राणा सांगा का इतिहास

Rana Sanga History in Hindi – 80 घाव लगने के बाद भी राणा सांगा नाम का वो वीर युद्ध भूमि में हार मानने को तैयार नहीं था | एक आँख, एक हाथ और एक पाँव खोने के बाद भी ये योद्धा लगातार लड़ता जा रहा था |

इस वीर योद्धा ने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोधी और मुग़ल शासक बाबर के विरुद्ध लड़ाइयाँ लड़ी |

युद्ध में हाथ, पैर और आँख तक खो देने के बाद भी वो दुश्मनो से मुकाबला करते रहे और उनकी मृत्यु किसी युद्ध में नहीं हुई बल्कि एक धोखेबाज ने उनकी जान ले ली थी |

आज हम बात करेंगे राणा सांगा के पुरे इतिहास के बारे में |

मेवाड़ के वीर राणा सांगा (Rana Sanga History in Hindi)

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Rana Sanga History in Hindi

राणा संगा का इतिहास बहुत गौरवशाली और वीरता से भरा है और हो भी क्यूँ ना राणा संगा मेवाड़ की उस धरती पर पैदा हुए थे जिसने देश को बहुत से वीर दिए हैं |

वो राणा कुम्भा के वंशज थे जिन्होने विषम परिस्तिथियों में भी अपनी वीरता का लोहा पुरे उत्तर भारत में मनवा दिया था |

राणा संगा ने एक आँख, एक हाथ और एक पैर के खराब हो जाने के बाद भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया और युद्धों में आगे रहकर अपने दुश्मनो का सामना किया |

युद्ध में अपने हाथ और पाँव खोने के बाद भी राणा सांगा का होंसला कभी कम नहीं हुआ |

राणा सँगा, राणा रायमल के पुत्र और राणा कुम्भा के पोते थे | राणा कुम्भा ने अपने समय में नागोर, नराना, अजमेर, सारंगपुर, बूँदी, ख़ातु, मोडलगढ़ तक को हरा कर वहाँ अपना शासन स्थापित किया था

राणा कुम्भा ने दिल्ली के सुल्तान सैयद मुहम्मद शाह को हरा कर खुद को साबित किया था | उन्हीं के पोते थे राणा सँगा |

राणा सांगा का जीवन परिचय (Rana Sanga Biography in Hindi)

राणा सँगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था | राणा सँगा का जन्म सिसोदिया वंश में 12 अप्रैल 1482 को हुआ था |

राणा सांगा को मेवाड़ का राजा बनने के लिए पहले अपने भाइयों से युद्ध लड़ना पड़ा |

कुछ जगह पर कहा गया है कि बचपन में अपने भाइयों से लड़ते हुए उनकी आँख चली गयी थी जबकि कुछ जगह बताया जाता है कि युद्ध में उन्होने आँख खो दी थी।

वो 1508 में मेवाड़ के राजा बने थे और उन्होने 1527 तक मेवाड़ पर शासन किया ।

राणा सँगा के समय में मेवाड़ बहुत समृद्ध था । राणा सॅंगा ने सभी भारतीय राजाओं को एकजुट करने के लिए बहुत से विवाह किए ।

राणा सॅंगा हिन्दुस्तान की सभी ताक़तों को एक साथ लाना चाहते थे । उन्होने उस समय हिंदू मुस्लिम में भेद नहीं किया वो चाहते थे जो हिन्दुस्तान में हैं वो एक साथ आ जाए और सभी मिलकर विदेशी ताक़तों का मुकाबला करें ।

सॅंगा ने बहुत से युध लड़े थे और दिल्ली, गुजरात तथा मालवा के मुस्लिम शासको मेवाड़ की रक्षा की थी । दिल्ली में उनका दुश्मन सिकंदर लोधी, गुजरात में महमूद शाह और मालवा में उनका मुकाबला नसीरूद्दीन खिलजी से था ।

ये तीनो मिलकर राणा सॅंगा को परास्त करने की रणनीति बना रहे थे लेकिन राणा ने इन तीनो को परास्त कर दिया था ।

गुजरात के सुल्तान मुज़फ़्फ़र को राणा ने इडर, अहमदनगर और बिसलनगर की लड़ाइयों में परास्त किया था ।

माण्डु के सुल्तान महमूद के साथ हुए युध में महमूद बुरी तरह घायल हो गया था राणा ने उसे अपने पास रखा और उसका इलाज करवाया ।

