कबीर पंथ कोई धर्म या जाति नहीं, बल्कि संत कबीर द्वारा दिखाया हुआ एक मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर हर धर्म, जाति और मजहब का व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।
संत कबीर एक निर्गुण परमात्मा की उपासना करते थे और उनका कहना था के भगवान को मूर्तियों के रूप में नहीं देखा जा सकता क्योंकि वो निराकार है, उसका कोई रूप नहीं है। वो किसी मूर्ति को न पूज कर बल्कि ग्रंथो के मुताबिक ही भगवान की उपासना किया करते थे।

कबीर पंथ की 12 मुख्य शाखाएं हैं जिनके संस्थापक नारायणदास, श्रुतिगोपाल साहब, साहब दास, कमाली, भगवान दास, जागोदास, जगजीवन दास, गरीब दास, तत्वाजीवा अदि हैं।
आज कबीर पंथ को शुरू हुए लगभग 400 साल हो गए हैं। पहले कबीरपंथ केवल मंदिर और मठों तक सीमित था परन्तु आज ऐसा नहीं है। आज कबीरपंथ आम लोगों और गृहस्थ तक पहुंच गया है।
कबीर जी ने अपने प्रिय 4 शिष्यों ‘चतुर्भुज’, ‘बंके जी’, ‘सहते जी’ और ‘धर्मदास‘ जी को चुना और पुरे देश में कबीर जी की शिक्षाओं को फैलाने का आदेश दिया। इन चारों में से पहले तीनों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती , परन्तु धर्मदास जी ने धर्मदासी’ अथवा ‘छत्तीसगढ़ी‘ शाखा की स्थापना की और यही शाखा आज सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं।
ऐसा भी कहा जाता है के संत कबीर की मृत्यु के 100 साल बाद उनके शिष्य धर्मदास जी ने कबीरपंथ की स्थापना की थी। कबीरपंथ में ज्यादातर हिन्दू धर्म के लोग हैं , मुस्लिम और सिख लोगों की गिनती कम है।
अधिकांश कबीरपंथी हिंदू और सिख हैं। वे अन्य हिंदू और सिख प्रदर्शन के रूप में अपने अनुष्ठान कर रहे हैं। आम लोगों का हिंदू कानून के अनुसार अंतिम संस्कार किया जा सकता है और पुजारियों को दफनाया या दाह संस्कार किया जा सकता है, जिसके आधार पर कोई भी परंपरा का पालन करना चाहता है।
कबीर पंथ की मान्यता और अभ्यास की नींव धर्म है। कबीरपंथी अन्य बातों में भी विश्वास करते हैं, जैसे, शाश्वत सत्य, सभी जीवित चीजों के प्रति अहिंसा की प्रकृति, ईश्वर के लिए भक्ति प्रेम, ईश्वर पर विश्वास, शत्रु को क्षमा करना, क्रूरता की भावना पर विजय प्राप्त करना, रक्त मन और वाणी में पवित्रता। सार्वभौम भाईचारा, आत्म सत्य की जागरूकता।
कबीर पंथ की मूल अवधारणा पूरी दुनिया में मानवता का प्रसार करना है।
कबीर पन्थ और अनुष्ठान
किसी भी धर्म , जाती की पहचान उसमे होने वाले अनुष्ठानों से होती है। हरेक धर्म , जाती के अपने अलग अनुष्ठान होते हैं , खुशियां मनाने के अलग तरीके होते हैं , ऐसे ही कबीरपंथ में भी कुछ अनुष्ठान है जिन्हें चौका अनुष्ठान कहा जाता है। चौका गृहस्थ कबीर पंथियों के लिए होता है।
इसमें गुरु की पूजा का विधान है। इसको बड़े महंत ही करवाते हैं जिन्हें पान की पहचान होती है क्योंकि कबीरपन्थ में पान -परवाना का एक विशेष स्थान है। जैसे हिन्दू धर्म में पूजा आरती के बाद प्रशाद बाँटने का नियम है वैसे ही कबीरपंथ में आरती के बाद पान – परवाना देने का नियम है।
