Sanjay Gandhi Biography in Hindi – भारत की राजनीति हमेशा से भी देश विदेश की मीडिया का चर्चा बनी रही है | आज़ादी के बाद भारत की बागडोर गाँधी परिवार ने संभाली और उन्होंने भारत के लोगों के लिए बहुत सारे काम किये |
देश की आज़ादी के बाद इतने बड़े देश को चलाना कोई मामूली बात नहीं है इसके लिए बहुत श्र्म और योजना की जरूरत पड़ती है | भारत पर कांग्रेस पार्टी में राज किया है | कांग्रेस का शाशनकाल बहुत लम्बा चला है और आज भी कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार है |
आज हम जिनके बारे में बात करने जा रहे हैं वो गाँधी परिवार के एक सदस्य थे और एक राजनेता थे | हालाँकि उनकी राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी पर फिर भी वो परिवार के लिए राजनीति से जुड़े हुए थे |
1970 का समय भारत की राजनीति है स्वर्णिम समय मन जाता है क्योंकि यही वो समय था जब युवा नेता राजनीति में आ रहे थे और पूरे जोश के साथ देश की सेवा कर रहे थे और यही वो समय था जब गाँधी परिवार में से संजय गाँधी सत्ता में आये और उन्होंने बहुत कम समय में ही बहुत बड़े बड़े काम कर दिए | हालाँकि उन्हें बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा पर वो डटे रहे |
वो गाँधी परिवार के वरिष्ठ थे और ऐसा माना जाता है के अगर संजय गाँधी जिन्दा होते तो इंदिरा गाँधी के बाद देश की कमान वही संभालते | उन्होंने अपनी मां को सफलता दिलाने में बहुत सहायता की |
संजय गाँधी ने 1970 के समय भारतीय राजनीति में उथल पुथल मचा दी थी | पर वो राजनीति न करके एक ऑटोमोबाइल इंजीनयर बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने पढ़ाई भी की और दुनिया की मशहूर रोल्स रॉयस कम्पनी में काम भी किया पर उसके बाद उन्होंने पायलेट की पढ़ाई की और लाइसेंस प्राप्त किया |
आइये आज हम इसी प्रतिभाशाली नेता के बारे में जानते हैं |
संजय गांधी का जीवन परिचय Sanjay Gandhi Biography in Hindi
कार बनाने और प्लेन उड़ाने का था शौक
संजय का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में हुआ था | इनकी माता जी का नाम इंदिरा गाँधी और पिता जी का नाम फ़िरोज़ गाँधी था और इनके नाना जी का नाम पंडित जवाहर लाल नेहरू था | बचपन से ही ये जिद्दी स्वभाव के थे और पढ़ाई से कतराते थे |
इनकी प्रारम्भिक पढ़ाई वेल्हम बॉयज स्कूल से हुई | इसके बाद इन्हें मशहूर दून स्कूल में दाखिल करवाया | इनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था बल्कि इनको कारों का बहुत शोक था और ये बिना पढ़े ही ऑटोमोबाइल इंजीनयर बनना चाहते थे |
कारों के प्रति इनका प्रेम इन्हें इंग्लैंड ले गया और इन्होंने रॉल्स रोयस कम्पनी में 3 साल की ट्रेनिंग ली इसके बाद ये भारत वापिस आ गए और जहाज़ उड़ाना सीखा और पायलट का लाइसेंस भी लिया | घर में राजनीतिक माहौल होने के कारण ये खुद को राजनीति में उतरने से रोक नहीं पाए |
संजय गांधी का राजनीतिक सफर
कितने दशकों से भारत की राजनीति बहुत आराम से चल रही थी | पर ऐसा माना जाता है के संजय के राजनीति में आने से राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन आया | 1974 तक सब कुछ सही चल रहा था संजय भी अपने कदम राजनीति में पक्के कर रहा था पर उस समय देश की दूसरी पार्टियों और विपक्ष ने पूरे देश में हड़ताल कर दी जिससे कांग्रेस सरकार को भरी झटका लगा और देश की अर्थव्यवस्था भी डगमगा गयी |
इसी समय जब इंदिरा गाँधी को कुछ नहीं सूझा तो आनन फ़ानन में उसने देश में आपातकाल लगा दिया | लोक सभा चुनाव रोक दिए गए , गैर कांग्रेस सरकारों को बर्खास्त कर दिया , प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गयी और सरकार का विरोध करने वाले हरेक आम खास नागरिक को या तो जेल में डाला गया या नज़रबंद किया गया |
इस समय संजय राजनीति में कुछ अलग करना चाहते थे तो उन्होंने अपने नियम बनाने शुरू कर दिए | ऐसा भी माना जाता है के आपातकाल के समय जितने भी कठोर निर्णय लिए गए थे वो इंदिरा गाँधी ने नहीं बल्कि संजय ने लिए थे |
