ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया और मुंशी अब्दुल करीम की कहानी

वो मां बेटे नहीं थे, लेकिन उनके बीच का लगाव मां बेटे से बढ़ कर था। वो हम उम्र नहीं थे, लेकिन उनके बीच की दोस्ती जय वीरू की दोस्ती से ज्यादा गहरी थी। वो पति पत्नी भी नहीं थे, लेकिन एक दूसरे के साथ पति पत्नी से बढ़ कर समय बिताया करते थे।

एक दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्य की महारानी थी, तो दूसरा एक अदना सा नौकर। दोनों के बीच कहीं से कोई मुकाबला नहीं था, लेकिन जब दोनों एक दूसरे से मिले तो दुनिया के सारे फर्क मिट गए, और फिर ऐसा फसाना तैयार हुआ, जिसे जिसने भी सुना, दोबारा कभी भुला न सका!

ये कहानी है दुनिया की सबसे ताकतवर महारानी विक्टोरिया और उनके सेवक अब्दुल करीम की। अब्दुल करीम एक भारतीय थे जिन्हें महारानी के नौकर के रूप में इंग्लैंड भेजा गया, लेकिन फिर इन्होंने महारानी के दिल में अपना वो रंग जमाया कि महारानी के मरते दम तक उन पर से अब्दुल का रंग नहीं उतर सका।

उन्हें अब्दुल की वजह से अपने पूरे परिवार का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन अब्दुल के प्रति उनकी मुहब्बत कम नहीं हुई। चलिए फिर आज हम आपको महारानी विक्टोरिया और नौकर अब्दुल करीम के उस अजीम मुहब्बत के बारे में बताते हैं, जिसका कोई नाम तो नहीं था, पर वो हर रिश्ते से बढ़ कर था!

Golden Jubilee यानी महारानी के शासन के 50 साल पूरे होने से कुछ समय पहले महारानी ने आगरा जेल के Superintendent John Tyler के सामने इच्छा जाहिर की थी कि वो अपनी खिदमत में कुछ भारतीय सेवक चाहती हैं।

जब Golden Jubilee का समय आया तब Tyler को महारानी की इच्छा पूरी करने का बेहतरीन मौका मिल गया। John Tyler की तैनाती आगरा जेल में थी, और अब्दुल करीम भी इसी जेल में क्लर्क के रूप में काम करते थे।

John Tyler की पहली पसंद अब्दुल बना, और अब्दुल ने भी महारानी की खिदमत में जाने के लिए हामी भर दी। जल्दबाजी में अब्दुल को English Language सिखाई गई, और साथ ही राजघराने के मैनर सिखाए गए। अब्दुल करीम के साथ मुहम्मद बख्श को महारानी की सेवा में भेजने के लिए चुना गया।  

इंग्लैंड पहुंचने के बाद अब्दुल और मुहम्मद को Windsor Castle ले जाया गया, जहां इन दोनों को  Major-General Dennehy के Charge में डाला गया।

इन दोनों सेवकों को पहली बार 23 जून 1887 को Frogmore House में नाश्ते के समय महारानी की खिदमत में पेश किया गया। पहली मुलाकात में ही महारानी अब्दुल से प्रभावित हो गई।

अब्दुल के साथ अपनी पहली मुलाकात को उन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में कुछ यूं लिखा था “वो दूसरा काफी युवा, लंबा और संजीदा चेहरा वाला था, उसके पिता आगरा में डॉक्टर है, और उन दोनों ने मेरे कदमों को चूमा”

आपको बता दें कि अब्दुल करीम के पिता  Mohammed Waziruddin आगरा में hospital assistant का काम करते थे!

महारानी की सेवा में आने के कुछ समय बाद अब्दुल ने महारानी के लिए खास chicken curry, दाल और पुलाव बनाया।  यह chicken curry महारानी को इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अपनी Routine में शामिल कर लिया।

वक्त बीतता गया और महारानी अब्दुल से प्रभावित होती गईं। अब्दुल के साथ पहली मुलाकात के 2 महीने बाद ही महारानी ने उर्दू सीखने का फैसला कर लिया, और अब्दुल से उर्दू सीखने लगी।

उर्दू के बहाने विक्टोरिया और अब्दुल के बीच महारानी और नौकर की दीवार नीची होती गई, और दोनों एक दूसरे के साथ खुल कर बातें करने लगे।

