नरेन्द्रनाथ से स्वामी बनने तक का सफर

भारत देश में बहुत सारे  महापुरषों ने जन्म लिया हिअ जिन्होंने अपने देश के लिए और भारत के लोगों के लिए बहुत सारे ऐसे कार्य किये हैं जिससे देश का नाम रोशन हुआ है और आम लोगों को एक अच्छा जीवन व्यतीत करने की सच्ची प्रेरणा मिली है। 

इन महापुरुषों ने अपनी रचनाओं से अपने विचारों से आम लोगों के असल जीवन को पेश किया और दबे हुए लोगों की आवाज़ को उभरा और उन्हें और आगे बढ़ने का अवसर प्रदान किया। 

Swami Vivekananda Biography in Hindi

ऐसे ही एक महापुरुष जिन्होंने अपना पूरा जीवन इंसानियत के लिए न्योछावर कर दिया।  उनके दिए हुए उपदेशों पर लोग आज भी उतना ही अम्ल करते हैं जितना पहले करते थे। 

“संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।“

वो अपने समय के एकमात्र ऐसे रचनाकार, महापुरुष थे जिन्होंने सनातन धर्म को अमेरिका, यूरोप जैसे महाशक्तिओं के साथ साथ पुरे विश्व में फैलाया और सनातन धर्म का प्रचार किया और लोगों को बताया के हमारा धर्म कितना विशाल और महान है। 

हम बात कर रहे है भारत के ऐसे महान व्यक्ति की जिन्होंने अपनी छाप भारत के लगभग हरेक वर्ग के लोगों पर छोड़ी है।  जिनका नाम सुनकर ही शीश आदर से झुक जाता है और उनके बताये सचाई और ख़ुशी के रस्ते हमारी आँखों के सामने प्रस्तुत हो जाते है। हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद जी की। 

जन्म और बचपन

‘उठो जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो’ ।।

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कलकत्ता में  12 जनवरी 1863 में हुआ। विवेकानंद जी का असली नाम नरेन्द्रनाथ था। विवेकानंद जी के पिता जी कलकत्ता उच्च न्याययालय में वकालत करते थे और उनका नाम विश्वनाथ दत्त था। विवेकानंद जी की माता जी भुवनेष्वरी देवीजी एक परम् शिव भक्त थी उनका भगवन शिव में अटूट विश्वाश था और वो एक ढृढ़ धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। 

विवेकानंद जी के पिता जी चाहते थे के विवकानंद जी अंग्रेजी की पढ़ाई करे और उनके जैसे पाश्चात्य सभ्यता की राह पर चले। विवेकानंद जी का धार्मिक होना और सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने का जो पेड़ उनके अंदर था उसका बीज उनके घर से ही बोया गया था। 

विवेकानद जी की बुद्धि भट तीव्र थी और भगवन को हासिल करने की जो लालसा उनके अंदर थी वो शब्दों से बाहर है। वो किसी भी हल में उस परमात्मा से जुड़े रहना चाहते थे जिसने हमे बनाया है और जिसकी कहानिया और किस्से उन्होंने सुन रखे थे। यही लालसा उन्हें उस समय पुरे बंगाल में अपने पैर पसार चुके ब्रह्मा समाज में ले आयी परन्तु यह पर उनका मन शांत नहीं हुआ। 

विवेकानंद जी के पिता जी एक बहुत ही उदार हृदय वाले इंसान थे।  वे गरीब लोगों की बहुत मदद किया करते थे बेशक उनके पास खाने के लिए सिमित भोजन हो पर वो किसी गरीब को भूखा नहीं सोने देते थे।  घर ए मेहमान की बहुत सेवा किया करते थे। अचानक ही विवेकानंद जी के पिता जी की मृत्यु हो गयी तो घर की पूरी जिम्मेवारी विवेकानंद जी के ऊपर आ गयी। 

विवेकानंद जी के गुरु गुरुदेव श्री रामकृष्ण जी को बहुत मानते थे।  उन्होंने अपना पूरा जीवन गुरुदेव की सेवा में लगा दिया। विवेकानंद जी का स्वामी बनने के पीछे गुरुदेव जी का बहुत सहयोग था। ये ऐसे मन जाये के गुरुदेव श्री रामकृष्ण जी के ज्ञान की वजह से ही विवेकानंद स्वामी बने तो कोई अतिकथनी नहीं होगी। 

