Red Fort History in Hindi – 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर किसानो के आंदोलन के बीच से कुछ लोगों ने झंडा फहरा दिया | लाल किले की ओर जाना किसानो के उस मार्च में शामिल नहीं था फिर भी कुछ शरारती लोग तय रूट से अलग चल पड़े |

हालाँकि लाल किले पर तिरंगे को किसी ने नुकसान नहीं पहुँचाया और बाहर एक झंडा फहरा दिया गया | और ऐसा भी नहीं है कि लाल किले पर निशान साहिब को पहली बार फहराया गया इससे पहले जब 8 और 9 मार्च 2014, को लाल किले पर “दिल्ली सिख गुरद्वारा मैनेजमेंट कमेटी” की तरफ से फ़तेह दिवस का जश्न मनाया गया तब भी लाल किले पर निशान साहिब को फेहराया गया |
पर तिरंगा उस वक़्त भी अपनी जगह पर ही था | उस वक़्त लाल किले पर निशान साहिब इतिहास की एक घंटा के जश्न के रूप में फहराया गया था |
उस घटना के बारे में और लाल किले के पूरे इतिहास के बारे में आइए जानते हैं |
लाल किले का इतिहास Red Fort History in Hindi
26 जनवरी 2021 की घंटा के बाद लाल किला बहुत चर्चा में आ गया | हर वर्ष भारत के प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर झंडा फहराते हैं और देश के नाम अपना संदेश देते हैं |
ये सिलसिला आज़ादी के बाद से चल रहा है |
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से पहली बार झंडा फहरा कर इसके महत्त्व को ओर भी बढ़ा दिया था |
वैसे 2018 में मोदी सरकार ने लाल किले को 5 साल के लिए डालमिया ग्रुप को 25 करोड़ रुपये में दे दिया था |
जिसके बाद डालमिया ग्रूप पहला कॉर्पोरेट हाउस बन गया जिसने किसी ऐतिहासिक स्मारक को खरीदा | ब्रिटैनिका के अनुसार मुग़ल बादशाह के बनाए लाल किले से पहले भी दिल्ली में एक लाल क़िला बनाया गया था |
उस लाल किले को 11 वीं शताब्दी में पुरानी दिल्ली में तोमर राजा अनंगपाल ने बनवाया था | हालाँकि कुछ लोग इस बात को लेकर भ्रम फैलते हैं कि मौजूदा लाल किला ही राजा अनंगपाल ने बनवाया था | ऐसा नहीं है और राजा अनंगपाल के द्वारा बनवाये गए उस लाल किले की जगह पर कुतुब मस्ज़िद बनी हुई है |
लाल किले पर ना जाने कितने ही शासकों ने राज किया, लाल किले ने मुगलों की शानो शौकत से लेकर लूटेरों की लूट भी देखी और आज़ादी के बाद लाल किला भारत की शान का प्रतीक बन गया है |
साल 2007 में लाल किले को यूनेस्को की तरफ से वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया था | सन 1627 में पाँचवें मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने तख्त संभाला था | उस समय मुग़लों की राजधानी आगरा थी |
मुग़ल बादशाह आगरा के लाल किले में रहता था | पर शाहजहाँ को आगरा की गर्मी अच्छी नहीं लग रही थी | इसलिए वो अपनी राजधानी को कहीं ओर ले जाना चाहता था |
इसके बाद बादशाह ने फ़ैसला लिया की मुग़ल साम्राज्य की राजधानी आगरा ना होकर दिल्ली होगी | शाहजहाँ ऐसा मुग़ल बादशाह था जिसे बड़ी बड़ी इमारतें बनवाने का बहुत शौंक था |
वैसे तो मुग़ल बादशाहों ने पूरे भारत में विश्व प्रसिद्ध इमारतों का निर्माण करवाया था | लेकिन आगरा का ताज महल और दिल्ली का लाल किला मुग़ल वास्तुकला के अद्भुत विश्व प्रसिद्ध नमूने हैं |
शाहजहाँ के कारीगरो उस्ताद हमीद और उस्ताद अहमद ने दिल्ली के लाल किले के निर्माण के लिए यमुना के किनारे की जगह को सबसे सही स्थान के रूप में चुना |
उस्ताद अहमद लाहोरी के बारे में कहा जाता है की ताज महल का निर्माण भी इन्हीं की देखरेख में किया गया था | इसके बाद 1639 में लाल किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ | इस किले को बनाने में 9 सालों का समय लगा |
लाल किले का भवन Red Fort Building History in Hindi
