CS Seshadri Biography in Hindi – हरेक विषय का अपना एक अलग महत्व होता है। हर विषय विद्यार्थी के लिए जरूरी होता है और बच्चों को बचपन से ही हरेक विषय का ज्ञान दिया जाता है ताकि वो आगे जाकर दिए हुए ज्ञान का उपयोग कर सके और उन में से कुछ विद्यार्थी किसी एक विषय में दूसरों के मुकाबले ज्यादा रुचि रखते हैं और जैसे जैसे वो बड़े होते हैं उनकी रुचि ही उन्हें उस विषय का विद्वान बना देती है।
हमारे हरेक के अंदर एक विद्वान होता है बस कमी उसे पहचानने में रह जाती है। कुछ विद्यार्थियों को एक अनुभवी शिक्षक मिल जाता है जो उनके भीतर की प्रतिभा को पहचान कर उसे सही राह दिखाता है तो कुछ विद्यार्थी खुद ही कितने ही कष्ट सहने के बाद उस विषय में विद्वान बन पाते हैं।
आज हम जिस विद्वान के बारे में जानेंगे, वो एक विलक्षण शख़्शियत के मालिक थे। उन्होंने गणित विषय में रुचि दिखाई और वो गणित के ही विद्वान बने। उनके द्वारा गणित में किये गए शोध, विद्यार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित हुए।
सी एस शेषाद्रि का जीवन परिचय CS Seshadri Biography in Hindi
जन्म और शिक्षा
कांजिवरम श्रीरंगचारी शेषाद्रि यानि सी एस शेषाद्रि जी का जन्म 29 फरवरी, 1932 में कांचीपुरम के पास एक छोटे से गांव में हुआ। उनका गणित से लगाव बचपन से ही था। वो गणित में अधिक रुचि लेते थे और उन्होंने अपना करियर गणित में ही बनाने का सोचा था। इसके लिए उन्होंने गणित की परस्पर शिक्षा ग्रहण की थी।
उन्होंने 1953 में मद्रास यूनिवर्सिटी से गणित में बी ऐ ऑनर्स की डिग्री हासिल की मद्रास यूनिवर्सिटी में उनके गुरु फादर रसीन थे जिन्होंने शेषाद्रि जी को टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फँडामेन्टल रिसर्च (TIFR) में जाकर दूसरे विद्यार्थियों को पढ़ाने की सलाह दी।
इसके बाद 1958 में उन्होंने पी एच डी पूरी की जहाँ उनके गुरु के एस चन्दरशेकरण थे। शेषाद्रि जी की दादी कर्नाटक गायिका थी, इन्होने अपनी दादी से संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की और मुंबई में इन्होने आर रंगरमानुजा अय्यंगर जी से वीणा वादन भी सीखा।
गणित विषय में किये कार्य
शेषाद्रि जी का ज्ञान चरों और फ़ैल रहा था। विद्यार्थी शेषाद्रि जी को बेहद पसंद करने लगे थे। 1984 में इनको इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज़ ( IMS ) में शामिल कर लिया। जो चेन्नई में थी। यहां पर इन्होने कुछ समय काम किया और इसके बाद उन्होंने 1989 में SPIC साइंस फाउंडेशन के तहत स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स की शुरुआत की।
यह फाउंडेशन बच्चों को गणित के प्रति प्रेरित करने का काम करती थी और गणित में नए शोध किया करती थी। कुछ समय बाद चेन्नई गणित संस्थान (CMI) के रूप में विकसित हुई और अब तक ये CMI के रूप में ही काम कर रही है। CMI एक अनूठे तरिके से काम करती है।
यह स्तानक शिक्षा को शोध और अनुसन्धान के साथ जोड़ कर बच्चों को पढ़ाती है जिससे बच्चे की दिलचस्पी और बढ़ जाती है और उन्हें उस विषय को और गहराई से समझने का मौका मिलता है।
1957 में शेषाद्रि जी को पेरिस भेजा गया। जहाँ उन्हें महान गणितज्ञ जीन -पिअर ज़र्रे जी से मिलने का मौका मिला। जो बीजगणित के शिक्षक थे। उन्होंने शेषाद्रि जी को कुछ सवाल किये जिनका जवाब उन्होंने बहुत आसानी से दे दिया जिससे ज़र्रे बहुत प्रभावित हुए और भारत के युवाओं के अंदर भी होंसला पैदा हुआ के हम भारतीय भी किसी से कम नहीं हैं।
वो पेरिस में 3 साल तक रहे। इस दौरान एक सेमिनार में महान गणितज्ञ क्लाउड शेवेली द्वारा जी को एक मुश्किल का समन करना पड़ा, उनकी मुश्किल को शेषाद्रि जी ने बड़ी आसानी से सुलझा दिया और वो अपने देश वापिस लौट आये। उनके विदेश में किये गए कर्यो से मुंबई में नवोदित संस्थान को राष्ट्रिय और अंतर् राष्ट्रिय स्तर पर पहचान मिली।
