रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय

जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलायेगी ही, अम्बर पर घन बन छायेगा ही उच्छवास तुम्हारा। और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है। थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

भारत देश सैकड़ों सालों तक अंग्रेज़ों का गुलाम रहा है इसी गुलामी से आज़ादी हासिल करने के लिए न जाने कितने ही स्वतंत्रता सैनानियों ने अपनी जाने कुर्बान कर दी।

किसी भी देश को गुलामी से बाहर निकलने के लिए स्वतंत्रता सैनियों जितना ही जरूरी होता है आम लोगों के बीच आंदोलन की भावना पैदा करना आम लोगों के अंदर एक आग पैदा करना जो आग गुलामी को पिघला दे , वो आंदोलन जो कठोर राज करने वालो का तख्ता पलट कर दे।

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ऐसे आंदोलनकारी बहुत हुए है हमारे देश में जिन्होंने आम लोगो के अंदर आज़ादी की भूख पैदा की , वो न तो किसी आंदोलन में शामिल हुए , न उन्होंने हथियार उठाये और न ही उन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाया उन्होंने सिर्फ अपनी कलम के दम पर ही आम लोगो के अंदर आंदोलन की भावना पैदा की और आम लोगो को, किसानों को, घर में काम करने वाली महिलाओं को आज़ादी का पथ पढ़ाया और उनके अंदर आंदोलन की भावना को तीव्र किया।

हम ऐसे ही एक क्रन्तिकारी कवि की बात कर रहे है जिसका जीवन बेशक कितनी ही कठिनाइओं से गुज़रा हो लेकिन उसने अपनी कलम की मदद से आने वाली पीढ़ी की कठिनाइयां दूर कर दी। हम बात कर रहे है राष्ट्रवादी और क्रन्तिकारी कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की।

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जन्म और जवानी

रामधारी जी बिहार राज्य से संबंध रखते थे।  उनका जन्म मुंगेर जिला के सिमरिया गांव में 23  सितम्बर 1908 में हुआ। उनके पिता जी का नाम रवि सिंह था और माता जी का नाम मनरूप देवी था।  घर के हालत आर्थिक तौर पर ठीक नहीं थे उनके पिता खेती बड़ी का काम करते थे। जिससे बीएस आई चलाई ही हो पति थी।  माता जी उस समय की दूसरी औरतों की तरह गृहिणी थी। 

रामधारी जी जब केवल 2 वर्ष के थे तब उनके पिता जी की आकस्मक देहांत ने पुरे घर को झकझोड़ कर रख दिया। उनके पालन पोषण का पूरा जिम्मा माता जी के कंधों पर आ गया और उन्होंने हार न मानते हुए अपने बच्चों को पला।

झा पर उनका घर था वो जगह प्रकृति के बेहद करीब थी तो उन्होंने बचपन से ही खेत  खलिहान तरह तरह क वृक्ष और पशु पंछी देखे थे तो प्रकृति से उनका लगाव ज़ाहिर सी बात थी। 

उन्होंने अपनी पढ़ाई मोकामाघाट हाई स्कूल से की और उस समय बच्चों का छोटी उम्र में विवाह करने का रिवाज़ था तो इसी रिवाज़ के चलते रामधारी जी का विवाह भी हो गया और कॉलेज जाते जाते वो एक बच्चे के पिता भी बन गए थे। 1932 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स इतिहास में किया।

बी ए में उत्तीर्ण होने के बाद 1934 में उन्होंने एक विद्यालय में शिक्षक के पद पर नौकरी हासिल की और इसके बाद बिहार सरकार ने उन्हें सब रजिस्ट्रार की नौकरी दे दी। 

वही से उन्होंने अपनी रचनाये लिखनी शुरू की। वही रह कर ही उन्होंने अपनी पहली और बहुचर्चित रचनाये रेणुका और हुंकार लिखी। जब उनकी रचनाये प्रकाशित हुई और अँगरेज़ सरकार  तक पहुंची तो सरकार समझ गयी के एक क्रन्तिकारी को उन्होंने अपने पास नौकरी पर रखा है।