अब्दुल की इंग्लिश कमजोर थी, तो उन्होंने अब्दुल के लिए एक इंग्लिश टीचर का इंतजाम भी करवा दिया।

दोनों के बीच नजदीकी बढ़ती गई। अब्दुल अब भी वेटर के रूप में ही काम कर रहे थे। एक दिन उन्होंने महारानी को बताया कि इंडिया में वो क्लर्क हुआ करते थे और वेटर का काम क्लर्क के काम से नीचा है।

इस शिकायत के बाद महारानी ने अगस्त 1888 में अब्दुल को मुंशी के पद पर बहाल कर दिया। इस बारे में महारानी अपने जर्नल में लिखती हैं कि “मैं ने ये बदलाव इसलिए किया ताकि वो यहां रुक सके, मैं उसकी सेवा को हमेशा जारी रखना चाहती हूं, वो बहुत Intelligent और useful है।

कुछ समय बाद ही अब्दुल महारानी के पहले भारतीय personal clerk बन गए।

इन दोनों के बीच की नजदीकी बढ़ने के साथ ही राज महल में अब्दुल का कद भी बढ़ने लगा। इसके साथ ही शाही परिवार के सदस्यों और Court Members के बीच बेचैनी भी बढ़ने लगी।

इस बेचैनी की एक वजह ये भी थी कि अब्दुल से पहले महारानी का अपने एक और सेवक John Brown के साथ काफी नजदीकी रिश्ता था।

इन दोनों के बीच इतना करीबी रिश्ता था कि कुछ Court Members महारानी के पीठ पीछे उन्हें  “Mrs. Brown” की उपाधि दे चुके थे। अब्दुल से मुलाकात के 4 साल पहले 1883 में John Brown की मृत्यु हो चुकी थी।

अब्दुल करीम धीरे धीरे महारानी की जिंदगी में John Brown की जगह ले रहे थे, या फिर यूं कहें कि महारानी खुद उन्हें ये जगह देना चाहती थी।

अब्दुल महारानी के साथ यूरोप की यात्रा करने लगें, इन दोनों की आपस में लंबी लंबी बातें होती, और महारानी अब्दुल को खत भी लिखा करती थीं। इन दोनों के बीच होने वाले बातें philosophical, political और practical हुआ करती थी।

महारानी के दिल में अब्दुल के लिए मोहब्बत बढ़ने के साथ ही महारानी के ऊपर अब्दुल का प्रभाव भी बढ़ने लगा। और इस बढ़ते प्रभाव से शाही परिवार में बेचैनी भी बढ़ने लगी।

महारानी चाहती थी कि राज महल में अब्दुल का सम्मान किया जाए, जबकि शाही परिवार को ये बात कतई गवारा नहीं था कि एक साधारण सा भारतीय राजमहल में सम्मान का हकदार हो सकता है!

1889 में Prince of Wales Albert Edward ने महारानी के लिए एक entertainment show का आयोजन किया था, लेकिन इस शो में अब्दुल को नौकरों वाली सीट दी गई। जिसे देख कर अब्दुल वहां से चले गए।

इस घटना पर महारानी ने Albert Edward पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि अब्दुल की सीट परिवार के सदस्य के साथ होनी चाहिए थी।

इस घटना के बाद जितने भी Functions में महारानी हिस्सा लेती, वहां अब्दुल के लिए कुलीन वर्ग के बीच Special Seat Reserve रखा जाता था। इस वजह से महारानी को अपने बेटे तक की नाराजगी झेलनी पड़ती थी।

महारानी से अब्दुल की कई शिकायतें भी की जाती थी, लेकिन महारानी के दिल में अब्दुल के प्रति प्यार इतना ज्यादा था कि अब्दुल के खिलाफ की गई किसी भी शिकायत को महारानी मानने से इंकार कर देती थी।

महारानी और अब्दुल का रिश्ता लोगों की नजरों में तब और ज्यादा खटकने लगा जब 1889 में महारानी अब्दुल के साथ अपने एक प्राइवेट घर में गई, और वहां उन्होंने अब्दुल के साथ एक रात गुजारी।

ये वही घर था जहां महारानी अक्सर John Brown के साथ आया करती थी, और Brown की मृत्यु के बाद महारानी ने कसम खाई थी कि वो दोबारा कभी इस घर में नहीं आएंगी।

इस रात के बाद इन दोनों के बीच के रिश्ते को लोग एक अलग ही नजरिए से देखने लगे, हालांकि इस बात का खुलासा कभी नहीं हो सका कि इन दोनों के बीच का रिश्ता दोस्ती तक ही सीमित था, या फिर ये रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ चुका था!

