उधम सिंह ने 21 साल बाद लिया था जलियाँवाला बाग़ का बदला

Udham Singh Biography in Hindi – अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में अंग्रेजों ने पंजाब के लोगों पर गोलियां चलाकर, भारत में अपने काले शासन के अंत की कहानी लिख दी थी |

जलियांवाला बाग़ में हुए उस नरसंहार का बदला, उधम सिंह ने लंदन जाकर अंग्रेजों के घर में घुस कर लिया था |

शहीद सरदार उधम सिंह की कहानी को एक बार फिर विक्की कौशल की फिल्म “सरदार उधम” के माध्यम से दिखाया जा रहा है |

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उधम सिंह ने अंग्रेजों को दिखा दिया था कि भारत के लोग अपने ऊपर हुए जुल्म का बदला लेना जानते हैं | 

जम्मू कश्मीर और मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने हाल ही में बयान दिया था कि

“सरदार कौम पीछे नहीं हटती और 300 साल बाद भी बात नहीं भूलती।”

ऐसा ही कुछ सरदार उधम सिंह का जज्बा था जिन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग की उस घटना का बदला 21 साल बाद 1940 में लेकर भारत की मिट्टी का कर्ज उतारा था |

लेकिन उधम सिंह ने जलियाँवाला बाग़ में मौजूद जनरल डायर को नहीं मारा था | तो फिर उधम सिंह ने किसे मारकर उस घटना का बदला अंग्रेजी हुकूमत से लिया था |

इसके बारे में जानने से पहले आपको उधम सिंह की पूरी कहानी के बारे में बताते हैं और याद दिलाते हैं कि कैसे पंजाब के इस वीर सपूत ने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया | 

शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय (Udham Singh Biography in Hindi)

कहाँ हुआ शहीद उधम सिंह का जन्म (Udham Singh Birth)

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था | उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह कंबोज था और उनके पिता का नाम टहल सिंह कंबोज था |

उधम सिंह के पिता उपल्ली गाँव में रेलवे क्रॉसिंह पर वॉचमैन की नौकरी करते थे | उधम सिंह पर बचपन में ही मुसीबतों का पहाड़ टूट गया था क्यूंकि जब वो बहुत छोटे थे तभी उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी | जिसके बाद उन्हें अपने बड़े भाई मुख्ता सिंह के साथ सेंट्रल खालसा अनाथालय में रहना पड़ा | 

अमृतसर का सेंट्रल ख़ालसा नाम का वो अनाथालय एक सिख संस्थान था इसलिए दोनो भाइयों का पालन पोषण सिखों के बीच हुआ और उनका नाम बदलकर उधम सिंह और साधु सिंह रख दिया गया| 

अभी उधम सिंह ने थोड़ा सा समय ही अच्छे से गुज़ारा था कि उनके भाई साधु सिंह भी 1917 में दुनिया को छोड़कर चले गये | अब उधम सिंह अपने परिवार में अकेले ही रह गये थे |

साल 1918 में अपनी दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उधम सिंह ने अनाथालय को  छोड़ दिया था|

वहाँ रहते हुए उधम सिंह ने आर्ट्स और क्राफ्ट्स में पूरी महारत हासिल कर ली थी | ये वो समय था जब भारत में अँग्रेज़ों की ग़लत नीतियों के कारण उनके खिलाफ लोगों के मन में गुस्सा बढ़ता जा रहा था |

उधम सिंह देश के हालात को देख रहे थे और देश में अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचारों से गुस्से में थे |

इसी बीच एक ऐसी घटना घट गयी जिसने उधम सिंह के जीवन को एक दिशा दे दी | 

जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड ने बदल दी दिशा

1919 में अंग्रेज रौलेट एक्ट नाम का एक क़ानून लेकर आए थे | इस एक्ट का सरकारी नाम तो अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 था लेकिन भारत के स्वतंत्रता सेनानियों ने इस एक्ट को काला कानून कहा क्योंकि इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार किसी को भी बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद कर सकती थी |

