नरक का द्वार नहीं है मगहर : कबीर का आखिरी सन्देश

कहा जाता है के काशी में मरने वाले सीधा स्वर्ग को जाते उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है पर क्या कभी अपने किसी ऐसी जगह का नाम सुना है, जहां पर मरने से मनुष्य को लाज़मी नर्क में जगह मिलती है या अगले जन्म में वो गधे की योनि में जन्म लेते हैं ?

भारत में जहां काशी को स्वर्ग का द्वार मन जाता है वहीं दूसरी और मगहर को नर्क का दरवाज़ा माना जाता है।  

बेशक मगहर को मनहूस जगह माना जाता हो पर जो शांति आपको यहां मिलेगी वो कहीं और नहीं मिलेगी। मगहर वो जगह हैं जहां संत कबीर ने अपने आखिरी दिन बिताये थे और यहीं प्राण त्यागे थे। कबीर दास का जीवन परिचय पढ़कर वो ज्ञान मिलता है जिससे जीवन सफल हो जाता है | कबीर ने बहुत से मिथकों को तोड़ा है | मगहर में मरने पर नर्क की प्राप्ति भी ऐसा ही एक मिथक है जिसपर आज हम आपको कबीर के विचार बताने वाले हैं |

कबीर और मगहर

संत कबीर ने काशी और मगहर के बीच के अंतर को दूर करने के लिए अपने प्राण यहां त्यागे क्योंकि वो दुनिया को बताना चाहते थे के स्वर्ग नर्क किसी खास जगह पर मृत्यु हासिल करने से नहीं मिलते बल्कि व्यक्ति के कर्म ही उसके आगे के रस्ते को तय करते हैं। 

सदैव पाप करने वाला व्यक्ति अगर आखिरी दिनों में काशी आ कर प्राण त्याग देता है तो क्या उसे स्वर्ग मिलेगा ? या कोई साधु जो मगहर में आकर उस परमात्मा में लीन होता है क्या ये पक्का है के वो नर्क ही भोगेगा ?

मगहर का इतिहास

मगहर के लिए बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। शुरू से ही मगहर कई तरह की कथाएँ प्रचलित हैं जैसे कहा जाता है के पहले समय में बौद्ध भिक्षु कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे पवित्र शहरों में जाने के लिए मगहर से होकर गुज़रा करते थे तो यहां रहने वाले लूटेरे उन्हें लूट लेते थे।

तो वहीं से इस जगह का नाम “मार्ग हर” पड़ा और यही नाम आगे जाकर मगहर बना। 

कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार इस जगह पर मरने वाला सीधा हरि के पास पहुंचता था तो इसका नाम “मार्ग हरि” पड़ा और बाद में ये मगहर पड़ा।  

यहां के लोगों के अंदर एक अफवाह फ़ैल गयी के स्वर्ग का रास्ता केवल काशी से होकर जाता है तो इस जगह पर मरने वाला स्वर्ग में नहीं बल्कि नर्क में जाता है और गधे की योनि भोगता है। 

कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है के पूर्वी ईरान से जो माघी ब्राह्मण यहां आये थे तो उन्हें स्थानक ब्राह्मण पसंद नहीं करते थे।

कुछ ही समय में माघी ब्रह्मणों को लोग पूजने लगे जिससे स्थानक ब्राह्मणों ने ईर्ष्या वश ऐसी अजीब अफवाहें फैलानी शुरू की जिससे माघी ब्राह्मणों के सम्मान पर असर पड़े और लोग उनके पास कम जाएँ। पर इस बात का कोई पक्का सबूत नहीं मिला। 

इन्ही अफवाहों को तोड़ने के लिए संत कबीर मगहर के पास बहती आमी नदी के पास की एक गुफा के अपना डेरा बनाया और अपने अंतिम समय तक यहीं रहे।  

संत कबीर और मगहर

कहा जाता है के काशी के हिन्दू राजा बीर सिंह बघेल और मगहर के राजा बिजली खान दोनों संत कबीर के शिष्य थे।  संत कबीर काशी से मगहर तक पैदल यात्रा कर रहे थे तो राजा बीर सिंह अपने सैनिकों के साथ कबीर जी के साथ साथ यहां तक आ गया।  

संत कबीर, बीर सिंह और उसकी फौज और बिजली खान आमी नदी के पास पहुंचे तो कबीर जी ने बिजली खान के सामने नदी में स्नान करके की बात कही तो बिजली खान ने बताया के भगवान शिव कर श्राप से ये नदी सुखी हुई है,  तभी संत कबीर ने हाथ से इशारा किया और नदी में पानी आ गया और वो वहीं पर एक गुफा में अपना डेरा दाल कर बैठ गए।  

जब संत कबीर का अंतिम समय आया तो दोनों राजाओं में उनके संस्कार को लेकर मतभेद शरू हो गया। दोनों राजा अपने अपने धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे। तो संत कबीर ने दोनों को समझने के लिए उनसे  दो चादरे मंगवाई। 

एक चादर उन्होंने नीचे बिछाई और दूसरी चादर ऊपर ले कर लेट गए और बोले के मेरी मृत्यु के बाद ऊपर वाली चादर हटा देना, और जो भी मिले उसे आधा आधा बाँट लेना। 

उनकी मृत्यु के बाद जब ऊपर वाली चादर हटाई गयी तो सब लोग हैरान हो गए , संत कबीर की देह वहां पर नहीं थी , उनके मृतक शरीर की जगह सुगंधित फूल थे।  दोनों राजाओं ने फूलों को आधा आधा बांटा।  

हिन्दू राजा ने संत कबीर की समाधि बनवाई और मुस्लिम राजा ने मज़ार। और आज भी उनकी समाधि पर हर रोज घंटियां बजने की आरती होने की आवाज़ आती है और उनकी मज़ार पर चादरें चढ़ाई जाती है। 

एक जगह संत कबीर लिखते हैं

क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा

जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’

अर्थात , चाहे काशी हो या मगहर मेरे लिए दोनों एक समान हैं , क्योंकि मेरे मन में राम बस्ते हैं , और अगर मन में राम है तो जिस मर्जी जगह हो , फर्क नहीं पड़ता। अगर कबीर काशी में भी प्राण त्याग दे तो उसमे राम का कोई एहसान नहीं होगा। 

संत कबीर ने पूरी इंसानियत को एक होने का संदेश दिया और जाते जाते भी वो दो धर्मों के आपसे युद्ध को खत्म करके गए। 

मगहर, कबीर पंथ को मानने वालों के लिए एक बहुत पवित्र स्थान है। हर साल करोड़ों की गिनती में श्रद्धालु यहां आते हैं।  

कुछ लोग सिर्फ यहां पर्यटन के लिए आते हैं परन्तु करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है मगहर। 

मगहर एक बदकिस्मत जगह थी परन्तु संत कबीर ने इसे पवित्र बना दिया।  

आज भी हमारी दुनिया को संत कबीर जैसे संत की जरूरत है जो पूरी इंसानियत को धर्म से बढ़कर सोचने की शिक्षा दे, लोगों को बताये के धर्म से बड़ी होती है इंसानियत और अगर हमारे अंदर इंसानियत है तो कोई फर्क नहीं पड़ता आप किस जगह पैदा हुए हो और मरे हो , आप सीधा स्वर्ग जाओगे।  

संत कबीर ने लोगों को धर्म से आज़ाद करवाने के लिए जो शिक्षाएं दी है वो हमेशा याद रहेगीं। 

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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