1962 के भारत चीन युद्ध में भारत की हार हुई थी | ये हार भारत के इतिहास पर एक बहुत बड़ा धब्बा बन गई है| कुछ लोग इस हार को नेहरू जी की ग़लती मानते हैं तो कुछ लोगों के अनुसार इस हार के बहुत से दूसरे कारण भी थे |
Why India lost 1962 war in Hindi Language 1962 की भारत चीन लड़ाई में भारत क्यूँ हारा था आइये जानते हैं अजब गजब फैक्ट्स के माध्यम से हिंदी भाषा में |

1962 के युद्ध में भारत की हार के असल कारण आज भी लोगो को नही पता हैं क्यूंकी इस हार के कारणों की जाँच रिपोर्ट जिसे हेंडर्सन – ब्रुक्स (henderson brooks) रिपोर्ट कहा जाता है उसे आज तक पब्लिक नही किया गया है|
इस रिपोर्ट के पब्लिक नही करने के पीछे बड़ा कारण ये है कि इसमे भारत की बहुत सारी ग़लतियों के बारे में बताया गया है |
भारत 1947 में आजाद हुआ था और वो इतना सक्षम नहीं बन पाया था कि वो चीन के साथ मुकाबला कर सके | जबकि चीन उस समय एशिया में खुद को बड़ी शक्ति साबित करने में लगा हुआ था | इसके साथ ही चीन भारत को सबक भी सिखाना चाहता था क्यूंकि भारत भी बहुत तेजी से तरक्की कर रहा था |
आज भी चीन हमेशा भारत के खिलाफ जाकर पाकिस्तान का साथ देता है | फिर चाहे वो आर्टिकल 370 का मुद्दा हो या हाफिज सईद का |
फिर भी आज़ाद भारत के इतिहास पर ये हार बहुत बड़ा दाग है | हम आपको बताएँगे 1962 के भारत चीन युध में भारत की हार के 5 सबसे बड़े कारण |
1962 की लड़ाई में भारत की हार के कारण Why India lost 1962 war in Hindi
आर्मी नहीं थी तैयार

1962 का युद्ध नेहरू जी की बहुत बड़ी ग़लती कहा जा सकता है क्यूंकी नेहरू जी के द्वारा 1960 में फॉर्वर्ड पॉलिसी अपनाई गयी थी | इस पॉलिसी के तहत भारत ने आक्साई चीन और अरूणांचल प्रदेश में अपनी चौकियां बनानी शुरू कर दी जबकि चीन इन दोनो क्षेत्रों पर अपना दावा करता था |
आक्साई चीन में बनाई आर्मी की चौकियों से चीन को बहुत ज़्यादा आपत्ति थी जिसके बाद भारत और चीन में तनाव युद्ध की ओर बढ़ गया | पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फॉरवर्ड पॉलिसी को अपना लिया लेकिन भारत की आर्मी चीन को युद्ध के लिए ललकारने की स्थिति में नही थी |
चीन के विरोधी दलाई लामा चीन के तिब्बत में किए अत्याचारों से परेशान होकर भारत की शरण में आ गये | दलाई लामा को भारत में शरण देने की वजह से भी चीन भारत से खफा हो चुका था | जिसकी वजह से भी चीन लड़ने के लिए तैयार हो गया |
एयरफोर्स का इस्तेमाल नही करना

चीन के साथ युद्ध बहुत अधिक उँचे पहाड़ो पर लड़ा जा रहा था | इस लड़ाई में चीन ने पूरी तैयारी कर रखी थी जबकि भारत की तरफ से इस लड़ाई की बिल्कुल भी तैयारी नही थी | इसके बावजूद भारत ने अपनी बहुत बड़ी ताक़त इंडियन एयर फोर्स और इंडियन नेवी का इस्तेमाल नही किया |
उस वक़्त भारत के नेताओ की सोच ये थी कि अगर भारत एयर फोर्स और नेवी का इस्तेमाल करेगा तो चीन भी एयर फोर्स का इस्तेमाल कर सकता है जिसमे चीन के हवाई जहाज भारत के शहरो पर भी बमबारी कर सकते हैं |
इस लड़ाई में आम नागरिको को बचाने के लिए सैनिको की बलि दी जाती रही और भारत सरकार का ये फ़ैसला भारतीय सैनिकों के लिए बहुत ग़लत साबित हुआ | एक महीने लंबी चली इस लड़ाई में भारत के 20000 सैनिक चीन के 80000 सैनिको से लड़ते रहे |
इस लड़ाई में एयर फोर्स का इस्तेमाल ना करने की वजह से भारत सरकार की बहुत आलोचना हुई थी |
भारत अमेरिका से मदद माँगता रहा

