संभाजी राजे भोसले का गौरवान्वित इतिहास

भारत के इतिहास में बहुत से वीरों ने जन्म लिया | लेकिन कुछ ही वीर योद्धाओं की कहानी हम जानते हैं | मराठा, सिक्ख, जाट सबने अपनी ताक़त का लोहा मनवाया |

आज हम आपको भारत के एक ओर वीर सपूत और छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज के बारे में बताने वाले हैं |

इस योद्धा की वीरता और औरंगज़ेब की क्रूरता की गाथा को सुनकर आपकी रूह तक काँप जाएगी |

दोस्तों उस वीर का नाम है संभाजी महाराज जिन्हें समस्त मराठा संभाजी राजे भोंसले के नाम से जानते हैं | संभाजी राजे का बचपन और जीवन परेशानियों से भरा था |

परेशानियों और देश व धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा ने संभाजी महाराज को इतना मजबूत बना दिया कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की हैवानियत भी उन्हें टस से मस नहीं कर पाई |

आइये जानते हैं संभाजी महाराज की पूरी कहानी अजब गजब फैक्ट्स के माध्यम से |

छतरपति संभाजी महाराज का इतिहास

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Sambhaji Maharaj History in Hindi

संभाजी का बचपन

संभाजी महाराज शिवाजी महाराज के बड़े बेटे थे | संभाजी का जन्म 14 मई 1647 को हुआ था | वो छतरपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी साईबाई के पुत्र थे |

जब वो केवल दो वर्ष के थे तब उनकी माता साईबाई का देहांत हो गया था |

इसके बाद उनके पालन पोषण उनकी दादी जीजाबाई ने किया था |

संभाजी के पिता शिवाजी राजनितिक गतिविधियों में बहुत अधिक व्यस्त रहते थे | जिसकी वजह से वो दादी जीजाबाई के बहुत करीब थे |

शिवाजी महाराज का पुत्र होने की वजह से संभाजी को छवा कहकर भी बुलाया जाता था | जिसका मराठी अनुवाद होता है शावक यानि “शेर का बच्चा” | असल में भी वो शेर के बच्चे समान ही थे | वो बलशाली होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थे |

सिर्फ 13 वर्ष की आयु में ही उन्होंने 13 भाषाएँ सीख ली थी | यही नहीं वो छोटी सी आयु में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरन्दाजी के साथ साथ हर प्रकार का अस्त्र शस्त्र चलाना सीख गए थे |

एक राजनीतिक समझौते के तहत उनका विवाह येशुबाई से कर दिया गया जो कि पिलाजीराव शिरके की पुत्री थी |
उनका बचपन कठिनाइयों और संघर्ष से भरा हुआ था |

जब वो केवल 9 वर्ष के थे तब उन्हें पिता शिवाजी के साथ औरंगज़ेब के दरबार में हाजिर होना पड़ा | उस समय शिवाजी एक संधि के तहत औरंगज़ेब का साथ दे रहे थे | लेकिन औरंगज़ेब ने पिता और पुत्र दोनों को बंदी बना लिया |

लेकिन पिता और पुत्र दोनों बड़ी चालाकी से वहां से भागने में सफल रहे |

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संभाजी का राजभिषेक

संभाजी की सौतेली माता से उन्हें धोखा मिला जो अपने पुत्र राजाराम को महाराज बनाना चाहती थी |

लेकिन संभाजी ने अपनी सौतेली माँ सोयराबाई के भाई हम्बीराव मोहिते को अपने साथ मिला लिया |

संभाजी ने आसानी से रायगढ़ को जीतकर सोयराबाई को बंदी बना लिया |

1681 में संभाजी ने खुद को छत्रपति घोषित किया और खुद का राजभिषेक करवाया |

संभाजी और औरंगज़ेब में लगातार युद्ध चलता रहा | औरंगज़ेब को लगा था कि वो खुद मराठों पर हमला करके बड़ी आसानी से पूरे दक्कन को हथिया लेगा | लेकिन संभाजी ने उसे इतनी कड़ी टक्कर दी कि फिर उसने छल कपट का सहारा लिया |

कहते हैं कि संभाजी और मुगलों के बीच बहुत सी लड़ाइयां लड़ी गयी जिनमें अधिकतर में मराठों की विजय हुई तो कुछ में हार |

संभाजी के परिवार के एक व्यक्ति ने उनके और कवी कलश के अकेले जाने की सूचना मुग़ल सेनापति मुकर्रब ख़ान को दे दी |

तब मुकर्रब खान ने संभाजी और कवि कलश को बंदी बना लिया |

औरंगज़ेब के सामने संभाजी

संभाजी को पकड़ने के बाद उनपर बहुत से जुल्म किये गए | औरंगज़ेब अपनी क्रूरता के लिए इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा |

जब पहली बार संभाजी और कवि कलश को औरग़ज़ेब के दरबार में लाया गया तो औरंगज़ेब बहुत खुश हुआ | उसने झुक कर मक्के की ओर हाथ उठा कर अपने खुदा का धन्यवाद् किया |

जिस पर कवि कलश ने कहा कि वो संभाजी से प्रभावित होकर उसके स्वागत में ऐसा कर रहा है | इस पर औरंगज़ेब बहुत अधिक क्रोधित हो गया और उसने संभाजी और कवि कलश को कैद कर बहुत सी यातनाएं दी |

औरंगज़ेब सबको मुसलमान बनाना चाहता था उसने संभाजी और कवी कलश को छोड़ने के लिए भी 3 शर्तें रखी |

पहली ये कि संभाजी अपनी पूरी सम्पति, सेना और राज उसके हवाले कर दें |

दूसरी ये कि वो उन सब के नाम बताएं जिन्होंने उनकी मदद की |

और तीसरी ये कि वो इस्लाम कबूल कर लें |

इस पर संभाजी ने कहा कि अगर औरंगज़ेब अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दे तो वो ये शर्तें मान लेंगे | ये सब संभाजी ने औरंगज़ेब से बदला लेने के लिए कहा था |

जिसे सुनकर औरंगज़ेब ओर भी अधिक क्रोधित हो गया और उसने दोनों को ऊंठों पर उल्टा लटका कर जोकरों वाले कपडे पहनाकर पूरे नगर में घुमाया | सभी मुसलमानों को उन पर थूकने को कहा गया |

इसके बाद भी जब उन्होंने वो शर्तें नहीं मानी तो उनकी जीभ काट दी गयी | इसके बाद उनके शरीर के अंगों को एक एक करके अलग किया गया | इस पर भी मराठा सम्राट टस से मस नहीं हुआ |

अंत में उनका सिर भी धड़ से अलग कर दिया गया |

बाद में कुछ मराठाओं ने उनके शरीर के टुकड़ों को सील कर उनका अंतिम संस्कार किया | यहाँ पर कुछ लोगों का कहना है कि गणपत महार नाम के एक दलित ने उनका अंतिम संस्कार किया था |

भारत माता के इस वीर सपूत को हमेशा याद रखा जाएगा | जिसने धर्म और अपनी शान को कम नहीं होने दिया |

दोस्तों अगर आपको लगता है कि इस वीर योद्धा की कहानी हर भारतीय के पास पहुंचनी चाहिए तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करें | ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां इन वीरों के बलिदान को याद रख सकें |

आप अजब गजब फैक्ट्स पर छतरपति शिवाजी और दूसरे बहुत से योद्धाओं की कहानी भी पढ़ सकते हैं |साथ ही इस वीर की शान में कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें |

Mohan

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