शिवाजी महाराज का इतिहास

Chhatrapati Shivaji Maharaj History in Hindi – गुलामी की जंजीरों को तोड़ने वाले, मुगलों और दक्कन के राजाओ की नाक में दम करके रखने वाले, भारत में स्वराज की भावना को जनम देने वाले एक ऐसे वीर की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिसका नाम इतिहास में सुनहरी अक्षरों में लिखा गया है |

जिस समय लगभग पुरे उत्तर भारत पर मुगलों का राज था जिस समय हिन्दू धर्म खतरे में था जिस समय भारत के अधिकतर राजाओ ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी उस समय एक चिंगारी भारत के दक्षिण में जल रही थी जिसने भारत में हिन्दवी स्वराज के लिए लोगो के मन में उत्सुकता पैदा की |

इस राजा का राज्य भले ही बड़ा नहीं था लेकिन इस राजा ने जिस विचार को जनम दिया उस विचार ने भारत में मराठा साम्राज्य का शासन दक्षिण से लेकर अफगानिस्तान तक कर दिया था |

आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के ऐसे वीर की कहानी जिसके लिए लोगो के मन में आदर, सत्कार और प्यार आज भी जिन्दा है | लोग इस राजा को देवताओ की तरह पूजते हैं इनके नाम की वजह से नहीं बल्कि इनके कर्मो की वजह से | दोस्तों उस वीर का नाम है छत्रपति शिवाजी महाराज | आइए शिवाजी का जीवन परिचय आपको बताते हैं और जानते हैं कि कैसे उन्होंने जमीन ही नहीं बल्कि लोगों के दिलों पर भी राज किया |

shivaji maharaj history in hindi
By Chetan Karkhanis (Own work) [CC BY-SA 3.0], via Wikimedia Commons

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय Shivaji Maharaj Information in Hindi

पूरा नाम (Full Name)शिवाजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज)
जन्मतिथि (Birthdate)19 फरवरी 1630 (शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र)
पिता का नाम (Father’s Name)शाहजी भोंसले
माता का नाम (Mother’s Name)जीजाबाई
पत्नी का नाम (Wife Name)सईबाई निम्बालकर
मृत्यु (Death)3 अप्रैल 1680

शिवाजी महाराज का इतिहास – Shivaji Maharaj History in Hindi

शिवाजी महाराज का जन्म (Shivaji Maharaj Janm Tithi ) Shivaji Maharaj Birth Date

मराठा साम्राज्य के सबसे पहले छत्रपति महाराज शिवाजी का जनम 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग पुणे में हुआ था | कुछ जगह उनके जनम की तिथि 6 अप्रैल 1627 दर्ज है जबकि मराठा लूनर केलेंडर के अनुसार कुछ पार्टीज इसे 4 मार्च को भी मनाती हैं |

इनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था | जिस समय शिवाजी का जनम हुआ उस समय भारत की गद्दी यानि दिल्ली पर शाहजहाँ का शासन था और दक्कन में तीन प्रदेश अहमदनगर में निजामशाही, बीजापुर में आदिलशाही और गोलकुंडा में कुतुबशाही का शासन था |

शिवाजी के पिता बीजापुर सल्तनत में सेना के कमांडर थे इसलिए शिवाजी का बचपन अपनी माता के साथ गुजरा | शिवाजी की माता जीजा बाई ने उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाई जिनसे उनका चरित्र निर्माण हुआ |

शिवाजी के पिता ने जी उन्हें युध कौशल और राजनीति सिखाने की ज़िम्मेदारी दादोजी कोन्डदेव को दी हुई थी | दादोजी कोन्डदेव ने उन्हें घुड़सवारी, तलवार बाजी और युध कला में निपुण बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी |

शिवाजी महाराज का शासन

जब शिवाजी थोड़े बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें पुणे की जागीर सोंप दी लेकिन शिवाजी को आदिलशाही की गुलामी मंजूर नहीं थी इसलिए उन्होंने मावल के गावो के लोगो को इकठ्ठा कर अपने सेना बनानी शुरू कर दी | 

