रुसी क्रांति का पूरा इतिहास

रूसी क्रांति इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी | जिसने पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ी क्यूंकी इस क्रांति के बाद दुनिया के एक हिस्से पर सबसे कमजोर और दबे कुचले मजदूर वर्ग का शासन स्थापित हो गया था |

रूस की क्रांति के बाद रूस में सैंकड़ों साल पुराने ज़ार के शासन का अंत हो गया और सोवियत संघ का गठन हुआ |

रूसी क्रांति को दो हिस्सों में देखा जाता है | एक क्रांति फ़रवरी 1917 में हुई और दूसरी अक्तूबर 1917 में, इसलिए इसे अक्तूबर क्रांति भी कहा जाता है |

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रूस के इतिहास के पहले भाग में हमने आपको बताया था कि कैसे रूस में ज़ार का शासन शुरू हुआ था | जिसके बाद रूस में रोमानव्स (Romanovs) वंश की शुरुआत हुई थी |

रोमानव्स ने रूस पर लंबे समय तक राज किया था | रोमानव्स का सबसे पहला ज़ार मिखाइल रोमनोव (Mikhail Romanov) और सबसे आख़िरी ज़ार निकोलस II (Nicholas II) था |

रूसी क्रांति के बाद रोमानव्स और ज़ारों का शासन रूस में पूरी तरह से समाप्त हो गया था |

रूस की क्रांति के कारण

रूस में किसानो और श्रमिकों में लंबे समय से असंतोष पनप रहा था | लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के समय ये असंतोष चर्म पर पहुँच गया और रूस में तख्ता पलट हो गया |

20 वीं शताब्दी की शुरुआत से रूस में खेती वहाँ की आय का मुख्य साधन थी | लेकिन किसानो की दशा बहुत खराब थी, उन्हें बहुत ज़्यादा टैक्स देना पड़ता था |

किसानो को दासों की भाँति खेतों में काम करना पड़ता था | युरोप के दूसरे देशों में दास प्रथा का अंत हो चुका था लेकिन रूस में ये अभी भी जारी थी और रूस को युरोप में एक पिछड़े हुए समाज की तरह देखा जाता था |

1861 में रूस में फाइनली दास प्रथा का अंत हुआ | रूस के सत्ता में किसानो और श्रमिको का प्रधिनित्व करने वाला कोई नहीं था | निकोलस II के शासन काल में सभी ऊँचे पदों पर अमीर लोगों और पादरियों का ही अधिकार होता था |

इस दौर में रूस में इंडस्ट्री की हालत भी बहुत खराब थी | सिर्फ़ सैंट पीटर्सबर्ग और मॉस्को जैसे शहरों में ही ज़्यादातर इंडस्ट्रीज थी | पर वहाँ भी मजदूरों का शोषण होता था | उन्हे अच्छा वेतन नहीं दिया जाता था साथ ही उनके रहने की जगहें भी बहुत गंदी और ओवरक्राउडेड होती थी |

दोस्तों यहाँ पर आपको बता दें कि

ज़ार ने 1914 में सेंट पीटर्सबर्ग (St. Petersburg) का नाम बदलकर पेट्रोग्रैड (Petrograd) रख दिया था | क्यूंकि उनके अनुसार सेंट पीटर्सबर्ग (St. Petersburg) नाम एक जर्मन नाम लगता था |

बाद में रूसी क्रांति के नायक लेनिन ने इसका नाम बदलकर लेनिनग्रेड (Leningrad) रख दिया और 1991 में USSR के पतन के बाद इसका नाम फिर से सेंट पीटर्सबर्ग रख दिया गया |

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रशियन सोशियल डेमॉक्रेटिक लेबर पार्टी का गठन

रूस के लोगों को रोटी के संकट से बहुत बार जूझना पड़ा जिसकी शुरुआत क्रीमियन वॉर (Crimean War) से हुई थी | इसके बाद रूसो जपानीस वॉर (Russo Japanese War) और फर्स्ट वर्ल्ड वॉर (First World War) में ये संकट बहुत बड़ा हो गया था |

19 वीं शताब्दी तक रूस के लोगों के लिए लोकतंत्र, समान अधिकार और चुनी हुई सरकार जैसे शब्द बिल्कुल नये थे लेकिन धीरे धीरे फ्रांसीसी क्रांति और युरोप के दूसरे देशों में स्थापित लोकतंत्र की बातें रूस तक पहुँचने लगी थी |

निकोलस II 1894 में रूस का ज़ार बना था | रूस में दबे कुचले लोगों की आवाज़ को मजबूत करने के लिए 1898 में एक पार्टी का गठन होता है जिसका नाम था रशियन सोशियल डेमॉक्रेटिक लेबर पार्टी |

ये पार्टी मुख्य रूप से मार्क्स की विचारधारा पर बनी थी जिसके बड़े नेता के रूप में लेनिन ने इसकी कमान संभाली थी | 1903 में रशियन सोशियल डेमॉक्रेटिक लेबर पार्टी दो हिस्सों में बंट गयी |