शेषाद्रि जी ने एम् एस नरसिम्हन जी के साथ मिल कर काम करना शुरू किया और दोनों ने मिल कर एक ऐसे कार्यक्रम का निर्माण किया जो आगे जाकर वेक्टर बंडलों के मॉड्यूल नामक विषय का केंद्रबिंदु बना जिसे विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो डेविड ममफोर्ड ने शुरू किया था। शेषाद्रि जी के मार्गदर्शन पर चलकर बहुत सारे विद्यार्थियों ने बीजगणित में हैरानीजनक परिणाम दिए।
TIFR में ३ दशकों तक काम करने के बाद उनका मन ऊब गया और वो चेन्नई लौट आये और वो गणितीय विज्ञान संस्थान में शामिल हो गए और वहीं काम करने लगे। उस समय तक और भी बहुत सारे गणित संस्थान खुल चुके थे।
उनके एक मित्र एस पार्थसारथी जी की मदद से उन्होंने एक गणित संस्थान खोला जिसका नाम SPIC Mathematical Institute रखा क्योंकि उनके मित्र चेन्नई की SPIC petrochemical नाम की कंपनी में काम करते थे।
उनका रुतबा तो पहले से ही बड़ा था , जिससे उनके संस्थान को चलने में ज्यादा समय न लगा। गणित के इलावा उन्होंने दूसरे विषयों को भी अपने संस्थान में पढ़ाया जिसके लिए उन्होंने देश भर से गणितज्ञों , कंप्यूटर वैज्ञानिकों और भौतिक वैज्ञानिकों को बच्चों को पढ़ाने के लिए चुना और आज उनका ये संस्थान देश के सबसे प्रसिद्ध गणित संस्थानों में से एक है।
चेन्नई में रहते ही वो एक बार फिर से संगीत से जुड़ पाए और उन्होंने संगीत सभाओं में जाना शुरू किया। वो एक महान कर्नाटक गायक टी बृंदा जी से मिले और उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा। वो अक्सर खा करते थे के पढ़ाई के साथ साथ संगीत भी विद्यार्थियों के लिए जरूरी है क्योकिं संगीत से दिमाग ज्यादा तेज़ चलता है जो विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास में बहुत लाभदायक है। वो अक्सर अपने संस्थान में संगीत सभाएं करवाते रहते थे।
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सी एस शेषाद्रि को मिले पुरस्कार
शेषाद्रि जी को बहुत सारे पुरुस्कारों से नवाज़ा गया। उनको राष्ट्रिय स्तर के साथ साथ विदेशों में भी उनके द्वारा किये गए शोधों के लिए पुरुस्कृत किया गया। सबसे पहले 1988 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया। जो उनके लिए बहुत गर्व की बात थी । और इसके बाद से ही उनको अंतर राष्ट्रिय स्तर पर पहचाना जाने लगा।
इसके बाद 2010 में उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, यू.एस. का विदेशी एसोसिएट चुना गया। भारत सर्कार की तरफ से गणित में किये गए दुर्लभ कार्यों की वजह से उन्हें ‘पद्म भूषण’ सम्मान से नवाज़ा गया।
सी एस शेषाद्रि की मृत्यु
शेषाद्रि जी एक महान गणितज्ञ के साथ साथ महान शिक्षक और संगीत प्रेमी थे। 17 जुलाई 2020 को उन्होंने चेन्नई में अपनी अंतिम सांस ली। इनकी मृत्यु पर जितना दुख इनके विद्यार्थियों को था उतना हि दुःख देश के प्रधानमंत्री जी ने भी व्यक्त किया।
उन्होंने ट्विटर पर शेषाद्रि जी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा “प्रोफेसर सी. एस. शेषाद्रि के निधन से हमने एक महान बुद्धिजीवी को खो दिया है जिन्होंने गणित में शानदार कार्य किए। उनके प्रयास, खासतौर पर एलजेब्रा ज्यामिति में पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा”।
नरेन्द्र मोदी ने लिखा- उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। ओम शांति”। शेषाद्रि जी ने बहुत सारे विद्यार्थियों को सही राह दिखाया। कितने ही विद्यार्थियों को गणित के साथ जोड़ा और हर वो संभव प्रयास किया जिससे विद्यार्थी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सके।
भारत में ऐसे ही शिक्षकों की जरूरत है जो समाज में से नए वैज्ञानिकों को पैदा करने में सक्षम हैं और समाज सेवा और विद्यार्थियों के हित्त में काम करने के लिए सदैव ततपर हैं।