शिवाजी जानते थे इन लोगो में देश प्रेम और कुछ कर गुजरने का जज्बा है जरूरत थी उन्हें सही नेतृत्व देने की इसलिए शिवाजी ने उन्हें छापामार युद्ध में कुशल बनाया और हिन्दवी स्वराज का सपना दिखाया |

उस समय की लडाइयों में किलो की एहम भूमिका थी एक किला यानि एक रियासत इसलिए शिवाजी ने सबसे पहले किलों को जितना शुरू किया |

16 साल की आयु में ही उन्होंने तोरनागढ़ किले पर कब्ज़ा कर लिया | इसके बाद कोंढाणा किला और फिर राजगढ़ किले को भी कब्ज़े में ले लिया | इसके बाद तो शिवाजी महाराज ने एक के बाद एक किलों को छीनना शुरू कर दिया और धीरे धीरे भिवंडी, चक्कन और कल्याण किलों को भी छीन लिया |

शिवाजी के विस्तार नीति का मूल था कम से कम नुक्सान में अधिक से अधिक विस्तार करना इसलिए उन्होंने लड़ने की बजाये संधियों, मित्रता, डर और छापामार युद्ध नीति से दुश्मनों की परास्त करने की रणनीति बनाई |

इसके बाद शिवाजी ने खुद का किला जिसे किला रायगढ़ कहा जाता है उसका निर्माण शुरू करवाया जिससे बीजापुर के सुल्तान क्रोधित हो गये और उन्होंने पहले शिवाजी के पिता जो को अपने पुत्र को समझाने के लिए कहा और उनके असमर्थता जताए जाने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया |

इसके बाद शिवाजी ने किलो पर आक्रमण बंद कर दिया और पिता को बचाने के लिए कोंढाणा के किले को भी आदीलशाह को वापिस लौटा दिया | ये वही कोंढाणा का किला है जिसे वापिस पाने के लिए तान्हाजी ने लड़ाई लड़ी थी और जिसकी कहानी को तान्हाजी फिल्म के माध्यम से भी दिखाया गया है |

आदीलशाह की क़ैद से छूटने के बाद शिवाजी महाराज के पिता बीमार रहने लगे और थोड़े समय के बाद उनकी मृत्यु हो गई |

इसके बाद शिवाजी ने जावली राजा चन्द्रराव यशवंत मोरे को अपने एक रक्षक से मरवा कर जावली पर कब्ज़ा कर लिया क्यूंकि चन्द्रराव ने शिवाजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था |

इस विजय से शिवाजी के होसले बुलंद हो गये और उन्होंने बीजापुर में अपना विस्तार शुरू किया जिससे परेशान होकर अफजल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा गया |

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अफजल खान से मुकाबला Shivaji Killing Afzal Khan

Shivaji maharaj killing afzal khan

शिवाजी महाराज के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर आदिलशाह बहुत परेशान था और किसी भी तरह से शिवाजी महाराज को रास्ते से हटाना चाहता था |

आदीलशाह ने अपने सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को 20000 सैनिकों के साथ शिवाजी को ख़तम करने के लिए भेजा | अफ़ज़ल ख़ान कद काठी और सैन्य ताक़त के मामले में शिवाजी से बहुत शक्तिशाली था |

साथ ही वो बहुत ही क्रूर और निर्दयी शासक भी था | जब अफ़ज़ल खान ने हमले करने शुरू किए तो शिवाजी महाराज ने इस तरह से बर्ताव करना शुरू किया जैसे वो उससे डर गये हैं और वो अपनी सेना के साथ पहाड़ों में छुप गये |

अफ़ज़ल खान ने सन्देश भिजवाकर शिवाजी महाराज को मिलने के लिए बुलवाया | शिवाजी महाराज भी उनसे मिलने के लिए तैयार हो गए | दोनो एक शिविर में मिले जहाँ अफ़ज़ल खान ने शिवाजी महाराज को मारने की कोशिश की तो शिवाजी महाराज ने बाघ के नाखून से बने हथियार बघनखा से अफ़ज़ल ख़ान को मौत के घाट उतार दिया |

