Kurup Movie Review in Hindi

हमारे देश में इतनी तरह की घटनाएं होती हैं जिनमे से बहुत सारी घटनाओं के बारे में हमे पता तक नहीं चलता | लोग कैसे कैसे काम करते हैं पैसे कमाने के लिए इस बात का अंदाज़ा लगाना भी मुमकिन नहीं है | आज जो फिल्म हम आपके लिए लेकर आये हैं वो सत्य घटनाओं पर आधारित है और उसकी कहानी किसी को भी हैरत में डाल सकती है |

1984 के समय जहाँ देश में बहुत सारी मुश्किलें चल रही थी उस समय देश के दक्षिण भाग में कुछ ऐसा हो रहा था जिससे पूरा देश कांप गया और कुछ ही दिनों में नेशनल न्यूज़ बन गया | तो क्या है ये किस्सा और क्या है इस फिल्म की कहानी, आइये विस्तार से जानते हैं |

Kurup Movie Review in Hindi
Kurup Movie Review in Hindi

सुकुमार कुरूप की कहानी Kurup Movie Review in Hindi

सुकुमार कुरूप नाम का एक आदमी अपने इन्शुरन्स का पैसा हासिल करने के लिए एक खेल खेलता है | वो इन्शुरन्स कम्पनी को धोखा देने के लिए अपनी ही मौत का नाटक करता है जिससे उसे इन्शुरन्स का 8 लाख रुपए मिल सके| अपने इस खेल को अंजाम देने के लिए वो अपने दोस्तों के साथ मिल कर चाको नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर देता है ताकि सबको ये लगे के ये कुरूप की डेड बॉडी है |

केरल पुलिस इस केस को देखती है और जाँच पड़ताल करती है तो पुलिस को कुरूप के पुरे खेल का पता चलता है | 

कुरूप अचानक गायब हो जाता है और आज तक वो पुलिस के हाथ नहीं आया| कोई नहीं जनता कुरूप कहाँ है , क्या करता है वो ज़िंदा है या मर गया| कोई नहीं जनता| 

ये तो थी कुरूप की कहानी अब जानते है कुरूप पर बनी फिल्म के बारे में |

फिल्म में क्या दिखाया है

फिल्म में सभी के नाम बदल कर दिखाए गए हैं | गोपी कृष्ण टेढ़े दिमाग का लड़का है | वो होने जीवन में बहुत कुछ बनना चाहता है इस लिए वो एयरफोर्स ज्वाइन कर लेता है | कुछ समय एयरफोर्स की नौकरी करने के बाद उसका दिमाग घूम जाता है और वो बेईमानी करनी शुरू कर देता है और तब उसके दिमाग में इन्सुरन्स के पैसे ठगने का ख्याल आता है और वो एक चार्ली नाम के बंदे की हत्या कर देता है |

पुलिस इसकी तहकीकात करती है तो पूरा मामला समझ जाती है और कुरूप को ढूंढना शुरू कर देती है पर कुरूप आज तक पुलिस को नहीं मिला | 

कुरूप की कहानी एक क्रिमिनल की कहानी है और फिल्म में इसे क्राइम थ्रिलर के रूप में दिखाया गया है| फिल्म को 1984 के समय सेट किया है और फिल्म देख कर सच में लगता है के हम 1984 के समय में पहुंच गए है,फिल्म के आर्ट पर काफी ध्यान दिया गया है|

फिल्म में आपको कुछ भी नकली नहीं लगता, अब चीजें आपको असली जैसी लगती है | सभी एक्टर्स ने खास कर कुरूप का किरदार निभाने वाले दुलकर सलमान ने बहुत उम्दा काम किया है|

दुलकर ने ये किरदार बहुत अलग ढंग से पेश किया है, हालांकि कुरूप एक ऐसा किरदार था जिससे हरेक व्यक्ति नफरत करता,पर दुलकर को देखकर ऐसा नहीं लगता जिसकी वजह से कई जगह फिल्म एक क्रिमिनल की कहानी न होकर एक हीरोइक कहानी लगती है |

इस फिल्म के डायरेक्टर है श्रीनाथ राजेंद्रन, जिन्होंने इस कहानी को ऐसे गढ़ा है के आपका पूरा ध्यान फिल्म पर रहेगा | कहानी को घुमा फिर कर नॉन लीनियर तरीके से दिखाया गया है |