जब हम महारानी द्वारा अब्दुल को लिखे गए खत को देखते हैं, तब ये पता चलता है कि ये रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ कर मां बेटे के रिश्ते में बदल गया था। महारानी अब्दुल को लिखे अपने खत में खुद को “तुम्हारी प्यारी मां” या “तुम्हारी सबसे करीबी दोस्त” कह कर संबोधित किया करती थी।

अपने खत में महारानी Kiss का Symbol भी बनाया करती थी।

अपनी मुहब्बत के कारण महारानी अब्दुल पर काफी ज्यादा मेहरबान भी थी। महल में अब्दुल को तलवार रखने और मेडल पहनने की इजाजत थी। अब्दुल को Windsor, Balmoral और Osborne में रहने के लिए शाही घर दिया गया था। इसके अलावा आगरा में उन्हें 300 एकड़ जमीन दी गई।

अब्दुल को अपनी पत्नी, पिता समेत परिवार के सभी सदस्यों को इंग्लैंड लाने की इजाजत दी गई। जब अब्दुल की पत्नी इंग्लैंड आई तब महारानी खुद उससे मिलने गई थी।

अब्दुल के पिता Windsor महल में हुक्का पीने वाले पहले शख्स बने। महारानी ने अब्दुल की कई तस्वीरें बनवाई, और स्थानीय अखबारों में उनके बारे में articles भी published करवाई।

एक बार अब्दुल की तबीयत खराब हो गई तब महारानी दिन में दो बार उन्हें देखने जाती, उनके पास बैठती और खुद उनका तकिया तक ठीक करती थी।

1901 में महारानी की मृत्यु के बाद Edward VII ने अब्दुल के घर पर Guards को भेज कर महारानी के द्वारा लिखे गए सभी खत जब्त करवा लिए। खत के साथ ही महारानी से जुड़े जितने भी सबूत थे, सभी को जमा कर के आग के हवाले कर दिया गया।

महारानी के Personal Record में अब्दुल के जो भी सबूत थे, उसे भी मिटा दिए गए। और अब्दुल को तुरंत ही इंडिया वापस लौट जाने का हुक्म दे दिया गया।

इंडिया वापस आने के बाद अब्दुल आगरा में रहने लगे, और फिर 1909 में 46 साल की उनकी मृत्यु हो गई। उनकी अपनी कोई औलाद नहीं थी। वंशज के तौर पर उनके भाई के बच्चे थे, जो कि 1947 के बंटवारे में पाकिस्तान चले गए।

राज परिवार ने विक्टोरिया और अब्दुल के बीच के सारे सबूत मिटा दिए थे। कुछ साल बाद दुनिया इस कहानी को भूल भी गई, और फिर लगभग एक सदी तक ये कहानी दुनिया की नजरों से छिपी रही।

2003 में जब Shrabani Basu महारानी विक्टोरिया के Isle of Wight में स्थित summer home घूमने गई, तब वहां उन्हें अब्दुल की एक पेंटिंग दिखी।

इस पेंटिंग में अब्दुल को एक रईस के रूप में देख कर Shrabani काफी हैरान हुई। उन्होंने अब्दुल के ऊपर अपना रिसर्च शुरू किया, इसके बाद विक्टोरिया और अब्दुल के बीच की मोहब्बत दुनिया के सामने आई। 2010 में Shrabani Basu ने पाकिस्तान में रह रहे अब्दुल के वंशजों से मुलाकात की, जहां उन्हें अब्दुल की पर्सनल डायरी मिली।

लगभग 5 साल रिसर्च में गुजारने के बाद Shrabani ने Victoria & Abdul: The True Story of the Queen’s Closest Confident नाम की एक किताब लिखी। बाद में इस कहानी पर Victoria & Abdul नाम से एक फिल्म भी बनी, जिसमें अली फजल ने अब्दुल का किरदार निभाया था।

Mohan

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