अल्लूरी सीताराम राजू की कहानी Alluri Sitaram Raju Story in Hindi

Alluri Sitaram Raju Story in Hindi – फिल्म निर्देशक एस एस राजामौली जी की फिल्म RRR अगले साल रिलीज़ होने वाली है और ये फिल्म देश के दो क्रांतिकारियों कोमाराम भीम और अल्लुरी सीताराम राजू जी के जीवन पर बनी है उनके आज़ादी के संघर्ष को दर्शाती है|

पर हम में से कितने लोग इन दोनों में से किसी एक भी क्रन्तिकारी को जानते हैं ? हम नहीं जानते पर हमे जानना जरूरी है क्योंकि एक समय ऐसा था जब अँगरेज़ सरकार इन दोनों के नाम से भी कंपा करती थी। 

हम आज RRR फिल्म के बारे में नहीं बताएंगे बल्कि आज हम आपको अल्लुरी सीताराम राजू जी के बारे में बताएँगे। हम बताएंगे के कैसे एक आदिवासी समुदाय के युवक ने पूरी अँगरेज़ सरकार को घुटने पर ला दिया था। आज हम इसी महान क्रन्तिकारी के बारे में जानेंगे। 

अल्लुरी सीताराम राजू की असली कहानी Alluri Sitaram Raju Story in Hindi

Alluri Sitaram Raju Story in Hindi
Alluri Sitaram Raju Story in Hindi

कौन थे अल्लुरी Who was Alluri Sitaram Raju

विशाखापट्नम के पाण्डुरी गांव में 4 जुलाई 1897 में अल्लुरी का जन्म हुआ था। अल्लुरी के पिता जी का नाम अल्लूरी वेंकेट रामराजू था और वो एक क्रांतिकरी  विचारधारा के थे।

उन्होंने अल्लुरी सीताराम को एक बात बताई थी के अंग्रेज़ों ने हमे गुलाम बनाया हुआ है और अंग्रेज़ हमें लूट रहे हैं और ये बात सीताराम के दिमाग में घर कर गयी और इसी एक बात ने सीताराम के दिल में क्रांति पैदा की और भारत देश से अंग्रेज़ों को खदेड़ने की ठान ली। 

अल्लूरी के पिता जी की अचानक हुई मृत्यु से सीताराम पूरी तरह टूट गए और 

कैसे बने एक क्रांतिकारी How Alluri Became Rebellion

उस समय आदिवासी समुदाय की हालत ठीक नहीं थी इस समुदाय को अंग्रेज़ बहुत प्रताड़ित करते थे और इस शोषण को अल्लूरी ने खुद देखा और महसूस किया था। अंग्रेज़ आदिवासियों से कमाई के सभी साधन छीन लेना चाहते थे और अंग्रेज़ों ने आदिवासियों की जमीनों पर भी कब्ज़ा करके उन्हें हत्या लिया था। 

अल्लूरी इस शोषण से परेशान हो गए थे और किसी भी तरह वो अंग्रेज़ों को अपने देश से भागना चाहते थे और इसी लिए अल्लूरी ने आदिवासियों को इकठ्ठा करके अंग्रेज़ों के खिलाफ खड़ा किया। 

उस समय साधु संत भक्ति के इलावा पुरे देश में घूम कर लोगों को अंग्रेज़ों के जुल्मों के बारे में बताते थे और लोगों को आज़ादी के लिए जागरूक करते थे। 

अल्लूरी ने इस मोके को समझा और साधु संतों के साथ पुरे देश के भ्रमण पर निकल गया। अल्लूरी ने मुंबई, गुजरात, आसाम, नेपाल की यात्रा की और इस दौरान घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, और प्राचीन ग्रंथों की शिक्षा हासिल की। अल्लूरी एक सच्चे सन्यासी बन गए थे और वो माता काली को अपना इष्ट  मानते थे। 

अल्लूरी महात्मा गाँधी जी के विचारों को मानते थे और उनके जैसे अहिंसा के रस्ते पर चल कर आज़ादी हासिल करना चाहते थे। अपनी यात्रा पूरी करने के बाद वो कृष्णदेवीपेट नाम की जगह पर आ गये और यहीं पर अपना आश्रम बना लिया। ये वो समय था जब पूरे देश में असहयोग आंदोलन बहुत तेज़ी से चल रहा था।

अल्लूरी ने गांवों में पंचायतें बनाकर छोटे छोटे झगड़े सुलझाने शुरू किया और इसी बहाने वो लोगों के दिलों में क्रांति पैदा करते थे। धीरे धीरे लोग अल्लूरी की बातों से प्रेरित होने लगे और जब उनके अंदर देश भक्ति की भावना पैदा हो गयी तब अंग्रेज़ों का दर ही लोगों के दिलों से निकल गया। 

त्याग दी थी अहिंसा 

अल्लूरी ने गाँधी जी के विचारों को त्याग दिया क्योंकि अल्लूरी को समझ आ गया था के अंग्रेज़ों के अत्याचारों का जवाब उनकी भाषा में ही देना होगा और अल्लूरी ने अपनी सैना बनाई और रम्पा क्षेत्र को अपनी गतिविधियों का क्षेत्र बनाया। मालाबार इलाका पर्बतीय इलाका था जो उनकी लिए बिलकुल सही काम कर गया।