एक गुट का नाम बोल्शेविक था जबकि दूसरे गुट को मेंशेविक्स कहा जाता था | बोल्शेविक के नेता लेनिन थे जो की मजदूरों की सत्ता में विश्वास रखते थे फिर चाहे वो तानाशाही और हिंसा के बल पर ही क्यूँ ना हासिल की जाए |

जबकि मेंशेविक्स शांतिपुराण ढंग से प्राप्त डेमोक्रेसी में विशवास रखते थे |

1904 में रूस और जापान में मंचूरिया और कोरिया पर अपने अधिपत्य को लेकर जंग छिड़ गई | इस लड़ाई में रूस की हार हुई और इस हार की वजह से 1905 में रूस में एक क्रांति हुई |

1905 की रूस की क्रांति

1905 में रूस में जो क्रांति हुई उसके बाद पूरे रूस में वर्कर्स ने हड़ताल कर दी | वर्कर्स अच्छी सुविधाओं और अधिकारों की माँग करने लगे |

इस क्रांति को ज़ार ने सैन्य शक्ति के बल पर पूरी तरह से दबा दिया | इस क्रांति के दौरान ब्लडी संडे नाम की घटना हुई थी जिसमें रविवार के दिन ज़ार ने प्रदर्शन करने वाले सैंकड़ों निहत्थे परदर्शनकारियों को मरवा दिया था |

हालाँकि 1905 की इस क्रांति को ज़ार ने पूरी तरह कुचल दिया था लेकिन ज़ार को लगने लगा था कि सत्ता में बने रहने के लिए कुछ सुधार करने होंगे | इसीलिए ज़ार के द्वारा अक्तूबर मेनिफेस्टो लाया गया जिसके तहत रूस में संसद का गठन हुआ जिसे डूमा कहा जाता था |

इसके बाद रूस की पॉलिटिक्स में कुछ चुने हुए प्रतिनिधि भी आने लगे लेकिन ज़्यादातर लोग अमीर घरानो से ही थे | डूमा के गठन के बाद रूस के प्रधानमंत्री Pyotr Stolypin बने |

पीटर ने रूस में श्रमिकों और किसानो के लिए बहुत से अच्छे काम किए | जिस कारण इनकी लोकप्रियता में वृद्धि होने लगी, जिससे ज़ार को भी डर लगने लगा और ज़ार ने 1911 में इनकी हत्या करवा दी |

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प्रथम विश्व युद्ध के कारण भड़की रूस की क्रांति

इसके बाद जिस अगली घटना ने 1917 की रूसी क्रांति को जन्म दिया वो था प्रथम विश्व युद्ध | पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 के बीच चला | इस लड़ाई में रूस ने भाग लिया और बहुत बड़ी संख्या में रूस के सैनिक इस युद्ध में शामिल हुए |

रूस के पास सैनिकों की संख्या तो बहुत ज़्यादा थी लेकिन उनके पास हथियारों की भारी कमी थी | इस लड़ाई में रूस के 20 लाख के करीब सैनिक और 80 लाख के करीब आम नागरिक मारे गये थे |

पूरे देश में भुखमरी फैल गई थी | रूस का ज़ार 1915 में इस जंग में शामिल होने के खुद बैटल ग्राउंड में आ गया था | जबकि उसे युद्ध लड़ने का खास अनुभव नहीं था | अब युद्ध में रूस की हालत के लिए ज़ार को सीधे तौर भी ज़िम्मेवार मान लिया गया |

दूसरी तरफ ज़ार की पत्नी ज़रीना अलेक्सांद्रा जो की एक जर्मन महिला थी उसने चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाना शुरू कर दिया | निकोलस II रासपुतिन नाम के एक रूसी पादरी से बहुत प्रभावित था |

ज़ार की पत्नी भी इस रासपुतिन के प्रभाव में थी और माना जाता है की रानी के इस आदमी के साथ अवेध संबंध भी थे | ज़ार की अनुपस्थिति में रासपुतिन का प्रभाव बहुत बढ़ गया था |

ज़ार की जर्मन पत्नी और रासपुतिन के प्रभाव को कम करने के लिए रूस के कुछ अमीर लोगों ने 30 दिसंबर 1916 को रासपुतिन का क़त्ल करवा दिया |

इसके बाद ज़ार ने डूमा को भी ख़तम कर दिया और रूस में क्रांति की शुरुवात हो गई |

1917 की रुसी क्रांति

रूस की क्रांति के दो फेज़ थे |

फेज़ 1 जूलियन कैलेंडर के अनुसार फ़रवरी में हुआ था और फेज़ 2 अक्टूबर के महीने में हुआ था इसलिए इसे अक्टूबर क्रांति भी कहा जाता है |

पूरी दुनिया में अब जिस कैलेंडर को फॉलो किया जाता है वो है ग्रिगॉरीयन कैलेंडर जिसके अनुसार फेज़ 1 की क्रांति मार्च और फेज़ 2 की क्रांति नवंबर में हुई थी |

रूसी क्रांति के फेज़ 1 में 50,000 वर्कर्स ने पेट्रोग्रैड में स्ट्राइक कर दी थी | इन वर्कर्स के साथ साथ आम लोगों ने भी भुखमरी से परेशान होकर प्रोटेस्ट शुरू कर दिए |