राजनीतिक कैदियों को 2 साल तक बिना ट्रायल के जेल में रखे जाने जैसे बहुत से नियम इस एक्ट के जरिए लागू किये गए | 

इस क़ानून के अंतर्गत मजदूर यूनियन्स अपने हकों के लिए आवाज़ नहीं उठा सकती थी और किसी को भी केवल शक़ के आधार भी ही ब्रिटिश सरकार गिरफ्तार कर सकती थी |

पूरे देश में इस क़ानून का विरोध बड़े जोरो शोरों से होने लगा | पंजाब में इस क़ानून के विरोध में जगह जगह जनसभायें होने लगी | कॉंग्रेस के दो नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को इस क़ानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया |

जिसके बाद लोगों में आक्रोश बढ़ गया था | इन नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में एक जनसभा बुलाई गई | 

इस जनसभा में हज़ारों लोग शांतिपूर्वक ढंग से सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे थे |

इसी बीच ब्रिटिश सरकार के एक नुमाइंदे जनरल डायर ने जलियाँवाला बाग को घेर लिया | उस बाग से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जिस पर डायर के हथियारबंद सैनिक खड़े थे |

दूसरी ओर हज़ारों की संख्या में निहत्थी भीड़ थी, जिसपर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया |

इससे पहले की लोग कुछ समझ पाते गोलियां उनके सीनों को छल्ली करने लगी | लोग इधर उधर भागकर जान बचाने की कोशिश करने लगे |

लेकिन उस बाग़ से निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था और उस जगह खड़े होकर जनरल डायर के सैनिक निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा रहे थे | 

कुछ लोग बाग़ की ऊँची दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगे तो कुछ लोग जान बचाने के लिए बाग में बने एक कुएं में कूद गए |  इस घटना के बाद सिर्फ उस कुँए से 120 शव निकाले गए | वहीँ इस पूरे हत्याकांड में 1000 के करीब आम लोगों ने अपनी जान गवाई जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे | इसके अलावा 1200 से अधिक लोग इसमें घायल हुए |

हालाँकि सरकारी आँकड़ों के अनुसार 337 लोगों के मरने की बात कही जाती है |

जनरल डायर नहीं माइकल ओ’ड्वाइयर को मारा था

जलियांवाला बाग़ की इस घटना ने हर हिंदुस्तानी को झकझोर कर रख दिया | अंग्रेजों द्वारा किये गए इस नरसंहार का बदला लेने के लिए भारत के बहुत से नौजवानों ने कसम खाई |

उन नौजवानों में उधम सिंह भी थे उन्होंने कसम खाई थी कि वो इस घटना का बदला जरूर लेंगे |  कुछ लोगों का मानना है कि उस दिन उधम सिंह जलियांवाला बाग में ही मौजूद थे जिस दिन ये घटना हुई |

उस वक़्त पंजाब का गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर था लेकिन जलियांवाला बाग़ में 13 अप्रैल 1919 के दिन मौजूद शख्स जनरल डायर था जिसने भीड़ पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया था |

ज्यादातर लोग ये समझते हैं की उधम सिंह ने जलियाँवाला बाग में मौजूद जनरल डायर को मारा था |

उधम सिंह ने उसे नहीं बल्कि माइकल ओ’ड्वाइयर को मारा था जो कि उस समय पंजाब का गवर्नर था | माइकल ओ’ ड्वायर ने जनरल डायर के उस कदम को सही ठहराया था |

उधम सिंह उसे भी जलियांवाला बाग के उस नरसंहार का दोषी मानते थे | इसलिए लंदन जाकर उन्होने माइकल ओ’ड्वाइयर को गोली मारी थी ना कि जनरल डायर को |

जनरल डायर की मौत तो 1927 में ब्रेन हेमरेज की वजह से पहले ही हो चुकी थी | उधम सिंह डायर को भी मारना चाहते थे लेकिन तब तक वो लंदन नहीं पहुंच पाए थे |

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़े थे उधम सिंह

जलियांवाला बाग़ की घटना से पहले उधम सिंह ने अंग्रेजों की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया था वो मेसोपोटामिया में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तरफ से लड़े थे | 