कहानी कई लोगों के नज़रिये से चलती है, जैसे कुरूप के एयरफोर्स वाले दोस्त द्वारा लिखी डायरी के मुताबिक, इस केस को हैंडल कर रहे पुलिस वाले की डायरी के मुताबिक और खुद कुरूप के मुताबिक, यानि ये फिल्म कई बार आगे पीछे होती रहती है, जो एक तरह से सही है क्योंकि इससे दर्शकों का ध्यान फिल्म में लगा रहता है और सस्पेंस बना रहता है पर कई बार ऐसे तरीके दर्शकों को कंफ्यूज कर देते हैं|

फिल्म के सभी एक्टर्स ने बहुत बढ़िया काम किया है खास तौर पर दुलकर सलमान और फिल्म में पुलिस वाले का किरदार निभाने वाले इंद्रजीत ने | दोनों ही फिल्म के प्लस पॉइंट रहे |

हरेक फिल्म की जान उसका म्यूजिक होता है, इस फिल्म में सुशीन श्याम म्यूजिक का जादू चलते नज़र आते हैं,पर यहां एक छोटी सी दिक्कत ये लगी के  जहाँ कुरूप एक क्रिमिनल है तो उसके लिए जो बैकग्राउंड म्यूजिक चुना गया है वो बहुत हीरोइक लगता है, दुलकर के अंदाज़ को पूरा करता है पर अगर आप इसे एक क्रिमिनल की कहानी के तौर पर देखंगे तो आपको ये थोड़ा अटपटा लगेगा पर अगर आप इसे सिर्फ एक मनोरंजनक फिल्म के रूप में देखेंगे तो आपको बैकग्राउंड म्यूजिक गज़ब का लगेगा |

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फिल्म फंसी झमेले में

फिल्म में कुरूप को ग्लोरिफ़ाई किया हुआ नज़र आता है, एक जगह कुरूप डायलॉग बोलता है, अब मुझे तय करना है के मैं कब पकड़ा जाऊं |

जब कुरूप फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ हुआ उसी समय से फिल्म झमेले में फंस गयी| जितिन जो चाको का बेटा है, उसने ये आरोप लगाया के जिस व्यक्ति ने उसके बाप को मार डाला, तो फिल्मकार उस कातिल को हीरो की तरह कैसे दिखा सकते हैं? उसने एक बेगुनाह का कत्ल किया और भाग गया और पुलिस आज तक उस नहीं ढूंढ पायी तो ये किस तरह की हीरोइज़्म है?

जितिन ने बताया के जब उसके पापा की हत्या हुई तो उस समय वो पैदा भी नहीं हुआ था | 21 जंवरी 1984 की रात जब पापा काम से घर वापिस आ रहे थे तो रस्ते में एक गाड़ी ने उन्हें लिफ्ट दी, और गाड़ी के अंदर ही उन्हें मार दिया और उनके मुँह को जला दिया तांकि कोई पहचान न पाए|

तो जितिन और उसके परिवार वालों ने फिल्म में से उन हिस्सों को काटने के बारे में कहा जिसमे कुरूप को हीरोइक दिखाया गया है |

अब जब ये फिल्म थिएटर में रिलीज़ हो गयी है तो दर्शकों की भीड़ फिल्म देखने के लिए उमड़ पड़ी |

आप ये फिल्म देखें या न

तो सवाल ये आता है के आप ये फिल्म देखें या न? अगर आपको क्राइम थ्रिलर फ़िल्में पसंद हैं तो ये आपके लिए ही है | फिल्म को बहुत अच्छे से शूट किया गया है, फिल्म के सेट पर आर्ट पर बहुत ध्यान दिया गया है तांकि फिल्म 1984 के ज़माने की ही लगे |

फिल्म की कहानी को जिस तरह बंधा गया है वो आपके सीट से उठने नहीं देगी बाकि दुलकर जैसे एक्टर की एक्टिंग देखने के लिए आप फिल्म को देख सकते हैं, वैसे ये फिल्म मलयालम भाषा में है पर कुछ जगह पर हिंदी डब्ड भी रिलीज़ हुई है, तो अगर आप हिंदी भाषीय है और आपके पास ये फिल्म रिलीज़ हुई है तो जरूर जाएँ देखने |

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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