Rao Tula Ram History in Hindi – भारत का इतिहास वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है | भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे वीरों ने देश की आज़ादी के लिए हंसते हंसते फाँसी के फंदों को चूम लिया | बहुत से योद्धा बाहरी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए मारे गये | इतिहास उन सभी वीरों को याद रखता है लेकिन बहुत से वीरों को भुला दिया जाता है |
ऐसे ही वीर योद्धा की वीर गाथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस वीर योद्धा का नाम है राव तुलाराम |
राव तुलाराम ने अँग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया था | उन्होने अँग्रेज़ों की नाक में दम करके रखा था | 1857 की क्रांति में जिस आग को मंगल पांडे ने जगाया था उस आग को हरयाणा में राव तुलाराम ने फैलाया था |
राव तुलाराम का जन्म Rao Tula Ram Birth Date
राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर 1825 को आज के हरियाणा के रेवाड़ी में हुआ था | उनके पिता का नाम पूरण सिंह और माता का नाम ज्ञान कंवर था |
उनके पिता के पास रेवाड़ी के रामपुरा की जागीर थी | जब राव तुलाराम सिर्फ़ 14 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी | उसके बाद 14 वर्ष की आयु में ही राव तुलाराम ने रामपुरा की जागीर का काम संभालना शुरू कर दिया था |
राव तुलाराम को तुलासिंह के नाम से भी जाना जाता था | राव तुलाराम अँग्रेज़ी हुकूमत के अत्याचारों को बचपन से देख रहे थे |
उन्हें हिन्दी, फ़ारसी, उर्दू और अँग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था और वो देश दुनिया के घटनाक्रम पर भी अपनी नज़र जमाए हुए थे |
वो युद्ध लड़ने में कितने निपुण थे इसकी सही जानकारी नहीं दी जा सकती लेकिन उनके दिल में देशप्रेम की भावना प्रबल थी |
1857 की क्रांति में तुलाराम का योगदान – Rao Tula Ram Contribution in 1857 Revolt
पूरे भारत की सभी रियासतें जान चुकी थी कि अँग्रेज़ी हुकूमत देश की संपदा को लूट रही है | भारत पर उनका कोई अधिकार नहीं था और वो भारत का शासन चलाने के लायक नहीं थे |
क्यूंकी उनकी नीतियाँ भेदभाव से भरी होती थी और वो काले गोरों में भेद करते थे | भले ही भारत का संविधान आज़ादी के बाद लिखा गया था और उसमें हर नागरिक को एक समान माना गया |
लेकिन उससे पहले भी भारत के सूफ़ी संतों ने हमेशा हम सब एक हैं का ही संदेश दिया था |
इसलिए अँग्रेज़ों को भारत से निकालना ज़रूरी था | 1857 की क्रांति जब भड़की तो इस क्रांति ने अँग्रेज़ी हुकूमत को एहसास करवा दिया की अब ज़्यादा दिन वो भारत पर राज नहीं कर सकते |
इस क्रांति में बलिदान चाहिए था ऐसे में हरियाणा का ये वीर योद्धा कैसे शांत बैठ सकता था |
17 मई 1857 को राव तुलाराम और उनके भाई गोपाल राव ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर रेवाड़ी पर कब्जा कर लिया | धीरे धीरे राव तुलाराम के इस संघर्ष में आम लोग और विद्रोह करने वाले सैनिक जुड़ते गये |
राव तुलाराम ने खुद को रेवाड़ी का राजा घोषित किया और लोगों से धन इकट्ठा करके हथियार और आर्मी को बढ़ाना शुरू किया | राव तुलाराम ने बदुकें और दूसरे हथियार बनाने के लिए कारखाना भी बनाया |
क्यूंकी राव तुलाराम जानते थे की उनका मुकाबला सबसे बड़ी शक्ति से है | जिनके पास सबसे आधुनिक हथियार, रणनीतिकार और कुटिल लोग हैं |