अल्लूरी की सेना ने इस इलाके को छापामार युद्ध के लिए इस्तेमाल किया। अल्लूरी को स्ताहनीय लोगों का भरपूर साथ मिल रहा था। अल्लूरी और उनकी सेना अभी भी धनुष बाण से लड़ रही थी और सामने अंग्रेजी सैना बहुत बड़ी थी।

अल्लूरी इस बात को समझते थे के अंग्रेज़ों की गोलिओं के आगे उनके बाण किसी काम नहीं आएंगे और उन्हें भी हत्यारों की जरूरत थी जिसके लिए अल्लूरी ने डाके मारने शुरू किये और डाके के पैसों से हथ्यार खरीदने शुरू किये।

हत्यारों की लूट के लिए अल्लुरी ने पुलिस स्टेशन पर भी हमला करना शुरू कर दिया। कृष्णदेवीपेट के पुलिस स्टेशन पर हमला करके अपने साथी वीर्याय डोरा को भी अंग्रेज़ों की कैद से आज़ाद करवाया। 

अल्लूरी लगातार अंग्रेज़ों की नाम में दम कर रहे थे जिससे अंग्रेज़ परेशान हो रहे थे और वो किसी भी तरह अल्लूरी और उसके साथियों को मार गिरना चाहते थे पर अल्लूरी कोई साधारण डाकू नहीं थे। अंग्रेज़ों ने अल्लूरी को पकड़ने के लिए स्कार्ट और आर्थर नाम के अपने दो बहादुर अफसर नियुक्त किये।

इन दोनों अंग्रेज़ अफसरों ने सैंकड़ों अंग्रेज़ सैनिकों के साथ अल्लूरी और उनके 80 साथियों पर हमला कर दिया पर अल्लूरी ने इन दोनों अंग्रेज़ अफसरों को मार दिया जिससे अंग्रेज़ सरकार और भड़क गयी और अल्लूरी के ऊपर 10 हज़ार का इनाम रख दिया। 

इधर दूसरी तरफ अल्लूरी ने भी पूरे आंध्रप्रदेश में अंग्रेज़ों के खिलाफ पोस्टर लगा दिए जिसमे अंग्रेज़ों को आंध्र छोड़ने के लिए कहा था। 

अंग्रेज़ों ने अल्लूरी को मात देने के लिए अपनी पुरानी नीती फुट डालो राज करो वाली को लागू किया और अल्लूरी के बहुत सारे साथियों को कोई न कोई लालच देकर अपने साथ शामिल कर लिया। 

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अल्लूरी की शहादत

अल्लूरी ने लगातर अंग्रेज़ों को देश से बहार निकलने का यत्न किया और अंग्रेज़ भी अभी तक अल्लूरी की ताकत को पहचान गए थे। अल्लूरी की सेना दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रही थी और अल्लूरी को रोकने के लिए अंग्रेज़ों ने आसाम राइफल्स नाम से एक सेना बनाई और उसे सेना ने जंगल और बीहड़ों में घूम कर अल्लूरी को ढूंढ़ना शुरू किया।

बहुत लम्बी खोजबइन के बाद अंग्रेज़ सेना अल्लूरी तक पहुंच गयी और किरबु नाम की जगह पर दोनों के बीच बहुत घमासान युद्ध हुआ। 

अंग्रेजी रिकॉर्ड के मुताबिक गोर्ती नाम के एक सैनिक ने 7 मई को अल्लूरी को पकड़ कर पेड़ से बांध दिया और उसपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसै जिससे अल्लूरी शहीद हो गए। 

अंग्रेज़ सरकार लगभग 2 साल तक अल्लूरी को ढूंढती रही थी। 

अल्लूरी एक ऐसे क्रन्तिकारी थे जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं पर आंध्रप्रदेश में आज भी लोग उन्हें एक संत और क्रांतिकारी के रूप में पूजते हैं। अल्लूरी ने आम लोगों को क्रन्तिकारी बना दिया था। अहिंसा का रास्ता छोड़ कर अंग्रेज़ों को उनकी ही भाषा में जवाब दिया। एक सन्यासी होने के साथ साथ डाके भी डेल और ग्रंथों के साथ साथ हत्यारों को भी चलाना सीखा। ऐसे क्रन्तिकारी वीर को हम प्रणाम करते हैं। 

अगर आप भी ऐसे ही किसी वीर योद्धा के बारे में जानते हैं तो हमें जरूर बताएं और तब तक पढ़ते रहीये

Rahul Sharma

हमारा नाम है राहुल,अपने सुना ही होगा। रहने वाले हैं पटियाला के। नाजायज़ व्हट्सऐप्प शेयर करने की उम्र में, कलम और कीबोर्ड से खेल रहे हैं। लिखने पर सरकार कोई टैक्स नहीं लगाती है, शौक़ सिर्फ़ कलाकारी का रहा है, जिसे हम समय-समय पर व्यंग्य, आर्टिकल, बायोग्राफीज़ इत्यादि के ज़रिए पूरा कर लेते हैं | हमारी प्रेरणा आरक्षित नहीं है। कोई भी सजीव निर्जीव हमें प्रेरित कर सकती है। जीवन में यही सुख है के दिमाग काबू में है और साँसे चल रही है, बाकी आज कल का ज़माना तो पता ही है |

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