वो तीन महीने तक राणा की क़ैद में रहा और बाद में फौज का खर्च लेकर उसे छोड़ा गया इस बात से खुश होकर सुल्तान ने भी महाराणा की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

सुल्तान ने राणा को रत्नो से जड़ा हुआ मुकुट और सोने की कमरपेटी भी भेंट के रूप में दी ।

इस तरह महाराणा संग्राम सिंग का पूरा जीवन ही युधों में बिता था उनका देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना अभी अधूरा था | जिसके लिए उन्हें बहुत सी लड़ाइयाँ और लड़नी थी ।

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इब्राहिम लोदी से राणा सांगा का युद्ध (History of Rana Sanga and Ibrahim Lodi in Hindi)

यूँ तो महाराणा ने बहुत लड़ाइयाँ लड़ी लेकिन कुछ लड़ाइयाँ जो राणा सॅंगा ने लड़ी थी वो उनके जीवन और भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ थी।

एक लड़ाई थी खतौली की लड़ाई जिसमें राणा सॅंगा का मुकाबला इब्राहिम लोधी के साथ हुआ और दूसरी लड़ाई जो की सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है जिसके बाद भारत में मुग़ल राज पूरी तरह से स्थापित हो गया था वो थी खानवा की लड़ाई ।

खतौली की लड़ाई

उस समय उत्तर भारत में दो बड़ी ताक़तें थी एक इब्राहिम लोदी और दूसरे राणा सॅंगा | राणा अपने क्षेत्र के विस्तार में लगे थे और सभी हिंदू राजाओं को एकजुट करना चाहते थे

ये सुनकर इब्राहिम लोधी सॅंगा को रोकने में लग गया इस तरह दोनो के बीच उत्तर प्रदेश के खतौली में दोनो सेनाएं आमने सामने थी ।

5 घंटे चली लड़ाई में राणा सॅंगा ने बड़ी आसानी से इस लड़ाई को जीत लिया यहाँ तक की राणा ने एक लोदी राजकुमार को भी बंदी बना लिया था जिसे बाद में मोटी रकम लेकर छोड़ा गया ।

बताया जाता है की इस लड़ाई में लड़ते हुए ही राणा का एक हाथ और एक पाँव खराब हो गया था |

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धौलपुर की लड़ाई

राणा सॅंगा से युध में हारने के बाद इब्राहिम लोधी बहुत अधिक क्रोधित हो जाता है दिल्ली का शासक होने के बाद भी वो राणा सॅंगा को नहीं हरा पाया था |

उस हार का बदला लेने के लिए वो फिर से अपनी सेना को एकत्रित करता है और राणा पर हमला कर देता है ।

राणा से बदला लेने के लिए वो एक बहुत बड़ी सेना को भेजता है लोधी की विशाल सेना राणा पर जबरदस्त हमला करती है | लेकिन धौलपुर की उस लड़ाई में भी लोधी की हार होती है ।

इस लड़ाई में हारने के बाद इब्राहिम लोधी के पास कोई विकल्प नहीं बचता | राणा सॅंगा का प्रभाव उस पुर क्षत्रे में बहुत अधिक बढ़ जाता है |

इब्राहिम लोधी के बार बार हारने की वजह से और उसके किसी की भी बात नहीं सुनने की वजह से उसके कुछ रिश्तेदारों ने बाबर को भारत आने के निमंत्रण दे दिया ।

जिसके बाद भारत में दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ और मुग़ल राज की शुरुआत हो गयी।

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राणा सांगा बाबर युद्ध – खानवा की लड़ाई (History of Rana Sanga and Babur War in Hindi)

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खानवा की लड़ाई बाबर और राणा सॅंगा के बीच 1527 में लड़ी गयी थी । पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को हरा दिया था लेकिन भारत में मुग़ल राज को स्थापित करने की जंग अभी बाकी थी ।

जब भारत में इब्राहिम लोधी का शासन था तब लोधी के रिश्तेदारों और राणा सॅंगा ने ही बाबर को भारत में बुलाया था ।

राणा सॅंगा चाहते थे की बाबर इब्राहिम लोधी को कमजोर कर दे ताकि राणा सॅंगा उसे आसानी से हरा सके लेकिन पानीपत की उस पहली लड़ाई के बाद बाबर पुरे भारत पर अधिकार का सपना देख चुका था ।