इस समय इंदिरा गाँधी ने देश की भलाई के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम को घोषित किया पर संजय ने उसे घटा कर 5 सूत्री कर दिया जो इस प्रकार थे
- शिक्षा,
- परिवार नियोजन,
- वृक्षारोपण,
- जातिवाद के बंधन को तोड़ना और
- दहेज़ प्रथा का खात्मा |
पर बाद में इसे इंदिरा गाँधी के सूत्रों के साथ मिला दिया गया |
जब संजय गाँधी की दखलअंदाज़ी भारतीय राजनीति में बढ़ गयी तो बहुत सारे वरिष्ठ नेताओं ने त्याग पत्र दे दिया जिससे सरकार और कमजोर हो गयी | संजय को किसी विषय, विभाग या राजनीति की इतनी ज्यादा समझ नहीं थी |
उस समय प्रेस जो किसी भी लोकतंत्र का अटूट अंग होती है उसमे भी संजय ने अपनी दखलअंदाज़ी दिखाई | उस समय सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल जी ने भी अपना अस्तीफा दे दिया था जिसकी वजह संजय गाँधी था |
बहुत दिक्क्तों के बाद 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनाव हुए | जिसमे संजय गाँधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और उसकी हर हुई और बाकी दूसरी जगहों पर भी कांग्रेस और इंदिरा गाँधी की हार हुई |
इस समय केंद्र में जनता पार्टी आयी परन्तु पार्टी के सदस्यों की आपसी लड़ाई के चलते डेढ़ साल में ही मोरारजी देसाई की सरकार टूट गयी और उसके बाद चरण सिंह ने सरकार बनाई | पर वो भी देश को चलने में सफल नहीं हुए और यही वो मौका था जब संजय ने अपनी प्रतिभा दिखाई
संजय ने सरकार की न कामयाबियों को जनता के सामने रखना शुरू किया और एक अब्र फिर से कांग्रेस का प्रचार करना शुरू किया | सिर्फ 3 साल में ही जनता पार्टी टूट गयी | 1980 में फिर से चुनाव हुए और संजय ने फिर से अमेठी से चुनाव लड़ा और इस बार कांग्रेस की भारी जीत हुई | कांग्रेस की सत्ता में वापसी का श्रेय संजय को मिला |
संजय और मारुती 800
संजय का कारों के प्रति लगाव किसी से छुपा नहीं है | संजय भरत के मध्यम वर्ग के लिए ऐसी कार बनाना चाहते थे जिसे हर कोई खरीद सके | इसके लिए 1971 में उन्होंने इंदिरा गाँधी से मशवरा किया और ‘मारुती मोटर्स लिमिटेड’ नाम की कम्पनी का गठन किया और तभी से ही ये विवादों का कारण बना | क्योकिं संजय को कार निर्माण का कोई तजुर्बा नहीं था | यह विवाद धीरे धीरे भर्ष्टाचार का विवाद बना |
संजय ने जर्मनी की मशहूर कम्पनी को कार का निर्माण करने के लिए बुलाया परन्तु उस समय देश की हालत देख कर उन्होंने मना कर दिया | ये वही समय था जब भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध चल रहा था |
युद्ध के कारण कुछ समय के लिए ये मसला दबा रहा पर युद्ध खत्म होते ही संजय और उसकी कम्पनी विवादों में आ गयी | कांग्रेस सरकार टूटने के बाद जनता पार्टी की सरकार ने इसकी जांच के लिए न्यायमूर्ति ए. पी. गुप्ता को बैठाया |
संजय जीते जी तो आम लोगों के लिए कार नहीं बना पाए पर उनकी मृत्यु के बाद 1980 में इंदिरा गाँधी ने जापान की सुजुकी अमान्य को भारत बुलाया और उसके साथ मिल कर ‘मारुती उद्योग लिमिटेड’ के तहत मारुती 800 कार का निर्माण किया |
संजय गांधी का विवाह
संजय और विवादों का एक गहरा रिश्ता रहा है | संजय किसी न किसी तरीके विवादों में फस जाते थे | उनकी शादी भी एक विवाद का कर्ण बनी | संजय ने मेनका से 1974 में शादी की | मेनका संजय से 10 साल छोटी थी और वो एक मॉडल बनना चाहती थी |
मेनका को एक लग्ज़री ब्रांड बॉम्बे डाईंग का विज्ञापन मिला और इसी विज्ञापन की शूटिंग के दौरान संजय ने मेनका को देखा | मेनका की संजय से मुलाकात वीनू कपूर ने करवाई | मेनका के परिवार वाले ये शादी नहीं होने देना चाहते थे | मेनका सिख परिवार की लड़की थी और जब वो संजय से मिली तो उसकी उम्र सिर्फ 17 साल थी |
शादी के बाद उस विज्ञापन से मेनका को हटा दिया | उसके बाद मेनका ने अपना ध्यान मॉडलिंग से हटा कर राजनीति की तरफ कर लिया और अपने पति के साथ राजनीतिक दौरे पर जाना शुरू किया |