विवेकानंद जी बचपन में काफी शरारती स्वाभाव के थे परन्तु कभी भी उन्होंने ऐसी शरारतें नहीं की जिससे किसी दूसरे व्यक्ति को कोई नुकसान हो या माता पिता को किसी तरह की शर्मिंदगी का सामना करना पड़े। 

वो अक्सर अपने मित्रों के साथ मिल कर अध्यापकों के साथ भी शरारत कर देते थे।  उनके घर में अध्यात्म का माहौल बना रहता था।  दूर दूर से कथा वाचक विवेकानंद जी के घर एते रहते थे तो भगवान के प्रति उनका विश्वास और ढृढ़ हो गया था और कभी कभी तो वो कथावाचकों से ऐसे ऐसे सवाल किया करते थे के उनकी बातों का जवाब देना मुश्किल हो जाता था। 

शिक्षा

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

जैसे कोई नदी छोटी हो या बड़ी हो , कोई नदी साफ हो या गंदी हो, कोई नदी झा मर्ज़ी से कितनी भी दूर से चलकर आ रही हो , उसमे पानी कम हो या ज्यादा हो वो अंत में समुन्द्र में ही मिल जाती है , समुन्द्र ही उसकी अंतिम मंजिल है।  वैसे ही कोई भी इंसान कैसा भी हो , अमीर हो गरीब हो , लम्बा हो नाटा हो कैसा भी हो, प्रभु अंत में तुममे ही मिल जायेगा। 

विवेकानंद जी बचपन से ही अद्यात्म के साथ जुड़े हुए थे।  उनके शिक्षकों को ये अंदाज़ा बचपन में ही लग गया था कि ये बच्चा साधारण नहीं है बल्कि एक महान प्राणी है।  

उन्होंने ईश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट से शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वो प्रेजिडेंसी कॉलेज चले गए जहाँ उन्होंने आगे की विद्या प्राप्त की और कॉलेज खत्म करते करते विवेकानंद जी कई विषयों के ज्ञानी बन गए और अध्यात्म के इलावा उन्होंने कॉलेज में अपनी रूचि खेल में भी दिखाई। 

विवेकानंद जी की रामकृष्ण जी से मुलाकात

रामकृष्ण जी एक प्रसिद्ध संत थे जिनके अनुयायी पुरे बंगाल में थे। वो माता काली के परम् भक्त थे और अपने शिष्यों को भी माता काली की उपासना करने के लिए बोला करते थे। विवेकानंद जी की मुलाकात गुरु जी से 1881 में दक्षिणेश्वर मंदिर में हुई। उस समय विवेकानंद जी बंगाल के प्रसिद्ध ब्रह्म समाज से जुड़े हुए थे, ये वही ब्रह्म समाज है जिनकी जड़ें रबिंदरनाथ टैगोर जी के घर तक फैली हुई थी। 

रामकृष्ण जी हमेशा भक्ति राह पर चलने को कहते थे, पहले तो विवेकानंद जी को उनके उपदेश प्रभावित न कर सके परन्तु रामकृष्ण जी के उपदेश सुनने वो रोज़ मंदिर जाने लगे वो धीरे धीरे गुरुदेव का असर विवेकानंद जी पर हुआ तो उन्होंने ब्रह्मा समाज छोड़ दिया और गुरुदेव के चरणों में अपना पूरा जीवन बिता दिया। 

एक बार गुरुदेव ने उन्हें कहा के माता काली उन्हें दर्शन देगी तो उस समय  वो माता से वो सब चीजे मांग लेना जो वो चाहते है एक सुखी जीवन के लिए।  तो विवेकानंद जी हर रोज़ मंदिर में जाकर ज्ञान उच्च विचार  भक्ति और वैराग्य मांगते थे। 

तो गुरुजी ने पूछ के वो धन दौलत क्यों नहीं मांगते ? तब विवेकानंद जी ने कहा के एक सुखी जीवन के लिए धन की नहीं बल्कि ज्ञान की और सच्ची विचारों की जरूरत होती है इसी लिए वो इन सब की कामना करते है। 