13 मई 1648 को लाल किला बनकर पूरी तरह से तैयार हो चुका था | 1648 से लेकर 1857 तक दिल्ली का लाल किला मुगलों का शाही निवास रहा, उससे पहले आगरा का लाल किला मुग़ल बादशाहों का शाही निवास था |
हालाँकि इस बीच मराठों, नादिर शाह, अब्दाली और सिखों ने भी लाल किले को जीता | लाल किले में बहुत सी दूसरी भव्य इमारतें भी हैं जिनमें दीवान ए आम और दीवान ए खास प्रयटकों की पसंदीदा जगहें हैं |
दीवान-ए-आम में 60 लाल रंग के सैंडस्टोन के पिल्लर्स हैं, दीवान-ए-आम को आम लोगों के लिए बनाया गया था | यहाँ पर मुग़ल बादशाह प्रजा की परेशानियाँ सुना करते थे |
जबकि दीवान-ए-खास सफेद मार्बल पथरों से बना है जिसे प्राइवेट ऑडियन्स के लिए बनाया गया था | यहाँ बादशाह अपने खास लोगों के साथ गुप्त बैठकें किया करते थे |
लाल किला लगभग 254 एकड़ में फैला है | किले की रक्षा करने वाली दीवार 2.41 किलोमीटर लंबी है | लाल किले की जो दीवार शहर की ओर लगती है उसकी ऊंचाई 33 मीटर है |
इतिहास के अनुसार लाल किले के बिल्कुल सामने शाहजहानाबाद शहर को बसाया गया था जिसे आज दिल्ली के नाम से जाना जाता है | दिल्ली का लाल किला आगरा के लाल किले से दुगने आकार का है और यमुना नदी की तरफ से इसकी दीवारें 60 फीट उँची हैं |
लाल किले की प्राचीर का निर्माण मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के द्वारा करवाया गया था | लाल किले के सामने के बाज़ार को मीना बाज़ार या छता बाजार कहा जाता है |
लाल किले में मुख्य रूप से तीन दरवाजे हैं जिन्हें लाहोरी दरवाजा, दिल्ली दरवाजा और पानी दरवाजा कहा जाता है | लाहोरी दरवाजा लाल किले का मुख्य दरवाजा है |
लाहोर की तरफ इस दरवाजे का मुँह होने के कारण इस दरवाजे को लाहोरी दरवाजा कहा जाता है | जबकि दिल्ली दरवाजा किले के दक्षिण की और है इस दरवाजे के दोनो और पत्थर के विशाल हाथी बने हुए हैं जिन्हें औरंगज़ेब ने तुड़वा दिया था |
इसके अलावा इसमें मुमताज़ महल और रंग महल है | इनमें बादशाह की पत्निया रहा करती थी | मुमताज़ महल में आजकल संग्राहलय है | औरंगज़ेब ने लाल किले में एक निजी मस्जिद का निर्माण करवाया था जिसे मोती मस्जिद कहा जाता है |
लाल किले की लूट Red Fort Plunder History in Hindi
औरंगज़ेब के मरने के बाद मुग़लों की ताक़त कमजोर होने लगी थी और छोटी छोटी रियासतों ने विद्रोह कर दिया था | औरंगज़ेब के बाद 30 सालों तक लाल किला लावारिश हो गया |
1712 में जहंदर शाह शासक बना था पर कुछ ही सालों बाद जहंदर शाह को मारकर फर्रुखसियर राजा बना | फर्रुखसियर ने लाल किले में बहुत लूट मचाई थी | उसने लाल किले की छतों पर लगी चाँदी को उतरवा दिया और वहाँ तांबा जड़वा दिया |
इसके बाद 1719 में लाल किले पर मोहम्मद शाह का शासन हो गया | मोहम्मद शाह को लोग रंगीले राजा के रूप में भी जानते थे | 1739 में ईरान के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण करके मुगलों की सेना को हरा दिया |
लाल किले में तीन महीने तक रहने के बाद वो वापिस ईरान लौट गया लेकिन जाते जाते उसने दिल्ली और लाल किले को पूरी तरह लूट लिया | नादिर शाह लाल किले से तख्त ए ताउस और कोहिनूर हीरे को लूट कर अपने साथ ले गया |
नादिर शाह से हारने के बाद मुगलों ने मराठों के साथ संधि कर ली थी | इस संधि के तहत मराठों ने मुगलों और लाल किले की रक्षा करना का वादा किया |
इसके बाद 1760 में अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर कब्ज़े करने की धमकी दी |
उस समय मराठाओं ने आगे बढ़ते हुए मुगलों की मदद की | हालाँकि उस समय पूरे भारत पर एक तरह से मराठों की हुकूमत चलती थी | मराठाओं ने अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिए दीवान-ए-खास की चाँदी की छत को उखाड़ दिया |