प्रथम विश्व युद्ध से पहले अंग्रेजों ने उन लोगों को धन और जमीन देने के वादे किये थे जो विश्व युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ने को तैयार थे |

लेकिन विश्व युद्ध के बाद वो अपनी बातों से मुकर गए | उधम सिंह ने दो साल तक इस लड़ाई में हिस्सा लिया लेकिन अंत में उन्हें सिर्फ 200 रूपए ही मिले | 

इस धोखे और जलियांवाला बाग़ की उस घटना के बाद से उधम सिंह ने खुद को पूरी तरह देश के आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया और क्रन्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे | 

ग़दर पार्टी में हुए शामिल

उधम सिंह 1924 में गदर पार्टी से जुड़ गये थे | इस पार्टी की स्थापना 1913 में अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों ने भारत में क्रांति भड़काने के लिए की था |

आज़ादी की लड़ाई के लिए पैसा जुटाने के मकसद से उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्राएँ भी की थी | 

1927 में वो भारत लौट आए थे और उनके साथ कुछ नये साथी, रिवॉल्वर और गोला बारूद भी था | 

उधम सिंह को रिवॉल्वर रखने के जुर्म में आर्म्स एक्ट्स 1927 के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था | जिसके बाद उन्हें 5 साल जेल की सज़ा सुनाई गई थी | 

उधम सिंह के जीवन के बारे में ये बात आपको ज़रूर सुननी चाहिए | 

अँग्रेज़ों ने भारत पर इतने सालों तक राज किया क्यूंकी उनकी पॉलिसी थी कि लोगों को आपस में लड़ा दो, जिससे वो लड़ते रहे और उनका राज कायम रहे | 

ऐसा आज के समय में भी होता है जब एक धर्म विशेष के खिलाफ सरकारें ही कैंपेन चलाने लगती है और उन्हें बदनाम करती है |

उधम सिंह जब जेल से आज़ाद होकर आए थे उन्होने एक साइन बोर्ड पेंटर का काम करना शुरू कर दिया था | तब उन्होने खुद का नाम राम मुहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था |

सिर्फ़ इसलिए ताकि लोगों में संदेश जाए कि सभी धर्म एक हैं और ब्रिटिश सरकार भारतीयों को आपस में लड़वाकर राज ना कर सके |

23 मार्च 1931 को अँग्रेज़ी हुकूमत के द्वारा भगत सिंह को फाँसी दे दी जाती है | उधम सिंह भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे | भगत सिंह के शहीद होने के बाद 1935 में उधम सिंह कश्मीर पहुँचे |

उधम सिंह भगत सिंह के पोर्ट्रेट को अपने साथ रखते थे वो क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के भी फैन थे | कुछ महीने कश्मीर में रहने के बाद वो लंदन पहुँच जाते हैं | 

लंदन जाने के पीछे उनका सिर्फ़ एक ही मकसद था जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेना|

21 साल बाद लिया बदला

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आख़िर एक दिन उन्हें वो मौका मिल जाता है | 13 मार्च 1940 को लंदन के काक्सटन हॉल में माइकल ओ’ड्वाइयर एक मीटिंग में बोलने के लिए आता है | 

इस मीटिंग में उधम सिंह किसी अंग्रेज की वेशभूषा में शामिल होते हैं |

वो अपने साथ एक रिवॉल्वर एक किताब में छुपा कर ले जाते हैं और मौका मिलते ही ओ’ड्वाइयर पर 6 गोलियाँ दाग देते हैं | 

इसमें एक गोली ओ’ड्वाइयर के दिल पर लगती है जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो जाती है | ओ’ड्वाइयर के कुछ और साथी भी घायल हो जाते हैं | 

यहाँ पर एक बात जानना बहुत ज़रूरी है | ज़्यादातर लोग ये समझते हैं की उधम सिंह ने जलियाँवाला बाग में मौजूद जनरल डायर को मारा था | 

जनरल डायर वो शख्स था जिसने 13 अप्रैल को बाग में रहते हुए गोलियाँ चलाने का आदेश दिया था | 

