आजादी के लिए अपना बलिदान देने वाले सुखदेव थापर की कहानी Sukhdev Thapar Biography in Hindi

Sukhdev Thapar Biography in Hindi – भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी देश के युवाओं की प्रेरणा के स्रोत हैं पर दूसरे क्रांतिकारियों की भूमिका को भी कम करके नहीं आँका जा सकता | 

पंजाब की धरती से ही जन्म लेने वाले ऐसे ही एक ओर क्रांतिकारी थे सुखदेव थापर | 

sukhdev thapar biography in hindi

देश में जब जब क्रांतिकारियों का नाम लिया जाता है, तब शहीद सुखदेव थापर को भी प्रमुखता से याद किया जाता है।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी के फंदे पर झूलने वाले सुखदेव थापर को देश की क्रांतिकारी गतिविधियों में नई जान डालने के लिए जाना जाता है।

अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला कर रख दी थी। J. P. Saunders की हत्या से ले कर युवाओं में देशभक्ति का जज्बा पैदा करने तक, सुखदेव कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहे हैं।

इन्हीं क्रांतिकारी गतिविधियों से बौखला कर अंग्रेजी हुकूमत ने आनन फानन में सुखदेव और उनके साथियों को फांसी दे दी थी।

लेकिन सुखदेव थापर और भगत सिंह, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों का वो बलिदान व्यर्थ नहीं गया और देश को 15 अगस्त 1947 को आख़िरकार आज़ादी मिल ही गई | 

तो चलिए, शहीद सुखदेव की जिंदगी से जुड़े कुछ ओर पहलुओं के बारे में और उनके देश के लिए योगदान के बारे में विस्तार से जानते हैं |

सुखदेव थापर का जन्म

15 मई 1907 ही वो तारीख थी, जिस दिन पंजाब के लुधियाना में एक मां ने भारत मां के वीर सपूत को जन्म दिया था। इस वीर सपूत का नाम सुखदेव थापर रखा गया।

इनकी मां का नाम Ralli Devi और पिता का नाम Ramlal Thapar था। सुखदेव के जन्म से तीन महीने पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।

पिता की मृत्यु के बाद चाचा Lala Achintram ने उनकी परवरिश की। Lala Achintram खुद भी एक Freedom Fighter थे, और यही कारण था कि सुखदेव की परवरिश भी इसी विचारधारा के साथ ही हुई।

बचपन से ही उन्होंने अंग्रेजों के जुल्म को काफी करीब से देखा था। यही वजह थी कि काफी कम उम्र से ही उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।

बने Hindustan Socialist Republican Association के सदस्य

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन जलियांवाला बाग में शांतिपूर्वक ढंग से लोग जमा हुए थे जिस पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया था | 

इस घटना का सुखदेव और दूसरे बहुत से युवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ा | जलियांवाला बाग की घटना के समय सुखदेव 12 वर्ष के थे | जलियांवाला बाग का बदला 21 साल बाद उधम सिंह ने लंदन में जाकर लिया था |

जलियांवाला बाग के उस नरसंहार ने भारत में क्रांति की ज्वाला को बहुत भड़का दिया | गाँधी जी ने इस घटना के बाद 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया | 

इस आंदोलन को पंजाब के युवाओं का बहुत समर्थन मिला | 

लेकिन 1922 में चोरी चौरा की घटना के बाद गाँधी जी ने इस आंदोलन को वापिस ले लिया उसके बाद क्रांतिकारी विचारों वाले युवाओं ने बंदूक के दम पर आज़ादी हासिल करने की ठान ली | 

1921 में सुखदेव ने लाहौर नेशनल कॉलेज ज्वॉइन किया जिसके Founder Lala Lajpat Rai थे। इसी कॉलेज में उनकी मुलाकात Bhagat Singh, Bhagwati Charan Vohra और Yashpal जैसे क्रांतिकारियों से हुई। यहीं से उनके क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत हुई।

सुखदेव कॉलेज में युवाओं में देश भक्ति का जज्बा जगाने में जुट गए। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे जुल्म के बारे में भी खुल कर बात की।

चूंकि, सुखदेव खुद एक युवा थे, इस वजह से युवाओं पर उनकी बातों का काफी गहरा असर होता था। सुखदेव हमेशा से Communalism के खिलाफ रहे, और हमेशा एकजुटता की बातें करते रहें।

भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारी युवाओं के साथ मिल कर सुखदेव ने 1926 में नौजवान भारत सभा नाम से एक Organization का गठन किया।

इस Organization के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों का आयोजन किया जाने लगा। संगठन में सभी धर्मों के लोग शामिल थे। नौजवान भारत सभा अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ बोलने लगा, और देश से अंग्रेजों को निकाल फेंकने के लिए संघर्ष की शुरुआत की।

1928 में चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खान ने और भी कई क्रांतिकारियों के साथ मिल कर Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) का गठन किया।

