साइरस मिस्त्री की जीवनी – कैसे हुई मृत्यु

दोस्तों जब कभी इतिहास मे टाटा ग्रुप का जिक्र होगा उसके किसी कोने मे साइरस मिस्त्री के नाम कि एक अलग दास्तां परोसी जाएगी, जी हाँ वही सायरस मिस्त्री जिसे आज से 10 साल पहले 2012 मे खुद रतन टाटा ने अपने समूह का वारिस नियुक्त किया था | आइये आपको बताते हैं उन्हीं साइरस मिस्त्री की कहानी और उनकी जीवनी के बारे में |

साइरस मिस्त्री का कब्ज़ा 18.4% शेयर के साथ टाटा समूह मे सबसे ज्यादा था, जिन्हे चर्चा में आए बगैर चुपचाप काम करना बेहद पसंद था |

मगर बदकिस्मती से 4 सितम्बर को महाराष्ट्र के पालघर में हुए एक सड़क दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया | अखिर कैसे शांत और साधारण सा दिखने वाला ये शख्स देखते ही देखते भारत के बिजनेस जगत के शिखर पर पहुंच गया |

साइरस मिस्त्री का आरंभिक जीवन

cyrus mistry ki biography aur tata ke sath vivad

साइरस मिस्त्री कौन है

4 जुलाई 1968 मे एक पारसी परिवार में जन्मे साइरस पालोनजी मिस्त्री, उस समय के सबसे चर्चित खरबपति पालोनजी सपूर्जी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे |

साइरस मिस्ट्री का पारिवारिक व्यवसाय शापूरजी पालोनजी अपने आप में एक बहुत बड़ा व्यवसाय है जो हर साल इमारतों का निर्माण कर के और वाटर प्यूरीफायर बेचकर 28000 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर करता था और यहां सबसे दिलचस्प बात यह है अपनी इसी शख्सियत के आधार पर वो टाटा समूह के सबसे बड़े शेयर होल्डर है |

विदेश में जन्में लेकिन भारत में की पढाई

साइरस मिस्त्री के पिताजी पालोनजी मिस्त्री ने आयरिश महिला से शादी कर ली और आयरिश नागरिकता लेकर वही बस गये इसके कुछ समय बाद साइरस मिस्त्री का भी जन्म Ireland में ही हुआ | साइरस मिस्त्री अपने घर के सबसे छोटे बेटे थे और सबसे अलग भी |

वो थे तो आयरिश नागरिक लेकिन उनका दिल हिंदुस्तानी था, तभी तो उन्होंने अपने शुरुआती दिनों की पढ़ाई आयरलैंड से ना करके मुंबई मे की | साइरस की शुरुआती शिक्षा मुंबई के चर्चित कैथेड्रल एंड जॉन कान्वेंट स्कूल से पूरी हुई जिसके बाद, लंदन के इंपीरियल कॉलेज से उन्होने सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और फिर बिजनेस में जोर आजमाइश करने के लिए उन्होंने लंदन बिजनेस स्कूल से मैनेजमेंट में मास्टर भी किया |

पिता का व्यवसाय संभाला

बस यह समझिए यहीं से साइरस की जिंदगी ने करवट लेनी शुरू कर दी और उन्होने बिजनेस की शुरुआत अपने परिवारिक व्यवसाय से शुरू की और अपने पिताजी के साथ पालोनजी ग्रुप में हाथ बटाना शुरू कर दिया |

कंपनी के लिए मिस्ट्री की लगन को देखकर उनको सन 1991 मे शापूरजी पालोनजी कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में जगह मिली और इसके कुछ ही साल बाद 1994 में उन्हें कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया और फिर शुरुआत हुई शापूर्जी पल्लोंजी ग्रुप के गोल्डन एरा की |

जहाँ विराजमान साइरस मिस्त्री ने अपने पिता की बनाई इस कंपनी को जमीन से आसमान तक का सफ़र तय कराया  और धीरे धीरे भारत के बिजनेस जगत में उनका नाम बड़ी अदब से लिया जाने लगा, हालांकि ये सिर्फ मीडिया के चोचले थे वरना साइरस मिस्त्री को तो बिना किसी लाईमलाईट के…गुमनाम काम करने में ज्यादा मजा आता था |

साइरस मिस्त्री की शादी

वेल अब साइरस के हाथ सफलता हासिल होने लगी और अब जरूरत थी तो उनका हाथ थामने वाली किसी हमसफर की जिसके बाद साइरस की शादी भारत के सबसे बड़े वकीलों में से एक इकबाल चागला की बेटी रोहिका चागला से कर दी गयी | साइरस रोहिका को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते थे और दोनो के बीच बेहद कमाल की बॉन्डिंग थी |

व्यापार में रोजाना नया दांव खेलने वाले साइरस की किस्मत मे रोहिका के आने के बाद अलग सी चमक आ गई थी और वो शापूर्जी पल्लोंजी कंपनी के लिए ऐसा मील का पत्थर साबित हुए की कंपनी के दिन ही बदल गए |