अँग्रेज़ों ने दिल्ली में बहादुर शाह पर हमला कर दिया था | बहादुर शाह की मदद के लिए राव तुलाराम ने अनाज और पैसा भेजा था |
लेकिन बहादुर शाह ज़्यादा देर तक दिल्ली को नहीं संभाल पाए और अँग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया |
राव तुलाराम का अंग्रेज़ो से मुकाबला – Rao Tula Ram Fight with Britishers
16 नवम्बर 857 को नसीबपुर, नारनौल में राव तुलाराम का मुकाबला अँग्रेज़ों से हुआ | अँग्रेज़ों को लगा था की वो आसानी से इस विद्रोह को दबा देंगे | लेकिन राव तुलाराम ने अंग्रेज़ो की फौज पर भयंकर हमला किया जिससे अंग्रेज सिपाही दंग रह गये |
इस लड़ाई में दो बड़े अंग्रेज अफ़सर कर्नल जॉन ग्रांट गेरार्ड और कैप्टन वाल्श मारे गये जबकि दूसरे बहुत से अफ़सर घायल हो गये |
इससे पहले की राव तुलाराम इस लड़ाई में जीत कर विद्रोह की आग को दूसरे हिस्सों तक ले जाते अँग्रेज़ों के जयपुर, अलवर, नाभा और पटियाला से वफ़ादार राजाओं ने अँग्रेज़ों की मदद के लिए सेनाएं भेज दी |
जिससे लड़ाई में अँग्रेज़ों का पलड़ा फिर भारी हो गया और तुलाराम के साथी राव किशन सिंह, रामलाल और शहजादा मोहम्मद आज़म मारे गये |
क्रांति की आग को जिंदा रखने के लिए राव तुलाराम को जंग का मैदान छोड़कर जाना पड़ा और वो तात्या टोपे की सेना के साथ जा मिले |
अँग्रेज़ों ने इस क्रांति को पूरी तरह दबा दिया लेकिन राव तुलाराम की लड़ाई अब भी जारी थी |
राव तुलाराम की रूस यात्रा – Rao Tularam Travel to Russia
इस क्रांति के बाद भारत की बहुत सी रियासतों के राजाओं ने सोचा की अँग्रेज़ों को भारत से भगाने के लिए रूस से मदद लेनी चाहिए |
रूस में हो रही हलचलों का असर भारत पर भी पड़ सकता था इसलिए बहुत से भारतीय राजाओं ने रूस के जार के पास दूत भेजने की योजना बनाई |
इस मुश्किल काम को राव तुलाराम ने करने का साहस दिखाया | वो भारतीय राजाओं के द्वारा भेजे गये इन पत्रो को रूस ले गये |
वो रूस पहुँचे या नहीं इस बात के प्रमाण नहीं हैं लेकिन कहा जाता है उनके द्धारा ले जाए गए पत्र रूस तक पहुँच गये थे | जिनमें से बीकानेर के राजा सरदार सिंह बहादुर का पत्र सैंट पीटेर्सबर्ग के संग्रालय में आज भी सुरक्षित है |
इस तरह राव तुलाराम भारत के पहले राजदूत बने थे | तुलाराम की रूस की यात्रा अत्यंत कठिन थी | उनके साथी इस मिशन में पकड़े गये थे | उनका भी स्वास्थ्य बहुत अधिक खराब होने की वजह से 23 सितम्बर 1862 काबुल में उनकी मृत्यु हो गई थी |
कुछ लोग उनकी तुलना सुभाष चंद्र बोस से भी करते हैं क्यूंकी सुभाष चंद्र बोस भी बाहर से भारत के लिए मदद लेने गये थे |
उनकी मृत्यु भी विदेशी ज़मीन पर हुई थी | इस तरह जिस राव तुलाराम और उनके जैसे बहुत से क्रांतिकारियों की कुर्बानी की बदौलत भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल की थी |
राव तुला राम से जुड़े सवाल FAQ’s About Rao Tula Ram
राव तुलाराम के पिता का नाम पूरण सिंह था | पूरण सिंह के दो भाई थे नाथू राम और जवाहिर सिंह | जवाहिर सिंह के कोई भी संतान नहीं थी |
राव तुलाराम के भाई का नाम गोपाल देव था | गोपाल देव उनके चचेरे भाई थे और नाथू राम के पुत्र थे |
राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर 1825 को हरियाणा के रेवाड़ी में हुआ था |
इस लड़ाई के बाद वो तात्या टोपे की सेना में चले गए थे |
राव तुलाराम
अहिरवाल में दोबारा क्रांति शुरू करने मैं राव तुला राव का साथ किसने दिया था please answer this question