कबीरपंथ में दीक्षा का बहुत महत्व है। कबीरपंथी बरु या कंठी धारण करते हैं , महंत के शिष्य तुलसी के पौधे के डंठल से कंठी बनाते है और और दीक्षा देने वाले के गले में पहनते हैं। इस अवसर पर सभी मित्र , रिश्तेदार इकट्ठे होते है।
ऐसे ही कबीरपंथ में तिनका तोड़ने की भी रीत है। जब कोई नया व्यक्ति कबीरपंथ का हिस्सा बनता है तो महंत उसे गुरुमंत्र देते हैं , उसके गले में तुलसी से बनी एक कंठी बांधते हैं और एक तिनका तुड़वाते हैं। कबीरपंथ में तिनका तोड़ने का अर्थ, बाकी संसार से रिश्ता तोड़ने का प्रतीक है और इसके साथ ये सभी बुरे विचारों और विकारों को भी तोड़ने की तरफ इशारा करता है।
कबीर पंथ में प्रचलित कुछ चौका अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
आनंदी चौका: यह तब मनाया जाता है जब पंथ के नए सदस्यों की दीक्षा होती है। जब कोई व्यक्ति कबीरपन्थ में जुड़ता है तो उसका धर्म जाती परिवर्तन करने के लिए इस अनुष्ठान को किया जाता है। इसके बाद वो पूरी तरह कबीरपंथी बन जाता है और उसका बाकी किसी धर्म जाती से कोई संबंध नहीं रह जाता।
जन्मौती चौका: बच्चे के जन्म होने पर हरेक धर्म में अलग अलग पूजा पाठ , या अनुष्ठान किये जाते हैं , ऐसे ही कबीरपंथी में नए बच्चे के जन्म के समय जन्मौती चौका किया जाता है।
कालवा चौका: किसी कबीरपंथी की मृत्यु के समय उसकी आत्मा की शांन्ति के लिए ये अनुष्ठान किया जाता है।
एकोत्तारी चौका: अपने पूर्वजों की 101 पीढ़ियों के लिए शांति प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
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कबीरपन्थ और कल्पनाएं
हरेक धर्म में जाती में अपने भगवान को लेकर बहुत सारी कल्पनाएं होती हैं। वो कल्पनाएं ही भगवान को श्रेष्ठ और उत्तम प्रस्तुत करती हैं और दूसरे धर्म के सामने अपने धर्म को और ज्यादा बड़ा दिखने में मदद करती है। कल्पनाएं एक ऐसी चीज है, जिसे हम रोक नहीं सकते, कल्पना से पैदा हुई कहानियों की जड़ तक हम नहीं पहुंच सकते और न ही हम उस पर कोई सवाल कर सकते हैं |
बस उस भगवान पर आंख बंद करके विश्वास कर सकते हैं, कल्पना एक अच्छी चीज है, जो हमे और आगे तक सोचने की क्षमता देती है। ऐसे ही कबीरपंथ में भी ढेरों ही कल्पनाएं की गयी हैं और कबीरपंथी लोगों का इनपर पक्का विश्वास है क्योंकि ये कल्पनाएं नहीं बल्कि सच्चाई है।
कबीरपन्थ में संत कबीर को एक अलौकिक शक्ति वाला संत बताया गया है। उन्हें विशेष प्रकार का अलौकिक रूप दे दिया है। दुनिया के निर्माण , विनाश और अन्य दैवीय लोकों के बारे में भी बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं।
ऐसा माना जाता है के इस तरह की कल्पना छत्तीसगढ़ की शाखा के अनुयायिओं द्वारा की गयी। इन कहानियों का स्त्रोत्र ‘सुखनिधान’, ‘गुरुमहात्म्य’, ‘अमरमूल’, ‘गोरखगोष्ठी’, ‘अनुरागसागर’, ‘निरंजनबोध’ और ‘कबीर मंसूर जैसे ग्रंथो और किताबों को माना जाता है। सोचने वाली बात तो यह है के जिस पाखंड,धर्म, जाती, के कबीर जी विरोधी थे , आज उनके अनुयायी उसी पथ पर चल रहे हैं और अपना एक अलग धर्म बना कर बैठे हैं।
