भारत की धरा पर कबीर दास, तुलसीदास जैसे महान संतों ने जन्म लिया | ऐसे ही एक संत थे सुरदास | सूरदास की आँखों के सामने अंधकार था किंतु अंदर से उनकी आँखें खुल चुकी थी | संत तुलसीदास की भाँति वो भी एक स्त्री के मोह में अंधे हो गये थे |
किंतु जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वो स्त्री शादीशुदा है तो वो सच में अंधे हो गये | क्यूंकी उन्होने अपनी आँखें निकाल कर प्राशचित किया |

इसके बाद उनकी संसारिक आँखें तो चली गई लेकिन उनकी आत्मिक आँखें सदा के लिए खुल गयी |
भक्तिकाल में हिन्दी साहित्य को नयी पहचान देने वाले संतों में तुलसीदास के साथ सूरदास भी प्रमुख संत रहे हैं |
संत तुलसीदास जहाँ इस काल में रामभक्ति के जाने जाते हैं वहीं सूरदास इस काल में कृष्ण भक्ति के लिए जाने जाते हैं| वो ईशवर की भक्ति में इस तरह से लीन हुए कि उन्हें सुनने वाला हर व्यक्ति भी भक्ति में खो जाता था |
सूरदास जी भगवान कृष्ण के उपासक थे और वो कृष्ण लीला का ही गुणगान किया करते थे |
सूरदास के द्वारा लिखे ग्रंथों में सूरसागर उनका प्रमुख ग्रंथ है | आइए जानते हैं सूरदास के इतिहास, जीवन और उनके भक्तिमय जीवन के बारे में |
Surdas Short Biography in Hindi
क्रमांक | विषय | जानकारी |
1 | नाम | सूरदास |
2 | पिता का नाम | पंडित रामदास |
3 | गुरु का नाम | गुरु वल्लभाचार्य |
4 | काल | भक्ति काल |
5 | साहित्यिक भाषा | बृज भाषा |
6 | साहित्य | सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी नल-दमयन्ती, ब्याहलो |
सूरदास का जीवन परिचय Surdas Biography in Hindi
सूरदास का जन्म
सूरदास का जनम एक ब्राह्मण परिवार में 1540 ईस्वी को हुआ था | उनके जन्म के समय और जन्म के स्थान को लेकर भी मतभेद है |
कुछ जगह पर उनके जन्म की तिथि 1535 वैशाख शुक्ल पक्ष लिखी हुई है |
भाव संग्रह में लिखे इस उल्लेख से पता चलता है उनकी और उनके गुरु वल्लभाचार्य की आयु में 10 दिन का अंतर था |
उल्लेख इस प्रकार है…
“सो सूरदास जी श्री आचार्य महाप्रभु ते 10 दिन छोटे होते”
क्यूंकी वल्लभाचार्य का जन्म 1535 वैशाख कृष्ण पक्ष को हुआ इसलिए सूरदास के जनम की तारीक इससे 10 दिन पहले मानी जाती है |
सूरदास का जन्म (चौरासी वैष्णव की वार्ता के अनुसार) रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र जो की वर्तमान में आगरा जिला है में हुआ था |
वहीं कुछ दूसरी जगहों (भावप्रकाश) पर सूरदास का जन्म सीही नामक गाँव में बताया गया है |
सूरदास के पिता का नाम पंडित रामदास था जो की एक सारस्वत ब्राह्मण थे | कुछ जगह पर लिखा गया है सूरदास जी जन्म के समय अंधे थे |
लेकिन इसके कोई पुख़्ता प्रमाण नही हैं | डॉक्टर हज़ारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि अपने कुछ पदों में सूरदास खुद को “जन्म का अँधा और करम का अभागा मानते हैं”
परन्तु इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि वो खुद को प्रभु भक्ति में लीन नही होने की वजह से खुद को आत्मिक रूप से अँधा कहते थे |
क्यूंकी डॉक्टर श्यामसुन्दर दास जी कहते हैं कि सूरदास जन्म से अंधे नही थे | जिस तरह से उन्होने प्राकर्तिक दृश्यों का संजीव वर्णन, रंग रूप और श्रृंगार का वर्णन किया है उसे कोई जन्म से अँधा व्यक्ति नही कर सकता |
सूरदास की रचनायें
सूरदास की सभी रचनायें बृज भाषा में है | बृज हिन्दी भाषा को ही कहा जाता है | भक्ति काल में ब्रिज के क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को ही ब्रिज भाषा कहा गया है |
सूरदास की सभी रचनायें बृज भाषा में है | बृज हिन्दी भाषा को ही कहा जाता है | भक्ति काल में ब्रिज के क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को ही बृज भाषा कहा गया है |
सूरदास के अलावा तुलसीदास, केशव, रहीम जी ने भी इसी भाषा में ग्रंथो, काव्यों और कविताओं की रचना की |
सूरदास ने बहुत से ग्रंथ लिखे थे लेकिन उनके 5 ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं |
- सूरसागर
- सूरसारावली
- साहित्य-लहरी
- नल-दमयन्ती
- ब्याहलो
सूरदास का जीवन परिवर्तन
कुछ जगहों पर सूरदास को जन्म से अँधा बताया गया है | लेकिन उनके जन्म से अँधा होने की बात पर विश्वास इसलिए नही किया जा सकता क्यूंकी उन्होने अपने ग्रंथों में जो वर्णन किया है वो बहुत ही संजीव प्रतीत होता है | जन्म से अँधा कोई व्यक्ति ऐसा संजीव व्रतांत नही कर सकता |
उनके बाद में अँधा होने और जीवन के परिवर्तन के बारे में एक कथा प्रचलित है |
एक बार सूरदास एक स्त्री के मोह में पड़ गये | वो उस पर इतने अधिक मोहित हो गये कि उसे देखे बिना उनसे रहा नही जाता था |
सूरदास उस स्त्री की सुंदरता में इतने मोहित थे कि उन्हें ये भी ज्ञात नही हुआ कि वो एक शादीशुदा स्त्री है |
किंतु जब सूरदास को पता चला की वो एक शादीशुदा नारी से इस कदर प्रेम कर बैठे हैं तो उन्हें अपनी आँखों पर बहुत क्रोध आया |
उन्हें लगा कि उनकी आँखों की वजह से ही वो उसके सौंदर्य के जाल में फँस गये | इसलिए उन्होने गर्म सलाखों से अपनी आँखें ही निकाल ली |
तब से सूरदास अंधे हो गये और तब से उन्होने अपना जीवन कृष्ण भक्ति में लगा दिया |
वो भगवान कृष्ण की कथा और गीत सुनते थे | सूरदास के भक्ति गीत उस समय में बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के द्वारा भी बहुत पसंद किए गये |
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सूरदास की मृत्यु
सूरदास का जीवन कृष्ण भक्ति में बिता था | उन्होने पूरा जीवन भगवान कृष्ण की कथाओं और गीतों को गा कर खुद को संसारिक मोह से मुक्त किया | (कृष्ण भक्त मुसलमान रहीम खान के बारे में यहाँ पढ़ें)
वो आज भक्ति काल में हिन्दी साहित्य में अपने ग्रंथों की वजह से दिए योगदान और गीतों की वजह से याद किए जाते हैं |
उनकी मृत्यु 1642 को हुई थी | उन्होने अपना अंतिम समय बृज में ही बिताया था |
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