इस Association के गठन के समय ही सुखदेव थापर और भगत सिंह भी इसके सदस्य बन गए।

जोशीले और देशभक्ति से लबरेज सुखदेव थापर थोड़े समय बाद ही HSRA के पंजाब प्रांत के प्रमुख बनाए गए।

पंजाब प्रांत का प्रमुख बनने के बाद इनके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी आ गई। इन्होंने अपने सूझबूझ से संगठन को आगे बढ़ाया। HSRA के क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी आने लगी।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला

30 October 1928 को लाला लाजपत राय Simon Commission के खिलाफ peaceful protest  कर रहे थे, तभी पुलिस ने Protesters पर लाठी चार्ज करना शुरू कर दिया। पुलिस की लाठीचार्ज में लाला बुरी तरह जख्मी हो गए। 17 November 1928 को लाला जी की मृत्यु हो गई।

सुखदेव लाला लाजपत राय को अपना आदर्श मानते थे, लाला जी की मृत्यु के बाद HSRA ने इसका बदला लेने का फैसला किया। सुखदेव थापर के नेतृत्व में लाठीचार्ज का ऑर्डर देने वाले James A. Scott के हत्या की प्लानिंग की गई।

हत्या की जिम्मेदारी भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद को सौंपी गई। प्लान के मुताबिक तीनों क्रांतिकारी 17 December 1928 लाहौर के District Police Headquarter पहुंच गए।

हालांकि, पहचान में गलती होने वजह से Scott की जगह पर John P. Saunders की हत्या हो गई। भगत सिंह और राजगुरु ने Saunders पर फायरिंग की, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने उन दोनों को भागने में मदद की।

आज़ाद ने भगत सिंह और राजगुरु का पीछा कर रहे Chanan Singh को गोलियों से जख्मी कर दिया।

भले ही Scott की जगह पर Saunders की हत्या हुई थी, लेकिन HSRA के लिए ये भी बड़ी उपलब्धि थी। इस घटना के अगले दिन HSRA ने पोस्टर जारी किया, जिसमें लिखा था  “लाला लाजपत राय की हत्या का बदला ले लिया गया।”

Saunders की हत्या के बाद HSRA ने Central Legislative Assembly में बम फेंकने का फैसला किया। इस प्लानिंग में भी सुखदेव मुख्य रूप से शामिल रहे।

In Fact, पहले बम फेंकने की जिम्मेदारी सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त को ही सौंपी गई थी, लेकिन फिर भगत सिंह ने ये ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।

8 April 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के Assembly में बम फेंका, इस हमले का मकसद किसी की हत्या करना नहीं, बल्कि Public Safety Bill और Trade Dispute Act  के खिलाफ अपना विरोध जताना था।

इस मकसद में भी HSRA कामयाब रहा। बम फेंकने के बाद दोनों ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए खुद को पुलिस के हवाले कर दिया।

इस घटना के 7 दिन बाद ही 15 अप्रैल 1929 को पुलिस को HSRA के Lahore bomb factory का पता लग गया। इस के बाद सुखदेव समेत HSRA के कई सदस्यों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

राजगुरु के पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु के अलावा HSRA के 21 सदस्यों को Saunders के हत्या का आरोपी माना गया।

सॉण्डर्स की हत्या के इस पूरे मामले को Lahore Conspiracy Case कहते हैं |

Crown versus Sukhdev and others

Lahore Conspiracy Case में सुखदेव को मुख्य आरोपी माना गया। इस केस का Official title  “Crown versus Sukhdev and others” था।

जेल जाने के बाद भी सुखदेव और HSRA के उनके क्रांतिकारी साथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज़ बंद नहीं की। जेल में इन लोगों ने political prisoners के खास अधिकारों की मांग करते हुए भूख हड़ताल की थी।

ये भूख हड़ताल भारत समेत पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया था।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत HSRA के दूसरे सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद इन लोगों के खिलाफ एकतरफा अदालती कार्रवाई हुई, और अंग्रेजी हुकूमत के मर्जी के अनुसार Lahore Conspiracy Case में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

फांसी की तारीख 24 मार्च 1931 तय की गई, लेकिन ऐन मौके पर तारीख में बदलाव करते हुए एक दिन पहले ही लाहौर जेल में 23 मार्च को शाम 7:30 में इन तीनों को फांसी दे दी गई।

फांसी के बाद गुप चुप तरीके से Sutlej नदी के किनारे इन तीनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। फांसी के समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल थी।

इन तीनों शहीदों का अंतिम संस्कार जिस जगह पर किया गया था, वो जगह पंजाब के फिरोज़पुर जिले के Hussainiwala में स्थित है। यहां पर इन शहीदों को समर्पित National Martyrs Memorial का निर्माण किया गया है।

दिल्ली में सुखदेव के नाम पर एक बिजनेस स्कूल भी है, जिसका नाम Shaheed Sukhdev College of Business Studies है। वहीं, लुधियाना में Amar Shaheed Sukhdev Thapar Inter-State Bus Terminal भी है।

Mohan

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