वो भारत में हमेशा के लिए रहना चाहता था जिस कारण बाबर और राणा सॅंगा में टकराव होना ही था | क्यूंकी राणा सॅंगा सभी हिंदू राजाओं को एकजुट करके एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे ।

और बाबर के रहते ऐसा नहीं हो सकता था वहीं इब्राहिम लोधी की हार के बाद अफगानी भी बाबर से बदला लेना चाहते थे | सिकंदर लोधी के छोटे बेटे महमूद लोदी ने राणा सॅंगा से हाथ मिला लिया और 10000 अफ़ग़ानों की फौज उनसे जुड़ गयी ।

बाबर से लड़ने के लिए राणा सॅंगा ने राजपूतो को अपने साथ मिलाना शुरू कर दिया | मालवा के मेदिनी राव, मेवात के खंज़ड़ा हसन ख़ान भी राणा सॅंगा के साथ जुड़ गये ।

वहीं बाबर ने कुछ राजाओं को अपने साथ मिलाया लेकिन फिर भी बाबर की सेना, राणा सॅंगा की सेना के मुक़ाबले बहुत छोटी थी |

राणा सॅंगा और बाबर की सेना फतेहपुर सीकरी के निकट खानवा नमक स्थान पर एक दूसरे के सामने थी |

बाबर और राणा सॅंगा के बीच युद्ध शुरू हो गया राणा सॅंगा को लगा की वो आसानी से बाबर को हरा देंगे | क्यूंकी उन्हें लगा की उनके पास ज़्यादा सेना बल है, उन्होने वही ग़लती की जो इब्राहिम लोधी ने की थी |

बाबर और उसके सिपाही बार बार युध लड़ने के कारण युध लड़ने में पूरी तरह निपुण थे साथ ही बाबर के पास तोपें थी जिनका इस्तेमाल भारत में उस समय तक नहीं होता था

बाबर ने बैल गाड़ियों को आपस में बाँधकर इनके बीच से तोपों से राणा सॅंगा की सेना पर प्रहार किए |

राणा सॅंगा का साथ देने वाले छोटे छोटे राजाओं की सेना और सॅंगा की सेना के बीच आपसी तालमेल की भी कमी थी | जबकि बाबर ने इस युद्ध को एक धर्म युध तो बनाया ही था साथ ही उसकी अपनी सेना को नियंत्रण में रखने की क्षमता अद्भुत थी |

बाबर ने लड़ाई के बीच में ही प्रलोभन देकर राणा सॅंगा के लोधी सेनापति को अपने साथ मिला लिया था |

इस लड़ाई में सॅंगा के चेहरे पर एक तीर लग गया जिसके लगने से वो बेहोश हो गये जिसके बाद राणा के एक विश्वासपात्र ने उन्हें युध भूमि से कुछ दूरी पर एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया।

सेना को संगठित रखने और उसके मनोबल को बनाए रखने के लिए राणा की जगह पर उनका एक सैनिक उनका मुकुट पहनकर लड़ने लगा ।

लेकिन युध में उसके मारे जाने के बाद बाबर की जीत हुई |

राणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई (Rana Sanga Death History in Hindi)

युध के मैदान से कुछ दूरी पर जब राणा सॅंगा को होश आया तो उन्होने फिर से बाबर के विरुद्ध युध करने का निर्णय लिया।

लेकिन एक विश्वासघाती ने उन्हें विष देकर उनकी हत्या कर दी।

बाबर ने 12000 के करीब सैनिकों को साथ लेकर उसने पहले इब्राहिम लोधी को हराया जिसके पास लाखो सैनिक थे | उसी तरह उसने राणा सॅंगा की एक बहुत बड़ी सेना को भी हरा दिया था पर उस दिन उस खानवा की उस लड़ाई में राणा की मृत्यु नहीं हुई |

बल्कि कुछ विश्वासघाती सरदारों ने ही राणा को जहर देकर मार डाला था।

राणा सॅंगा उस युध में वीरता से लड़े थे परंतु उनका पुरे राष्ट्र को एक करने का वो सपना पूरा नहीं हो सका और भारत का वो राजपूत वीर गति को प्राप्त हुआ ।

इतिहास हमारे राजपूत वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है आप किस ओर योद्धा की कहानी सुनना चाहते हैं हमें कॉमेंट करके ज़रूर बतायें |

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Mohan

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