जाट सूरमा महाराजा सूरजमल का इतिहास

राजस्थान की धरती पर बहुत से राजपूत वीरों ने जन्म लिया जिस कारण राजस्थान को राजपूताना भी कहा जाता है| राजपूतों की इस धरती पर एक जाट राजा ने अपनी अलग पहचान बनाई थी | वो राजा था सूरजमल आइए आपको बताते हैं Maharaja Surajmal History in Hindi for Hindi lovers.

maharaja surajmal history in hindi

Third battle of Panipat में आपसी मतभेद के कारण सूरजमल ने मराठाओं का साथ छोड़ दिया था जिस वजह से मराठाओं की बुरी तरह हार हुई थी | हालाँकि मराठाओं के साथ सूरजमल के संबंध बनते बिगड़ते रहे |

महाराजा सूरजमल अपने क्षेत्र में लोगों के प्रिय थे | उन्हें कुशल प्रशासक, रणनीतिकार और बहादुर राजा माना जाता है |

महाराजा सूरजमल राजा बदनसिंह के पुत्र थे | उनका जन्म 13 फ़रवरी 1707 को हुआ था | ये वो समय था जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य के कमजोर होने की शुरुआत हो गई थी |

महाराजा सूरजमल ने 1733 में भरतपुर को अपने कब्ज़े में लेकर इस पर शासन करना शुरू किया था |

लोहगढ किले का निर्माण Lohagad Fort Built by Surajmal

महाराजा सूरजमल में भरतपुर में लोहगढ किले का निर्माण करवाया था | इस किले की दीवारें बहुत शक्तिशाली हैं| इस किले की दीवारों पर तोपों का भी असर नहीं होता था |

क्यूंकी इसकी दीवारें मिट्टी से ढकी थी जिससे तोप के गोले और बन्दुक की गोलियाँ मिट्टी में दब जाती थी | अंग्रेजों ने 13 बार इस किले पर अधिकार करने की कोशिश की लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाए थे |

कैसे प्रसिद्ध हुए महाराजा सूरजमल Maharaja Surajmal History in Hindi

जयपुर के राजा जयसिंह से राजा सूरजमल की दोस्ती थी | सूरजमल ने उनके परिवार में हुई कलह को ख़तम करने में अहम भूमिका निभाई थी | राजा जय सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटों ईश्वरी सिंह और माधो सिंह में राजा बनने को लेकर जंग शुरू हो गयी |

ईश्वरी सिंह राजा जय सिंह के बड़े बेटे थे इसलिए महाराजा सूरजमल उन्हें राजा बनाना चाहते थे | लेकिन उदयपुर के महाराणा जगत सिंह राजा जय सिंह के छोटे पुत्र माधोसिंह को राजा बनाने के पक्ष में थे |

दोनो भाइयों के बीच हुई जंग में ईश्वरी सिंह की जीत हुई | लेकिन लड़ाई में हारने के बाद मराठाओं, उदयपुर के सिसोदिया राजाओं और राठोड़ों को साथ लेकर माधोसिंह फिर से जंग के मैदान में आ गया |

तब महाराजा सूरजमल ने अपने 10000 सैनिकों के साथ ईश्वरी सिंह का साथ दिया था | इस लड़ाई में सूरजमल बड़ी वीरता से लड़े और ईश्वरी सिंह की जीत हुई |

इस जीत के बाद सूरजमल का नाम पूरे देश में जाना जाने लगा |

दिल्ली की लूट The Loot of Delhi by Surajmal

1753 में दिल्ली के बादशाह अहमदशाह ने सफदरजंग को वज़ीर के पद से हटा दिया था | जिससे सफदरजंग ने दिल्ली के खिलाफ ही बग़ावत कर दी और दिल्ली को घेर लिया | सफदरजंग और सूरजमल में अच्छे रिश्ते थे इसलिए सफदरजंग ने सूरजमल को सहयता के लिए बुलाया |

मई 1753 में सूरजमल 15000 घुड़सवार लेकर दिल्ली पहुँच गया | उसकी सेना ने 9 मई से 4 जून तक दिल्ली में खूब उत्पात मचाया और दिल्ली को जमकर लूटा |

सुरजमल की सेना किलों के दरवाजे तक उखाड़ ले गई थी | उन्होने इतनी लूटपाट मचाई थी कि इतिहासकार बताते हैं उस समय दिल्ली के पास चुरनिया और वकीलपुरा में दूर दूर तक कोई दीपक तक नहीं दिखाई देता था |

उस समय से दिल्ली में जाट गर्दी मुहावरा कहा जाने लगा था | बाद में जयपुर के राजा माधोसिंह के कहने पर सूरजमल भरतपुर वापिस आए थे |

मराठों के साथ युद्ध SurajMal Maratha War in Hindi

पानीपत की लड़ाई से पहले मराठाओं के साथ सूरजमल के सम्बन्ध कभी अच्छे तो कभी बुरे रहे | जब मुगलों की ताक़त कमजोर हो चुकी थी तब सूरजमल भी अपने क्षेत्र के विस्तार में लगे थे |

जिसके कारण दिल्ली में मुग़ल सेना का सेनापति गजाउद्दीन ख़ान चिंतित था वो सूरजमल के प्रभाव को कम करना चाहता था | साथ ही दिल्ली में सूरजमल के द्वारा मचाई लूट से भी वो बहुत क्रोधित था |

इसलिए उसने मराठों के साथ मिलकर 1754 को सूरजमल पर आक्रमण करने की योजना बनाई |

मराठों और मुगल सेना ने कुम्हेर के किले को घेर लिया लेकिन चार महीने तक भी किले को घेर कर रखने के बाद वो किला नहीं जीत पाए |

इस लड़ाई में मल्हारराव का पुत्र खंडेराव मारा गया | बाद में मुगल, मराठों की सेना और सूरजमल में संधि हो गई | इसके बाद राजा सूरजमल की कुशलता और रणनीति की प्रसंशा और बढ़ गई |

Mohan

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