अहमद शाह दुर्रानी और मराठों के बीच पानीपत के मैदान में तीसरा युद्ध हुआ | इस लड़ाई में मराठों की हार हुई और दिल्ली के लाल किले पर दुर्रानी ने अपना अधिकार कर लिया |
इसके बाद 1771 में मराठों के द्वारा लाल किले को फिर से सुंदर बनाया गया और शाह आलम द्वितीए को लाल किले की गद्दी पर बिठाया गया |
शाह आलम द्वितीए 16 वें मुग़ल बादशाह के रूप में गद्दी पर बैठे थे | इसके बाद एक ऐसा दौर भी आया जब सिख फौज ने दिल्ली को अपने कब्ज़े में ले लिया था |
सिखों की दिल्ली फ़तेह Fateh Diwas
1783 में बाबा बघेल सिंग, बाबा जस्सा सिंह अलुवालिया और बाबा जस्सा सिंग रामगढ़िया तीनो ने सिख फ़ौजों को लीड किया था | तब सिख फ़ौजों ने मुग़ल बादशाह शाह आलम को हराकर लाल किले पर निशान साहिब को फहरा दिया था |
उस समय जब दिल्ली की सड़कों पर विजय जुलूस निकाला गया तो सिख, हिंदू और यहाँ तक की मुसलमान भाइयों ने भी इसमें शिरकत की | क्यूंकी सिखों ने उन्हें मुग़लों के क्रूर शासन से आज़ादी दिलवाई थी |
हालाँकि बाद में सिख फ़ौजें शाह आलम को लाल किला वापिस सौंपने के लिए राज़ी हो गई थी | जिसके बदले में मुगलों के द्वारा दिल्ली में सिखों के लिए 7 गुरुद्वारों का निर्माण करवाया गया |
1788 में मराठों ने किले को अपने कब्ज़े में ले लिया और खुद उस किले से राज करने लगे | लेकिन शायद लाल किले को मराठों की सत्ता भी रास नहीं आई और 1803 में हुए दूसरे आंग्लो मराठा वॉर के बाद मराठों से ये किला छिन गया |
जनवरी 1858 में लाल किले में ही आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर अँग्रेज़ों के द्वारा मुक़दमा चलाया गया था | 1857 में भारत ने अँग्रेज़ों के खिलाफ सबसे पहले क्रांति की मशाल बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में जलाई थी |
अंग्रेजों ने जब इस क्रांति का दमन किया तो उन्होने लाल किले पर अपना अधिकार कर लिया | इसके बाद अँग्रेज़ों ने इसमें बहुत से बदलाव किए और कई इमारतों को गिरा कर फौजियों की बेरकों का निर्माण कर दिया गया |
अब लाल किला एक राजमहल ना होकर अंगेजों की फ़ौजों की छावनी बन चुका था | अंग्रेज़ो ने लाल किले का ज़्यादातर कीमती सामान इंग्लेंड भेज दिया, कुछ समय पहले ब्रिटेन में इस बात को लेकर बहस चली थी की इंग्लेंड में जो बड़ी बड़ी ऐतिहासिक बिल्डिंग्स बनी हैं वो सभी लूट के पैसों से बनी है |
सन 1940 में भारत में अँग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया. उस समय सुभाष चंद्रा बोज़ ने दिल्ली चलो का नारा दिया और लाल किले पर झंडा फहराने का आहवान किया |
लाल किले से ही अँग्रेज़ों ने आज़ाद हिंद फौज के अफसरों पर मुक़दमे चलाए | आज़ाद हिंद फौज के बहुत से अफ़सर किले में ही क़ैद करके रखे गये थे |
आई एन ए के तीन टॉप मेंबर्ज़ शाहनवाज़ ख़ान, प्रेम सहगल और गुरबक्ष ढिल्लों पर ब्रिटिश इंडिया के खिलाफ विद्रोह और जंग छेड़ने का मुक़दमा रेड फ़ोर्ट में चला |
हिंदू, मुस्लिम और सिख पहचान वाले इन ऑफिसर्स ने देश में एकता को बढ़ावा दिया | आज़ाद हिंद फौज की तरफ से जवाहर लाल नेहरू, भुला भाई देसाई और कैलाश नाथ काटजू ने मुक़दमा लड़ा था |
लाल किले में चले उस मुक़दमें ने आज़ाद हिंद फौज को अलग पहचान दिलाई और देश के लोगों में क्रांति की ज्वाला को और प्रजवलित किया | जिन लोगों के दिमाग़ में नेहरू के प्रति फैल रही झूठी बातों की वजह से एक छवि बन गइ है उन्हें इस बात के बारे में ज़रूर जानना चाहिए |
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