विश्वसम्मेलन और भाषण

1893 में विवेकानंद जी को शिकागो एम् होने जा रहे विश्व स्तरीय सम्मेलन के लिए न्योता आया , बेशक उनके अस पैसों की कमी थी पर फिर भी वो सम्मलेन में हिस्सा लेने पहुंचे। 

वो सीधा शिकागो न जाकर पहले जापान गए और वह से शिकागो पहुंचे। इस सम्मेलन में वो हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में लोगों के सामने पेश हुए जब स्टेज पर चढ़कर उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत माता सरस्वती की वंदना से की तो वह बैठे सभी महानुभवों के साथ साथ पूरी दुनिया उनसे प्रभावित हुई। 

उनके हिन्दू धर्म के ज्ञान, धार्मिक ग्रन्धों और उपनिषदों के ज्ञान और जो उनकी भाषण शैली थी उसे देख कर सब लोग प्रसन्न हुए और हिन्दू धर्म की विशालता और गौरव के चर्चे पुरे विश्व में फ़ैल गए। 

अमेरिका में रहते लोगों को उन्होंने “मेरे प्यारे अमेरिकन भाइयों बहनो” कह कर सम्बोधित किया।  उनका भाषण सुन कर उस हॉल में बैठ लगभग 7000 की संख्या में लोगों ने खड़े होकर ताली बजे और उनका सम्मान किया।

इसके बाद वो २ वर्षों तक यही रहे और लोगों को हिन्दू धर्म , वेदों , उपनिषदों का ज्ञान देते रहे।  इसके बाद वो इंग्लैंड चले गए और प्रोफेसर मेक्समुल्लर से मिले जो विश्वप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्यापक थे।  नूयार्क शहर में उन्होंने “वेदांत सोसाइटी” की नीव रखी और हजारों की संख्या में लोग उस सोसाइटी से जुड़ने लगे। 

अपने गुरुदेव की मृत्यु के बाद विवेकानंद जी ने अपना शहर छोड़ दिया और वो विश्वभ्रमण पर निकल गए।  इस भर्मण में उनका साथ उनके प्रिय मित्रों रखल चन्द्र घोष, तारक नाथ घोषाल और बाबुराम घोष  ने दिया। विवेकानद जी ने इस भर्मण के दौरान बहुत सी कठिनाईओं का सामना किया वो बताते है के, वो कई दिनों तक लगातार बिना कुछ कहए पिए नंगे पैर चलते रहे , उन्हें जितनी भी मुश्किलें आती, वो मुश्किलें उन्हें भगवान के और करीब कर देती। 

विवेकानंद जी के विचार

विवेकानंद जी के विचार भट सारे संतों से मेल नहीं कहते थे।  आर्य समाज के संथापक श्री दयानन्द सरसवती जी भी कुछ हद तक विवेकानंद जी के विचारों से सहमत नहीं हो पते थे।  झा दयानद जी भगवान ब्रह्मा की भक्ति पर ज़ोर देते थे वही दूसरी तरफ विवेकानंद जी माता काली को उपासना करते थे।  वो अपने गुरुदेव रामकृष्ण को भगवान का अवतार मानते थे पर दयानन्द जी ऐसा नहीं मानते थे। 

एक बार विवेकानंद जी जब भारत भर्मण कर रहे थे तो उन्हें एक साधु मिला जो चिलम फूंक रहा था। विवेकानंद जी ने रुक कर उससे चिलम मांगी तो उस साधु ने खा क वो नीच जाती का है तो चिलम कैसे दे सकता है जिसपर विवेकानंद जी ने खा क साधु की कोई जाती नहीं होती साधु सिर्फ साधु होता है। 

एक बार विवेकानंद जी ने एक बाबा के बारे में सुना के वो दूर पहाड़ों में रहते है और भोजन का त्याग कर चुके है।  विवेकानंद जी को अपने गुरुदेव की बहुत याद आती थी तो वो उस बाबा से दीक्षा लेने की सोचने लगे।  पर जिस दिन दीक्षा लेने जाना था उस दिन गुरुदेव रामकृष्ण विवेकानंद जी के सपने में आये। गुरुदेव विवेकानंद जी के सपने में आये और वो उदास थे।  जिससे विवेकानंद जी का मन परिवर्तिति हो गया। 