बीजक ही केंद्र है
संत कबीर ने हमेशा लोगो को प्रेम से रहने की सलाह दी है। कबीर पंथ में संत कबीर द्वारा लिखे ग्रंथ बीजक को केंद्र माना जाता है और इसे ही सबसे श्रेष्ठ मन जाता है। बीजक ग्रंथ के अनुसार ही भगवान की पूजा होती है और बाकी के धार्मिक काम होते हैं। बीजक का शाब्दिक अर्थ होता है बीज।
उन्होंने बताया के धर्म या जाती कुछ नहीं होता ये इंसानों द्वारा बनाया गया है , उस भगवान ने हम सबको एक जैसा ही बनाया है। उन्होंने बहुत सारे ग्रंथों की भी रचना की परन्तु बीजक उनकी सबसे बेहतरीन रचना है। कबीरपन्थ बीजक पर ही टिका है, कबीरपन्थ बीजक में बताये रस्ते पर ही चलता है और बीजक को ही सर्वोत्तम मानता है।
यह पुस्तक लोगों को उनके भ्रम, दिखावा और रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए मार्गदर्शन करती है और उन्हें सार्वभौमिक सत्य का अनुभव करने के लिए मार्गदर्शन करती है। बीजक ही कबीरपंथ का आधार है। कबीरपंथी बीजक में बताये भगवान को पूजते हैं। बीजक में बताये रस्ते पर चलते हैं और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
बीजक के तीन खंड हैं, रमैनी, शब्द और साखी। इसके इलावा और भी ग्रंथों की रचना की जैसे :
- अनुराग सागर
- कबीर बानी
- कबीर ग्रंथवाली
- सखी ग्रंथ
- कबीर सागर
- कबीर अमृत संदेश
- संध्या पथ
- गुरु महिमा
कबीरपंथ का वर्तमान स्वरुप
कबीरपंथी संत कबीर द्वारा बताये निराकार भगवान की पूजा करते हैं। कबीरपंथी प्रार्थना को बंदगी कहते हैं। कबीरपंथी के अनुसार मानव शरीर 5 तत्वों से मिल कर बना है , जिसके लिए दिन में 5 बार बंदगी करनी जरूरी है। इसके लिए समय निर्धारित रहता है. सुबह और फिर रात में भोजन के बाद बंदगी की जाती है.
भारत के उत्तरी राज्यों , पंजाब , दिल्ली , उत्तरप्रदेश में कबीरपंथी ज्यादा हैं। सिर्फ पंजाब में ही 23000 लोग कबीरपंथी हैं।
माना जाता है कि देश में कुल 96 लाख लोग कबीर पंथी हैं। इसके इलावा बौद्ध और जैन समेत कई अन्य धर्मों के लोग भी. कबीरपंथी कण्ठी पहनते हैं, बीजक, रमैनी आदि ग्रन्थों के प्रति पूज्य भाव रखते हैं. गुरु को सबसे ऊपर मानते हैं।
शुरुआत में धार्मिक और नैतिक शिक्षा देने के लिए शुरू किये इस पंथ को , अब एक अलग धर्म बना दिया है।
शुरुआत में कबीरपंथ में हिन्दू और मुस्लिम धर्म के कर्मकांडों का विरोध था, संत कबीर खुद हिन्दू और मुस्लिम धर्म के रिवाज़ों को सही नहीं मानते थे , परन्तु आज के समय कबीरपन्थ में उन्ही सब चीजों पर ज़ोर दिया जा रहा है। जैसे तिलक लगाना, कंठी धारण करना इत्यादि।
