रामचरितमानस की रचना करने वाले तुलसीदास के जीवन के बारे में जानना बेहद सुखद अनुभव है | इसी देश में संत कबीर जी और सूरदास जैसे संतों ने भी अपने चरण टिकाए थे |
क्यूंकि तुलसीदास जी ने जीवन में अपने आप से संघर्ष किया | वो ही एक संत और कवि रहे जिन्होने कलयुग में भगवान राम और हनुमान के दर्शन किए |
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस और हनुमान चालीसा की भी रचना की थी | आइये जानते हैं Tulsidas Biography in Hindi.
तुलसीदास भारत के महान कवि, लेखक, महाकाव्य रचियता और दोहे कहने वाले संत हैं |
कुछ लोग तुलसीदास जी को मूल रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि का कलयुग अवतार मानते हैं |
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी जो कि संस्कृत भाषा में है | उसी से प्रेरणा लेकर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की जो कि अवधि (हिन्दी साहित्य) भाषा में है |
वाल्मीकि की रामायण और तुलसी के रामचरितमानस में ये अंतर है कि वाल्मीकि ने राम को एक मानव के रूप में दिखया है जबकि तुलसी ने राम को ईश्वर के रूप में |
तुलसी के राम ईश्वर होते हुए भी धरती पर मानव रूप में मर्यादाओं का पालन करते हैं |
तुलसीदास का जीवन परिचय Tulsidas Biography in Hindi

तुलसीदास का जन्म
बड़ी विडंबना है कि जिन तुलसीदास जी ने महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की उनके जन्म की तिथि के बारे में पुख़्ता प्रमाण नही हैं |
बहुत जगह पर उनके जन्म की तिथि 1511 लिखी गयी है | लेकिन मूल गोसाई चरित में लिखी कुछ पंक्तियों के अनुसार 1554 उनके जन्म की तारीख मानी गई है |
पंक्तियाँ इस प्रकार हैं…
पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर।।
हिन्दी भाषा के विद्वान डॉ॰ श्यामसुंदर दास और हिन्दी में सबसे पहले द. लिट की उपाधि प्राप्त करने वाले पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के अध्धयन के आधार पर भी तुलसीदास का जन्म 1554 को हुआ था |
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजपूर (चित्रकूट) में हुआ था |
तुलसीदास के माता पिता
तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्मा राम दूबे और माता का नाम हुलसी देवी था | जहाँ सामान्यत बच्चा माता के गर्भ में 9 महीने तक रहता है वहीं तुलसीदास जी अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहे थे |
12 महीने के बाद जब उनका जन्म हुआ तो उनके दाँत भी निकल चुके थे |
दूसरे बच्चों की तरह पैदा होने पर वो रोए नही लेकिन उनके मुख से एक शब्द निकला था वो था राम |
इसलिए तुलसी दास का नाम रामबोला पड़ा |
तुलसीदास का जन्म सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था | तुलसीदास का बचपन संकट में गुजरा था | ज्योतिषियों के अनुसार वो अशुभ समय में जन्मे थे | उनका जीवन उनके माता पिता के लिए संकट से भरा था |
तुलसीदास के जन्म के एक दिन बाद ही उनकी माता हुलसी देवी का देहांत हो गया | उसके बाद पिता ने नन्हे से बच्चे को दासी चुनिया देवी को सौंप दिया |
लेकिन दासी चुनिया भी केवल साढ़े पाँच वर्ष तक ही उसका पालन पोषण कर सकी और उसकी भी मृत्यु हो गई |
रामबोला के पिता उसे चुनिया को सौंपने के बाद सन्यास धारण कर चुके थे इसलिए अब रामबोला नाम का ये बालक अनाथ हो गया था |
तुलसीदास के गुरु
तुलसीदास का ये नाम उनके गुरु नरहरिदास ने रखा था | नरहरिदास ने रामबोला को अपने आश्रम में जगह दी और उनका नाम रामबोला से बदलकर तुलसीदास रख दिया |
तुलसीदास की बुद्धि बड़ी तेज थी | वो जो कुछ भी एक बार सुन लेते थे वो उन्हें कंठस्थ हो जाता था |
तुलसीदास ने अपने गुरु से वेदों, पुराणों और उपनिषदों का ज्ञान हासिल किया | तुलसी दास अवधि और ब्रिज भाषाओ के अच्छे ज्ञाता बन गये | उन्होने इन्ही भाषाओ में महाकाव्य और रचनाओं को लिखा |
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तुलसीदास का जीवन परिवर्तन
पंडित दीन बंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से तुलसीदास का विवाह हो गया | रत्नावली बहुत सुन्दर स्त्री थी |
तुलसीदास रत्नावली से बहुत अधिक प्रेम करने लगे थे | वो रत्नावली से इतना प्रेम करने लगे थे कि उसके बिना बिल्कुल भी नही रह पाते थे |
एक बार उनकी पत्नी रत्नावली अपने मायके में थी | तब तुलसीदास अपनी पत्नी से मिलने को बेचैन हो गये |