इस लड़ाई के शुरू होने पर भारत के प्रधानमंत्री को अमेरिका से बड़ी उम्मीदें थी | इसीलिए प्राइम मिनिस्टर जवाहरलाल नेहरू ने उस वक़्त के अमेरिकन प्रेसीडेंट जॉन फ केन्नेडी से 12 जेट फाइटर्स और आधुनिक रडार सिस्टम देने की माँग की थी |
ये फ़ैसला इतनी हड़बड़ाहट में लिया गया था कि नेहरू के द्वारा लिखे गये इस पत्र को भारत के राजदूत अपने हाथों से अमेरिकन प्रेसीडेंट को देने पहुँचे थे |
इस वक़्त में भारत के मित्र राष्ट्र रूस और अमेरिका भी भारत का साथ नही दे सके क्यूंकी दोनो देशो में क्यूबन मिसाइल क्राइसिस (Cuban Missile Crisis) शुरू हो गया जिसके ख़तम होने तक बहुत देर हो चुकी थी |
चीन पर अतिविश्वास करना

भारत ने अपनी आज़ादी और चीन की स्थापना के बाद से चीन का साथ दिया यहाँ तक की वीटो का अधिकार भी चीन को भारत की वजह से ही मिला |
क्यूंकी वीटो का अधिकार पहले भारत को दिया जा रहा था लेकिन नेहरू ने इसे लेने से मना कर दिया और इस अधिकार को चीन को दिलवा दिया | नेहरू मानते थे कि भारत को इस पावर की ज़रूरत नही है और भारत एक गुट निरपेक्ष राष्ट्र है |
नेहरू जी के समय में हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा खूब चलता था और भारत चीन के उपर कुछ ज़्यादा ही विश्वास कर बैठा | लेकिन भारत नही जानता था कि चीन भारत की पीठ में छुरा घोंप देगा |
लेकिन चीन अपनी ताक़त के सामने सबको छोटा समझता था इसलिए उसने भारत को हरा कर इसे साबित करने की ठानी |
भारत के इराक़ में अम्बेस्डर आर एस कलहा लिखते हैं बहुत सी जगहों पर इस बात के पुख़्ता सबूत मिलते हैं की ये चीन के अहम की लड़ाई थी जिसमें चीन भारत को सबक सिखाना चाहता था |
भारत का चीन के उपर बहुत अधिक विश्वास इस हार की बहुत बड़ी वजह बना |
कमजोर नेतृत्व

इंडिया चाइना वॉर (India China War) में भारत की हार की सबसे बड़ी वजह रही भारत का कमजोर नेतृत्व | भारत को चीन की तरफ से युद्ध छेड़ने की कोई आशंका नही थी |
जवाहरलाल नेहरू ने उस वक़्त के रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन पर बहुत अधिक भरोसा किया | युद्ध की स्थिति में सही फ़ैसले नही ले पाने के कारण भारत को चीन के साथ लड़ाई में हार का मुँह देखना पड़ा |
उस वक़्त के आर्मी चीफ जनरल बी एम कौल का इस हार में बहुत बड़ा हाथ रहा | क्यूंकि वो नेहरू को सच से अवगत नही करवा पा रहे थे और लड़ाई के मैदान में सही रणनीति बनाने में भी नाकाम रहे |
उस वक़्त की सरकार सैनिको को आधुनिक हथियार और दूसरे लड़ाई के लिए ज़रूरी सामान तक नही मुहैया करवा पाई थी |
भारत के सैनिक जब इतनी उँचाई पर चीन से लड़ रहे थे तो उनके पास ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़ो का भी अभाव था |
चीन का चौतरफ़ा आक्रमण

1962 में भारत और चीन के बीच डिस्प्यूट को भारत छोटा सी डिस्प्यूट मान रहा था | लेकिन चीन ने इस लड़ाई के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी | उसने अपना पूरा सैन्य सामान हथियार तिब्बत में जमा करने शुरू कर दिए थे |
चीन की तैयारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ़ 4 दिन की लड़ाई में चीन अरुणांचल सीमा के पास 60 किलोमीटर तक अंदर घुस आया था |
20 अक्टूबर 1962 को शुरू इस लड़ाई में चीन ने लदाख, उत्तरी उत्तराखंड और अरुणांचल प्रदेश सभी तरफ से एक साथ हमला कर दिया और भारत की सेना को तैयारी करने का मौका भी नही दिया |
भारत चीन युद्ध से सबक
इस लड़ाई में भारत की हार हुई जिसके बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन इस लड़ाई से भारत ने बहुत सबक सीखे हैं भारत को सैइनयेसैन्य ताक़त की अहमियत का पता चल गया है |
इस लड़ाई के बाद चीन और पाकिस्तान में दोस्ती हो गयी और भारत के लिए दो दुश्मन हो गए हैं | आज भी चीन भारत को 1962 के युद्ध को याद करने की बात कहता है लेकिन चीन को भी रेज़ंग ला की लड़ाई को याद रखना चाहिए जिसमे सिर्फ़ 123 भारतीय सैनिको ने 1000 चीनी सैनिको को मारा था |
दोस्तों आपको क्या लगता है why India lost 1962 war आप हमें कमेंट में जरूर बताएं |