तानाजी मालुसरे का इतिहास

Tanaji Malusare History in Hindi – मराठों का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है | मराठा साम्राज्य में शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और ना जाने कितने वीर योद्धा हुए | लेकिन एक योद्धा ऐसे हुए जिनके बारे लोग ज़्यादा नहीं जानते | वो वीर योद्धा थे तानाजी मालुसरे |

tanaji malusare history in hindi
Tanaji Malusare History in Hindi

शिवाजी महाराज ने अपने समय में बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी और जीती | बहुत सी लड़ाइयों में विजय हासिल करने में अहम भूमिका निभाने वाले योद्धा थे तानाजी मालुसरे |

युद्ध में राजा का सबसे बड़ा हथियार होता है उसका सेनापति | तानाजी ऐसे सेनापति थे जो एक बार कुछ निश्चय कर लेते थे तो उसे हासिल करके ही रहते थे |

तानाजी मालुसरे का बचपन Tanaji Malusare Childhood

तानाजी का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के छोटे से गाँव गोदोली में हुआ था |

छोटी सी आयु में ही तानाजी को तलवारबाजी का शौंक था | वो शिवाजी महाराज के अच्छे मित्र थे | उनके दिल में भी स्वराज की भावना उनके रक्त के हर कतरे में भरी थी |

उनके युद्ध कौशल और उनकी कर्तव्य निष्टा की वजह से उन्हें मराठा साम्राज्य में मुख्य सूबेदार के रूप में नियुक्त किया गया था | वैसे तो उन्होने शिवाजी महराज के साथ बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी थी लेकिन एक लड़ाई की वजह से उन्हें सबसे ज़्यादा याद किया जाता है |

वो लड़ाई की कोंडाणा किले की लड़ाई |

कोंडाणा किले की लड़ाई Sinhagad Fort Battle

सन 1665 में पुरन्दर की संधि के बाद शिवाजी महाराज को कोंढाणा का किला मुगलों को देना पड़ा था | शिवाजी महाराज जब औरंगज़ेब की क़ैद से आज़ाद हुए थे तो उन्होने फिर से उन किलों को अपने कब्ज़े में लेना शुरू कर दिया |

लेकिन एक किला जो कि कोंढाणा का किला था वो अब भी मुगलों के हाथ में था | उसे मराठाओं ने अपनी नाक का सवाल बना लिया था |

जिसका कारण था शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई की सौंगंध | माता जीजाबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक कोंढाणा किला मराठा साम्राज्य में शामिल नहीं कर लिया जाता तब तक वो अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी |

इस बात का पता जब तानाजी मालुसरे को चला तो उन्होने अपने पुत्र का विवाह बीच में ही छोड़ दिया और वो इस किले पर कब्जा करने के लिए चल पड़े |

इस किले को कब्ज़े में लेना आसान नहीं था क्यूंकी मुग़ल भी इस किले को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते थे |

इस किले की सुरक्षा की ज़िम्मेवारी उदयभान राठौड़ के हाथों में थी | उदयभान राठोड भी एक वीर राजपूत था लेकिन वो मुग़ल सेना का नेतृत्व कर रहा था |

इस किले की सुरक्षा अभेद थी और इस किले को जितना असंभव सा था | क्यूंकी इस किले की सुरक्षा में 5000 के करीब मुग़ल और राजपूत सैनिक लगे हुए थे | किले को तीन तरफ से भेदना संभव नही था | लेकिन पश्चिम दिशा में जहाँ ऊँची पहाड़ी थी वहाँ पर सुरक्षा कमजोर थी |

क्यूंकी मुग़ल सैनिकों को लगा की इतनी उँची पहाड़ी पर चढ़ कर दुश्मन हमला नहीं कर सकता | लेकिन तानाजी हर असंभव को संभव बनाने वाले योद्धा थे |

वो अपने 300 के करीब सैनिकों को लेकर किले की पहाड़ी पर चढाई करने की योजना बनाने लगे |

तानाजी ने पहाड़ी पर चढ़ने के लिए घोरपड़ नामक सरीसर्प की मदद ली | ये जीव किसी भी चट्टान पर चढ़ जाते हैं इसलिए इसे रस्सी बाँध कर पहाड़ी पर चढ़ा दिया गया | इससे तानाजी ने पहाड़ी की ऊंचाई का अनुमान भी लगा लिया और रस्सी की मदद से अपने सैनिकों के साथ किले में घुस गये |

किले के सामने से तानाजी के भाई सूर्याज़ी और मामा शेलार मामा के साथ किले पर आक्रमण के लिए तैयार थे | तानाजी ने किले में प्रवेश कर किले के द्वार को खोल दिया लेकिन लड़ते लड़ते वो वीर गति को प्राप्त हुए |

उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई और मामा ने किले पर कब्जा कर लिया और उदयभान राठौड़ को मौत के घाट उतार दिया | मराठों ने इस किले को जीत लिया लेकिन शिवाजी अपने मित्र को खो कर बेहद दुखी हुए | मराठों ने किले की जीत का जशन भी नहीं मनाया |

शिवाजी महाराज ने तानाजी की वीरता पर कहा…

गढ़ आला पण सिंह गेला

गढ़ अर्थात किला तो जीत लिया लेकिन सिंह अर्थात शेर को खो दिया |

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बाद में शिवाजी महाराज ने इस किले का नाम बदलकर सिंहग़ढ़ किला रख दिया | शिवाजी महाराज ने भी और बाद की सरकारों में भी तानाजी मालुसरे की वीरता को समर्पित बहुत से स्मारक स्थापित करवाए |

पुणे में ‘वाकडेवाडी’ का नाम भी बदलकर ‘नरबीर तानाजी वाडी’ रख दिया गया |

भारत सरकार की तरफ से 3 अगस्त 1984 को 150 पैसे वाला डाक टिकट सिंहगढ़ को समर्पित किया गया जिस पर सिंहगढ़ किले की तस्वीर छपी थी | इस तरह तानाजी ने शिवाजी की आन बाण को बनाए रखने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए |

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Mohan

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