अफ़ज़ल ख़ान को मारने के बाद शिवाजी महाराज का कद तेज़ी से बढ़ा और अब वो दक्कन में एक बड़ी शक्ति बन चुके थे | अफ़ज़ल ख़ान की मृत्यु के बाद आदीलशाह ने एक बार फिर से रुस्तम जहाँ के नेतृत्व में शिवाजी महाराज को मारने के लिए सेना भेजी |

लेकिन इस बार भी कोल्हापुर में हुई लड़ाई में उसे हार का ही मुँह देखना पड़ा | शिवाजी महाराज से बार बार हारने के बाद जब आदीलशाह के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उसने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से मदद माँगी |

सहिस्ता खान पर हमला Attack on Shaista Khan

Shivaji attack shaista khan

शिवाजी महाराज की बढ़ती ताक़त को देखकर औरंगज़ेब भी चिंतित था | उसने शिवाजी को हराने के लिए अपने मामा सहिस्ता ख़ान के नेतृत्व में लगभग डेढ़ लाख सैनिकों को दक्कन भेज दिया |

सहिस्ता ख़ान के पास एक बड़ी सेना थी और वो लगातार जीतता हुआ आगे बढ़ रहा था | उसने पुणे पर भी अधिकार कर लिया और शिवाजी महाराज के लाल महल को भी अपने कब्ज़े में ले लिया |

शिवाजी महाराज जानते थे कि सहिस्ता ख़ान की इतनी बड़ी सेना के सामने वो आर-पार की जंग नहीं लड़ सकते | इसलिए उन्होने छापामार नीति अपनाते हुए 400 सैनिकों के साथ बारातियों के भेष में सहिस्ता ख़ान के महल पर हमला कर दिया |

इस हमले में सहिस्ता ख़ान बच निकालने में कामयाब हो गया लेकिन भागते भागते उसकी तीन उंगलियाँ कट गयी | इसी हमले में सहिस्ता खान का बेटा भी मारा गया | इसके बाद सहिस्ता ख़ान दक्कन से वापिस भाग गया और औरंगज़ेब ने उसे बंगाल का सूबेदार बना दिया | 

सूरत पर हमला

तीन साल तक सहिस्ता ख़ान ने मराठाओं को भारी नुकसान पहुँचाया था | जिसका बदला लेना और मुगलों को लूटकर उस नुकसान की भरपाई करना ज़रूरी था |

क्यूंकी सूरत मुगल साम्राज्य का एक अति धनी शहर था और इसी जगह पर ब्रिटिश, फ्रेंच और डच लोगों ने अपनी फैक्टरियां लगा रखी थी | शिवाजी महाराज ने सूरत शहर पर आक्रमण करके वहाँ जमकर लूट मचाई और अपने नुकसान की भरपाई की |

सूरत का ये हमला मुगल बादशाह औरंगज़ेब के लिए एक बहुत बड़ा सदमा था |

नेवी और सी फॉर्ट्स का निर्माण

उधर शिवाजी महाराज ने अपनी शक्ति को और बढ़ाने के लिए नेवी की स्थापना और सी फॉर्ट्स का निर्माण भी शुरू कर दिया | शिवाजी महाराज को भारत में फादर ऑफ इंडियन नेवी भी कहा जाता है |

सी फॉर्ट्स के ज़रिए नेवी को अतिरिक्त सुरक्षा दी जा सकती थी, साथ ही जंजीरा किले के सिद्दी और पुर्तगालियों की नेवी से भी मुकाबला किया जा सकता था | इस कड़ी में शिवाजी महाराज ने सुवर्णदुर्ग, सिंधुदुर्ग, पदमदुर्ग किले का निर्माण करवाया और विजयदुर्ग को और मजबूत बनाने का काम भी किया |