वो राजनीति में एक दमदार जोड़े की तरह उभरे और कुछ ही समय में उन्होंने कांग्रेस का बहुत प्रचार कर दिया था | मेनका एक सुलझी हुई लड़की थी , उसने अपनी पार्टी के प्रचार के लिए सूर्य नाम की एक मैगज़ीन भी शुरू की , जिससे उनकी पार्टी को बहुत फायदा हुआ |
संजय गाँधी से जुड़े विवाद
मस्जिद का विवाद
संजय गाँधी द्वारा पुरानी जमा मस्जिद की रूप रेखा बदलने और उसके नवीनीकरण के लिए उसके आस पास के इलाके को बुलडोज़र से तुड़वा दिया | जिसका विरोध वहां के स्थानक लोगों ने किया |
उनके विद्रोह को दबाने के लिए संजय ने गोलीबारी का सहारा लिया और जिसमे 150 से ज्यादा लोग मरे गए | बस्ती तुड़वाने से 70000 के आसपास लोग बेघर हो गए | इन बेघर लोगों को यमुना पर के इलाके में बसाया गया उनके इस दर्द का जिम्मेवार संजय को ठहराया गया |
नसबंदी का विरोध
आपातकाल के समय देश की जनसंख्या को रोकने के लिए संजय गाँधी ने नसबंदी कार्यक्रम की शुरुआत की | संजय गाँधी ने पूरे देश में इसे सख्ती से लागु करने का निर्देश दिया | परन्तु यह कार्यक्रम आम लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन गया | उस समय के कुछ कांग्रेसी युवक और ‘संजय गाँधी ब्रिगेड’ के मेम्ब्रेन ने जबर्दस्ती लोगों को उठा कर उनकी नसबंदी करवानी शुरू कर दी उनका मानना था के इससे संजय गाँधी खुश हो जाएंगे |
‘संजय गाँधी ब्रिगेड’ द्वारा की गयी जबर्दस्ती से लोगों के अंदर गुस्सा भर गया और इस कार्यक्रम का विरोध होना शुरू हो गया | एक सर्वे के मुताबिक लगभग 4 लाख लोगों की जबर्दस्ती नसबंदी की गयी थी | इससे लोगों के अंदर कांग्रेस कर प्रति नफरत पैदा हो गयी और देश में हर जगह संजय को इसके विरोध का सनमा करना पड़ा |
फिल्म पर विवाद
साल 1975 में अमृत नाहटा द्वारा एक फिल्म बनाई गयी जिसका नाम था ‘किस्सा कुर्सी का’ | यह फिल्म संजय गाँधी और इंदिरा गाँधी पर बनाई गयी थी | इस फिल्म में सरकार के कामों को दिखाया गया था और एक जगह तो संजय के कार वाले विवाद को भी व्यंग्य के रूप में दिखाया गया | जब यह फिल्म सेंसर बोर्ड में गयी तो वहां पर फिल्म निर्माता से ऐसी फिल्म बनाने का कारण पूछते हुए 51 आपत्तियों सहित कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया |
फिल्म निर्माता ने बताया के इस फिल्म में दिखाए सभी किरदार काल्पनिक हैं परन्तु सरकार और सेंसर बोर्ड उसके जवाब से खुश न हुए | इसी बीच आपातकाल लग गया और इस फिल्म की असली कॉपी समेत सभी प्रिंट्स को मारुती की फैक्ट्री में जला कर खत्म कर दिया |
1977 में जनता पार्टी द्वारा आपातकाल में हुई घटनाओं के बारे में एक जाँच कमेटी बनाई , जिसमे इस फिल्म को खत्म करने के जुल्म में संजय को दोषी करार दिया गया |
संजय गांधी की मृत्यु कैसे हुई
संजय जहाज़ उड़ने के शौकीन थे और उनके पास इसका लाइसेंस भी था | एक अच्छा पायलट होते हुए भी वो जब 23 जून 1980 को वह दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट पर दिल्ली फ्लाइंग क्लब में एक नए जहाज़ को चला रहे थे तो हवा में करतब दिखते हुए उन्होंने जहाज़ से अपना नियंत्रण खो दिया जिससे जहाज़ दुर्घटना ग्रस्त हो गया और संजय की मोके पर ही मृत्यु हो गयी |
इनकी मृत्यु के 3 महीने बाद मेनका ने वरुण गाँधी को जन्म दिया | संजय की मृत्यु के बाद मेनका और गाँधी परिवार में अनबन शुरू हो गयी और मेनका ने घर छोड़ दिया और अपनी एक अलग पार्टी बना ली | इसके कुछ समय बाद मेनका भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयी | आज वो मौजूदा सरकार में महिला एवं बल मंत्रालय की जिम्मेवारी संभाल रही हैं | उनका बीटा वरुण गाँधी भी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर क्षेत्र से सदस्य हैं |
संजय ने बहुत सारे विवादों को झेला है और इसके बावजूद भी उन्होंने भारत में कांग्रेस की सरकार दोबारा खड़ी करने में बहुत मदद की | उनके द्वारा लिए कुछ निर्णयों ने एक बार तो पूरे भारत को हिला कर रख दिया था परन्तु संजय जी ने उस विवादों को भी एक अवसर के रूप में देखा और अपनी मां की मदद की और कांग्रेस के प्रति लोगों का विश्वास और दृढ़ किया | आज अगर संजय गाँधी जीवित होते तो कांग्रेस सरकार का चेहरा होते |