स्वामी जी के विचारों में उनके कुछ महत्वपूर्ण विचार जो उन्होंने दिए जो समाज को एक नई दिशा प्रदान करने में अहम योगदान दे सकते है 

एक संपन्न और शिक्षित समाज के लिए लड़के और लड़कियों को समान शिक्षा मिलनी चाहिए  ताकि  समाज में रहता हरेक व्यक्ति शिक्षित हो सके। 

धर्म की शिक्षा से ज्यादा जरूरी संस्कार की शिक्षा है। बच्चों को ऐसे संस्कार देने चाहिए ताकि आगे जाकर वो एक सफल समाज को बना सके। तकनिकी शिक्षा लाज़मी होनी चाहिए यह किसी भी देश के विकास के लिए अहम है। 

बच्चे की पहली शिक्षा उसके घर से शुरू होती है तो उसे घर में ही उचित आचरण सीखने चाहिए। इसके इलावा भी उन्होंने बहुत साडी ऐसी शिक्षाएं दी जो हमारे समाज को एक नई सेंध देती हैं। 

रचनाएँ

स्वामी जी ने बहुत सारी रचनाएँ लिखी। उनकी इन्ही रचनाओं से उन्हें स्वामी की उपाधि मिली।  उनकी रचनाओं को पुरे विश्व में सराहा गया और अध्यात्म के मार्ग पर चलने वालों के लिए एक अहम मार्गदर्शक बनकर उनको सही रास्ता दिखाया। 

  • कर्म योग
  • राज योग
  • भक्ति योग
  • दी ईस्ट एंड वेस्ट 
  • इंस्पायर्ड टॉक 
  • परा भक्ति या सुप्रीम डीवोशन
  • प्रेक्टिकल वेदान्त
  • जाना योग 
  • स्पीचेस एंड राइटिंगस ऑफ़ स्वामी विवेकानंद: अ कॉम्प्रेहेंसिव कलेक्शन
  • विवेकवाणी
  • मूलर,एफमैक्स,रामकृष्ण-हिज लाइफ एंड सेइंग्स

जैसी बहुत सारी रचनाएँ की जो हमे एक नई राह दिखती है और जीवन और भगवान के प्रति हमारी सोच को और धारणाओं में बांधती हैं। 

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु

स्वामी विवेकानंद जी वास्तव में एक योग गुरु , अद्यात्म गुरु , एक ज्ञानी के रूप में दुनिया में विचरे और हज़ारों लोगों को अपने विचारों और रचनाओं के माध्यम से भगवान से और आत्मज्ञान से रूबरू करवाया।  इन्होने बेशक अपनी पूरी उम्र गरीबी में और संघर्ष करते हुए बिता दी परन्तु उन्होंने कभी भी अपने हालातों को अपनी शिक्षा पर हावी नहीं होने दिया और हमे ऐसा ज्ञान दिया जो हम कभी भुला नहीं सकते। 

स्वामी जी अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके 4 जुलाई 1902 को हमे अलविदा कह गए। 

स्वामी जी एक विलक्षण शख्शियत में मालिक थे।  उन्होंने अपने पुरे जीवन में 130 से ज्यादा आश्रमों की स्थापना की। उन्होंने हमे जीवन के कुछ बहुत अमूल्य विचार दिए वो अक्सर खा करते थे के “बेशक सत्य को हज़ारों तरीके से बोला जाये  परन्तु सत्य हमेशा सत्य रहता है।

जीवन के बारे में वो कहा करते थे “जीवन वही जीता है जो दूसरों के लिए जीता है” 

वो एक मात्र ऐसे ज्ञानी पुरुष थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति को भारतीय अध्यात्म को विदेशों में रहते लोगों तक पहुंचाया।

 ‘‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’’

उन्होंने ऐसे विचार दिए जो हमे निरंतर चाहे हालत कैसे भी हों , निरंतर आगे बढ़ने और परेशानियों को चीरते हुए सफलता की और बढ़ते रहने का संदेश देते है । 

सरल जीवन जीने के ऐसे शूक्ष्म गुण स्वामी जी ने हमे दिए। उनके उपदेशों और विचारों को हम हमेशा याद रखेंगे। 

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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