उनकी रचनाओं से सरकार को ख़ुशी नहीं हुई बल्कि 4 साल में उनका 22 बार तबादला इधर से उधर किया गया। रामधारी ज्यादार इकबाल, रबिन्द्रनाथ टैगोर, कीट्स और मिल्टन जैसे साहित्यकारों को पढ़ते थे और उनसे बहुत प्रभावित होते थे। रामधारी जी की रचनाएँ पढ़ कर नौजवानों में जोश भर जाता था उनमे देश भक्ति की भावना तीव्र गति पकड़ लेती थी। देश को स्वतंत्रता दिलाने में रामधारी जी की रचनाओं का अहम् हिस्सा रहा है।

1947 में स्वाधीनता हासिल करने के बाद उनको बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त किया गया और वो मुज़्ज़फरनगर आ गए। 1952 में आज़ाद भारत का कानून लागु होने के बाद इसकी अपनी राज्यसभा बनी तो रामधारी जी को राज्यसभा का मेंबर चुना गया और वो लगभग 12 वर्षों तक राज्यसभा के मेंबर के रूप में कार्य करते रहे।

इतनी बड़ी शक्शियत को भागलपुर की यूनिवर्सिटी का कुलपति नियुक्त किया गया ये समय 1964 – 1965 का था जब इसी समय भारत सरकार को रामधारी जी की कमी महसूस हुई और उनको दोबारा सरकार ने अपने पास हिंदी सलाहकार के रूप में बुला लिया और वो फिर से दिल्ली आ गए।

रचनाएँ

रामधारी जी एक अलग सोच के कवि थे। जिनके अंदर राष्ट्रप्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी और वो यही भावना देश के नौजवानों में भरना चाहते थे और वो इसमें कामयाब भी हुए। उनकी रचनाओं में वीर रस था जो किसी भी व्यक्ति के पढ़ते ही उसके अंदर जोश भर देता था।  उनका बचपन बहुत  मुश्किल दौर से गुज़रा।  वो इस दर्द को अच्छे से समझते थे। उन्होंने सामाजिक समानता , सामाजिक शोषण के ऊपर रचनाये लिखी और लोगों को समानता की सीख दी।

उनकी रचना भूषण के बाद उन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ वीर रस का कवि मन गया। उनकी सिर्फ एक रचना उर्वर्शी ही व्यक्तिगत प्रेम के ऊपर लिखी हुई थी बाकि की सभी कृतियां व्यक्तिगत प्रेम की जगह राष्ट्रप्रेम पर लिखी गयी।

 उनकी कुछ श्रेष्ठ रचनाये इस प्रकार हैं 

  • रेणुका
  • हुंकार
  • रसवंती
  • द्वन्दगीत
  • कुरुक्षेत्र
  • धुप छाह
  • सामधेनी
  • बापू
  • इतिहास के आंसू
  • धुप और धुआं
  • मिर्च का मज़ा
  • रश्मिरथी
  • दिल्ली
  • नीम के पत्ते
  • सूरज का ब्याह
  • नील कुसुम
  • चक्रवाल
  • कविश्री
  • सीपे और शंख

इनके इलावा भी उन्होंने बहुत सारी रचनाएँ की जो आज भी साहित्य पढ़ने वालों के बीच उतनी ही लोकप्रिय हैं जितनी पहले थी। आज भी पाठक उनकी रचनाये पढ़ कर जोश में आ जाते हैं।

सम्मान

रामधारी जी को उनकी रचनाओं के लिए बहुत साडी वरिष्ठ सम्मानों से नवाज़ा गया। 1959 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार दिया गया उनकी बेहतरीन रचना संस्कृति के चार अध्याय के लिए। इसके इलावा उन्हें 1959 में  भारत के उस समय के मौजूदा राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा पद्म विभूषण पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। 1972 में उन्हें अपनी राष्ट्रवाद से हटकर प्रेम पर लिखी गयी रचना उर्वर्शी के लिए ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

अंतिम समय

रामधारी सिंह दिनकर जी ने अपना अंतिम समय अपने परिवार के साथ बिताया। हिंदी के इस महान साहित्यकार हमे 24 अप्रैल 1974 को सदा के लिए अलविदा कर गया और अपनी रचनाओं के ज़रिये हमारे अंदर देश भक्ति की ऐसी भावना पैदा कर गया जो आने वाले  अनेकों दशकों तक हमारे दिलों के अंदर आग बनकर जलती रहेगी।  वीर रस के ऐसे कवि जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र भाव को समर्पित कर दिया ऐसे निडर कवि को हम शत शत नमन करते हैं।

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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