पहले समय में कबीरपंथ के प्रचार की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता था , जिसकी इच्छा होती वो खुद कबीरपंथी बन जाता , परन्तु अब समय उल्ट गया है। कबीरपंथ के महंत कबीरपंथ के प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे , वो ज्यादा से ज्यादा प्रचार कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कबीरपंथ से जुड़े।
कबीर पंथ का प्रचार और प्रसार
कबीर पंथ का प्रचार और प्रसार करने के लिए अलग अलग तरीके अपनाये जाते हैं तांकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक संत कबीर की शिक्षाओं को पहुंचाया जाये और लोगों को कबीरपन्थ के बारे में जानकारी दी जाये। कबीरपन्थ के प्रचार और प्रसार के लिए पत्र पत्रिकाओं और किताबों का प्रकाशन किया जाता है।
कबीरपंथ के सिद्धांतों और संत कबीर की शिक्षाओं को दुनिया तक पहुंचने के लिए उन्हें अलग अलग माध्यमों में प्रकाशित किया जाता है , इसके इलावा कबीर जयंती पर मेलों का आयोजन किया जाता है और कभी कभी टीवी रेडियो की भी सहायता ली जाती है।
कबीरपंथी प्रचार और प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ते।
कबीरपंथ की शाखाएँ
कबीरपंथियों द्वारा कबीरपंथ की अलग अलग शाखाएं बनाई गयी। यह शाखाएं भारत के अलग अलग हिस्से में हैं और ये कबीरपंथ का प्रचार करती हैं। कुछ लोगों के अनुसार कबीरपंथ की सिर्फ 2 शाखाएं है जो बनारस और छत्तीसगढ़ में है। पर लोगों ने बनारस और छत्तीसगढ़ की शाखाओं को भी अलग अलग हिस्सों में बाँट दिया है :
स्वतंत्र कबीरपंथ शाखाएँ, जिनको संत कबीर के प्रिय शिष्यों ने शुरू किया:
- रामकबीर पंथ
- फतुहा मठ
- बिद्दूपुर मठ
- भगताही शाखा
- कबीरचारा (काशी)
- छत्तीसगढ़ी या धर्मदासी शाखा
छत्तीसगढ़ में प्रचलित शाखाएं:
- कबीरचौरा जगदीशपुरी
- हरकेसर मठ
- कबीर-निर्णय-मंदिर (बुरहानपुर)
- लक्ष्मीपुर मठ
कबीरपंथ कोई अलग धर्म नहीं है, कबीरपंथ कोई जाति नहीं है, कबीरपंथ एक विचार है, एक स्वतंत्र विचार है जो दुनिया भर में दया, मानवता फैलाना चाहता है। कबीरपंथ की शुरुआत एक विचार से होती है, वह है
कोई हिंदू नहीं है, कोई मुस्लिम या सिख नहीं है, सभी को एक भगवान ने बनाया है और हमें उनकी स्तुति करनी चाहिए। भगवान मंदिर में नहीं है और न ही मस्जिद में है । वो हम सब के अंदर है , हर जीवित चीज में है बीएस उसे खोजने की जरूरत है।
भगवान ने कभी भी मूर्ति की पूजा करने के लिए नहीं कहा , उसने कभी नहीं कहा के व्रत रखो। अगर हमें ईश्वर तक पहुंचना है तो हमें सभी बुरे विचारों को छोड़कर सत्य को स्वीकार करना होगा।
हमें कबीर की शिक्षाओं के बारे में सोचने की जरूरत है। हमें कबीर की शिक्षाओं पर विश्वास करने की आवश्यकता है। हमे सब इंसानों को प्रेम करने और सत्कार करने की आवश्यकता है।
अगर हम अपने दिल में दया, सत्कार, प्रेम पैदा कर लेंगे तो भगवान खुद हमारे सामने प्रकट होंगे।
संत कबीर एक सच्चे संत थे, जिन्होंने हमे सच्चाई का रास्ता दिखाया।
बहुत सुन्दर और पूरा जानकारी देने वाली article है आपको बहुत बहुत सुकृया और सप्रेम साहेब बन्दगी मेरा नाम रुपन दास है पुर्बी नेपाल धनकुटा जिला का रेहेने वाला हु
Thanks