साइरस मिस्ट्री की लीडरशिप के अंदर कंपनी ने 159 करोड रुपए से सीधे 11000 करोड़ की ऊचाई को हासिल कर डाला और अपने पिताजी द्वारा खड़ी की गई इस कंस्ट्रक्शन कंपनी को अलग-अलग फील्ड में भी उतार दिया उन्हें भारत का दूसरा अंबानी कहां जाने लगा |

क्या तेल, क्या गैस और क्या रेलवे…साइरस ने किसी भी सेक्टर को नहीं छोड़ा और अपनी मौजूदगी में कंपनी की हैसियत बुर्ज खलीफा जितनी विशालकाय कर दी, मिस्त्री कंपनी के लिए वह पारस पत्थर बन गये जिसने सोना उगलना शुरू कर दिया था इनफैक्ट यह मिस्त्री का ही कमाल था कि शापूर्जी पल्लोंजी कंपनी ने देश के तमाम हिस्से मे रिकॉर्ड दर्ज किया |

बात चाहे देश के सबसे बड़े रेजिडेंशियल टावर की हो, सबसे लंबा रेल पुल हो या फिर सबसे बड़ा बंदरगाह…दूर-दूर तक उनके मुकाबले कोई नहीं था |

यह सब तो बस एक ट्रेलर था असली फिल्म तो अभी बाकी थी, अभी तो साइरस खुद भी नहीं जान रहे थे कि वो कितनी बड़ी हस्ती बनने वाले है हालांकि उन्हें इसका ज्यादा लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ा जिसकी शुरुआत 2006 मे ही शुरू होंगी |

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टाटा संस से पुराना रिश्ता

दोस्तों ये वो वक़्त था जब पालोनजी टाटा संस के बोर्ड से रिटायर हुए थे और उनकी जगह 38 वर्ष के साइरस ने ले ली थी,लेकिन साइरस मिस्त्री के परिवार के लिए यह कोई नई बात नहीं थी दरअसल पालोंनजी का नाता टाटा के परिवार से सन 1930 से है जब मिस्त्री के दादाजी ने टाटा संस में 12.5% स्टेक खरीदा था और अब यह बढकर 18.5% से भी ऊपर पहुंच चुका है |

असल मे दोस्तों टाटा अपनी सभी कंपनियों को एक होल्डिंग कंपनी टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से कण्ट्रोल करती है और अगे चलकर टाटा ग्रुप से जुड़ने के बाद साइरस मिस्त्री भी टाटा पावर और टाटा एलेक्सी जैसे तमाम कंपनियों के डायरेक्टर रहे, साथ ही साथ टाटा स्टील,टाटा मोटर्स और टाटा केमिकल्स के कारोबार में भी उन्होंने अहम योगदान दिया |

मिस्त्री की लगन और सादगी देखकर रतन टाटा ने उन्हें साल 2012 में टाटा संस का चेयरमैन बना दिया और यहाँ भी उन्होने सबसे युवा चेयरमैन बनाने का गौरव हासिल किया | 21 साल टाटा संस की भागदौड़ अपने हाथ में लेने के बाद जब रतन टाटा ने कुर्सी साइरस मिस्त्री को दी तो वह उनसे काफी प्रभावित थे, उन्हें लगता था कि साइरस बिल्कुल उन्ही की तरह है लेकिन वो कहते है ना ज्यादा मीठे से शुगर हो जाता है बस यहाँ भी कुछ ऐसा ही होने वाला था |

साइरस मिस्त्री और टाटा के बीच विवाद

साइरस को कुर्सी संभालते अभी ज्यादा दिन बीते नहीं थे की उनका रतन टाटा से विवाद शुरू हो गया और उन पर आरोप लगने लगा कि वो अपने फैसलों मे रतन टाटा को जगह नहीं दे रहे है,पर साइरस मिस्त्री तो कुछ और ही सोच कर बैठे थे |

दरअसल दोस्तों साइरस मिस्त्री टाटा की नुकसान हो रही संपत्तियों को बेचकर बैलेंस शीट में उधार को थोड़ा कम करवाना चाहते थे |

जैसे की कंपनी को टाटा नैनो की तरह बंद कर देना चाहिए या टाटा टेलीकॉम की तरह बेच देना चाहिए या फिर एयर एशिया की तरह बाहर निकाल देना चाहिए |

परन्तु ये काम साइरस मिस्त्री के लिए इतना आसान नहीं था क्योंकि ये सभी टाटा प्रमुख रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट थे और अपने जीते जी रतन टाटा अपनी इन खास परियोजनाओं को हल्का होते बिल्कुल भी नहीं देख सकते तो बस यही से दोनों के बीच दूरियां शुरू होगी |