पुरंदर की संधि (Purandar Ki Sandhi) Treaty of Purandar

सूरत पर हुए हमले के बाद अब औरंगज़ेब किसी भी कीमत पर शिवाजी महाराज को अपने कंट्रोल में करना चाहता था | साथ ही वो अपनी रियासत में हुई लूट का बदला भी लेना चाहता था |

इसलिए उसने राजा जय सिंह को शिवाजी महाराज के खिलाफ युद्ध करने के लिए भेजा | जय सिंह के खिलाफ शिवाजी महराज का भयंकर युद्ध हुआ और उन्हें हर जगह हार का मुँह देखना पड़ा |

इस लड़ाई में शिवाजी को संधि करनी पड़ी जिसे पुरंदर की संधि कहा जाता है जिसमे शिवाजी महाराज को बहुत से किले वापिस कर औरंगजेब का बीजापुर के खिलाफ साथ देने के वादा करना पड़ा |

इसी बीच औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा के किले में बुलाया जहाँ पर शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी गये लेकिन उस दरबार में हुए अपने अपमान को शिवाजी सहन नहीं कर पाए और औरंगजेब का विरोध कर दिया| 

लेकिन इस समय बाज़ी औरंगजेब के हाथ में थी और उसने शिवाजी को आगरा के किले में नज़रबंद करवा दिया |

लेकिन शिवाजी तो शिवाजी थे अपनी कुशल रण नीति की वजह और अपने लिए लोगो के दिल में प्रेम की वजह से वो अपने पुत्र के साथ सकुशल वहां से भागने में सफल रहे और वापिस आकर 3 साल तक शांत रहने के बाद  फिर से चुनोती के लिए तैयार हो गये |

शिवाजी का राजभिषेक Shivaji Maharaj Rajyabhishek Date

शिवाजी ने फिर से सूरत पर हमला कर औरंगजेब को अपनी उपस्थिति का एहसास करवाया लेकिन इस समय शिवाजी को अपने मराठा साम्राज्य के लिए एक ideology तैयार करनी थी और उन्हें खुद पर गर्व करने का एहसास करवाना था |

पूना और कोंकण में बहुत सारे क्षेत्रों को जीतने के बाद शिवाजी ने अपने और आगे आने वाले अपने वंशजों के लिए छत्रपति के टाइटल को अपनाया |

50000 लोगों के सामने 6 जून 1674 को रायगढ़ में शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि देकर उनका राज्यभिषेक किया गया |या |

शिवाजी ने शासन को सँभालने के लिए 8 मंत्रियों का गठन किया जिन्हें अष्ठ प्रधान कहाँ जाता था जिनमे पेशवा सबसे प्रमुख थे | शिवाजी ने सभी धर्मो और स्त्रियों के सम्मान को सबसे प्रमुख रखा |

इस तरह शिवाजी ने जिस सुद्रढ़ शासन की नीव रखी और जिस विचार को अपने आने वाली पीढ़ियों और भारत के लोगो के लिए रखा वो आज भी हमारे दिल में जिन्दा है |

शिवाजी महाराज की मृत्यु Shivaji Maharaj Death Reason

52 साल की उम्र में 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में बीमारी की वजह से शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई | लेकिन उनकी सोच ने मराठा साम्राज्य को मरने नहीं दिया और बाद में पेशवा बाजीराव ने उनके सपने को एक जबरदस्त उडान दी |

शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की कामान संभाली |

शिवाजी महाराज के लिए लोगो के दिल में प्यार और सद्भव है क्यूंकि उन्होंने मंदिरों के निर्माण में सहायता की तो मस्जिदों को भी नुकसान नहीं पहुँचाया और सभी धर्मो की स्त्रियों का सम्मान किया |

उनके राज्य के स्त्रियों के साथ दुर्वयवहार करने वाले सैनिको को सख्त दण्ड दिया जाता था |

भारत के इस वीर योद्धा ने मुश्किल परिस्थितयों में भी स्वाधीनता और स्वराज की सोच को जगाये रखा |

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

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