वो इतने बेचैन हुए की अपनी पत्नी के घर आने तक का इंतज़ार नही कर सके |
और रात्रि में उफनती हुई नदी को पार करके अपनी पत्नी के ससुराल उससे मिलने जा पहुँचे |
तुलसीदास की पत्नी उन्हें इस तरह रात्रि के समय अपने सामने देखकर चौंक गई और क्रोधित भी हुई |
लेकिन वो भी एक समझदार स्त्री थी उन्होने तुलसी दस को एक श्लोक के मध्यम से समझाया:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ||
अर्थात हाड मांस के इस शरीर से तुम इतना प्रेम करते हो, अगर इतना प्रेम तुमने राम से किया होता तो तुम हर तरह के भय से मुक्त हो जाते और भव सागर से पार हो जाते |
इस एक वाक्य ने तुलसीदास के मन पर गहरा असर डाला | तुलसीदास वापिस घर लौट आए और अपनी जीवन राम को समर्पित कर दिया |
तुलसीदास घर बार त्याग करके तीर्थ यात्रा को चल पड़े | तुलसी दस ने पूरे भारत में सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया और लोगों को राम कथा सुनाई |
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भगवान राम से भेंट
तुलसीदास के जीवन में अब केवल राम ही राम थे | वो हर वक़्त राम की भक्ति में लीन रहते थे |
तब उन्होने राम कथा लिखना शुरू किया | तुलसीदास ने खुद अपनी रचनाओं में लिखा है कि हनुमान जी उन्हें दर्शन दिए और राम कथा लिखने की प्रेरणा भी दी |
हनुमान जी से ही उन्होने भगवान राम से मिलने की इच्छा जाहिर की थी | जिसके बाद भगवान राम ने भी उन्हें दर्शन दिए थे |
चित्रकूट के अस्सी घाट पर तुलसीदास को प्रभु श्री राम के दर्शन हुए थे | गीतावली में उन्होने लिखा है कि जब वो कदमगिरि पर्वत की परिक्रमा कर रहे थे तो उन्होने श्री राम और लक्ष्मण को घोड़े पर सवार हुए देखा था |
लेकिन वो उन्हें पहचान नही पाए | इससे वो बहुत दुखी हुए थे कि जिस राम के लिए वो इतना तड़फ़ रहे थे उन्हें ही वो पहचान नही पाए |
इस बारे में एक दोहा जो मुझे याद आता है
रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिय धाइ।
ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ।।
अर्थात इस संसार में हर किसी से प्रेम से मिले ना जाने किस रूप में नारायण के दर्शन हो जाएँ |
तुलसीदास जब भगवान राम को पहचान नही पाए तो श्री राम ने उन्हें फिर से दर्शन दिए |
इस बार तुलसीदास चंदन घिस रहे थे | जब भगवान राम उनके सामने आ गये और उन्हें तिलक करने को कहा | लेकिन तुलसी दास राम के भव्य स्वरूप को देखकर तिलक करना भूल गये | तब श्री राम ने खुद ही स्वयं का और तुलसीदास का तिलक किया |
इस बारे में भी एक प्रसिद्ध दोहा है…
चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।
अर्थात चित्रकूट घाट पर राम जी पधारे, तुलसीदास ने चन्दन घिसा और श्री राम ने तिलक किया |
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रामचरितमानस की रचना

श्री राम के दर्शन और हनुमान जी की प्रेरणा से तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की | तुलसीदास संस्कृत के भी अच्छे ज्ञाता थे | लेकिन वो चाहते थे कि उनकी लिखी राम कथा को आम जन मानस आसानी से पढ़ पाए |
इसलिए उन्होने रामचरितमानस की रचना अवधि (हिन्दी) भाषा में की |
रामचरितमानस को लिखने में तुलसीदास को 2 साल 7 महीने और 26 दिन लगे थे।
तुलसीदास की रचनायें
तुलसीदास जी का जीवन हिन्दी भाषा के उत्थान को भी समर्पित रहा | उन्होने अवधि और ब्रिज भाषाओ में बहुत से रचनायें लिखी |
अवधि भाषा
- रामचरितमानस
- पार्वती मंगल
- जानकी मंगल
- रामलला नहछू
- बरवाई रामायण
- रामाज्ञा प्रश्न
बृह भाषा
- विनय पत्रिका
- कृष्णा गीतावली
- गीतावली
- साहित्य रत्न
- दोहावली
- वैराग्य संदीपनी
इसके अलावा उन्होने प्रसिद्ध हनुमान चालीसा की भी रचना की है |
अन्य रचनायें:
- हनुमान अष्टक
- हनुमान बहुक
- तुलसी सतसाई
- कलिधर्माधर्म निरुपण
- कवित्त रामायण
- छप्पय रामायण
- कुंडलिया रामायण
- छंदावली रामायण
- सतसई
- जानकी-मंगल
- पार्वती-मंगल
- झूलना
- रोला रामायण
- राम शलाका
- कवितावली
- दोहावली
- रामाज्ञाप्रश्न
- संकट मोचन
तुलसीदास की मृत्यु
तुलसीदास के जीवन के अंतिम क्षण वाराणसी के अस्सी घाट पर बीते थे | अपनी अंतिम कृति के रूप में उन्होने विनय पत्रिका लिखी थी | 1623 में लम्बी बीमारी के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी |
लेकिन वो अपनी रचनाओं और दोहो के रूप में हमारे बीच में आज भी मौजूद हैं |
सुंदर रचना.
शुक्रिया अनिल जी |