Bhavai Movie Review in Hindi – कोरोना के चलते देश भर में थिएटर बंद हो गए थे जिससे फ़िल्मी जगत को काफी नुकसान उठाना पड़ा पर हालत जैसे जैसे हालत ठीक होते गए वैसे ही हमे बहुत अच्छी अच्छी फ़िल्में थिएटर में देखने को मिली | इस साल दशहरे पर हमे भवई नाम की फिल्म देखने को मिली |
इस फिल्म का नाम पहले रावण लीला रखा गया था लेकिन आजकल के हालात में ऐसे नाम के साथ फिल्म रिलीज़ करना फिल्म निर्माताओं को उचित नहीं लगा |
क्यूंकि आश्रम के सीजन 3 की शूटिंग के दौरान जिस तरह प्रकाश झा पर स्याही फेंकी गयी उससे रावण लीला नाम रखने पर भी लोगों की भावनाएं आहत होनी ही थी |
इस फिल्म में प्रतीक गांधी हमें बतौर एक्टर दिखे, हम इससे पहले प्रतीक गांधी को स्कैम 1992 नाम की वेब सीरीज में देख चुके हैं और उस सीरीज में उन्होंने जो एक्टिंग की थी, उससे हम सब वाकिफ हैं |
ये प्रतीक की लीड एक्टर के रूप में पहली हिंदी फिल्म है, इससे पहले उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में छोटे छोटे रोल ही किये हैं | भवई फिल्म आज के समय की लव स्टोरी है जो आज के समय से हटके है | आज हम इसी फिल्म के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे |
भवई की कहानी
खाखर नाम के एक गांव में कभी भी लोगों ने कोई भी मनोरंजन का साधन नहीं देखा | लोगों ने कभी सिनेमा और ड्रामा नहीं देखा पर अचानक उस गांव में भंवर नाटक कंपनी आती है और दशहरे पर राम लीला का आयोजन करती है जिससे गांव के लोगों में उत्साह भर जाता है |
राजा राम जोशी यानी प्रतीक गाँधी , एक एक्टर बनना चाहते हैं और गांव में हो रही रामलीला में काम करना चाहते है , रामलीला में उन्हें रावण का किरदार दिया जाता है | रामलीला में ही सीता से प्रेम हो जाता है यानी सीता का किरदार निभाने वाली अदाकारा ऐन्द्रिता राय से |
मंच के रावण और मंच की सीता के प्रेम को देखकर गांव के लोग खुश नहीं होते और उन दोनों को किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है वो इस फिल्म में दिखाया है |
फिल्म के बारे में मानसिकता
फिल्म निर्माता ने इस फिल्म के ज़रिये लोगों की बीमार मानसिकता को दिखने का यत्न किया है | तस्वीर साफ है, राम नाम के एक्टर को रावण का किरदार दिया जाता है, और ऊपर से उस रावण को सीता से प्रेम हो जाता है और लोग उनके प्रेम के खिलाफ है |
क्योंकि रावण और सीता का कभी मेल नहीं हो सकता और हमे सुरु से यही सिखाया है, पर असल में निर्माताओं ने ये बताने की कोशिश की है के मंच के किरदार और असल ज़िंदगी के किरदारों में बहुत फर्क होता है |
मंच का रावण, असल जिंदगी में रावण नहीं है और न ही सीता, असलियत में सीता है | वो सिर्फ किरदार है जो हमे उन महान शख्शियतों के बारे में बता रहे हैं |
इन हालातों में आग में पेट्रोल डालने का काम कुछ लोकल नेता और धर्म के लोग करते हैं जो वास्तव में राम और ऐन्द्रिता को रावण और सीता की मूर्त समझकर उनके प्रेम को अंत तक नहीं पहुंचने देना चाहते |
पहले इस फिल्म का नाम रावण लीला था, पर जब इसका ट्रेलर रिलीज़ हुआ तो लोगों ने इसका विरोध किया | लोगों को लगा के शायद इस फिल्म में रावण द्वारा किये गए गलत कर्मों को किसी हीरो जैसे दिखाया गया है |
ट्रेलर को लेकर हुए विरोध की वजह से निर्माताओं ने इसका नाम बदल कर भवई कर दिया | पर नाम बदलने से लोगों की मानसिकता नहीं बदलती |
निर्माता ने बहुत सूझबूझ से काम लिया , फिल्म किसी तरह के और विवादों ने न आये इसके लिए उन्होंने बहुत ध्यान से जो शब्द उन्हें ठीक नहीं लग रहे थे उन्हें म्यूट कर दिया जिससे आप अदाकार की आवाज़ नहीं सुन पाएंगे लेकिन वो क्या बोल रहा है वो समझ जायेंगे |
जैसे एक सीन में मंच का राम अपने सीन से पहले कहीं गायब हो जाता है , फिर बाद में पता चलता है के वो शराब लेने गया था , क्योंकि बिना शराब पिए वो काम ही कर सकता , तो ऐसे में फिल्म निर्माता, राम को शारब के नशे में नहीं दिखा सकते , तो उन्होंने शराब शब्द को म्यूट कर दिया |
निर्माता इन छोटी छोटी चीजों के ज़रिये हमे यही समझने की कोशिश कर रहे हैं के मंच के किरदार और असल जिंदगी के किरदार अलग अलग होते हैं |
फिल्म के बारे में हमारे विचार
प्रतीक गाँधी , गुजराती फिल्मों के एक जाने माने चेहरे हैं , उनकी ये पहली हिंदी फिल्म थी बतौर लीड एक्टर , और उन्होंने ये साबित कर दिया है के वो एक गंभीर एक्टर हैं |
उनके किरदार में कंट्रास्ट है , एक तरफ वो एक राजा राम का किरदार निभा रहे हैं जो प्रेम में मग्न है और अपनी एक्टिंग को लेकर संवेनदशील है और जब वो मंच पर रावण का किरदार निभा रहा है तो ये नहीं लगता के वो वही लड़का है जिसे हम राम के किरदार में देख रहे हैं |
फिल्म में प्रतीक गांधी के अलावा राजेंद्र गुप्ता, अंकुर भाटिया, अंकुर विकल, अभिमन्यु सिंह, राजेश शर्मा, फ्लोरा सैनी और गोपाल के. सिंह जैसे मंझे हुए एक्टर देखने को मिलते हैं |
एक अच्छे मैसेज के लिए, एक अच्छी प्रेम कहानी के लिए और बहुत सारे मंझे हुए एक्टर की अदाकारी देखने के लिए आप ये फिल्म जरूर देखें | ये फिल्म आपको एक बार सोचने पर मजबूर कर देगी के कैसे सिर्फ एक ड्रामा और उसके किरदार , धर्म और राजनीति का विषय बन जाते हैं और कुछ लोग सिर्फ अपने भले के लिए उस विषय का इस्तेमाल करते हैं | फिल्म की कहानी काल्पनिक है परन्तु देश के मौजूदा हालातों को देखते हुए आपको ये किसी की जिंदगी से प्रेरित लगेगी |
इस फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है हार्दिक गज्जर ने , जो उनकी पहली फिल्म है पर अपनी पहली फिल्म में ही उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है | इस फिल्म को IMDB पर 10 में से 6.5 की रेटिंग मिली है |