस आंदोलन से हट गए थे जबकि राकेश टिकैत पूरी मुस्तैदी से धरना स्थल पर डटे रहे | जिसके बाद राकेश टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख किसान नेता बनकर उभरे हैं। 

शुरू में कुछ लोगों का मानना था कि राकेश टिकैत को असल मे केंद्र सरकार द्वारा ही बढ़ावा दिया गया था ताकि वे पंजाब और हरियाणा से आने वाली बाकी मजबूत और उग्र यूनियनों के प्रभाव को कम कर सकें। 

आंदोलन में केंद्र की तरफ से किसे प्लांट किया गया है इसके बारे में कहना मुश्किल है | 

जब केंद्र की सरकार ने गाजीपुर बॉर्डर से बलपूर्वक किसानो को हटाने की कोशिश की उस वक़्त राकेश टिकैत ने रोते हुए एक भाषण दिए जिसके बाद हज़ारों की संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पर आ गए |  

राकेश टिकैत के भाषण के बीच मे रोने और कृषि कानून के वापस न होने तक डंटे रहने की बात कहने का वीडियो वायरल हो गया, तब यह किसान आंदोलन और भी ज्यादा भड़क उठा और किसान अपनी बात मनवाने पर अड़ गए। 

विपक्षी दलों का भरपूर समर्थन

शामली में काम करने वाले एक समाज सेवक और कार्यकर्ता राजवीर सिंह मुंडेट के अनुसार, ‘उस वक्त हर एक किसान रोया और सभी को महेंद्र सिंह जी (राकेश टिकैत के पिता) याद आये, जो कि भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक थे।’

राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह द्वारा टिकैत को खुला समर्थन प्रदान किया जा रहा है। 

इसके साथ ही आसपास के राज्यों के जाट नेता भी इस आंदोलन के समर्थन में राकेश टिकैत के साथ आगे आये हैं, जिनमे भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के नेता अभय सिंह चौटाला और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल भी शामिल हैं। 

राजवीर सिंह कहते हैं ”किसान नेता के एक बार रोने से ही, हमारा पूरा किसान समुदाय न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, बल्कि हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान में अब एकजुट हो गया है। साल 1987 से बाद से ऐसा अब पहली बार हुआ है।”

पिता ने भी सरकार को हिला दिया था

उस वक्त महेन्दर सिंह टिकैत ने साल 1987 की जनवरी में मुज़फ्फरनगर के करमुखेरा पावर हाउस में 4 दिनों का आंदोलन चलाया था। 

महेन्दर सिंह ने यह आंदोलन राज्य सरकार द्वारा बिजली पर तीसरी बार टैरिफ बढ़ाने के विरोध में शुरू किया था। 

इस घटना के एक साल बाद 1988 में, गन्ने की आधिकारिक कीमत को लेकर मेरठ की कमिशनरेट का 24 दिन का घेराव किया गया था और फिर उसके बाद उसी साल अक्टूबर महीने में, 5 लाख किसानों की दिल्ली के बोट क्लब लॉन में एक हफ्ते लम्बी रैली हुई थी। 

पर कई विशेषज्ञों का मानना है कि उस वक्त से अब हालात काफी अलग हैं। 1970 व 80 के दशक में किसानों की स्थिति काफी बेहतर थी। उस वक्त नई और बेहतर प्रजाति के गेहूं और गन्ने की फसलें उगाई जा रही थी। 

बिल्कुल सस्ती और प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी आर्मी, पुलिस, सरकारी शिक्षक या गांव में ही थोड़ी सी मेहनत से नौकरी मिल जाती थी। उस वक्त भारतीय किसान यूनियन का विरोध सिर्फ उन लाभों को बनाये रखने के लिए होता था। 

जबकि आज के आंदोलन का समर्थन ज्यादातर वे किसान कर रहे हैं, जिन्होंने किसानों का इससे कहीं बेहतर वक्त देखा है। 

सरकार ने कोविड के समय में जिस तरह अध्यादेश लाकर और बाद में संसद में सभी विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद कृषि बिलों को पास करवा लिया उससे किसानों के मन में शंका पैदा हो गयी | 

अब किसान उन तीन बिलों को रद्द करवाने के साथ साथ एम एस पी पर कानून बनाने और बिजली के कानून को भी रद्द करवाना चाहते हैं | 

उत्तर प्रदेश के किसान लड़ेंगे निर्णायक लड़ाई

उत्तर प्रदेश के किसानों के आंदोलन से जुड़ने का एक और बड़ा कारण है गन्ने की फसल के दाम में की गयी बहुत कम वृद्धि और गन्ना मीलों द्वारा भुगतान में की जाने वाली देरी |  

मार्च 2017 में, सत्ता में आने के बाद से योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की कीमत में मात्र 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है | 

लगातार बढ़ते हुए पेट्रोल और डीज़ल के दामों ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं | 

ऐसे में किसान इन तीन बिलों का खुलकर विरोध कर रहे हैं और इन्हें अपने लिए डेथ वारंट के समान बता रहे हैं | 

राकेश टिकैत के नेतृत्व से किसानों की उम्मीद बढ़ी है | आंदोलन से जुड़े कुछ नेता किसानो के चुनाव लड़ने तक की सलाह दे चुकें हैं | 

लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा का मानना है कि चुनाव लड़ने की सोच आंदोलन के मुख्य मुद्दों को खत्म कर देगी | 

राकेश टिकैत और संयुक्त किसान मोर्चा उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव प्रचार करने की रणनीति बना चुके हैं और अब देखा होगा की उनकी बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हराने की ये कोशिश सफल हो पाती है या नहीं |  

क्योंकि और किसी भी तरीके से सरकार पर दबाव नहीं बन रहा है शायद सत्ता को बचाए रखने की चाहत में सरकार किसानों की बात मान ले | 

आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं कि क्या उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सरकार किसानों की बात मान लेगी | 

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Mohan

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