साइरस मिस्त्री कंपनी के सारे फैसले अपने दम पर लेना चाहते थे मगर चेयरमैन ना होते हुए भी रतन टाटा उनके कई फैसलों में दखल देने लगे यहां तक की रिटायर हो जाने के बावजूद भी वह उनको advise देने से बाज नहीं आते और शायद इसीलिए इन 4 सालों में इन दोनों के बीच 500 से ज्यादा ईमाल का आवागमन हुआ |

और हद तब पार हो गई जब 2016 में मिस्त्री ने टाटा संस बोर्ड को बिना बताए 9,000 करोड़ से सोलर फॉर्म खरीदें तो हर किसी की आंखों में वह खटकने लगे और सारे बोर्ड मेंबर्स उनसे इस्तीफा देने पर उतारू हो गए लेकिन मिस्त्री ने resign देने से साफ साफ मना कर दिया |

टाटा ने चेयरमैन पद से हटाया

इसके कुछ दिनों बाद 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस बोर्ड ने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया और फिर रतन टाटा ने अपने वफादारो को टाटा संस के बोर्ड में भरना शुरू किया और देखते-देखते एक बार फिर से टाटा की लगाम अपने हाथों में ले ली |

हालांकि साइरस मिस्त्री को अपनी यह बेज्जती नागवार गुजरी और उन्होंने माथे पर लगे दाग को मिटाने के लिए टाटा संस बोर्ड को NCLT यानी की नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल तक ला घसीटा |

यहाँ साइरस मिस्त्री को नाकामी हासिल हुई लेकिन जब उन्होने NCLAT मे अपने हक की लड़ाई लड़ी तो नतीजा उनके फेवर में आया और कोर्ट ने साइरस मिस्त्री को दोबारा चेयरमैन बनने का फरमान सुनाया, हालांकि जंग जीत चुके मिस्त्री ने चेयरमैन की कुर्सी संभालने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और ना ही उन्हें उससे कुछ खास लगाव था, बस वो तो टाटा संस बोर्ड में अपना हक चाहते थे और इसे वो किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने वाले थे |

टाटा ने लगाए गंभीर इल्जाम

साइरस मिस्त्री के अकॉर्डिंग उनके हिस्सेदारी के हिसाब से उन्हें भी बोर्ड मेंबर्स में जगह मिलनी चाहिए और वह उनका अधिकार था इधर रतन टाटा ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली थी और उनका साफ-साफ मानना था कि कंपनी में हिस्सेदारी होने से जरूरी नहीं कोई बोर्ड मेंबर बने, उल्टा टाटा समूह ने उल्टा साइरस मिस्त्री पर ही गंभीर आरोप लगा डाले |

बोर्ड की माने तो साइरस मिस्त्री जानबूझकर कंपनी को नुकसान पहुंचा रहे थे और कुछ जरूरी जानकारियां दूसरी कंपनियों को लीक भी की…वेल मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जहाँ साइरस मिस्त्री को मुंह की खानी पड़ी और फैसला रतन टाटा के पक्ष में गया और इसी के साथ ही कॉर्पोरेट जगत में चली ये अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई अपने अंत में आगई |

यहां आपको बता दें यह लड़ाई तो भले ही खत्म हो गई थी मगर साइरस मिस्त्री की रतन टाटा से रिश्तेदारी उतनी ही गहरी थी क्योंकि उनकी छोटी बहन अल्लू की शादी रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा से हुई है जिससे यह दोनों ने एक दूसरे के रिश्तेदार भी लगते है |

साइरस मिस्त्री की मृत्यु कैसे हुई

साइरस मिस्त्री एक्सीडेंट केस में गाड़ी चला रही अनाहिता पंडोले के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है | उनके खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने और मोटर वाहन अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है |

4 सितम्बर 2022 को जब वो अपनी मर्सडीज़ कार में अहमदाबाद से मुंबई जा रहे थे तो दोपहर को महाराष्ट्र के पालघर जिले में उनकी कार एक पोल से टकरा गयी |

वो पिछली सीट पर बैठे थे और उन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगा रखी थी | उस दिन कार में चार लोग थे जिनमें साइरस मिस्त्री के साथ जहांगीर दिनशॉ पंडोले, अनाहिता पंडोले और डेरियस पंडोले थे | इनमें से साइरस मिस्त्री और जहांगीर पंडोल का निधन हो गया था जबकि बाकि दो लोगों की जान बच गयी थी |

साइरस मिस्त्री की कुल संपत्ति

जाते-जाते आपको बता दें देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में साइरस मिस्त्री का अपना अलग योगदान रहा है उनके देहांत से पूरे देश को क्षति पहुंची है | जिंदादिली और खुशमिजाज अंदाज के धनी साइरस मिस्त्री 17 से 20 बिलीयन डॉलर संपत्ति के मालिक है जिन्होंने अपनी पीढ़ी को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी |

Mohan

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