Maharana Pratap History in Hindi – 1568 में जब पूरे भारत पर अकबर के नेतृत्व में मुगलों ने अपना अधिकार कर लिया था | उस समय केवल महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह ही थे जिन्होंने कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की |
उसी तरह उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप ने भी अपने पिता और देश की प्रतिष्ठा के लिए कभी मुगलों के सामने सर नहीं झुकाया |आइये जानते हैं महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय
महाराणा प्रताप का इतिहास – Maharana Pratap History in Hindi

महाराणा प्रताप का जन्म Maharana Pratap Birth Date and Place
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्बलगढ़ राजस्थान में हुआ था | उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय था |
उदय सिंह मेवाड़ के राजा थे और उस समय मेवाड़ की राजधानी चितौड़ थी | महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश के 54 वें शासक थे | वो 25 बेटों में सबसे बड़े थे |
महाराणा प्रताप का घोड़ा Maharana Pratap Horse
उनका अपने घोड़े चेतक से बड़ा लगाव था | चेतक उनका प्रिय घोडा था और वो बहुत वीर भी था |चेतक की वीरता की कहानियों को बहुत से कवियों ने अपनी कविताओं में पिरोया है |
चेतक इतना फुर्तीला और समर्थ था कि वो कई फ़ीट ऊँचे हाथी के मुँह तक कूद सकता था |
हल्दीघाटी के उस युद्ध में चेतक घायल होने के बाद भी महाराणा प्रताप को बचा कर सुरक्षित स्थान तक ले गया था | कहा जाता है कि महाराणा प्रताप को बचाने के लिए वो 26 फ़ीट लम्बे नाले को भी लांघ गया था |
जिसे मुग़ल सेना का कोई भी घोड़ा नहीं लाँघ पाया था |
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक Maharana Pratap Coronation History
1568 में जब महाराणा प्रताप सिर्फ 27 वर्ष के थे उस समय मुग़ल सेना ने चितौड़ को चारों तरफ से घेर लिया था |
उस समय पिता उदय सिंह के कहने पर महाराणा प्रताप ने चितौड़ छोड़ दिया था और वो परिवार के साथ गोगुंडा चले गए |
महराणा प्रताप सबसे बड़े थे इसलिए उनका राजा बनना तय था लेकिन उनके पिता उदय सिंह अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अपनी रानी बतियानी के बेहद करीब आ गए थे |
जिसकी वजह से अब उदय सिंह बतियानी के पुत्र जगमाल को राजा बनाना चाहते थे | महाराणा प्रताप जानते थे कि जगमाल को राजा बनाना मेवाड़ के हित में नहीं होगा लेकिन फिर भी उन्होंने अपने पिता की अंतिम इच्छा का विरोध नहीं किया |
उदय सिंह के वफादार और मेवाड़ की प्रजा प्रताप को ही राजा के रूप में देखना चाहती थी | लेकिन जगमाल गद्दी को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं था |
सभी सरदारों का निर्णय था कि जगमाल को सिंहासन छोड़ना होगा | लेकिन जगमाल गद्दी नहीं छोड़ने कि जिद्द में मुगलों से जा मिला |
लेकिन इधर सभी सरदारों और प्रजा की सहमति से प्रताप को मेवाड़ का सिंहासन सौंप दिया गया |
हल्दीघाटी का युद्ध History of Battle of Haldighati
अकबर मेवाड़ को अपने कब्जे में करना चाहता था | मेवाड़ का इतिहास वीरों की कहानियों से भरा पड़ा है इसी धरती से राणा कुम्बा, राणा संगा और उदय सिंह जैसे वीर पैदा हुए थे |
मुग़ल बादशाह अकबर को डर था कि कहीं महाराणा प्रताप उसके लिए सर दर्द ना बन जाएं |
अकबर एक कुशल रण नीतिकार था वो युद्ध नहीं चाहता था बल्कि वो शांति से मेवाड़ को जीतना चाहता था | इसलिए उसने बहुत बार शांति प्रस्ताव के जरिये मेवाड़ को मुगलों के अधीन हो जाने की पेशकश की लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की |
अकबर दूसरे मुग़ल शासकों से अच्छा था वो बाबर और औरंगजेब जैसा क्रूर नहीं था | वो सभी धर्मों का सम्मान करता था और लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं करता था |
इसलिए बहुत से हिन्दू राजा उसकी अधीनता स्वीकार करने को तैयार हो गए थे |
लेकिन महाराणा प्रताप किसी भी कीमत पर अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं करना चाहते थे | इस तरह जब महाराणा प्रताप ने अकबर का शांति प्रस्ताव नहीं माना तो अकबर ने युद्ध का निर्णय लिया |
अकबर ने मान सिंह को महाराणा प्रताप से लड़ने के लिए भेजा | महाराणा प्रताप इस समय गोगुंडा में थे जहाँ पर हल्दी घाटी से होकर ही जाया जा सकता था |
गोगुंडा तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा था और एक तरफ घने जंगल थे |
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हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और मान सिंह के बीच भीषण युद्ध हुआ | मुग़ल सेना महाराणा प्रताप की सेना की संख्या से बहुत अधिक थी | लड़ाई में जब मुगलों का पलड़ा भारी होने लगा तो सरदारों ने महाराणा प्रताप को वहां से बच निकलने के लिए कहा |
इस लड़ाई में उनका प्रिय घोड़ा चेतक बुरी तरह से घायल हो गया लेकिन फिर भी वो महाराणा प्रताप को बहुत दूर तक ले गया |
हल्दीघाटी के उस भीषण युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई |
युद्ध में हारने के बाद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी लेकिन वो युद्ध में भारी संख्या में सैनिकों के मारे जाने से बहुत दुखी हुए |
जिसके कारण उन्होंने एक बहुत बड़ा निर्णय लिया और अपने निर्णय के अनुसार वो जीवन भर जमीन पर सोये और पत्तलों में भोजन किया |
महाराणा प्रताप युद्ध के बाद फिर से अपनी सेना को गठित करने में लग गए और उन्होंने फिर से मेवाड़ के बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार कर लिया |
हालाँकि जीवन भर चितौड़ उनकी पहुँच से दूर ही रहा |
उनका जीवन संघर्ष से भरा हुआ था और उन्होंने जीवन भर मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की | जिसके कारण उनका नाम इतिहास में सुनहरी अक्षरों में दर्ज है |