उधम सिंह ने उसे नहीं बल्कि माइकल ओ’ड्वाइयर को मारा था जो कि उस समय पंजाब का गवर्नर था | माइकल ओ’ ड्वायर ने जनरल डायर के उस कदम को सही ठहराया था |

उधम सिंह उसे भी जलियांवाला बाग के उस नरसंहार का दोषी मानते थे | इसलिए लंदन जाकर उन्होने माइकल ओ’ड्वाइयर को गोली मारी थी ना कि जनरल डायर को |

जनरल डायर की मौत तो 1927 में ब्रेन हैमरेज की वजह से पहले ही हो चुकी थी | उधम सिंह डायर को भी मारना चाहते थे लेकिन तब तक वो लंदन नहीं पहुँच पाए थे | 

माइकल ओ’ड्वाइयर के मरने के बाद उधम सिंह को गिरफ्तार कर लिया जाता है | इसके बाद उधम सिंह पर ट्रायल चलाया जाता है | जेल में रहते हुए उधम सिंह 42 दिनों की भूख हड़ताल भी करते हैं |

42 दिनों के बाद ज़बरदस्ती उनकी हड़ताल को तुडवाया जाता है | अपने ट्रायल के दौरान उधम सिंह कोर्ट के सामने अपना पक्ष भी रखते हैं |

जिसमें वो कहते हैं की (ये शब्द श अनुवाद नहीं है) 

“मैने ये इसलिए किया क्यूंकी वो इसे डिज़र्व करता था और वो ही असली दोषी था | वो मेरे लोगों की स्पिरिट को कुचलना चाहता था इसलिए मैने उसे कुचल दिया. मैं 21 सालों से उससे बदला लेने की कोशिश कर रहा था | मै खुश हूँ की मैने ये काम कर दिखाया | मैं मौत से नहीं डरता | मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ | मैने लोगों को अँग्रेज़ी हुकूमत में भूख से मरते देखा है | मैने उनके खिलाफ प्रोटेस्ट किया जो कि मेरा कर्तव्य था | मेरी जन्मभूमि के लिए मेरी मौत से बड़ा ऑनर और क्या हो सकता है | ”

इसके बाद उन्हें फाँसी सुना दी जाती है और 31 जुलाई 1940 को पेनटनविल्ल जेल में उन्हें फाँसी दे दी जाती है | 

उधम सिंह ने जिस तरह अँग्रेज़ों के घर में घुस कर देश के हज़ारों लोगों की मौत का बदला लिया था |  इसकी तारीफ हर किसी ने की थी, जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था की उन्हें माइकल ओ’ ड्वायर की हत्या का अफ़सोस है लेकिन ये बेहद ज़रूरी भी था | 

भगत सिंह और उधम सिंह में समानता

भगत सिंह और उधम सिंह के जीवन में बहुत सी समानताएं थी जैसे कि

  • दोनो ही पंजाब से थे,
  • दोनो ही हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे और नास्तिक थे,
  • जलियाँवाला बाग के उस हत्याकांड ने दोनो के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला था,
  • दोनो को एक जैसे मामले में फाँसी की सज़ा सुनाई गई,
  • और दोनो ने फाँसी से पहले किसी धार्मिक ग्रंथ को पढ़ने से इनकार कर दिया था | 

भगत सिंह को फिर भी देश के नेता याद कर लेते हैं लेकिन शहीद उधम सिंह को बहुत कम याद किया जाता है | 

द प्रिंट की एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश में मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके नाम पर एक जिले का गठन किया था | 

2012 में उनके जनम स्थान का नाम भी सुनाम से बदलकर सुनाम उधम सिंह वाला रख दिया गया था और 2017 में सुनाम रेलवे स्टेशन का नाम भी बदलकर सुनाम उधम सिंह वाला रख दिया गया था |

Robin Mehta

मेरा नाम रोबिन है | मैंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी इसलिए इस ब्लॉग पर मैं इतिहास, सफल लोगों की कहानियाँ और फैक्ट्स आपके साथ साँझा करता हूँ | मुझे ऐसा लगता है कलम में जो ताक़त है वो तलवार में कभी नहीं थी |

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