ऐसे में ज़ार के पास सत्ता छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था | ज़ार निकोलस II ने अपने भाई माइकल के लिए गद्दी छोड़ दी लेकिन उसने ज़ार बनने से इनकार दिया |

इसके बाद पूरी ताक़त डूमा के हाथ में आ गई, जिसके बाद एक सोशियल डेमोक्रॅट प्रोविशनल सरकार का गठन हुआ | ये सरकार मेंशेविक्स विचारधारा से प्रभावित थी | इस सरकार के बनने के बाद अलेग्ज़ॅंडर केयरिन्स्की (Alexander Kerensky) प्राइम मिनिस्टर बने |

इस सरकार के बन जाने के बाद भी लोगों में असंतोष ख़तम नहीं हुआ क्यूंकी इस प्रोविज़नल सरकार ने ना तो प्रथम विश्व युद्ध से रूस को बाहर निकाला और ना ही वहाँ चुनाव करवाए |

Leon Trotsky के नेतृत्व में बोल्शेविक्स ने भी सरकार से युद्ध से बाहर निकालने और श्रमिकों के सुधारों की माँग की | लेकिन सरकार ने माँगे मानने की बजाए बोल्शेविक्स को बैन कर दिया और सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया |

इसके बाद अगस्त में रूस की आर्मी ने वहाँ तख्ता पलट की कोशिश की | अब रूस की प्रोविज़नल सरकार जिसके नेता अलेग्ज़ॅंडर केयरिन्स्की थे उन्होने बोल्शेविक्स की रेड आर्मी से सरकार को बचाने की गुहार लगाई |

क्यूंकी बोल्शेविक्स के पास एक रेड आर्मी नाम की एक गुप्त सेना थी जो हथियार चलाने और लड़ने में माहिर थी | बोल्शेविक्स की रेड आर्मी ने सेना के तख्तापलट को नाकाम कर दिया |

इसके बाद रूस में लेनिन की वापसी हुई और लेनिन ने रूस में जगह जगह भाषण दिए और लोगों को अपने हकों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया |

रूस में हर फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों की काउन्सिल्स थी जिन्हें सोवियतस कहा जाता था | इन सोवियतस पर बोल्शेविक्स का पूरा कंट्रोल था | बोल्शेविक्स ने 24/25 अक्टूबर की रात को पेट्रोग्रैड की सभी सरकारी बिल्डिंग्स पर कब्जा कर लिया |

इसके बाद थोड़े समय में ही बोल्शेविक्स ने रूस की दूसरी सिटीज पर भी कब्जा कर लिया | इस तरह बोल्शेविक्स ने वहाँ प्रोविज़नल सरकार को समाप्त कर दिया |

सिविल वॉर

पर इसके बाद रूस में सिविल वॉर छिड़ गई जो 1917 से शुरू होकर 1922 तक चली | ये सिविल वॉर रेड और वाइट के बीच में थी | रेड यानी बोल्शेविक्स पार्टी की रेड आर्मी और दूसरी तरफ वाइट यानी कुलीन वर्ग के लोग थे |

वाइट आर्मी में बड़े जमींदार थे जो अपनी ज़मीने नहीं छीनने देना चाहते थे, इसमें चर्च से जुड़े लोग, ज़ार के समर्थक और मेंशेविक्स पार्टी से जुड़े लोग भी शामिल थे |

सबसे बड़ी बात इन लोगों को अमेरिका, फ़्राँस और ब्रिटेन का भी समर्थन मिल रहा था क्यूंकी वहाँ के लोग भी मजदूरों और श्रमिकों को सत्ता देने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे |

इस सिविल वॉर में अंत में रेड आर्मी की जीत हुई थी लेकिन इस पूरी वॉर में 20 से 30 लाख लोग मारे गये थे | ज़ार के पूरे परिवार को रेड आर्मी के लोगों ने गोलियाँ से भुन दिया था |

बाद में यही बोल्शेविक्स कम्यूनिस्ट कहलाए | इसके बाद दिसंबर 1922 में USSR का गठन हुआ जिसके मुखिया लेनिन थे |

रूस की क्रांति का प्रभाव

इस क्रांति के कुछ दूरगामी प्रभाव हुए जैसे कि दुनिया के सबसे बड़े राज तंत्र का अंत हो गया | दुनिया के एक हिस्से में वास्तव में इक्वलिटी स्थापित हुई जो अमरीकी क्रांति और फ्रांसीसी क्रांति के बाद भी स्थापित नहीं हो पाई थी |

क्यूंकी अमेरिका में क्रांति के बाद अश्वेतों और ग़रीब लोगों को वोटिंग का अधिकार नहीं मिला था | 5 वर्षीय योजना की शुरुवात हुई जिसे भारत ने भी संविधान बनने के बाद अपनाया और भारत में पहली 5 वर्षीय योजना 1952 में लागू हुई |

मार्क्स की विचारधारा को किसी देश ने अपनाया |

Mohan

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