पानीपत का तीसरा युद्ध इतिहास में 18 वीं शताब्दी के सबसे भयंकर युद्धों में गिना जाता है | ये युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था |
इस लड़ाई में मराठाओं की बहुत बुरी हार हुई थी जिसके बाद मराठा साम्राज्य की नींव कमजोर हो गयी थी | जिस कारण से अँग्रेज़ों ने तीसरे Anglo-Maratha War में आसानी से मराठाओं को हरा दिया था |
ये लड़ाई इतनी भयंकर थी कि कहते हैं पूरे महाराष्ट्र में कोई ऐसा घर नही था जिसका कोई न कोई सदस्य इस लड़ाई में शहीद ना हुआ हो |
पूरे भारत पर था मराठाओं का अधिकार

18 वीं शताब्दी की शुरुवात हो गयी थी और मुग़ल साम्राज्य औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद कमजोर हो चुका था | पूरे भारत पर मराठे अपना अधिकार कर चुके थे |
पूरे भारत में मराठा साम्राज्य का ध्वज लहराने का शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज का सपना पूरा हो चूका था |
मुगलों और मराठों में संधि हो गयी थी, जिसके अनुसार मुगल भी मराठों का साथ दे रहे थे | लेकिन बहुत से लोग थे जो मराठाओं की बढ़ती ताक़त की वजह से उनसे द्वेष करते थे |
दूसरी तरफ अहमद शाह दुर्रानी (अब्दाली) ने अफ़ग़ानिस्तान में 1747 में दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की थी | उसने पंजाब के बहुत से हिस्सों पर अधिकार कर लिया था |
उसने लाहोर और सिंध को भी अपने कब्ज़े में ले लिया था | अहमद शाह दुर्रानी ने अपने पुत्र तैमूर शाह को लाहौर का गवर्नर बनाया था |
अहमद शाह अब्दाली का भारत आना
मराठाओं की शक्ति बढ़ती जा रही थी | वो अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे थे | उस समय मराठाओं की कमान पेशवा बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजीराव के हाथों में थी |
मराठा चाहते थे कि विदेशी आक्रमणकारियों को देश से बाहर रखा जाए | लेकिन वो भारत के मुसलमानो के पक्ष में थे | वहीं विदेशी मुसलमानो ने मराठाओं की बढ़ती ताक़त को रोकने के लिए भी अब्दाली को भारत बुलाया था |
अहमद शाह अब्दाली भी अपने पुत्र को पंजाब से भगाये जाने की वजह से क्रोधित था | अवध के नवाब शुजाउद्दौला को अफ़गानी और मराठा दोनो ही अपने साथ मिलाना चाहते थे |
लेकिन शुजाउद्दौला ने इस लड़ाई में अफ़ग़ानियों का साथ दिया |
पानीपत का युद्ध Third Battle of Panipat in Hindi
पानीपत की ये लड़ाई 14 जनवरी 1761 को पानीपत के मैदान में लड़ी गई थी | लड़ाई का ये मैदान दिल्ली के उत्तर में 95.5 किलोमीटर की दूरी पर था |
अहमद शाह दुर्रानी का साथ दोआब के रोहिल्ला अफ़ग़ान और अवध के नवाब शुजाउद्दौला दे रहे थे |
दूसरी तरफ मराठा थे जिनका नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ कर रहे थे | मराठों के पास 45000 से 60000 की सेना थी लेकिन मराठाओं के साथ 2 लाख से ज़्यादा आम लोग थे जो उत्तर भारत में तीर्थ स्थलों के दर्शन को साथ आ गये थे |
इतनी बड़ी संख्या में आम नागरिकों को साथ ले जाने का मतलब था मराठा आने वाले ख़तरे से अनभिज्ञ थे | अंतिम समय में अवध के नवाब शुजाउद्दौला के अब्दाली के साथ मिलने की वजह से मराठों को भारी क्षति पहुँची थी |
महाराजा सूरजमल और इमाद अल मुल्क पहले मराठाओं का साथ दे रहे थे | लेकिन मराठाओं के साथ कुछ विवाद के बाद महाराजा सूरजमल और इमाद अल मुल्क में भी आखिरी समय में मराठाओं का साथ छोड़ दिया था | ये भी मराठा सेना की हार का एक बड़ा कारण बना था |
अफगान – रोहिल्ला और शुजाउद्दौला तीनो के संगठन को आर्मी ऑफ इस्लाम कहा गया | धर्म के नाम पर अहमद शाह ने इन्हें अपने साथ मिलकर भारी तबाही मचाई |
1 अगस्त 1760 को मराठा सेना दिल्ली पहुँच गयी थी और अगले ही दिन इस सेना ने दिल्ली को अपने कब्ज़े में ले लिया |
इस समय अब्दाली की पूरी सेना से मराठा सेना का मुकाबला नहीं हुआ था | मराठों ने यमुना नदी के इस पार अफगानो की छोटी छोटी टुकड़ियों से जंग जीत ली थी | जिसमें कुंजपुरा की लड़ाई में मराठों ने 15000 अफगानो को हरा दिया था |
इस समय अब्दाली की पूरी सेना यमुना के दूसरी ओर पश्चिम में थी | अब्दाली ने अपनी सेना को हारते देख एक साहसिक कदम उठाते हुए यमुना नदी को 25 अक्टूबर को बाघपत में पार कर लिया |
जिससे मराठों का बेस कैंप दिल्ली से संपर्क अब्दाली ने तोड़ दिया | 2 महीने तक अब्दाली की सेना पानीपत में डेरा डालकर बैठी रही और उसने मराठों तक सहयता नहीं पहुँचे दी |
मराठों की सबसे बड़ी ग़लती थी कि उनके साथ बहुत बड़ी संख्या में आम लोग थे जिनकी संख्या 2 लाख से भी अधिक थी |
इसलिए उनके कैंप में नवंबर तक भोजन ख़तम हो गया था |
दिसंबर अंत तक मराठों के घोड़े और दूसरे पशु भूख से मरने लगे थे | तब मराठा सैनिको और सदाशिवराव भाऊ ने निर्णय लिया की भूख से मरने से अच्छा है लड़ कर शहिद हों |
इसलिए 14 जनवरी को दोनो सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ | दोनो तरफ की सेनाओं को भारी नुकसान हुआ | इतिहासकारों की माने तो ये युद्ध 18 वीं शताब्दी का सबसे भयावह युध था जिसमें आमने सामने की लड़ाई में सबसे ज़्यादा सैनिक मारे गये थे |
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लड़ाई में बालाजी बाजी राव के पुत्र विशवास राव मारे गये थे | जिसे देखकर सदाशिव राव भावुक हो गये और अपना हाथी छोड़कर घोड़े पर सवार होकर विश्वास राव की लाश लेने चले गये |
जिससे मराठों को लगा कि सदाशिव नहीं रहे और मराठाओं में अफ़रा तफ़री मच गयी | इस लड़ाई में अब्दाली की जीत हुई और मराठाओं की हार हुई |
लड़ाई के अगले दिन 40000 मराठा सैनिक कैदियों को मार दिया गया | ये लड़ाई मराठाओं के लिए एक बहुत बड़ी हार थी |
1771 में पानीपत की लड़ाई के 10 साल बाद पेशवा माधवराव ने एक बड़ी सेना भेजकर फिर से उत्तर भारत पर कब्जा कर लिया और अब्दाली का साथ देने वालों का सफ़ाया कर दिया |